महाभारतम्-08-कर्णपर्व-080
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भीमसेनविशोकयोः संवादः।। 1 ।।
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सञ्जय उवाच। | 8-80-1x |
र्नयाम्येतान्धार्तराष्ट्रान्यमाय।। | 8-80-1f |
सञ्चोदितो भीमसेनेन चैवं स सारथिः पुत्रबलं त्वदीयम्। प्रायात्ततः सत्वरमुग्रवेगो यतो भीमस्तद्बलं गन्तुमैच्छत्।। | 8-80-2a 8-80-2b 8-80-2c 8-80-2b |
ततोऽपरे नागरथाश्वपत्तिभिः प्रत्युद्ययुस्तं कुरवः समन्तात्। भीमस्य वाहाग्र्यमुदारवेगं समन्ततो बाणगणैर्निजघ्नुः।। | 8-80-3a 8-80-3c 8-80-3c 8-80-3d |
ततः शरानापततो महात्मा चिच्छेद बाणैस्तपीनयपुङ्खैः। ते वै निपेतुस्तपनीयपुङ्खा द्विधा त्रिधा भीमशरैर्निकृत्ताः।। | 8-80-4a 8-80-4b 8-80-4c 8-80-4d |
ततो राजन्नागरथाश्वयूनां भीमाहतानां वरराजमध्ये। घोरो निनादः सुमहानभूत्तदा वज्राहतानामिव पर्वतानाम्।। | 8-80-5a 8-80-5b 8-80-5c 8-80-5d |
ते वध्यमानाश्च नरेन्द्रमुख्या निर्भिद्यन्तो भीमशरप्रवेकैः। भीमं समन्तात्समरेऽभ्यरोहन् वृक्षं शकुन्ता इव पुष्पहेतोः।। | 8-80-6a 8-80-6b 8-80-6c 8-80-6d |
ततोऽभियाते तव सैन्ये स भीमः प्रादुश्चक्रे वेगमनन्तवेगः। यथाऽन्तकाले क्षपयन्दिधक्षु-- र्भूतान्तकृत्काल इवात्तदण्डः।। | 8-80-7a 8-80-7b 8-80-7c 8-80-7d |
तस्यातिवेगस्य रणेऽतिवेगं नाशक्नुवन्धारयितुं त्वदीयाः। व्यात्ताननस्यापततो यथैव कालस्य काले हरतः प्रजा वै।। | 8-80-8a 8-80-8b 8-80-8c 8-80-8d |
ततो बलं भारत भारतानां प्रदह्यमानं समरे महात्मना। भीतं दिशोऽकीर्यत भीमनुन्नं महानिलेनाभ्रगणा यथैव।। | 8-80-9a 8-80-9b 8-80-9c 8-80-9d |
ततो धीमान्सारथिमब्रवीद्बली स भीमसेनः पुनरेव हृष्टः।। | 8-80-10a 8-80-10b |
सूताभिजानीहि परान्स्वकान्वा रथान्ध्वजांश्चापततः समेतान्। युध्यन्ह्यहं नाभिजानामि किञ्चि-- न्मा सैन्यं स्वं छादयिष्ये प्रमत्तः।। | 8-80-11a 8-80-11b 8-80-11c 8-80-11d |
अरीन्विशोकान्हि निरीक्ष्य सर्वतो महांश्च मन्युः पुनरेति मां भृशम्। राजातुरो नागमद्यत्किरीटी बहूनि दुःखान्यभिचिन्तयामि।। | 8-80-12a 8-80-12b 8-80-12c 8-80-12d |
एतद्दुःखं धारये धर्मराजो यन्मां हित्वा यातवाञ्शत्रुमध्ये। नैनं जीवं नाभिजानाम्यजीवं बीभत्सुं वा तन्ममाद्यातिदुःखम्।। | 8-80-13a 8-80-13b 8-80-13c 8-80-13d |
सोऽहं द्विषत्सैन्यमुदग्रकल्पं विनाशयिष्ये परमप्रतीतः। एतन्निहत्याजिमध्ये समेतं प्रीतो भविष्यामि सह त्वयाद्य।। | 8-80-14a 8-80-14b 8-80-14c 8-80-14d |
ह्याचक्ष्व मे सारथे क्षिप्रमेव।। | 8-80-15f |
विशोक उवाच। | 8-80-16x |
सर्वं विदित्वैवमहं वदामि तवार्थसिद्धिप्रदमद्य वीर। कैकेयकाम्भोजसुराष्ट्रबाह्लिका म्लेच्छाश्च सुह्माः परतङ्कणाश्च। | 8-80-16a 8-80-16b 8-80-16c 8-80-16d |
मद्राश्च वङ्गा मगधाः कुणिन्दा आनर्तकावर्तकाः पार्वतीयाः। सर्वे गृहीतप्रवरायुधास्त्वां संवेष्ट्य संवेष्ट्य ततो विवेदुः।। | 8-80-17a 8-80-17b 8-80-17c 8-80-17d |
रथे तवास्मिन्निशिताः सुपीता-- स्ततो भल्ला द्वादश वै सहस्राः'। षण्मार्गणानामयुतानि वीर क्षुराश्च भल्लाश्च तथायुताख्याः।। | 8-80-18a 8-80-18b 8-80-18c 8-80-18d |
नाराचानां द्वे सहस्रे च वीर त्रीण्येप च प्रदराणां स्म पार्थ। अस्त्यायुधं पाण्डवेयावशिष्टं न यद्वहेच्छकटं षङ्गवीयम्।। | 8-80-19a 8-80-19b 8-80-19c 8-80-19d |
एतद्विद्वन्मुञ्च सहस्रशोऽपि गदासिबाहुद्रविणं च तेऽस्ति। प्रासाश्च मुद्रराः शक्तयस्तोमराश्च माभैषीस्त्वं संक्षयादायुधानाम्।। | 8-80-20a 8-80-20b 8-80-20c 8-80-20d |
भीमसेन उवाच। | 8-80-21x |
तन्मे देवाः सकलं साधयन्तु।।' | 8-80-21f |
सूताद्य मद्बाहुयुतैः समस्ता-- न्समाहनद्भिः पार्थिवानाशुवेगैः। च्छन्नं बाणैराहवं घोररूपं नष्टादित्यं मृत्युलोकेन तुल्यम्।। | 8-80-22a 8-80-22b 8-80-22c 8-80-22d |
अद्यैतद्यै विदितं पार्थिवानां भविष्यति ह्याकुमारं च सूत। निमग्नो वा समरे भीमसेन एकः कुरून्वा समरे व्यजैषीत्।। | 8-80-23a 8-80-23b 8-80-23c 8-80-23d |
सर्वे सङ्ख्ये कुरवो निष्पतन्तु मां वा लोकाः कीर्तयन्त्वाकुमारम्। सर्वानेकस्तानहं पातयिष्ये ते वा सर्वे भीमसेनं तुदन्तु।। | 8-80-24a 8-80-24b 8-80-24c 8-80-24d |
आशास्तारः कर्म चाप्युत्तमं ये तन्मे देवाः सफलं साधयन्तु। आयातीह केशवसारथी रथी शक्रस्तूर्णं यज्ञ इवोपहूतः।। | 8-80-25a 8-80-25b 8-80-25c 8-80-25d |
ईक्षस्वैतां भारतीं दीर्यमाणा-- मेते कस्माद्विद्रवन्ते नरेन्द्राः। व्यक्तं धीमान्सव्यसाची नराग्र्यः सैन्यं ह्येतच्छादयत्याशु बाणैः।। | 8-80-26a 8-80-26b 8-80-26c 8-80-26d |
पश्य ध्वजांश्च द्रवतो विशोक नागान्हयान्पत्तिसङ्घांश्च सङ्ख्ये। रथान्विकीर्णाञ्शरशक्तिताडिता-- न्पश्यस्वैतान्रथिनश्चैव सूत।। | 8-80-27a 8-80-27b 8-80-27c 8-80-27d |
आपूर्यते कौरवी चाप्यभीक्ष्णं सेना ह्यसौ सुभृशं हन्यमाना। धनञ्जयस्याशनितुल्यवेगै-- र्ग्रस्ता शरैः काञ्चनबर्हजालैः।। | 8-80-28a 8-80-28b 8-80-28c 8-80-28d |
एते द्रवन्ति स्म रथाश्वनागाः पदातिसङ्घानतिमर्दयन्तः। सम्मुह्यमानाः कौरवाः सर्व एव द्रवन्ति नागा इव दाहभीताः।। | 8-80-29a 8-80-29b 8-80-29c 8-80-29d |
हाहाकृताश्चैव रणे विशोक मुञ्चन्ति नादान्विपुलान्गजेन्द्राः।। | 8-80-30a 8-80-30b |
विशोक उवाच। | 8-80-31x |
किं भीम नैनं त्वमिहाशृणोषि विस्फारितं गाण्डिवस्यातिघोरम्। क्रुद्धेन पार्थेन विकृष्यतोऽद्य कच्चिन्नेमौ तव कर्णौ विनष्टौ।। | 8-80-31a 8-80-31b 8-80-31c 8-80-31d |
सर्वे कामाः पाण्डव ते समृद्धाः कपिर्ह्यसौ दृश्यते हस्तिसैन्ये। नीलाद्धनाद्विद्युतमुच्चरन्तीं तथा पश्य विस्फुरन्तीं धनुर्ज्याम्।। | 8-80-32a 8-80-32b 8-80-32c 8-80-32d |
कपिर्ह्यसौ वीक्षते सर्वतो वै ध्वजाग्रमारुह्य धनञ्जयस्य। वित्रासयन्रि पुसङ्घान्विमर्दे बिभेम्यस्मादात्मनैवाभिवीक्ष्य।। | 8-80-33a 8-80-33b 8-80-33c 8-80-33d |
विभ्राजते चातिमात्रं किरीटं विचित्रमेतच्च धनञ्जयस्य। दिवाकराभो मणिरेष दिव्यो विभ्राजते चैव किरीटसंस्थः।। | 8-80-34a 8-80-34b 8-80-34c 8-80-34d |
पार्श्वे भीमं पाण्डुराभ्रप्रकाशं पश्यस्व सङ्खं देवदत्तं सुघोषम्। अभीषुहस्तस्य जनार्दनस्य विगाहमानस्य चमूं परेषाम्।। | 8-80-35a 8-80-35b 8-80-35c 8-80-35d |
रविप्रभं वज्रनाभं क्षुरान्तं पार्श्वे स्थितं पश्य जनार्दनस्य। चक्रं यशोवर्धनं केशवस्य सदार्चितं यदिभिः पश्य वीर।। | 8-80-36a 8-80-36b 8-80-36c 8-80-36d |
महाद्विपानां सरलद्रुमोपमाः करा निकृत्ताः प्रपतन्त्यमी क्षुरैः। किरीटिना तेन पुनः ससादिनः शरैर्निकृत्ताः कुलिशैरिवाद्रयः।। | 8-80-37a 8-80-37b 8-80-37c 8-80-37d |
तथैव कृष्णस्य च पाञ्चजन्यं महार्हमेतं द्विजराजवर्णम्। कौन्तेय पश्योरसि कौस्तुभं च जाज्वल्यमानं विजयां स्रजं च।। | 8-80-38a 8-80-38b 8-80-38c 8-80-38d |
ध्रवं रथाग्र्यः समुपैति पार्थो विद्रावयन्सैन्यमिदं परेषाम्। सिताभ्रवर्णैरसितप्रयुक्तै-- र्हयैर्महार्है रथिनां वरिष्ठः।। | 8-80-39a 8-80-39b 8-80-39c 8-80-39d |
रथान्हयान्पत्तिगणांश्च सायकै-- र्विदारितान्पश्य पतन्त्यमी यथा। तवानुजेनामरराजतेजसा महावनानीव सुपर्णवायुना।। | 8-80-40a 8-80-40b 8-80-40c 8-80-40d |
चतुः शतान्पश्य रथानिमान्हतान् सवाजिसूतान्समरे किरीटिना। महेषुभिः सप्तशतानि दन्तिनां पदातिसादींश्च रथाननेकशः।। | 8-80-41a 8-80-41b 8-80-41c 8-80-41c |
अयं समभ्येति तवान्तिकं बली निघ्नन्कुरूंश्चित्र इव ग्रहोऽर्जुनः। समृद्धकामोऽसि हतास्तवाहिता बलं तवायुश्च चिराय वर्धताम्।। | 8-80-42a 8-80-42b 8-80-42c 8-80-42d |
भीमसेन उवाच। | 8-80-43x |
ददानि ते ग्रामवरांश्चतुर्दश प्रियाख्याने सारथे सुप्रसन्नः। दासीशतं चापि रथांश्च विंशतिं यदर्जुनं वेदयसे विशोक।। | 8-80-43a 8-80-43b 8-80-43c 8-80-43d |
।। इति श्रीमन्महाभारते कर्णपर्वणि सप्तदशदिवसयुद्धे अशीतितमोऽध्यायः।। 80 ।। |
8-80-19 प्रदरा बाणविशेषः।। 8-80-39 असितप्रयुक्तैः कृष्णप्रयुक्तैः।। 8-80-80 अशीतितमोऽध्यायः।।
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