महाभारतम्-08-कर्णपर्व-010
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द्वन्द्वयुद्धम्।। 1 ।। सात्यकिना विन्दानुविन्दवधः।। 2 ।।
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सञ्चय उवाच। | 8-10-1x |
ततः कर्णो महेष्वासः पाण्डवानामनीकिनीम्। जघान समरे शूरः सन्नतपर्वभिः।। | 8-10-1a 8-10-1b |
तथैव पाण्डवा राजंस्तव पुत्रस्य वाहिनीम्। कर्णस्य प्रमुखे क्रुद्धा निजघ्नुस्ते महारथाः।। | 8-10-2a 8-10-2b |
कर्णोऽपि राजन्समरे व्यहनत्पाण्डवीं चमूम्। नाराचैरर्करश्म्याभैः कर्मारपरिमार्जितैः।। | 8-10-3a 8-10-3b |
तत्र भारत कर्णेन नाराचैस्ताडिता गजाः। नेदुः सेदुश्च मम्लुश्च बभ्रुमुश्च दिशो दश।। | 8-10-4a 8-10-4b |
वध्यमाने बले तस्मिन्सूतपुत्रेण मारिष। नकुलोऽभ्यद्रवत्तूर्णं सूतपुत्रं महारणे।। | 8-10-5a 8-10-5b |
भीमसेनस्तथा द्रौणिं कुर्वाणं कर्म दुष्करम्। विन्दानुविन्दौ कैकेयौ सात्यकिः समवारयत्।। | 8-10-6a 8-10-6b |
श्रुतकर्माणमायान्तं चित्रसेनो महीपतिः। प्रतिविन्ध्यस्तथा चित्रं चित्रकेतनकार्मुकम्।। | 8-10-7a 8-10-7b |
दुर्योधनस्तु राजानं धर्मपुत्रं युधिष्ठिरम्। संशप्तकगणा हृष्टा ह्यभ्यधावन्धनञ्जयम्।। | 8-10-8a 8-10-8b |
धृष्टद्युम्नः कृपं चापि तस्मिन्वीरवरक्षये। शिखण्डी कृतवर्माणं समासादयदच्युतम्।। | 8-10-9a 8-10-9b |
श्रुतकीर्तिस्तथा शल्यं माद्रीपुत्रः सुतं तव। दुःशासनं महाराज सहदेवः प्रतापवान्।। | 8-10-10a 8-10-10b |
कैकेयौ सात्यकिं युद्धे शरवर्षेण भास्वता। सात्यकिः केकयौ चापि च्छादयामास भारत।। | 8-10-11a 8-10-11b |
तावेनं भ्रातरौ वीरौ जघ्नतुर्हृदये भृशम्। विषाणाभ्यां यथा नागौ प्रतिनागं महावने।। | 8-10-12a 8-10-12b |
शरसम्बिन्नवर्माणौ तावुभौ भ्रातरौ रणे। सात्यकिं सत्यकर्माणं राजन्विव्यधतुः शरैः।। | 8-10-13a 8-10-13b |
तौ सात्यकिर्महाराज प्रहसन्सर्वतोदिशः। छादयञ्छरवर्षेण वारयामास भारत।। | 8-10-14a 8-10-14b |
वार्यमाणौ ततस्तौ हि शैनेयशरवृष्टिभिः। शैनेयस्य रथं तूर्णं छादयामासतुः शरैः।। | 8-10-15a 8-10-15b |
तयोस्तु धनुषी चित्रे छित्त्वा शौरिर्महायशाः। अथ तौ सायकैस्तीक्ष्णैर्वारयामास सात्यकिः।। | 8-10-16a 8-10-16b |
अथान्ये धनुषी चित्रे प्रगृह्य च महाशरान्। सात्यकिं छादयन्तौ तौ चेरतुर्लघु सुष्ठु च।। | 8-10-17a 8-10-17b |
ताभ्यां मुक्ता महाबाणाः कङ्कबर्हिणवाससः। द्योतयन्तो दिशः सर्वाः सम्पेतुः स्वर्णभूषणाः।। | 8-10-18a 8-10-18b |
बाणान्धकारमभवत्तयो राजन्महामृधे। अन्योन्यस्य धनुश्चैव चिच्छिदुस्ते महारथाः।। | 8-10-19a 8-10-19b |
ततः क्रुद्धो महाराज सात्वतो युद्धदुर्मदः। धनुरन्यत्समादाय सज्यं कृत्वा च संयुगे।। | 8-10-20a 8-10-20b |
क्षुरप्रेण सुतीक्ष्णेन ह्यनुविन्दशिरोऽहरत्। अपतत्तच्छिरो राजन्कुण्डलोपचितं महत्।। | 8-10-21a 8-10-21b |
शम्बरस्य शिरो यद्वन्निहतस्य महारणे। शोचयन्केकयान्सर्वाञ्जगामाशु वसुन्धराम्।। | 8-10-22a 8-10-22b |
तं दृष्ट्वा निहतं शूरं भ्राता तस्य महारथः। सज्यमन्यद्धनुः कृत्वा शैनेयं पर्यवारयत्।। | 8-10-23a 8-10-23b |
स षष्ट्या सात्यकिं विद्व्वा स्वर्णपुङ्खैः शिलाशितैः। ननाद बलवन्नादं तिष्ठतिष्ठेति चाब्रवीत्।। | 8-10-24a 8-10-24b |
सात्यकिं च ततस्तूर्णं केकयानां महारथः। शरैरनेकसाहस्रैर्बाह्वोरुरसि चार्पयत्।। | 8-10-25a 8-10-25b |
स शरैः क्षतसर्वाङ्गः सात्यकिः सत्यविक्रमः। रराज समरे राजन्सपुष्प इव किंशुकः।। | 8-10-26a 8-10-26b |
सात्यकिः समरे विद्वः कैकेयेन महात्मना। कैकेयं पञ्चविंशत्या विव्याध प्रहसन्निव।। | 8-10-27a 8-10-27b |
तावन्योन्यस्य समरे सञ्छिद्य धनुषी शुभे। हत्वा च सारथी तूर्णं हयांश्च रथिनां वरौ।। | 8-10-28a 8-10-28b |
विरथावसियुद्धाय समाजग्मतुराहवे। शतचन्द्रचिते गृह्य चर्मणी सुभुजौ तथा।। | 8-10-29a 8-10-29b |
विरोचेतां महारङ्गे निस्त्रिंशबरधारिणौ। यथा देवासुरे युद्धे जम्भशक्रौ महाबलौ।। | 8-10-30a 8-10-30b |
मण्डलानि ततस्तौ तु विचन्तौ महारणे। अन्योन्यमभितस्तूर्णं समाजग्मतुराहवे।। | 8-10-31a 8-10-31b |
अन्योन्यस्य वधे चैव चक्रतुर्यत्नमुत्तमम्। कैकेयस्य द्विधा चर्म ततश्चिच्छेद सात्वतः।। | 8-10-32a 8-10-32b |
सात्यकेस्तु तथैवासौ चर्म चिच्छेद पार्थिवः। चर्म च्छित्त्वा तु कैकेयस्तारागणशतैर्वृतम्। चचार मण्डलान्येव गतप्रत्यागतानि च।। | 8-10-33a 8-10-33b 8-10-33c |
तं चरन्तं महारङ्गे निस्त्रिंशवरधारिणम्। अपहस्तेन चिच्छेद शैनेयस्त्वरयाऽन्वितः।। | 8-10-34a 8-10-34b |
सवर्मा केकयो राजन्द्विधा च्छिन्नो महारणे। निपपात महेष्वासो वज्राहत इवात्वलः।। | 8-10-35a 8-10-35b |
तं निहत्य रणे शूरः शैनेयो रथसत्तमः। युधामन्युरथं तूर्णमारुरोह परन्तपः।। | 8-10-36a 8-10-36b |
ततोऽन्यं रथमास्थाय विधिवत्कल्पितं पुनः। केकयानां महत्सैन्यं व्यधमत्सात्यकिः शरैः।। | 8-10-37a 8-10-37b |
सा वध्यमाना समरे केकयानां महाचमूः। तमुत्सृज्य रणे शत्रुं प्रदुद्राव दिशो दश।। | 8-10-38a 8-10-38b |
।। इति श्रीमन्महाभारते कर्णपर्वणि षोडशदिवसयुद्धे दशमोऽध्यायः।। 10 ।। |
8-10-6 द्रौणिमभ्यद्रवत्।। 8-10-9 कृपेण युयुधे इति शेषः।। 8-10-10 माद्रीपुत्रः सुतं तवेत्यस्य व्याख्या दुःशासनमिति।। 8-10-17 लघु शीघ्रम्। सुष्रु शोभनम्।। 8-10-21 उपचितसमलङ्कृतम्।। 8-10-34 अपहस्तेन तिर्यग्घस्तेन।। 8-10-10 दशमोऽध्यायः।।
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