महाभारतम्-02-सभापर्व-040
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शिशुपालेन अनेकधा कृष्णोपालम्भनपूर्वकं सभातो निर्गमनम्।। 1।।
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शिशुपाल उवाच। | 2-40-1x |
नायमर्हति वार्ष्णेयस्तिष्ठत्स्विह महात्मसु। महीपतिषु कौरव्य राजवत्पार्थिवार्हणम्।। | 2-40-1a 2-40-1b |
नायं युक्तः समाचारः पाण्डवेषु महात्मसु। यत्कामाद्देवकीपुत्रं पाण्डवार्चितवानसि।। | 2-40-2a 2-40-2b |
बाला यूयं न जानीध्वं धर्मः सूक्ष्मो हि पाण्डवाः। अयं तत्राभ्यतिक्रान्तो ह्यापगेयोऽल्पदर्शनः।। | 2-40-3a 2-40-3b |
त्वादृशो धर्मयुक्तो हि कुर्वाणः प्रियकाम्यया। भवत्यभ्यधिकं भीष्मो लोकेष्ववमतः सताम्।। | 2-40-4a 2-40-4b |
कथं ह्यराजा दाशार्हो मध्ये सर्वमहीक्षिताम्। अर्हणामर्हति तथा यथा युष्माभिरर्चितः।। | 2-40-5a 2-40-5b |
अथवा मन्यसे कृष्णं स्थविरं कुरुपुङ्गवः। वसुदेवे स्थिते वृद्धे कथमर्हति तत्सुतः।। | 2-40-6a 2-40-6b |
अथवा वासुदेवोऽपि प्रियकामोऽनुवृत्तवान्। द्रुपदे तिष्ठति कथं माधवोऽर्हति पूजनम्।। | 2-40-7a 2-40-7b |
आचार्यं मन्यसे कृष्णमथवा कुरुनन्दन। द्रोणे तिष्ठति वार्ष्णेयं कस्मादर्चितवानसि।। | 2-40-8a 2-40-8b |
ऋत्विजं मन्यसे कृष्णमथवा कुरुनन्दन। द्वौपायने स्थिते वृद्धे कथं कृष्णोऽर्चितस्त्वया।। | 2-40-9a 2-40-9b |
भीष्मे शान्तनवे राजन्स्थिते पुरुषसत्तमे। स्वच्छन्दमृत्युके राजन्कथं कृष्णोऽर्चितस्त्वया।। | 2-40-10a 2-40-10b |
अश्वत्थाम्नि स्थिते वीरे सर्वशास्त्रविशारदे। कथं कृष्णस्त्वया राजन्नर्चितः कुरुनन्दन।। | 2-40-11a 2-40-11b |
दुर्योधने च राजेन्द्रे स्थिते पुरुषसत्तमे। कृपे च भारताचार्ये कथं कृष्णस्त्वयाऽर्चितः।। | 2-40-12a 2-40-12b |
द्रुमं कम्पुरुषाचार्यमतिक्रम्य तथाऽर्चितः। भीष्मके चैव दुर्धर्षे पाण्डुवत्कृतलक्षणे।। | 2-40-13a 2-40-13b |
नृपे च रुक्मिणि श्रेष्ठे एकलव्ये तथैव च। शल्ये मद्राधिपे चैव कथं कृष्णस्त्वयार्चितः।। | 2-40-14a 2-40-14b |
अयं च सर्वराज्ञां वै बलश्लाघी महाबलः। जामदग्न्यस्य दयितः शिष्यो विप्रस्य भारत।। | 2-40-15a 2-40-15b |
येनात्मबलमाश्रित्य राजानो युधि निर्जिताः। तं च कर्णमतिक्रम्य कथं कृष्णस्त्वयार्चितः।। | 2-40-16a 2-40-16b |
नैवर्त्विङ्नैव चाचार्यो न राजा मधुसूदनः। अर्चितश्च कुरुश्रेष्ठ किमन्यत्प्रियकाम्यया।। | 2-40-17a 2-40-17b |
अथवाऽभ्यर्चनीयोऽयं युष्माकं मधुसूदनः। किं राजभिरिहानीतैरवमानाय भारत।। | 2-40-18a 2-40-18b |
वयं तु न भयादस्य कौन्तेयस्य महात्मनः। प्रयच्छामः करान्सर्वे न लोभान्न च सान्त्वनात्।। | 2-40-19a 2-40-19b |
अस्य धर्मप्रवृत्तस्य पार्थिवत्वं चिकीर्षतः। करानस्मै प्रयच्छामः सोऽयमस्मान्न मन्यते।। | 2-40-20a 2-40-20b |
किमन्यदवमनानाद्धे यदेनं राजसंसदि। अप्राप्तलक्षणं कृष्णमर्घ्येणार्चितवानसि।। | 2-40-21a 2-40-21b |
अकस्माद्धर्मपुत्रस्य धर्मात्मेति यशो गतम्। को हि धर्मच्युते पूजामेवं युक्तां नियोजयेत्।। | 2-40-22a 2-40-22b |
योयं वृष्णिकुले जातो राजानं हतवान्पुरा। जरासन्धं महात्मानमन्यायेन दुरात्मवान्।। | 2-40-23a 2-40-23b |
अद्य धर्मात्मता चैव व्यपकृष्टा युधिष्ठिरात्। दर्शितं कृपणत्वं च कृष्णेऽर्घ्यस्य निवेदनात्।। | 2-40-24a 2-40-24b |
यदि भीताश्च कौन्तेयाः कृपणाश्च तपस्विनः। ननु त्वयाऽपि बोद्धव्यं यां पूजां माधवार्हसि।। | 2-40-25a 2-40-25b |
अथवा कृपणैरेतामुपनीतां जनार्दन। पूजामनर्हः कस्मात्त्वमभ्यनुज्ञातवानसि।। | 2-40-26a 2-40-26b |
अयुक्तामात्मनः पूजां त्वं पुनर्बहुमन्यसे। हविषः प्राप्य निष्यन्दं प्राशिता श्वेव निर्जने।। | 2-40-27a 2-40-27b |
न त्वं पार्थिवेन्द्राणामपमानः प्रयुज्यते। त्वामेव कुरवो व्यक्तं प्रलम्भन्ते जनार्दन।। | 2-40-28a 2-40-28b |
क्लीबे दारक्रिया यादृगन्धे वा रूपदर्शनम्। अराज्ञो राजवत्पूजा तथा ते मधुसूदन।। | 2-40-29a 2-40-29b |
दृष्टो युधिष्ठिरो राजा दृष्टो भीष्मश्च यादृशः। वासुदेवोऽप्ययं दृष्टः सर्वमेतद्यथातथम्।। | 2-40-30a 2-40-30b |
इत्युक्त्वा शिशुपालस्तानुत्थाय परमासनात्। निर्ययौ सदसस्तस्मात्सहितो राजभिस्तदा।। | 2-40-31a 2-40-31b |
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि दिग्विजयपर्वणि चत्वारिंशोऽध्यायः।। 40।। |
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