महाभारतम्-02-सभापर्व-061
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भीष्मेण नरकबाणासुरप्रमुखदुष्टनिग्रहादिरूपातीतानागतकृष्णचरित्रनिरूपणम्।। 1।।।
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भीष्ण उवाच।। | 2-61-1x |
सूदिता द्वारपालाश्च निशुम्भनरकौ हतौ। कृतक्षेमः पुनः पन्थाः पुरं प्राग्ज्योतिषं प्रति।। | 2-61-1a 2-61-1b |
शौरिणा पृथिवीपालास्त्रासिता भरतर्षभ। धनुषश्च प्रणादेन पाञ्चजन्यस्वनेन च।। | 2-61-2a 2-61-2b |
मेघप्रख्यैरनेकैश्च दाक्षिणात्याभिसंवृतम्। रुक्मिणं त्रासयामास केशवो भरतर्षभ।। | 2-61-3a 2-61-3b |
ततः पर्जन्यघोषेण रथेनादित्यवर्चसा। उवाह महिषीं भोज्यामेष चक्रगदाधरः।। | 2-61-4a 2-61-4b |
जारूथ्य आहृतक्रोधः शिशुपालश्च निर्जितः। वक्रश्च स हतः सङ्ख्ये शतधन्वा च क्षत्रियः।। | 2-61-5a 2-61-5b |
इन्द्रद्युम्नो हतः कोपाद्यवनश्च कशेरुकः। हतः सौभपतिश्चैव साल्वश्च कृतधन्वना।। | 2-61-6a 2-61-6b |
पर्वतानां सहस्रं च चक्रेण पुरुषोत्तमः। विभज्य पुण्डरीकाक्षो द्युमत्सेनमपोथयत्।। | 2-61-7a 2-61-7b |
महेन्द्रशिखरे चैव निमेषान्तरचारिणौ। जग्राह भरतश्रेष्ठ वानरावभितश्चरौ।। | 2-61-8a 2-61-8b |
इरावत्यां महाभोजो वह्निसूर्यसमो बले। गोपतिस्तालकेतुश्च निहतौ शार्ङ्गधन्वना।। | 2-61-9a 2-61-9b |
अक्षप्रपत्तने राजन्नवहेलनतत्परौ। उभौ तावपि कृष्णेन स्वराष्ट्रे विनिपातितौ।। | 2-61-10a 2-61-10b |
दग्धा वाराणसी तात केशवेन महात्मना। पाण्ड्यं पौण्ड्रं च मात्स्यं च कलिङ्गं च जनार्दनः।। | 2-61-11a 2-61-11b |
जघान सहितान्सर्वानङ्गराजं च माधवः।। | 2-61-12a |
एष चैव शतं हत्वा रथेन क्षत्रपुङ्गवान्। गान्धारीमवहत्कृष्णो महिषीं यादवर्षभः।। | 2-61-13a 2-61-13b |
अथ गाण्डीवधन्वानं क्रीडार्थं मधुसूदनः। जिगाय भरतश्रेष्ठ कुन्त्याश्च प्रमुखे विभुः।। | 2-61-14a 2-61-14b |
द्रौणिं कृपं च कर्णं च भीमसेनं सुयोधनम्। युद्धाय सहितान्त्राजञ्जिगाय भरतर्षभ।। | 2-61-15a 2-61-15b |
बभ्रोश्च प्रियमन्विच्छन्नेष चक्रगदाधरः। वेणुदारिवृतां भार्यां प्रममाथ युधिष्ठिर।। | 2-61-16a 2-61-16b |
पर्याप्तां पृथिवीं सर्वां साश्वां सरथकुञ्जराम्। वेणुदारिवशे युक्तां जिगाय मधुसूदनः।। | 2-61-17a 2-61-17b |
अवाप्य तपसा वीर्यं बलमोजश्च भारत। त्रासिताः सगणाः सर्वे बाणेन विबुधाधिपाः।। | 2-61-18a 2-61-18b |
वज्राशनिगदाबामैस्ताडयद्भिरनेकशः। तस्य नासीद्रणे मृत्युर्देवैरपि सवासवैः।। | 2-61-19a 2-61-19b |
सोऽभिभूतश्च कृष्णेन न हतश्च मगात्मना। छित्वा बाहुसहस्रं तु गोविन्देन महात्मना।। | 2-61-20a 2-61-20b |
एषोऽपीडन्महाबाहुः कंसं च मधुसूदनः। अवाप्तं तपसा वीर्यं बलमोजश्च भारत। कैटभं चातिलोमानि निजघान जनार्दनः।। | 2-61-21a 2-61-21b 2-61-21c |
जम्बुमैरावतं चैव विरूपं च महायशाः। घान भरतश्रेष्ठ शम्बरं चारिमर्दनम्।। | 2-61-22a 2-61-22b |
एष भोगवतीं गत्वा वासुकिं भरतर्षभ। निर्जित्य पुण्डरीकाक्षो रौक्मिणेयममोचयत्।। | 2-61-23a 2-61-23b |
एवं बहूनि कर्माणि शिशुरेव जनार्दनः। कृतवान्पुण्डरीकाक्षः सङ्कर्षणसहायवान्।। | 2-61-24a 2-61-24b |
एवमेषोऽसुराणां चसुराणामपि सर्वशः। भयामयकरः कृष्णः सर्वलोकेश्वरः प्रभुः।। | 2-61-25a 2-61-25b |
एवमेव महाबाहुः शास्ता सर्वदुरात्मनाम्। कृत्वा देवार्थममितं स्वस्थानं प्राप्स्यते पुनः।। | 2-61-26a 2-61-26b |
एष भोगवतीं पुण्यां रविकान्तिं महायशाः। द्वारकामात्मसात्कृत्वा सागरं प्लावयिष्यति।। | 2-61-27a 2-61-27b |
सुरासुरमनुष्येषु नाभून्न भविता क्वचित्। यस्तामध्यवसद्राजा नान्यत्र मधुसूदनात्।। | 2-61-28a 2-61-28b |
भ्राजमानास्तु वै सर्वे वृष्ण्यन्धकमहारथाः। तेजिष्ठं प्रतिपत्स्यन्ते नाकपृष्टं गतासवः।। | 2-61-29a 2-61-39b |
एवमेव दशार्हाणां विधाय विधिना विधिम्। विष्णुर्नारायणः साक्षात्स्वस्थानं प्राप्स्यते ध्रुवम्।। | 2-61-30a 2-61-30b |
अप्रमेयोऽनियोज्यश्च यत्र कामगमो वशी। मोदते भगवान्प्रीतो वालः क्रीडानकैरिव।। | 2-61-31a 2-61-31b |
नैष गर्भत्वमापेदे न योन्यामावसत्प्रभुः। आत्मनस्तेजसा कृष्णः सर्वेषां कुरुते गतिम्।। | 2-61-32a 2-61-32b |
यथा बुद्बुद उत्थाय तत्रैव प्रविलीयते। चराचराणि भूतानि तथा नारायणे सदा।। | 2-61-33a 2-61-33b |
न प्रमातुं महाबाहुः शक्यो भारत केशवः। परं हि परतस्तस्माद्विश्वरूपान्न विद्यते।। | 2-61-34a 2-61-34b |
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि अर्घाहरणपर्वणि एकषष्टितमोऽध्यायः।। 61।। |
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