महाभारतम्-06-भीष्मपर्व-085
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संकुलयुद्धवर्णनम् ।। 1 ।।
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सञ्जय उवाच। | 6-85-1x |
स ताड्यमानस्तु शरैर्धनंजयः पदाहतो नाग इव श्वसन्बली । बाणांश्च बाणेन महारथानां चिच्छेद चापानि रणे प्रसह्य ।। | 6-85-1a 6-85-1b 6-85-1c 6-85-1d |
संछिद्य चापानि च तानि राज्ञां तेषां रणे वीर्यवतां क्षणेन। विव्याध बाणैर्युगपन्महात्मा निःशेषतां तेष्वथ मन्यमानः ।। | 6-85-2a 6-85-2b 6-85-2c 6-85-2d |
निपेतुराजौ रुधिरप्रदिग्धा- स्ते ताडिताः शक्रसुतेन राजन्। विभिन्नगात्राः पतितोत्तमाङ्गा गतासवश्छिन्नतनुक्रकायाः ।। | 6-85-3a 6-85-3b 6-85-3c 6-85-3d |
महीं गताः पर्थबलाभिभूता विचित्ररूपा युगपद्विनेशुः। दृष्ट्वा हतांस्तान्युधि राजपुत्रां- स्त्रिगर्तराजः प्रययौ रथेन ।। | 6-85-4a 6-85-4b 6-85-4c 6-85-4d |
तेषां रथानामथ पृष्ठगोपा द्वात्रिंशदन्येऽभ्यपतन्त पार्थम्। तथैव ते तं परिवार्य पार्थं विकृष्य चापानि महारवाणि ।। | 6-85-5a 6-85-5b 6-85-5c 6-85-5d |
अवीवृषन्बाणमहौघवृष्ट्या यथा गिरिं तोयधरा जलौघैः। संपीड्यमानस्तु शरौघवृष्ट्या धनंजयस्तान्युधि जातरोषः ।। | 6-85-6a 6-85-6b 6-85-6c 6-85-6d |
षष्ट्या शरैः संयति तैलधौतै- र्जघान तानप्यथ पृष्ठगोपान्। रथांश्च तांस्तनवजित्य सङ्ख्ये धनञ्जयः प्रीतमना यशस्वी।। | 6-85-7a 6-85-7b 6-85-7c 6-85-7d |
अथात्वरद्भीष्मवधाय जिष्णु- र्बलानि राजन्समरे निहत्य। त्रिगर्तराजो निहतान्समीक्ष्य महात्मना तानथ बन्धुवर्गान् ।। | 6-85-8a 6-85-8b 6-85-8c 6-85-8d |
रणे पुरस्कृत्य नराधिपांस्तान् जगाम पार्थं त्वरितो वधाय अभिद्रुतं चास्त्रभृतां वरिष्ठं धनंजयं वीक्ष्य शिखण्डिमुख्याः ।। | 6-85-9a 6-85-9b 6-85-9c 6-85-9d |
अभ्यद्ययुस्ते शितशस्त्रहस्ता रिरक्षिषन्तो रथमर्जुनस्य। पार्थोऽपि तानापततः समीक्ष्य त्रिगर्तराज्ञा सहितान्नृवीरान ।। | 6-85-10a 6-85-10b 6-85-10c 6-85-10d |
विध्वंसयित्वा समरे धनुष्मान् गाण्डीवमुक्तैर्निशितैः पृषत्कैः । भीष्मं यियासुर्युधि संददर्श दुर्योधनं सैन्धवादींश्च राज्ञः ।। | 6-85-11a 6-85-11b 6-85-11c 6-85-11d |
गाङ्गेयमाजौ शरचापपाणिः ।। | 6-85-12f |
भीष्मोऽपि दृष्ट्वा समरे कृतास्त्रान् स पाण्डवानां रथिनोऽभ्युदारान्। विहाय संग्राममुखे धनंजयं जवेन पार्थं पुनराजगाम।। | 6-85-13a 6-85-13b 6-85-13c 6-85-13d |
र्भीष्मं ययौ शान्तनवं रणाय ।। | 6-85-14f |
तैः संप्रयुक्तैः स महारथाग्र्यै- र्गङ्गासुतः समरे चित्रयोधी। न विव्यधे शान्तनवो महात्मा समागतैः पाण्डुसुतैः समस्तैः ।। | 6-85-15a 6-85-15b 6-85-15c 6-85-15d |
अथैत्य राजा युधि सत्यसन्धो जयद्रथोऽत्युग्रबलो मनस्वी। चिच्छेद चापानि महारथानां प्रसह्य तेषां धनुषा वरेण ।। | 6-85-16a 6-85-16b 6-85-16c 6-85-16d |
युधिष्ठिरं भीमसेनं यमौ च पार्थं कृष्णं युधि संजातकोपः । दुर्योदनः क्रोधविषो महात्मा जघान बाणैरनलप्रकाशैः ।। | 6-85-17a 6-85-17b 6-85-17c 6-85-17d |
कृपेण शल्येन शलेन चैव तथा विभो चित्रसेनेन चौजौ। विद्धाः शरैस्तेऽतिविवृद्धकोपै- र्देवा यथा दैत्यगणैः समेतैः ।। | 6-85-18a 6-85-18b 6-85-18c 6-85-18d |
छिन्नायुधं शान्तनवेन राजा शिखण्डिनं प्रेक्ष्य च जातकोपः। अजातशत्रुः समरे महात्मा शिखण्डिनं क्रुद्ध उवाच वाक्यम् ।। | 6-85-19a 6-85-19b 6-85-19c 6-85-19d |
उक्त्वा तथा त्वं पितुरग्रतो मा- महं हनिष्यामि महाव्रतं तम्। भीष्मं शरौघैर्विमलार्कवर्णैः सत्यं वदामीति कृता प्रतिज्ञा ।। | 6-85-20a 6-85-20b 6-85-20c 6-85-20d |
त्वया च नैनां सफलां करोषि देवव्रतं यन्न निहंसि युद्धे। मिथ्याप्रतिज्ञो भव मात्र वीर रक्षस्व धर्मं स्वकुलं यशश्च।। | 6-85-21a 6-85-21b 6-85-21c 6-85-21d |
प्रेक्षस्व भीष्मं युधि भीमवेगं सर्वांस्तपन्तं मम सैन्यसङ्घान्। शरौघजालैरतितिग्मवेगैः कालं यथा कालकृतं क्षणेन ।। | 6-85-22a 6-85-22b 6-85-22c 6-85-22d |
निकृत्तचापः समरेऽनपेक्षः पराजितः शान्तनवेन चाजौ । विहाय बन्धूनथ सदरांश्च क्व यास्यसे नानुरूपं तवेदम् ।। | 6-85-23a 6-85-23b 6-85-23c 6-85-23d |
दृष्ट्वा हि भीष्मं तमनन्तवीर्यं भग्नं च सैन्यं द्रवमाणमेवम् । भीतोऽसि नूनं द्रुपदस्य पुत्र तथा हि ते मुखवर्णोऽप्रहृष्टः ।। | 6-85-24a 6-85-24b 6-85-24c 6-85-24d |
अज्ञायमाने च धनंजये तु महाहावे संप्रसक्ते नृवीरे। कथं हि भीष्मात्प्रथितः पृथिव्यां भयं त्वमद्य प्रकरोषि वीर ।। | 6-85-25a 6-85-25b 6-85-25c 6-85-25d |
स धर्मराजस्य वचो निशम्य रूक्षाक्षरं विप्रलापानुबद्धम् । प्रत्यादेशं मन्यमानो महात्मा प्रतत्वरे भीष्मवधाय राजन् ।। | 6-85-26a 6-85-26b 6-85-26c 6-85-26d |
तमापतन्तं महता जवेन शिखण्डिनं भीष्ममभिद्रवन्तम्। निवारयामास हि शल्य एन- मस्त्रेण घोरेण सुदुर्जयेन ।। | 6-85-27a 6-85-27b 6-85-27c 6-85-27d |
शरैस्तदस्त्रं प्रतिबाधमानः ।। | 6-85-28f |
अथाददे वारुणमन्यदस्त्रं शिखण्ड्यथोऽग्रं प्रतिघातमस्य। तदस्त्रमस्त्रेण विदार्यमाणं खस्थाः सुरा ददृशुः पार्थिवाश्च ।। | 6-85-29a 6-85-29b 6-85-29c 6-85-29d |
भीष्मस्तु राजन्समरे महात्मा धनुश्च चित्रं ध्वजमेव चापि। छित्त्वाऽनदत्पाण्डुसुतस्य वीरो युधिष्ठिरस्याजमीढस्य राज्ञः ।। | 6-85-30a 6-85-30b 6-85-30c 6-85-30d |
ततः समुत्सृज्य धनुः सबाणं युधिष्ठिरं वीक्ष्य भयाभिभूतम्। गदां प्रगृह्याभिपपात सङ्ख्ये जयद्रथं भीमसेनः पदातिः ।। | 6-85-31a 6-85-31b 6-85-31c 6-85-31d |
तमापतन्तं सहसा जवेन जयद्रथः सगदं भीमसेनम्। विव्याध घोरैर्यमदण्डकल्पैः शितैः शरैः पञ्चशरैः समन्तात् ।। | 6-85-32a 6-85-32b 6-85-32c 6-85-32d |
अचिन्तयित्वा स शरांस्तरस्वी वृकोदरः क्रोधपरीतचेताः । जघान वाहान्समरे समन्तात् सुसंमतान्सिन्धुराजस्य सङ्ख्ये ।। | 6-85-33a 6-85-33b 6-85-33c 6-85-33d |
ततोऽभिवीक्ष्याप्रतिमप्रभाव- स्तवात्मजस्त्वरमाणो रथेन अभ्यायौ भीमसेनं निहन्तुं समुद्यतास्त्रः सुरराजकल्पः ।। | 6-85-34a 6-85-34b 6-85-34c 6-85-34d |
जयद्रथो भग्रवाहं रथं त त्यक्त्वा ययौ यत्र राजा कुरूणाम् । भयेन भीमस्य समूढचेताः ससौबलस्तत्र युद्धस्य भीतः ।। | 6-85-35a 6-85-35b 6-85-35c 6-85-35d |
भीमोऽप्यथैनं सहसा विनद्य प्रत्युद्ययौ गदया तर्जयानः। समुद्यतां तां यमदण्डकल्पां दृष्ट्वा गदां ते कुरवः समन्तात् ।। | 6-85-36a 6-85-36b 6-85-36c 6-85-36d |
विहाय सर्वे तव पुत्रमुग्नं | 6-85-37a |
पातं गदायाः परिहर्तुकामाः। अपक्रान्तास्तुमुले संप्रमर्दे सुदूरुणे भारत मोहनीये ।। | 6-85-37a 6-85-37c 6-85-37d |
ज्जगामान्यं भ्रमप भूमिदेशम् ।। | 6-85-38f |
गदापि सा प्राप्य रथं सुचित्रं साश्व ससूतं विनिहत्य सङ्ख्ये। जगाम भूमिं ज्वलिता महोल्क भ्रष्टाऽम्बराद्गामिव संपतन्ती ।। | 6-85-39a 6-85-39b 6-85-39c 6-85-39d |
आश्चर्यभूतं सुमहत्त्वदीया दृष्ट्वैव तद्भारत संप्रहृष्टाः। सर्वे विनेदुः सहिताः समन्ता- त्पुपूजिरे तव पुत्रस्य शौर्यम् ।। | 6-85-40a 6-85-40b 6-85-40c 6-85-40d |
।। इति श्रीमन्महाभारते भीष्मपर्वणि भीष्मवधपर्वणि सप्तमदिवसयुद्धे पञ्चाशीतितमोऽध्यायः ।। |
6-85-25 अज्ञायमाने पश्चात्स्थिते ।। 6-85-26 प्रत्यादेशं भर्त्सनं ।।
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