महाभारतम्-02-सभापर्व-075
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शकुनिना दुर्योधनम्प्रति पाण्डवानां पौरुषेणाजय्यत्वकथनपूर्वकं द्यूतेन जेष ्यामीति समाश्वासनादिकम्।। 1।।
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शकुनिरुवाच।। | 2-75-1x |
दुर्योधन न तेऽमर्षः कार्यः प्रति युधिष्ठिरम्। भागधेयानि हि स्वानि पाण्डवा भुञ्जते सदा।। | 2-75-1a 2-75-1b |
विधानं विविधाकारं परं तेषां विधानतः। अनेकैरभ्युपायैश्च त्वया न शकिताः पुरा।। | 2-75-2a 2-75-2b |
आरब्धा हि महाराज पुनः पुनररिन्दम। विमुक्ताश्च नरव्याघ्रा भगधेयपुरस्कृताः। `उत्साहवन्तः पुरुषा नावसीदन्ति कर्मसु'।। | 2-75-3a 2-75-3b 2-75-3c |
तैर्लब्धा द्रौपदी भार्या द्रुपदश्च सुतैः सह। सहायाः पृथिवीपाला वासुदेवश्च वीर्यवान्।। | 2-75-4a 2-75-4b |
लब्धश्चानभिभूतार्थैः पित्र्योंशः पृथिवीपते। विवृद्धस्तेजसा तेषां तत्र का परिदेवना।। | 2-75-5a 2-75-5b |
धनञ्जयेन गाण्डीवमक्षय्यौ च महेषुधी। लब्धान्यस्त्राणि दिव्यानि तोषयित्वा हुताशनम्।। | 2-75-6a 2-75-6b |
तेन कार्मुकमुख्येन बाहुवीर्येण चात्मनः। कृता वशे महीपालास्तत्र का परिदेवना।। | 2-75-7a 2-75-7b |
अग्निदाहान्मयं चापि मोक्षयित्वा स दानवम्। सभां तां कारयामास सव्यसाची परन्तपः।। | 2-75-8a 2-75-8b |
तेन चैव मयेनोक्ताः किङ्करा नाम राक्षसाः। हन्ति तां सभां भीमास्तत्र का परिदेवना।। | 2-75-9a 2-75-9b |
यच्चासहायतां राजन्नुक्तवानसि भारत। तन्मिथ्या भ्रातरो हीमे तव सर्वे वशानुगाः।। | 2-75-10a 2-75-10b |
द्रोणस्तव महेष्वासः सह पुत्रेण वीर्यवान्। मूतपुत्रश्च राधेयो दृढधन्वा महारथः।। | 2-75-11a 2-75-11b |
`स एकः समरे सर्वान्पाण्डवान्सहसोमकान्। विजेष्यति महाबाहो किं सहायैः करिष्यसि।। | 2-75-12a 2-75-12b |
भीष्मश्च पुरुषव्याघ्रो गौतमश्च महारथः। जयद्रथश्च बलावान्सोमदत्तस्तथैव च'।। | 2-75-13a 2-75-13b |
अहं च सह सोदर्यैः सौमदत्तिश्च पार्थिवः। एतैस्त्वं सहितः सर्वैर्जय कृत्स्नं वसुन्दराम्।। | 2-75-14a 2-75-14b |
दुर्योधन उवाच। | 2-75-15x |
त्वया च सहितो राजन्नेतैश्चान्यैर्महारथैः। एतानहं विजेष्यामि यदि त्वमनुमन्यसे।। | 2-75-15a 2-75-15b |
एतेषु विजितेष्वद्य भविष्यति मही मम। सर्वे च पृथिवीपालाः सभा सा च महाधना।। | 2-75-16a 2-75-16b |
शकुनिरुवाच।। | 2-75-17x |
धनञ्जयो वासुदेवो भीमसेनो युधिष्ठिरः। नकुलः सहदेवश्च द्रुपदश्च सहात्मजैः।। | 2-75-17a 2-75-17b |
नैते युधि पराजेतुं शक्या देवगणैरपि। महारथा महेष्वासाः कृतास्त्रा युद्धदुर्मदाः।। | 2-75-18a 2-75-18b |
अहं तु तद्विजानामि विजेतुं येन शक्यते। युधिष्ठिरं स्वयं राजंस्तन्निबोध जुषस्व च।। | 2-75-19a 2-75-19b |
दुर्योधन उवाच।। | 2-75-20x |
अप्रमादेन सुहृदामन्येषां च महात्मनाम्। यदि शक्या विजेतुं ते तन्ममाचक्ष्व मातुल।। | 2-75-20a 2-75-20b |
शकुनिरुवाच। | 2-75-21x |
द्यूतप्रियश्च कौन्तेयो न स जानाति देवितुम्। समाहूतश्च राजेन्द्रो न शक्ष्यति तिवर्तितुम्।। | 2-75-21a 2-75-21b |
देवने कुशलश्चाहं न मेऽस्ति सदृशो भुवि। त्रिषु लोकेषु कौरव्य तं त्वं द्यूते समाह्वय।। | 2-75-22a 2-75-22b |
तस्याक्षकुशलो राजन्नादास्येऽहमसंशयम्। राज्यं श्रियं च तां दीप्तां त्वदर्थं पुरुषर्षभ।। | 2-75-23a 2-75-23b |
इदं तु सर्वं त्वं राज्ञे दुर्योधन निवेदय। अनुज्ञातस्तु ते पित्रा विजेष्ये तान्न संशयः।। | 2-75-24a 2-75-24b |
दुर्योधन उवाच। | 2-75-25x |
त्वमेव करुमुख्याय धृतराष्ट्राय सौबल। निवेदय यथान्यायं नाहं शक्ष्ये निवेदितुम्।। | 2-75-25a 2-75-25b |
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि द्यूतपर्वणि पञ्चसप्ततितमोऽध्यायः।।75 ।। |
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