महाभारतम्-08-कर्णपर्व-082
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कर्णपराक्रमवर्णनम्।। 1 ।।
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धृतराष्ट्र उवाच। | 8-82-1x |
ततो भग्नेषु सैन्येषु भीमसेनेन संयुगे। दुर्योधनोऽब्रवीत्किं नु सौबलो वाऽपि सञ्जय।। | 8-82-1a 8-82-1b |
कर्णो वा जयतां श्रेष्ठो योधा वा मामका युधि। कृपो वा कृतवर्मा वा द्रौणिर्दुःशासनोऽपि वा।। | 8-82-2a 8-82-2b |
अत्यद्भुतमहं मन्ये पाण्डवेयस्य विक्रमम्। यदेकः समरे सर्वान्योधयामास मामकान्।। | 8-82-3a 8-82-3b |
यथाप्रतिज्ञं योधानां राधेयः कृतवानपि। कुरूणामथ सर्वेषां कर्णः शत्रुनिषूदनः। शर्म वर्म प्रतिष्ठा च जीविताशा च सञ्जय।। | 8-82-4a 8-82-4b 8-82-4c |
तद्भग्रं स्वबलं दृष्ट्वा कौन्तेयेनामितौजसा। धनुर्दराणां प्रवरः कर्णः किमकरोद्युधि।। | 8-82-5a 8-82-5b |
पुत्रा वा मम दुर्धर्षा राजानो वा महारथाः। एतन्मे सर्वमाचक्ष्व कुशलो ह्यसि सञ्जय।। | 8-82-6a 8-82-6b |
सञ्जय उवाच। | 8-82-7x |
अपराह्णे महाराज सूतपुत्रः प्रतापवान्। जघान सोमकान्सर्वान्भीमसेनस्य पश्यतः।। | 8-82-7a 8-82-7b |
भीमोऽप्यतिबलं सैन्यं धार्तराष्ट्रं व्यपोथयत्।। | 8-82-8a |
द्राव्यमाणं बलं दृष्ट्वा भीमसेनेन धीमता। यन्तारमब्रवीत्कर्णः पाञ्चालानेव मां वह।। | 8-82-9a 8-82-9b |
मद्रराजस्ततः शल्यः श्वेतानश्वान्महाजवान्। प्राहिणोच्चेदिपाञ्चालान्करूशांश्च महाबलः।। | 8-82-10a 8-82-10b |
प्रविश्य च महत्सैन्यं शल्यः परबलार्दनः। न्ययच्छत्तुरगान्हृष्टो यत्रयत्र च ते रथाः।। | 8-82-11a 8-82-11b |
तं रथं मेघसङ्काशं वैयाघ्रपरिवारणम्। संदृश्य पाण्डुपञ्चालास्त्रस्ता ह्यासन्विशाम्पते।। | 8-82-12a 8-82-12b |
ततो रथस्य निनदः प्रादुरासीन्महारणे। पर्जन्यसमनिर्घोषः पर्वतस्येव दीर्यतः।। | 8-82-13a 8-82-13b |
ततः शरशतैस्तीक्षणैः कर्ण आकर्णनिःसृतैः। जघान पाण्डवबलं शतशोऽथ सहस्रशः।। | 8-82-14a 8-82-14b |
तं तथा समरे कर्म कुर्वाणमपराजितम्। परिवव्रुर्महेष्वासाः पाण्डवानां महारथाः।। | 8-82-15a 8-82-15b |
तं शिखण्डी च भीमश्च धृष्टद्युम्नश्च पार्षतः। नकुलः सहदेवश्च द्रौपदेयाश्च सात्यकिः।। | 8-82-16a 8-82-16b |
परिवव्रुर्जिघांसन्तो राधेयं शरवृष्टिभिः। सात्यकिस्तु तदा कर्णं विंशत्या निशितैः शरैः।। | 8-82-17a 8-82-17b |
अताडयद्रणे शूरो जत्रुदेशे नरोत्तमः। शिखण्डी पञ्चविंशत्या धृष्टद्युम्नश्च सप्तभिः।। | 8-82-18a 8-82-18b |
द्रौपदेयाश्चतुःषष्ट्या सहदेवश्च सप्तभिः। नकुलश्च शतेनाजौ कर्णं विव्याध सायकैः।। | 8-82-19a 8-82-19b |
भीमसेनस्तु राधेयं नवत्या नतपर्वणाम्। विव्याध समरे क्रुद्धो जत्रुदेशे महाबलः।। | 8-82-20a 8-82-20b |
अथ प्रहस्याधिरथिर्व्याक्षिपद्धनुरुत्तमम्। मुमोच निशितान्बाणान्पीडयन्सुमहाबलः।। | 8-82-21a 8-82-21b |
तान्प्रत्यविध्यद्राधेयः पञ्चभिः पञ्चभिः शरैः। सात्यकेस्तु धनुश्छित्त्वा ध्वजं च भरतर्षभ।। | 8-82-22a 8-82-22b |
तं तथा नवभिर्बाणैराजघान स्तनान्तरे। भीमसेनं ततः क्रुद्धो विव्याध त्रिंशता शरैः।। | 8-82-23a 8-82-23b |
सहदेवस्य भल्लेन ध्वजं चिच्छेद मारिष। सारथिं च त्रिभिर्बाणैराजघान परन्तपः।। | 8-82-24a 8-82-24b |
विरथान्द्रौपदेयांश्च चकार भरतर्षभ। अक्ष्णोर्निमेषमात्रेण तदद्भुतमिवाभवत्।। | 8-82-25a 8-82-25b |
विमुखीकृत्य तान्सर्वाञ्शरैः सन्नतपर्वभिः। पाञ्चालानहनञ्छूरांश्चेदीनां च महारथान्।। | 8-82-26a 8-82-26b |
ते वध्यमानाः समरे चेदिमत्स्या विशाम्पते। कर्णमेकमभिद्रुत्य शरसङ्खैः समार्पयन्।। | 8-82-27a 8-82-27b |
ताञ्जघान शितैर्बाणैः सूतपुत्रो महारथः। ते वध्यमानाः समरे चेदिमात्स्या विशाम्पते। प्राद्रवन्त रणे भीताः सिंहत्रस्ता मृगा इव।। | 8-82-28a 8-82-28b 8-82-28c |
एतदत्युद्भतं कर्म दृष्ट्वानस्मि भारत। यदेकः समरे शूरान्सूतपुत्रः प्रतापवान्।। | 8-82-29a 8-82-29b |
यतमानान्परं शक्त्या योधयानांश्च धन्विनः। पाण्डवेयान्महाराज शरैर्वारितवान्रणे।। | 8-82-30a 8-82-30b |
तत्र भारत कर्णस्य लाघवेन महात्मनः। तुतुषुर्देवताः सर्वाः सिद्धाश्च सह चारणैः।। | 8-82-31a 8-82-31b |
अपूजयन्महेष्वासा धार्तराष्ट्रा नरोत्तमम्। कर्णं रथवरश्रेष्ठं श्रेष्ठं सर्वधनुष्मताम्।। | 8-82-32a 8-82-32b |
ततः कर्णो महाराज ददाह रिपुवाहिनीम्। कक्षमिद्धो यथा वह्निर्निदाधे ज्वलितो महान्।। | 8-82-33a 8-82-33b |
ते वध्यमानाः कर्णेन पाण्डवेयास्ततस्ततः। प्राद्रवन्त रणे भीताः कर्णं दृष्ट्वा महारथम्।। | 8-82-34a 8-82-34b |
तत्राक्रन्दो महानासीत्पाञ्चालानां महारणे। वध्यतां सायकैस्तीक्ष्णैः कर्णचापवरच्युतैः।। | 8-82-35a 8-82-35b |
तेन शब्देन वित्रस्ता पाण्डवानां महाचमूः। कर्णमेकं रणे योधं मेनिरे तत्र शात्रवाः।। | 8-82-36a 8-82-36b |
तत्राद्भुतं पुनश्चक्रे राधेयः शत्रुकर्शनः। यदेनं पाण्डवाः सर्वे न शेकुरभिवीक्षितुम्।। | 8-82-37a 8-82-37b |
जलौघः पर्वतश्रेष्ठं यथासाद्य प्रभिद्यते। तथा तत्पाण्डवं सैन्यं कर्णमासाद्य दीर्यते।। | 8-82-38a 8-82-38b |
कर्णोऽपि समरे राजन्विधूमोऽग्निरिव ज्वलत्। दहंस्तस्थौ महाबाहुः पाण्डवानां महाचमूम्।। | 8-82-39a 8-82-39b |
शिरांसि च महाराज कर्णां श्चैव सकुण्डलान्। बाहूंश्च वीरो वीराणां चिच्छेद लघु चेषुभिः।। | 8-82-40a 8-82-40b |
हस्तिदन्तत्सरून्खङ्गान्ध्वजाञ्शक्तीर्हयान्गजान्। रथांश्च विविधान्राजन्पताका व्यजनानि च।। | 8-82-41a 8-82-41b |
अक्षं च युगयोक्त्राणि चक्राणि विविधानि च। चिच्छेद बहुधा कर्णो योधव्रतमनुष्ठितः।। | 8-82-42a 8-82-42b |
तत्र भारत कर्णेन निहतैर्गजवाजिभिः। अगम्यरूपा पृथिवी मांसशोणितकर्दमा।। | 8-82-43a 8-82-43b |
विषमं च समं चैव हतैरश्वपदातिभिः। रथैश्च कुञ्जरैश्चैव न प्राज्ञायत किञ्चन।। | 8-82-44a 8-82-44b |
नापि स्वे न परे योधाः प्राज्ञायन्त परस्परम्। घोरे शरान्धकारे तु कर्णास्त्रे च विजृम्भिते।। | 8-82-45a 8-82-45b |
राधेयचापनिर्मुक्तैः शरैः काञ्चनभूषणैः। सञ्छादिता महाराज पाण्डवानां महारथाः।। | 8-82-46a 8-82-46b |
ते पाण्डवेयाः समरे राधेयेन पुनः पुनः। अभज्यन्त महाराज यतमाना महारथाः।। | 8-82-47a 8-82-47b |
मृगसङ्घान्यथा क्रुद्धः सिंहो द्रावयते वने। पञ्चालानां रथश्रेष्ठान्द्रावयञ्शात्रवांस्तथा।। | 8-82-48a 8-82-48b |
कर्णस्तु समरे योधांस्त्रासयुन्सुमहायशाः। कालयामास तत्सैन्यं यथा पशुगणान्वृकः।। | 8-82-49a 8-82-49b |
दृष्ट्वा तु पाण्डवीं मेनां धार्तराष्ट्राः पराङ्युखीम्। तत्राजग्मुर्महेष्वासा रुदन्तो भैरवात्रवान् ।। | 8-82-50a 8-82-50b |
दुर्योधनो हि राजेन्द्र मुदा परमया युतः। वादयामास संहृष्टो नानावाद्यानि सर्वशः।। | 8-82-51a 8-82-51b |
पाञ्चालाश्च महेष्वासा भग्नास्तत्र नरोत्तमाः। न्यवर्तन्त तदा शूरा मृत्युं कृत्वा निवर्तनम्।। | 8-82-52a 8-82-52b |
तान्निवृत्तान्रणे शूरान्राधेयः शत्रुतापनः। अनेकशो महाराज बभञ्ज पुरुषर्षभः।। | 8-82-53a 8-82-53b |
तत्र भारत कर्णेन पाञ्चाला विंशती रथाः। निहताः सायकैः क्रोधाच्चेदयश्च परंशताः।। | 8-82-54a 8-82-54b |
कृत्वा शून्यान्रथोपस्थान्वाजिपृष्ठांश्च भारत। निर्मनुष्यान्गजस्कन्धान्पादातांश्चैव विद्रुतान्।। | 8-82-55a 8-82-55b |
आदित्य इव मध्याह्ने दुर्निरीक्ष्यः परन्तपः। कालान्तकवपुः शूरः सूतपुत्रोऽभ्यराजत।। | 8-82-56a 8-82-56b |
एवमेतन्महाराज नरवाजिरथद्विपान्। हत्वा तस्थौ महेष्वासः कर्णोऽरिगणसूदनः।। | 8-82-57a 8-82-57b |
यथा भूतगणान्हत्वा कालस्तिष्ठेन्महाबलः। तथा स सोमकान्हत्वा तस्थावेको महारथः।। | 8-82-58a 8-82-58b |
तत्राद्भुतमपश्याम पाञ्चालानां पराक्रमम्। वध्यमानाऽपि यत्कर्णं नाजहू रणमूर्धनि।। | 8-82-59a 8-82-59b |
राजा दुःशासनश्चैव कृपः शारद्वतस्तथा। अश्वत्थामा कृतवर्मा शकुनिश्च महाबलः। व्यहनन्पाण्डवीं सेनां शतशोऽथ सहस्रशः।। | 8-82-60a 8-82-60b 8-82-60c |
कर्मपुत्रौ तु राजेन्द्र भ्रातरौ सत्यविक्रमौ। निजघ्नाते बलं क्रुद्धौ पाण्डवानामितस्ततः।। | 8-82-61a 8-82-61b |
तत्र युद्धं महच्चासीत्क्रूरं विशसनं महत्।। | 8-82-62a |
तथैव पाण्डवाः शूरा धृष्टद्युम्नशिखण्डिनौ। द्रौपदेयाश्च सङ्क्रुद्धा अभ्यघ्नंस्तावकं बलम्।। | 8-82-63a 8-82-63b |
एवमेष क्षयो वृत्तः पाण्डवानां ततस्ततः। तावकानामपि रणे भीमं प्राप्य महाबलम्।। | 8-82-64a 8-82-64b |
।। इति श्रीमन्महाभारते कर्णपर्वणि सप्तदशदिवसयुद्धे द्व्यशीतितमोऽध्यायः।। 82 ।। |
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