महाभारतम्-06-भीष्मपर्व-013
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सञ्जयेन धृतराष्ट्रंप्रति भीष्महननकथनम् ।। 1 ।।
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वैशंपायन उवाच। | 6-13-1x |
अथ गावल्गणिर्विद्वान्संयुगादेत्य भारत। प्रत्यक्षदर्शी सर्वस्य भूतभव्यभविष्यवित् ।। | 6-13-1a 6-13-1b |
ध्यायते धृतराष्ट्राय सहसोत्पत्य दुःखितः । आचष्ट निहतं भीष्मं भरतानां पितामहम् ।। | 6-13-2a 6-13-2b |
सञ्जय उवाच। | 6-13-3x |
सञ्जयोऽहं महाराज नमस्ते भरतर्षभ। हतो भीष्मः शान्तनवो भरतानां पितामहः ।। | 6-13-3a 6-13-3b |
ककुदं सर्वयोधानां धाम सर्वधनुष्मताम्। शरतल्पगतः सोऽद्य शेते कुरुपितामहः।। | 6-13-4a 6-13-4b |
यस्य वीर्यं समाश्रित्य द्यूतं पुत्रस्तवाकरोत्। स शेते निहतो राजन्संख्ये भीष्मः शिखण्डिना ।। | 6-13-5a 6-13-5b |
यः सर्वान्पृथिवीपालान्समवेतान्महामृधे । जिगायैकरथेनैव काशिपुर्यां महारथः ।। | 6-13-6a 6-13-6b |
जामदग्न्यं रणे रामं योऽयुध्यदपसंभ्रमः । न हतो जामदग्न्येन स हतोऽद्य शिखण्डिना ।। | 6-13-7a 6-13-7b |
महेन्द्रसदृशः शौर्ये स्थैर्ये च हिमवानिव । समुद्र इव गाम्भीर्यो सहिष्णुत्वे धरासमः ।। | 6-13-8a 6-13-8b |
शरदंष्ट्रो धनुर्वक्रः खङ्गिजिह्वो दुरासदः। नरसिंहः पिता तेऽद्य पाञ्चाल्येन निपातितः ।। | 6-13-9a 6-13-9b |
पाण्डवानां महासैन्यं यं दृष्ट्वोद्यतमाहवे। प्रावेपत भयोद्विग्नं सिंह दृष्ट्वेव गोगणः ।। | 6-13-10a 6-13-10b |
परिरक्ष्य स सेनां ते दशरात्रमनीकहा । जगामास्तमिवादित्यः कृत्वा कर्म सुदुष्करम् ।। | 6-13-11a 6-13-11b |
यः स शक्र इवाक्षोभ्यो वर्षन्बाणान्सहस्रशः। जघान युधि योधानामर्बुदं दशभिर्दिनैः ।। | 6-13-12a 6-13-12b |
स शेते निहतो भूमौ वातभग्न इव द्रुमः। तव दुर्मन्त्रिते राजन्यथा नार्हः स भारत ।। | 6-13-13a 6-13-13b |
।। इति श्रीमन्महाभारते भीष्मपर्वणि भगवद्गीतापर्वणि त्रयोदशोऽध्यायः ।। |
6-13-4 ककुदं राज्ञां मध्ये ध्वजतुल्यम्। धाम तेजः ।। 6-13-7 अपसंभ्रमो निर्भयः ।।
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