महाभारतम्-02-सभापर्व-001
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मयस्यार्जुनम्प्रति प्रत्युपकारप्रार्थना।। 1।।
कृष्णे उपकृते अहमुपकृत मयम्प्रति अर्जुनस्योक्तिः।। 2।।
कृष्णाज्ञय मयेन सभानिर्माणारम्भः।। 3।।
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।। श्रीवेदव्यासाय नमः।। | 2-1-1x |
`नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्। देवीं सरस्वतीं चैव (व्यासं)ततो जयमुदीरयेत्।। | 2-1-1a 2-1-1b |
जनमेजय उवाच। | 2-1-2x |
अर्जुनो जयतां श्रेष्ठो मोचयित्वा मयं तदा। किं चकार महातेजास्तन्मे ब्रूहि द्विजोत्तम ।। | 2-1-2a 2-1-2b |
वैशम्पायन उवाच। | 2-1-3x |
शृणु राजन्नवहितश्चरितं पूर्वकस्य ते। मोक्षयित्वा मयं तत्र पार्थः शस्त्रभृतां वरः।। | 2-1-3a 2-1-3b |
गाण्डिवं कार्मुकश्रेष्ठं तूणी चाक्षयसायकौ। दिव्यान्यस्त्राणि राजेन्द्र दुर्लभानि नृपैर्भुवि।। | 2-1-4a 2-1-4b |
रथध्वजपताकाश्च श्वेताश्वांश्च स वीर्यवान्। एतानि पावकात्प्राप्य मुदा परमया युतः। तस्थौ पार्थो महावीर्यस्तदा सह मयेन सः'।। | 2-1-5a 2-1-5b 2-1-5c |
ततोऽब्रवीन्मयः पार्थं वासुदेवस्य सन्निधौ। `पाण्डवेन परित्रातस्तत्कृतं प्रत्यनुस्मरन्'।। | 2-1-6a 2-1-6b |
मय उवाच। | 2-1-7x |
प्राञ्जलिः श्लक्ष्णया वाचा पूजयित्वा पुनः पुनः। अस्माच्च कृष्णात्सङ्क्रुद्धात्पावकाच्च दिधक्षतः।। | 2-1-7a 2-1-7x 2-1-7b |
त्वया त्रातोऽस्मि कौन्तेय ब्रूहि किं करवाणि ते। `अहं हि विश्वकर्मा वै असुराणां परन्तप।। | 2-1-8a 2-1-8b |
तस्मात्ते विस्मयं किञ्चित्कुर्यामन्यैः सुदुष्करम्।। | 2-1-9a |
वैशम्पायन उवाच। | 2-1-10x |
एवमुक्तो महावीर्यः पार्थो मायाविदं मयम्। ध्यात्वा मुहूर्तं कौन्तेयः प्रहसन्वाक्यमब्रवीत्'।। | 2-1-10a 2-1-10b |
कृतमेव त्वया सर्वं स्वस्ति गच्छ महाऽसुर। प्रीतिमान्भव मे नित्यं प्रीतिमन्तो वयं च ते।। | 2-1-11a 2-1-11b |
मय उवाच। | 2-1-12x |
प्रोपकारादर्थं हि नादास्यामीति मे व्रतम्'। युक्तमेतत्त्वयि विभो यदात्थ पुरुषर्षभ।। | 2-1-12a 2-1-12b |
प्रीतिपूर्वमहं किञ्चित्कर्तुमिच्छामि तेऽर्जुन। अहं हि विश्वकर्मा वै दानवानां महाकविः।। | 2-1-13a 2-1-13b |
`सोऽहं वै त्वत्कृते किञ्चित्कर्तुमिच्छामि पाण्डव। `दानवानां पुरा पार्थ प्रासादा हि मया कृताः।। | 2-1-14a 2-1-14b |
रम्याणि सुखगर्भाणि भोगाढ्यानि सहस्रशः। उद्यानानि च रम्याणि सरांसि विविधानि च।। | 2-1-15a 2-1-15b |
विचित्राणि च वस्त्राणि कामगानि रथानि च। नगराणि विशालानि साट्टप्राकारवन्ति च।। | 2-1-16a 2-1-16b |
वाहनानि च मुख्यानि विचित्राणि सहस्रशः। बिलानि रमणीयानि सुखयुक्तानि वै भृशम्। एते कृता मया तस्मादिच्छामि फल्गुन'।। | 2-1-17a 2-1-17b 2-1-17c |
अर्जुन उवाच। | 2-1-18x |
प्राणकृच्छ्राद्विनिर्मुक्तमात्मानं मन्यसे मया। एवं गते न शक्ष्यामि किञ्चित्कारयितुं त्वया।। | 2-1-18a 2-1-18b |
न चापि तव सङ्कल्पं मोघमिच्छामि दानव। कृष्णस्य क्रियतां किञ्चित्तथा प्रतिकृतं मयि।। | 2-1-19a 2-1-19b |
वैशम्पायन उवाच। | 2-1-20x |
चोदितो वासुदेवस्तु मयं प्रति नरर्षभ। मुहूर्तमिव सन्दध्यौ किमयं चोद्यतामिति।। | 2-1-20a 2-1-20b |
ततो विचिन्त्य मनसा लोकनाथः प्रजापितः। चोदयामास तं कृष्णः सभा वै क्रियतामिति।। | 2-1-21a 2-1-21b |
यदि त्वं कर्तुकामोऽसि प्रियं शिल्पवतां वर। धर्मराजस्य दयितां यादृशीमिह मन्यसे।। | 2-1-22a 2-1-22b |
यां क्रियां नानुकुर्युस्ते मानवाः प्रेक्ष्य विष्ठिताः। मनुष्यलोके सकले तादृशीं कुरु वै सभाम्।। | 2-1-23a 2-1-23b |
यत्र द्विव्यानभिप्रायान्पश्येम विहितांस्त्वया। आसुरान्मानुपांश्चैव तादृशीं कुरु वै सभाम्।। | 2-1-24a 2-1-24b |
वैशम्पायन उवाच। | 2-1-25x |
प्रतिगृह्य तु तद्वाक्यं सम्प्रहृष्टो मयस्तदा। विमानप्रतिमां चक्रे पाण्डवस्य शुभां सभाम्।। | 2-1-25a 2-1-25b |
ततः कृष्णश्च पार्थश्च धर्मराजे युधिष्ठिरे। सर्वमेतत्समावेद्य दर्शयामासतुर्मयम्।। | 2-1-26a 2-1-26b |
तस्मै युधिष्ठिरः पूजां यथार्हमकरोत्तदा। स तु तां प्रतिजग्राह मयः सत्कृत्य भारत।। | 2-1-27a 2-1-27b |
स पूर्वदेवचरितं तदा तत्र विशाम्पते। कथयामास दैतेयः पाण्डुपुत्रेषु भारत।। | 2-1-28a 2-1-28b |
स कालं कञ्चिदाश्वस्य विश्वकर्मा विचिन्त्य तु। सभां प्रचकमे कर्तुं पाण्डवानां महात्मनाम्।। | 2-1-29a 2-1-29b |
अभिप्रायेण पार्थानां कृष्णस्य च महात्मनः। पुण्येऽहनि महातेजाः कृतकौतुकमङ्गलः।। | 2-1-30a 2-1-30b |
तर्पयित्वा द्विजश्रेष्ठान्पायसेन सहस्रशः। धनं बहुविधं दत्त्वा तेभ्य एव च वीर्यवान्।। | 2-1-31a 2-1-31b |
सर्वर्तुगुणसम्पन्नां दिव्यरूपां मनोरमाम्। दशकिष्कुसहस्रां तां मापयामास सर्वतः।। | 2-1-31a 2-1-32b |
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि | |
2-1-1 सभाo ।। 2-1-28 पूर्वदेवो वृषपर्वा दानवस्तस्य चरितं बिन्दुसरसि यज्ञकरणादि ।।
सभापर्व | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | सभापर्व-002 |