महाभारतम्-02-सभापर्व-068
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भीष्मवाक्यात्कुपितेन शशुपालेन राज्ञः सज्ञाह्य युयुत्सया कृष्णस्याह्वानम् ।। 1।। कृष्णेन स्वस्मिन् शिशुपालकृतापराधान्विश्राव्य विभीषितानां राज्ञां पलायनम ्।। 2।। अपगतेषु राजसु शिशुपालस्य एकाकिनः कृष्णं प्रति युद्धाय गमनम्।। 3।।
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वैशम्पायन उवाच।। | 2-68-1x |
वचः श्रुत्वैव भीष्मस्य चेदिराडुरुविक्रमः। युयुत्सुर्वासुदेवेन वासुदेवमुवाच ह।। | 2-68-1a 2-68-1b |
आह्वये त्वां रणं गच्छ मया सार्धं जनार्दन। यावदद्य निहन्मि त्वां सहितं सर्वपाण्डवैः।। | 2-68-2a 2-68-2b |
सह त्वया हि मे वध्याः सर्वथा कृष्ण पाण्डवाः। नृपतीन्समतिक्रम्य यैरराजा त्वमर्चितः।। | 2-68-3a 2-68-3b |
ये त्वां दासमराजानं बाल्यादर्चन्ति दुर्मतिम्। अनर्हमर्हवत्कृष्ण वध्यास्त इति मे मतिः।। | 2-68-4a 2-68-4b |
इत्युक्त्वा राजशार्दूल `शार्दूल इव नादयन्। पश्यतां सर्वभूतानां शिशुपालः प्रतापवान्।। | 2-68-5a 2-68-5b |
स रणायैव सङ्क्रुद्धः सन्नद्धः सर्वराजभिः। सुनीथः प्रययौ क्षिप्रं पार्थयज्ञजिघांसया।। | 2-68-6a 2-68-6b |
ततश्चक्रगदापाणिः केशवः केशिहा हरिः। सध्वजं रथमास्थाय दारुकेण सुसत्कृतम्। भीष्मेण दत्तहस्तोऽसावारुहोह रथोत्तमम्।। | 2-68-7a 2-68-7b 2-68-7c |
तेन पापस्वभावेन कोपितान्सर्वपार्थिवान्। आससाद रणे कृष्णः सज्जितैकरथः स्थितः।। | 2-68-8a 2-68-8b |
ततः पुष्करपत्राक्षं तार्क्ष्यध्वजरथे स्थितम्। दिवाकरमिवोद्यन्तं ददृशुः सर्वपार्थिवाः।। | 2-68-9a 2-68-9b |
आरोपयन्तं ज्यां कृष्णं प्रतपन्तमिवौजसा। स्थितं पुष्परथे दिव्ये पुष्पकेतुमिवापरम्।। | 2-68-10a 2-68-10b |
दृष्ट्वा कृष्णं तथा यान्तं प्रतपन्तमिवौजसा। यथार्हं केशवे वृत्तिमवशाः प्रतिपेदिरे।। | 2-68-11a 2-68-11b |
तानुवाच महाबाहुर्महाऽसुरनिबर्हणः। वृष्णिवीरस्तदा राजन्सान्त्वयन्परवीरहा।। | 2-68-12a 2-68-12b |
श्रीभगवानुवाच।। | 2-68-13x |
अपेत सबलाः सर्व आस्वस्ता मम शासनात्। मा दृष्टो दूषयेत्पाप एष वः सर्वपार्थिपाः।। | 2-68-13a 2-68-13b |
एष नः शत्रुरत्यन्तमेष वृष्णिविमर्दनः। सात्वतां सात्वतीपुत्रो वैरं चरति शाश्वतम्'।। | 2-68-14a 2-68-14b |
प्राग्ज्योतिषपुरं यातानस्माञ्ज्ञात्वा नृशंसकृत्। अदहद्द्वारकामेष स्वस्त्रीयः सन्नराधिपाः।। | 2-68-15a 2-68-15b |
क्रीडतो भोजराजस्य एव रैवतके गिरौ। हत्वा बध्वा च तान्सार्वानुपायात्स्वपुरं पुरा।। | 2-68-16a 2-68-16b |
अश्वमेधे हयं मेध्यमुत्सृष्टं रक्षिभिर्वृतम्। पितुर्मे यज्ञविघ्नार्थमहरत्पापनिश्चयः।। | 2-68-17a 2-68-17b |
सौवीरान्प्रतियातां च बभ्रोरेष तपस्विनः। भार्यामभ्यहरन्मोहादकामां तामितो गताम्।। | 2-68-18a 2-68-18b |
एष मायाप्रतिच्छन्नः कारूशार्थे तपस्विनीम्। जहार भद्रां वैशालीं मातुलस्य नृशंसकृत्।। | 2-68-19a 2-68-19b |
वृष्णिदारान्विलाप्यैव हत्वा च कुकुरान्धकान्। पापाबुद्धिरुपातिष्ठत्स प्रविश्य ससम्भ्रमम्।। | 2-68-20a 2-68-20b |
विशालराज्ञो दुहितां मम पित्रा वृतां सतीम्। अनेन कृत्वा सन्धानं करूशेन जिगीषया।। | 2-68-21a 2-68-21b |
जरासन्धं समाश्रित्य कृतवान्विप्रियाणि मे। तानि सर्वाणि सङ्ख्यातुं न शक्नोमि नराधिपाः।। | 2-68-22a 2-68-22b |
एवमेतदपर्यन्तमेष वृष्णिषु किल्बिषी। अस्माकमयमारम्भांश्चकार परभानृजुः।। | 2-68-23a 2-68-23b |
शतं क्षन्तव्यमस्माभिर्वधार्हाणां किलागसाम्। बद्धोऽस्मि समयैर्घोरैर्मातुरस्यैव सङ्गरे।। | 2-68-24a 2-68-24b |
तत्तथा शतमस्माकं क्षान्तं क्षयकरं मया। द्वौ तु मे वधकालेऽस्मिन्न क्षन्तव्यौ कथञ्चन।। | 2-68-25a 2-68-25b |
यज्ञविघ्नकरं हन्यां पाण्डवानां च दुर्हृदम्। इति मे वर्तते भावस्तमतीयां कथं न्वहम्।। | 2-68-26a 2-68-26b |
पितृष्वसुः कृते दुःखं सुमहन्मर्षयाम्यहम्। दिष्ट्या हीदं सर्वराज्ञां सन्निधावद्य वर्तते।। | 2-68-27a 2-68-27b |
पश्यन्ति हि भवन्तोऽद्य मय्यतीव व्यतिक्रमम्। कृतानि तु परोक्षं मे यानि तानि निबोधत।। | 2-68-28a 2-68-28b |
इमं त्वस्य न शक्ष्यामि क्षन्तुमद्य व्यतिक्रमम्। अवलेपाद्वधार्हस्य समग्रे राजमण्डले।। | 2-68-29a 2-68-29b |
रुक्मिण्यामस्य मूढस्य प्रार्थनाऽऽसीन्मुमूर्षतः। न च तां प्राप्तवान्मूढः शूद्रो वेदश्रुतीमिव।। | 2-68-30a 2-68-30b |
वैशम्पायन उवाच।। | 2-68-31x |
एवमादि ततः सर्वे सहितास्ते नराधिपाः। गर्हणं शिशुपालस्य वासुदेवेन विश्रुतः।। | 2-68-31a 2-68-31b |
वासुदेववचः श्रुत्वा चेदिराजं व्यगर्हयन्। रथोपस्थे धनुष्मन्तं शरान्सन्दधतं रुषा।। | 2-68-32a 2-68-32b |
श्रुत्वाऽपि च विलोक्याशु दुद्रुवुः सर्वपार्थिवाः। विहाय परमोद्विग्नाश्चेदिराजं चमूमुखे।। | 2-68-33a 2-68-33b |
तस्य तद्वचनं श्रुत्वा शिशुपालः प्रतापवान्। जहास स्वनवद्धासं वाक्यं चेदमुवाच ह।। | 2-68-34a 2-68-34b |
मत्पूर्वां रुक्मिणीं कृष्ण संसत्सु परिकीर्तयन्। विशेषतः पार्थिवेषु व्रीडां न कुरुषे कथम्।। | 2-68-35a 2-68-35b |
मन्यमानो हि कः सत्सु पुरुषः परिकीर्तयेत्। अन्यपूर्वा स्त्रियं जातु त्वदन्यो मधूसूदन।। | 2-68-36a 2-68-36b |
क्षमा वा यदि ते श्रद्धा मा वा कृष्ण मम क्षम। क्रुद्धाद्वापि प्रसन्नाद्वा किं मे त्वत्तो भविष्यते।। | 2-68-37a 2-68-37b |
`वैशम्पायन उवाच।। | 2-68-38x |
स तांस्तु विद्रुतान्सर्वान्साश्वपत्तिरथद्विपान्। कृष्णतेजोहतान्सर्वान्समीक्ष्य वसुधाधिपान्।। | 2-68-38a 2-68-38b |
शिशुपालो रथेनैकः प्रत्युपायात्स केशवम्। रुषा ताम्रेक्षणो राजञ्छलभः पावकं यथा।। | 2-68-39a 2-68-39b |
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि शिशुपालवधपर्वणि अष्टषष्टितमोऽध्यायः।। 68।। |
2-68-31 विश्रुताः श्राविताः।।
सभापर्व-067 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | सभापर्व-069 |