महाभारतम्-08-कर्णपर्व-061
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कृष्णेनार्जुनम्प्रति कुरूणां युधिष्ठिरग्रहणोद्यमकथनम्।। 1 ।।
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सञ्जय उवाच। | 8-61-1x |
तेषां प्रवृत्ते सङ्ग्रामे विपुले शोणितोदके। रराज लोहितेनोर्वी संसिक्ता बहुधा भृशम्।। | 8-61-1a 8-61-1b |
ततो रजसि संशान्ते प्रकाशः सर्वतोऽभवत्। एतस्मिन्नन्तरे पार्थं कृष्णो वचनमब्रवीत्। दर्शयन्निव कौन्तेयं धर्मराजं युधिष्ठिरम्।। | 8-61-2a 8-61-2b 8-61-2c |
एष पाण्डव ते भ्राता धार्तराष्ट्रैर्महाबलैः। जिघांसुभिर्महेष्वासैः शीघ्रं पार्थोऽनुसार्यते।। | 8-61-3a 8-61-3b |
तमन्वगेव पाञ्चालाश्चेदिमात्स्याश्च भारत। अनुयान्ति महात्मानं परीप्सन्तो महाजवाः।। | 8-61-4a 8-61-4b |
एष दुर्योधनः पार्थ गजानीकेन दंशितः। राजा सर्वस्य लोकस्य राजानमनुधावति।। | 8-61-5a 8-61-5b |
जिघांसुः पुरुषव्याघ्रं भ्रातृभिः सहितो बली। आशीविषसमस्पर्शैः सर्वायुधविशारदैः।। | 8-61-6a 8-61-6b |
नदद्भिः सिंहनादांश्च धमद्भिश्चापि वारिजान्। बलवद्भिर्महेष्वासैर्विधून्वानैर्धनूंषि च।। | 8-61-7a 8-61-7b |
एते जिघृक्षवो यान्ति द्विपाश्वरथपत्तयः। युधिष्ठिरं धार्तराष्ट्रो रत्नोत्तममिवार्थिनः।। | 8-61-8a 8-61-8b |
पश्य सात्वतभीमाभ्यां निरुद्धा विष्ठिताः पुनः। जिहीर्षवोऽमृतं दैत्याः शक्राग्निभ्यामिवाहवे।। | 8-61-9a 8-61-9b |
एते बहुत्वात्त्वरिताः पुनर्गच्छन्ति पाण्डवम्। समुद्रमिव वार्योघाः प्रावृट्काले महारथाः।। | 8-61-10a 8-61-10b |
मृत्योर्मुखगतं मन्ये कुन्तीपुत्रं युधिष्ठिरम्। हुतमग्नौ च कौन्तेयं दुर्योधनवशं गतम्।। | 8-61-11a 8-61-11b |
यथायुक्तमनीकं हि धार्तराष्ट्रस्य पाण्डव। नास्य शक्रोऽपि मुच्येत सम्प्राप्तो बाणगोचरम्।। | 8-61-12a 8-61-12b |
दुर्योधनस्य वीरस्य शरौघाञ्शीघ्रमस्यतः। सङ्क्रुद्धस्यान्तकस्येव को वेगं संसहेद्रणे।। | 8-61-13a 8-61-13b |
रसतस्तस्य वीरस्य द्रौणेः शारद्वतस्य च। कर्णस्य चेषुवेगो वै पर्वतानपि शातयेत्।। | 8-61-14a 8-61-14b |
कर्णेन च कृतो राजा विमुखोऽद्य तु दृश्यते।। | 8-61-15a |
बलवाँल्लुघुहस्तश्च कृती युद्धविशारदः। राधेयः पाण्डवश्रेष्ठं शक्तः पीडयितुं रणे। सहितो धृतराष्ट्रस्य पुत्रैः शूरैर्महाबलैः।। | 8-61-16a 8-61-16b 8-61-16c |
तस्यैभिर्युध्यमानस्य सङ्ग्रामे शंसितात्मनः। अन्यैरपि च पार्थस्य कृतं कर्म महारथैः।। | 8-61-17a 8-61-17b |
उपवासकृशो राजा भृशं भरतसत्तमः। ब्राह्मो बले स्थितो ह्येष न क्षात्रे हि बले विभुः।। | 8-61-18a 8-61-18b |
कर्णेन चाभियुक्तोऽयं भूपतिः शत्रुतापनः। संशयं समनुप्राप्तः पाण्डवो वै युधिष्ठिरः।। | 8-61-19a 8-61-19b |
न जीवति महाराजो मन्ये पार्थ युधिष्ठिरः। यद्भीमसेनः सहते सिंहनादममर्षणः।। | 8-61-20a 8-61-20b |
नर्दतां धार्तराष्ट्राणां पुनःपुनररिन्दमः। धमतां च महाशङ्खान्सङ्ग्रामे जितकाशिनाम्।। | 8-61-21a 8-61-21b |
युधिष्ठिरं पाण्डवेयं हतेति भरतर्षभ। सञ्चोदयत्यसौ कर्णो धार्तराष्ट्रान्महाबलान्।। | 8-61-22a 8-61-22b |
स्थूणाकर्णास्त्रजालेन पार्थ पाशुपतेन च। प्रच्छादयन्ति राजानमनुयान्ति महारथाः।। | 8-61-23a 8-61-23b |
।। इति श्रीमन्महाभारते कर्णपर्वणि सप्तदशदिवसयुद्धे एकषष्टितमोऽध्यायः।। 61 ।। |
8-61-9 जिहीर्षवो युधिष्ठिरं हर्तुमिच्छन्तः।। 8-61-17 तस्य युधिष्ठिरस्य कर्म कर्तव्यं पराजयाख्यम्। एभिर्दुर्योधनादिभिः कृतं निष्पादितम्।। 8-61-18 तत्र हेतुः। ब्राह्मे बलं क्षमायाम् क्षात्रे बले निष्ठुरत्वे।। 8-61-22 हत नाशयतेति कर्णश्चोदयतीति सम्बन्धः।। 8-61-23 स्थूणाकर्णो गन्धर्वः।। 8-61-61 एकषष्टितमोऽध्यायः।।
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