महाभारतम्-08-कर्णपर्व-018
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अर्जुनेन संशप्तकपराजयः।। 1 ।।
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सञ्जय उवाच। | 8-18-1x |
श्वेताश्वोऽपि महाराज व्यधमत्तावकं बलम्। यथा वायुः समासाद्य तूलराशिं समन्ततः।। | 8-18-1a 8-18-1b |
प्रत्युद्ययुस्त्रिगर्तास्तं शिबयः कौरवैः सह। वसातयोऽथ साल्वाश्च गोपालाश्च यशस्विनः।। | 8-18-2a 8-18-2b |
सत्यदेवः सत्यकीर्तिर्मित्रदेवः श्रुतञ्जयः। सौश्रुतिश्चन्द्रदेवश्च मित्रवर्मा च भारत।। | 8-18-3a 8-18-3b |
त्रिगर्तराजः समरे भ्रातृभिः परिवारितः। पुत्रैश्चैव महेष्वासैर्नानाशस्त्रविशारदैः।। | 8-18-4a 8-18-4b |
व्यसृजन्त शस्त्रातान्किरन्तोऽर्जुनमाहवे। अभ्यवर्तन्त सहसा वार्योघा इव सागरम्।। | 8-18-5a 8-18-5b |
ते त्वर्जुनं समासाद्य योधाः शतसहस्रशः। अगच्छन्विलयं सर्वे तार्क्ष्यं दृष्ट्वेव पन्नगाः।। | 8-18-6a 8-18-6b |
ते हन्यमानाः समरे न जहुः पाण्डवं रणे। हन्यमाना महाराज शलभा इव पावकम्।। | 8-18-7a 8-18-7b |
सत्यदेवस्त्रिभिर्बाणैर्विव्याध युधि पाण्डवम्। मित्रदेवस्त्रिषष्ट्या तु चन्द्रदेवस्तु सप्तभिः।। | 8-18-8a 8-18-8b |
मित्रवर्मा त्रिसप्तत्या सौश्रुतिश्चापि सप्तभिः। श्रुतंजयस्तु विंशत्या सुशर्मा नवभिः शरैः।। | 8-18-9a 8-18-9b |
स विद्वो बहुभिः सङ्ख्ये प्रतिविव्याध तान्नृपान्। सौश्रुतिं सप्तभिर्विद्व्वा चन्द्रदेवं त्रिभिः शरैः।। | 8-18-10a 8-18-10b |
श्रुतंजयं च विंशत्या चन्द्रदेवं तथाऽष्टभिः। मित्रदेवं शतेनैव सत्यदेवं त्रिभिः शरैः।। | 8-18-11a 8-18-11b |
नवभिर्मित्रवर्माणं सुशर्माणं तथाऽष्टभिः। श्रुतञ्जयं च राजानं हत्वा तत्र शिलाशितैः।। | 8-18-12a 8-18-12b |
सौश्रुतेः सशिरस्त्राणं शिरः कायादपाहरत्। त्वरितश्चन्द्रदेवं च शरैर्निन्ये यमक्षयम्।। | 8-18-13a 8-18-13b |
तथेतरान्महाराज यतमानान्महारथान्। पञ्चभिः पञ्चभिर्बाणैरेकैकं प्रत्यवारयत्।। | 8-18-14a 8-18-14b |
सत्यदेवस्तु सङ्क्रुद्वस्तोमरं व्यसृजन्महत्। समुद्दिश्य रणे कृष्णं सिंहनादं ननाद च।। | 8-18-15a 8-18-15b |
स निर्भिद्य भुजं सव्यं माधवस्य महात्मनः। अयस्मयः स्वर्णदण्डो जगाम धरणीं तदा।। | 8-18-16a 8-18-16b |
माधवस्य तु विद्धस्य तोमरेण महारणे। प्रतोदः प्रापतद्वस्ताद्रश्मयश्च विशाम्पते।। | 8-18-17a 8-18-17b |
वासुदेवं विभिन्नाङ्गं दृष्ट्वा पार्थो धनञ्जयः। क्रोधमाहारयत्तीव्रं कृष्णं चेदमुवाच ह।। | 8-18-18a 8-18-18b |
प्रापयाश्वान्महाबाहो सत्यदेवं प्रति प्रभो। यावदेनं शरैस्तीक्ष्णैर्नयामि यमसादनम्।। | 8-18-19a 8-18-19b |
प्रतोदं गृह्य सोऽन्यत्तु रश्मीन्सङ्गृह्य च द्रुतम्। वाहयामास तानश्वान्सत्यदेवरथं प्रति।। | 8-18-20a 8-18-20b |
विष्वक्सेनं सुनिर्विद्वं दृष्ट्वा पार्थो धनञ्जयः। सत्यदेवं शरैस्तीक्ष्णैर्वारयित्वा महारथः।। | 8-18-21a 8-18-21b |
ततः सुनिशितैर्भल्लै राज्ञस्तस्य महच्छिरः। कुम्डलोपचितं कायाच्चकर्त पृतनान्तरे।। | 8-18-22a 8-18-22b |
तन्निकृत्य शितैर्बाणैर्भित्रवर्माणमाक्षिपत्। वत्सदन्तेन तीक्ष्णेन सारथिं चास्य मारिष।। | 8-18-23a 8-18-23b |
ततः शरशतैर्भूयः संशप्तकगणान्बली। पातयामास सङ्क्रुद्वः शतशोऽथ सहस्रशः।। | 8-18-24a 8-18-24b |
ततो रजतपुङ्खेन राजञ्शीर्षं महात्मनः। मित्रदेवस्य चिच्छेद क्षुरप्रेण महारथः। सुशर्माणं सुसङ्क्रुद्धो जत्रुदेशे समाहनत्।। | 8-18-25a 8-18-25b 8-18-25c |
ततः संशप्तकाः सर्वे परिवार्य धनञ्जयम्। शस्त्रौघैर्ममृदुः क्रुद्वा नादयन्तो दिशो दश।। | 8-18-26a 8-18-26b |
अभ्यर्दितस्तु तज्जिष्णुः शक्रतुल्यपराक्रमः। ऐन्द्रमस्त्रममेयात्मा प्रादुश्चक्रे महारथः।। | 8-18-27a 8-18-27b |
ततः शरसहस्राणि प्रादुरासन्विशाम्पते। `कार्मुकात्पाण्डुपुत्रस्य पार्थस्यामिततेजसः'।। | 8-18-28a 8-18-28b |
ततस्तु च्छिद्यमानानां ध्वजानां धनुषां तथा। रथानां सपताकानां तूणीराणां युगैः सह।। | 8-18-29a 8-18-29b |
अक्षाणामथ चक्राणां योक्त्राणां रश्मिभिः सह। कूबराणां वरूथानां पृषत्कानां च संयुगे।। | 8-18-30a 8-18-30b |
अश्वानां पततां चापि प्रासानामृष्टिभिः सह। गदानां परिघानां च शक्तितोमरपट्टसैः।। | 8-18-31a 8-18-31b |
शतघ्नीनां सचक्राणां भुजानां चोरुभिः सह। कण्ठसूत्राङ्गदानां च केयूराणां च मारिष।। | 8-18-32a 8-18-32b |
हाराणामथ निष्काणां तनुत्राणां च भारत। छत्राणां व्यजनानां च शिरसां कुमुटैः सह। राशयश्चात्र दृश्यन्ते पतितानां महीतले।। | 8-18-33a 8-18-33b 8-18-33c |
सकुण्डलानि स्वक्षीमि पूर्णचन्द्रनिभानि च। शिरांस्युर्व्यामदृश्यन्त ताराजालमिवाम्बरे।। | 8-18-34a 8-18-34b |
सुस्रग्वीणि सुवासांसि चन्दनेनोक्षितानि च। शरीराणि व्यदृश्यन्त निहतानां महीतले।। | 8-18-35a 8-18-35b |
रुद्रस्याक्रीडसदृशं घोरमायोधनं तदा।। | 8-18-36a |
निहतै राजपुत्रैश्च क्षत्रियैश्च महाबलैः। `अर्जुनेन महाराज तत्रतत्र महारणे'।। | 8-18-37a 8-18-37b |
हस्तिभिः पतितैश्चैव तुरङ्गैश्चाभवन्मही। अगम्यरूपा समरे विशीर्णैरिव पर्वतैः।। | 8-18-38a 8-18-38b |
नासीद्रथपथस्तस्य पाण्डवस्य महात्मनः। निघ्नतः शात्रवान्भल्लैर्हस्त्यश्वं चास्यतो महत्।। | 8-18-39a 8-18-39b |
स्वानुगा इव सीदन्ति रथचक्राणि मारिष। चरतस्तस्य सङ्ग्रामे तस्मिंल्लोहितकर्दमे।। | 8-18-40a 8-18-40b |
सीदमानानि चक्राणि समुहूस्तुरगा भृशम्। श्रमेण महता युक्ता मनोमारुतरंहसः।। | 8-18-41a 8-18-41b |
वध्यमानं तु तत्सैन्यं पाण्डुपुत्रेण धन्विना। प्रायशो विमुखं सर्वं नावतिष्ठत भारत।। | 8-18-42a 8-18-42b |
ताञ्जित्वा समरे जिष्णुः संशप्तकगणान्बहून्। विरराज तदा पार्थो विधूमोऽग्निरिव ज्वलन्।। | 8-18-43a 8-18-43b |
।। इति श्रीमन्महाभारते कर्णपर्वणि षोडशदिवसयुद्धे अष्टादशोऽध्यायः।। 18 ।। |
8-18-39 आसीद्रथपथस्तस्य इति घ.ङ. पाठः। आसादितस्ततो रान्रथचक्रे विशाम्पते इति क.पाठः। आच्छादितं ततो राजन्रथचक्रं च मारिष इति ख.पाठः।। 8-18-41 सीदमानानि पङ्कमज्जनात्।। 8-18-18 अष्टादशोऽध्यायः।।
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