महाभारतम्-08-कर्णपर्व-070
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अर्जुनेन स्ययुद्धानुवादपूर्वकं युधिष्ठिरम्प्रति कर्णवधप्रतिज्ञानम्।। 1 ।।
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सञ्जय उवाच। | 8-70-1x |
तद्धर्मशीलस्य वचो निशम्य राज्ञः क्रुद्धस्यातिरथो महात्मा। उवाच दुर्मर्षमदीनसत्वो युधिष्ठिरं जिष्णुरनन्तवीर्यः।। | 8-70-1a 8-70-1b 8-70-1c 8-70-1d |
द्रोणं हतं पार्थ कर्णो विदित्वा भिन्नां नावविमावत्यगाधे कुरूणाम्। सम्मुह्यमानान्धार्तराष्ट्रान्विदित्वा निरुत्साहांश्च विजये परेषाम्।। | 8-70-2a 8-70-2b 8-70-2c 8-70-2d |
सोदर्यवत्त्वरितोऽमितौजा उत्तारयिष्यन्धृतराष्ट्रस्य पुत्रान्। रणे रथेनाधिरथिर्महात्मा ततो हि मां त्वरितः सोऽभ्यधावत्।। | 8-70-3a 8-70-3b 8-70-3c 8-70-3d |
संशप्तकैर्युध्यमानस्य मेऽद्य सेनाग्रयायी कुरुसैन्यस्य राजन्। आशीविषाभान्विकिरञ्शरौघा-- न्द्रौणिः पुरस्तात्सहसाध्यतिष्ठत्।। | 8-70-4a 8-70-4b 8-70-4c 8-70-4d |
स मे दृष्ट्वा शूरतमो ध्वजाग्रं समादिशद्रथसङ्घाननेकान्। तेषामहं पञ्चशतं निहत्य आसादयं द्रोणपुत्रं नदन्तम्।। | 8-70-5a 8-70-5b 8-70-5c 8-70-5d |
स द्रोणपुत्रः सदृशं महात्मा मामप्यरौत्सीत्तदनीकमध्ये। किरञ्शरौघान्बहुरूपान्विचित्रा-- न्स्वातीगतः शुक्र इवातिवर्षन्।। | 8-70-6a 8-70-6b 8-70-6c 8-70-6d |
स मे रान्सर्वतः कङ्कपत्रा-- नवासृजद्वै पृथिवीप्रकाशान्। निवार्य तूर्णं परमाजिमध्ये ततोऽपि मां बाणगणैः समार्पयत्।। | 8-70-7a 8-70-7b 8-70-7c 8-70-7d |
आकर्षणं वापि विकृष्य मुक्तं न दृश्यते तस्य महारथस्य। न सन्दधानः कुत आददानो न व्याक्षिपन्न विकर्षन्विमुञ्चन्।। | 8-70-8a 8-70-8b 8-70-8c 8-70-8d |
सव्येन वा यदि वा दक्षिणेन न ज्ञायते कतरेणास्यतीति। आचार्यवत्समरे पर्यवर्त-- न्महच्चित्रं दर्शयन्सर्वतः स्म।। | 8-70-9a 8-70-9b 8-70-9c 8-70-9d |
दृष्ट्वीविषं चासुहरं परेषां सर्वा दिशः पूरयानं शरौधैः। अलातचक्रप्रतिमं महात्मनः सदा नतं कार्मुकं ब्रह्मबन्धोः।। | 8-70-10a 8-70-10b 8-70-10c 8-70-10d |
ततोऽपरान्बाणगणाननेका-- नाकर्णपूर्णायतविप्रमुक्तान्। ससर्ज शीघ्रास्त्रबलेन वीर-- स्तोयं यथा प्रावृषि कालमेघः।। | 8-70-11a 8-70-11b 8-70-11c 8-70-11d |
आविध्यन्मां पञ्चभिद्रोणपुत्रः शितैः शरैः पञ्चभिर्वासुदेवम्। अभ्यघ्नं बाणैस्तमहं सुधारै-- र्निमेषमात्रेण सुवर्णपुङ्खैः।। | 8-70-12a 8-70-12b 8-70-12c 8-70-12d |
स निर्विद्धो विरथो द्रोणपुत्रो रथानीकं चाधिरथेर्विवेश। मयाभिभूतान्स्वरथप्रबर्हा-- नस्त्रं च पश्यन्रुधिरप्रदिग्धम्।। | 8-70-13a 8-70-13b 8-70-13c 8-70-13d |
ततोऽभिभूतं युधि वीक्ष्य सैन्यं विध्वस्तयोधं द्रुतनागयूथम्। पञ्चाशता रथमुख्यैः समेतः कर्णस्त्वरन्नभ्यपतत्प्रमाथी।। | 8-70-14a 8-70-14b 8-70-14c 8-70-14d |
तान्सूदयित्वाऽहमपास्य कर्णं द्रष्टुं भवन्तं त्वरयोपयातः। सर्वे पाञ्चाला ह्युद्विजन्ते स्म कर्णं दृष्ट्वा गावः केसरिणं यथैव।। | 8-70-15a 8-70-15b 8-70-15c 8-70-15d |
मृत्योरास्यं व्यात्तमिवाभिपद्य प्रभद्रकाः कर्णमासाद्य सर्वे। यास्यामि तांस्तारयिष्यन्बलौघा-- द्दिष्ट्या भवान्स्वस्तिमान्पार्थ दृष्टः।। | 8-70-16a 8-70-16b 8-70-16c 8-70-16d |
हनिष्येऽहं भारत सूतपुत्र-- मस्मिन्सङ्ग्रामे यदि दृश्यतेऽद्य। आयाहि पश्याद्य युयुत्समानौ मां सूतपुत्रं च धृतौ रणाय।। | 8-70-17a 8-70-17b 8-70-17c 8-70-17d |
महाझषस्येव मुखं प्रपन्नाः प्रभद्रकाः कर्णमुखं प्रपन्नाः। षट्साहस्रा भारत राजपुत्राः स्वर्गाय लोकाय रणे निमग्नाः।। | 8-70-18a 8-70-18b 8-70-18c 8-70-18d |
तानद्य यास्यामि रणाद्विमोक्तुं सर्वात्मना सूतपुत्रं च हन्तुम्।। | 8-70-19a 8-70-19b |
अथ प्रवीरेण महानुभाव द्विषत्सैन्यं निर्दहन्विस्तरेण। समेत्याहं सूतपुत्रेण सङ्ख्ये वज्रीव वृत्रेण नरेन्द्रमुख्य।। | 8-70-20a 8-70-20b 8-70-20c 8-70-20c |
एवं गते किञ्च मयाऽद्य शक्यं कार्यं कर्तुं निग्रहे सूतजस्य। तथैव राज्ञश्च सुयोधनस्य ये चापि मां योद्धुकामाः समेताः।। | 8-70-21a 8-70-21b 8-70-21c 8-70-21d |
कर्णं न चेदद्य निहन्मि राज-- न्सबान्धवं युध्यमानं प्रसह्य। प्रतिश्रुत्याऽकुर्वतां या गतिर्वै कष्टां यायां तामहं राजसिंह।। | 8-70-22a 8-70-22b 8-70-22c 8-70-22d |
आमन्त्रये त्वां ब्रूहि रणे जयं मे पुरा भीमं धार्तराष्ट्रा ग्रसन्ति। सौतिं हनिष्यामि नरेन्द्रसिंह सैन्यं तथा शत्रुगणांश्च सर्वान्।। | 8-70-23a 8-70-23b 8-70-23c 8-70-23d |
।। इति श्रीमन्महाभारते कर्णपर्वणि सप्तदशदिवसयुद्धे सप्ततितमोऽध्यायः।। 70 ।। |
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