महाभारतम्-08-कर्णपर्व-065
← कर्णपर्व-064 | महाभारतम् अष्टमपर्व महाभारतम्-08-कर्णपर्व-065 वेदव्यासः |
कर्णपर्व-066 → |
सङ्कुलयुद्धम्।। 1 ।।
|
सञ्जय उवाच। | 8-65-1x |
ततः श्वेताश्वसंयुक्ते नारायणसमाहिते। तिष्ठन्रथवरे श्रीमानर्जुनः समपद्यत।। | 8-65-1a 8-65-1b |
तद्बलं नृपतिश्रेष्ठ तावकं विजयो रणे। व्यक्षोभयदुदीर्णाश्वं महोदधिमिवानिलः।। | 8-65-2a 8-65-2b |
दुर्योधनस्तव सुतः प्रमत्ते श्वेतवाहने। अभ्येत्य सहसा क्रुद्धः सैन्यार्धेनाभिसंवृतः।। | 8-65-3a 8-65-3b |
पर्यवारयदायान्तं युधिष्ठिरममर्षणम्। क्षुरप्राणां त्रिसप्तत्या ततोऽविध्यत पाण्डवम्।। | 8-65-4a 8-65-4b |
अक्रुध्यत भृशं तत्र कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः। स भल्लांस्त्रिंशतस्तूर्णं तव पुत्रे न्यवेशयत्।। | 8-65-5a 8-65-5b |
ततो धावन्त कौरव्या जिघृक्षन्तो युधिष्ठिरम्।। | 8-65-6a |
दुष्टभावान्पराञ्ज्ञात्वा समवेता महारथाः। आजग्मुस्तं परीप्सन्तः कुन्तीपुत्रं युधिष्ठिरम्।। | 8-65-7a 8-65-7b |
`सञ्जय उवाच। | 8-65-8x |
युधिष्ठिरश्चित्रसेनं शरवर्षैरवाकिरत्। चित्रसेनस्तु कौन्तेयं सङ्क्रुद्धः समवारयत्।। | 8-65-8a 8-65-8b |
मुहूर्ताद्विमुखीकृत्य चित्रसेनं स धर्मराट्। तावकं सैन्यमभ्यघ्नत्समन्तान्निशितैः शरैः।। | 8-65-9a 8-65-9b |
तावका हि माबाहो दुर्योधनपुरोगमाः। युधिष्ठिरं जिघृक्षन्तः सर्वसैन्यं समाक्षिपन्।। | 8-65-10a 8-65-10b |
दृष्टप्रभावांस्तान्मत्वा समवेतान्महारथान्। आजग्मुः सम्परीप्सन्तः पाण्डवेयं युधिष्ठिरम्'।। | 8-65-11a 8-65-11b |
नकुलः सहदेवश्च धृष्टद्युम्नश्च पार्षतः। अक्षौहिण्या परिवृतास्तेऽभ्यधावन्युधिष्टिरम्।। | 8-65-12a 8-65-12b |
भीमसेनश्च नाराचैर्मृद्रंस्तव महारथान्। अभ्यधावदभिप्रेप्सू राजानं शत्रुभिर्वृतम्।। | 8-65-13a 8-65-13b |
तांस्तु सर्वान्महेष्वासान्कर्णो वैकर्तनो वृषा। शरवर्षेण महता प्रत्यवारयदागतान्।। | 8-65-14a 8-65-14b |
शरौघान्विसृजन्तस्ते प्रेयन्तश्च कुञ्जरान्। न शेकुर्यत्नवन्तोऽपि राधेयं प्रतिवीक्षितुम्।। | 8-65-15a 8-65-15b |
तांश्च सर्वान्महेष्वासान्सर्वशस्त्रविशारदान्। महता शरवर्षेण राधेयः प्रत्यवारयत्।। | 8-65-16a 8-65-16b |
दुर्योधनं च विंशत्या नाराचानां कृती बली। अविध्यत्तूर्णमभ्येत्य सहदेवो महीपतिम्।। | 8-65-17a 8-65-17b |
स विद्धः सहदेवेन रराज बलसन्निधौ। प्रभिन्न इव मातङ्गो रुधिरेण परिप्लुतः।। | 8-65-18a 8-65-18b |
दृष्ट्वा तव सुतं तत्र गाढविद्धं सुतेजनैः। अभ्यधावद्दृढं क्रुद्धो राधेयो रथिनां वरः।। | 8-65-19a 8-65-19b |
दुर्योधनं तथा दृष्ट्वा शीघ्रमस्त्रमुदीर्य सः। अवधीत्पाण्डवानीकं पाञ्चालांश्चैव मारिष।। | 8-65-20a 8-65-20b |
ततो यौधिष्ठिरं सैन्यं वध्यमानं महात्मना। सहसा प्राद्रावद्राजन्मूतपुत्रशरार्दितम्।। | 8-65-21a 8-65-21b |
विविधा विशिखास्तत्र सम्पतन्ति परस्परम्। भल्लाः पुङ्खसमाश्लिष्टाः सूतपुत्रधनुश्च्युताः।। | 8-65-22a 8-65-22b |
अन्तरिक्षे शरौघाणां पततां च परस्परम्। सङ्घर्पेण महाराज पावकः समजायत।। | 8-65-23a 8-65-23b |
तकतो दशदिशः कर्णः शलभैरिव यायिभिः। अभ्यघ्नंस्तरसा राजञ्शरैः परशरीरगैः।। | 8-65-24a 8-65-24b |
रक्तचन्दनसन्दिग्धौ मणिहेमविभूषितौ। बाहू व्यत्यक्षिपत्कर्णः परमास्त्रं विदर्शयन्।। | 8-65-25a 8-65-25b |
ततः सर्वा दिशो राजन्सायकैर्विप्रमोहयन्। अपीडयद्भृशं कर्णो धर्मराजं युधिष्ठिरम्।। | 8-65-26a 8-65-26b |
ततः क्रुद्धो महाराज धर्मपुत्रो युधिष्ठिरः। निशितैरिषुभिः कर्णं पञ्चाशद्भिः समार्पयत्।। | 8-65-27a 8-65-27b |
[बाणान्धकारमभवत्तद्युद्धं घोरदर्शनम्। हाहाकारो महानासीत्तावकानां विशाम्पते।। | 8-65-28a 8-65-28b |
वध्यमाने तदा सैन्ये धर्मपुत्रेण मारिष। सायकैर्विविधैस्तीक्ष्णैः कङ्कपत्रैः शिलाशितैः। भल्लैरनेकैर्विविधैः शक्त्यृष्टिमुसलैरपि।। | 8-65-29a 8-65-29b 8-65-29c |
यत्र यत्र स धर्मात्मा दुष्टां दृष्टिं व्यसर्जयत्। तत्र तत्र व्यशीर्यन्त तावका भरतर्षभ।। | 8-65-30a 8-65-30b |
कर्णोऽपि भृशसङ्कुद्रो धर्मराजं युधिष्ठिरम्। नाराचैरर्धचन्द्रैश्च वत्सदन्तैश्च संयुगे।। | 8-65-31a 8-65-31b |
अमर्षी क्रोधनश्चैव रोषप्रस्फुरिताननः। सायकैरप्रमेयात्मा युधिष्ठिरमभिद्रवत्।। | 8-65-32a 8-65-32b |
युधिष्ठिरश्चापि स तं स्वर्णपुङ्खैः शितैः शरैः।।] | 8-65-33a |
प्रहसन्निव तं कर्णः कङ्कपत्रैः शिलाशितैः। उरस्यविध्यद्राजानं कुन्तीपुत्रं युधिष्ठिरम्।। | 8-65-34a 8-65-34b |
स पीडितो भृशं तेन धर्मराजो युधिष्ठिरः। उपविश्य रथोपस्थे सूतं याहीत्यनोदयत्।। | 8-65-35a 8-65-35b |
अक्रोशन्त ततः सर्वे धार्तराष्ट्राः सराजकाः। गृह्णीध्वमिति राजानमभ्यधावन्त सर्वशः।। | 8-65-36a 8-65-36b |
ततः शताः सप्तदश केकयानां प्रहारिणाम्। पञ्चालैः सहिता राजन्धार्तराष्ट्रान्न्यवारयन्।। | 8-65-37a 8-65-37b |
तस्मिन्सुतुमुले युद्धे वर्तमाने जनक्षये। दुर्योधनश्च भीमश्च समेयातां महाबलौ।। | 8-65-38a 8-65-38b |
।। इति श्रीमन्महाभारते कर्णपर्वणि सप्तदशदिवसयुद्धे पञ्चषष्टितमोऽध्यायः।। 65 ।। |
कर्णपर्व-064 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | कर्णपर्व-066 |