महाभारतम्-06-भीष्मपर्व-022
← भीष्मपर्व-021 | महाभारतम् षष्ठपर्व महाभारतम्-06-भीष्मपर्व-022 वेदव्यासः |
भीष्मपर्व-023 → |
युधिष्ठिरादीनां युद्धाय निर्गमः ।। 1 ।।
|
सञ्जय उवाच। | 6-22-1x |
ततो युधिष्ठिरो राजा स्वां सेनां समचोदयत् । प्रतिव्यूहन्ननीकानि भीष्मस्य भरतर्षभ ।। | 6-22-1a 6-22-1b |
यथोद्दिष्टान्यनीकानि प्रत्यव्यूहन्त पाण्डवाःक । स्वर्गं परममिच्छन्तः सुयुद्धेन कुरूद्वहाः ।। | 6-22-2a 6-22-2b |
मध्ये शिखण्डिनोऽनीकं रक्षितं सव्यसाचिना । धृष्टद्युम्नश्चरन्नग्रे भीमसेनेन पालितः ।। | 6-22-3a 6-22-3b |
अनीकं दक्षिणं राजन्युयुधानेन पालितम् । श्रीमता सात्वताग्र्येण शक्रेणेव धनुष्मता ।। | 6-22-4a 6-22-4b |
महेन्द्रयानप्रतिमं रथं तु सोपस्करं हाटकरत्नचित्रम्। युधिष्ठिरः काञ्चनभाण्डयोक्रं समास्थितो नागबलस्य मध्ये ।। | 6-22-5a 6-22-5b 6-22-5c 6-22-5d |
समुच्छ्रितं दन्तशलाकमस्य सुपाण्डुरं छत्रमतीव भाति। प्रदक्षिणं चैनमुपाचरन्त महर्षयः संस्तुतिभिर्महेन्द्रम् ।। | 6-22-6a 6-22-6b 6-22-6c 6-22-6d |
पुरोहिताः शत्रुवधं वदन्तो ब्रह्मर्षिसिद्धाः श्रुतवन्त एनम् । जप्यैश्च मन्त्रैश्च महौषधीभिः समन्ततः स्वस्त्ययनं ब्रुवन्तः ।। | 6-22-7a 6-22-7b 6-22-7c 6-22-7d |
ततः स वस्त्राणि तथैव गाश्च फलानि पुष्पाणि तथैव निष्कान् । कुरूत्तमो ब्राह्मणसान्महात्मा कुर्वन्ययौ शक्र इवामरेशः ।। | 6-22-8a 6-22-8b 6-22-8c 6-22-8d |
सहस्रसूर्यः शतकिङ्किणीकः परार्ध्यजाम्बूनदहेमचित्रः। रथोऽर्जुनस्याग्निरिवार्चिमाली विभ्राजते श्वेतहयः सुचक्रः ।। | 6-22-9a 6-22-9b 6-22-9c 6-22-9d |
तमास्थितः केशवसंगृहीतं कपिध्वजो गाण्डिवबाणपाणिः। धनुर्धरो यस्य समः पृथिव्यां न विद्यते नो भविता कदाचित् ।। | 6-22-10a 6-22-10b 6-22-10c 6-22-10d |
उद्धर्तयिष्यंस्तव पुत्रसेना- मतीव रौद्रं स बिभर्ति रूपम् । अनायुधो यः सुभुजो भुजाभ्यां नराश्वनागान्युधि भस्म कुर्यात्।। | 6-22-11a 6-22-11b 6-22-11c 6-22-11d |
स भीमसेनः सहितो यमाभ्यां वृकोदरो वीररथस्य गोप्ता । तं तत्र सिंहर्षभमत्तखेलं लोके महेन्द्रप्रतिमानकल्पम् ।। | 6-22-12a 6-22-12b 6-22-12c 6-22-12d |
समीक्ष्य सेनाग्रगतं दुरासदं संविव्यथुः पङ्कगता यथा द्विपाः । वृकोदरं वारणाजदर्पं योधास्त्वदीया भयविग्नसत्त्वाः ।। | 6-22-13a 6-22-13b 6-22-13c 6-22-13d |
अनीकमध्ये तिष्ठन्तं राजपुत्रं दुरासदम् । अब्रवीद्भरतश्रेष्ठं गुडाकेशं जनार्दनः ।। | 6-22-14a 6-22-14b |
वासुदेव उवाच। | 6-22-15x |
य एष रोषात्प्रतपन्बलस्थो यो नः सेनां सिंह इवेक्षते च। स एष भीष्मः कुरुवंशकेतु- र्येनाहृतास्त्रिशतं वाजिमेधाः ।। | 6-22-15a 6-22-15b 6-22-15c 6-22-15d |
एतान्यनीकानि महानुभावं गूहन्ति मेघा इव रश्मिमन्तम्। एतानि हत्वा पुरुषप्रवीर काङ्क्षस्व युद्धं भरतर्षभेण ।। | 6-22-16a 6-22-16b 6-22-16c 6-22-16d |
।। इति श्रीमन्महाभारते भीष्मपर्वणि भगवद्गीतापर्वणि द्वाविंशोऽध्यायः ।। |
6-22-9 सहस्रं सूर्यतुल्यान्यादर्शचक्राणि यस्मिन्स सहस्रसूर्यः ।। 6-22-16 गूहन्ति परिवारयन्ति ।।
भीष्मपर्व-021 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | भीष्मपर्व-023 |