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द्वितीयपर्व
महाभारतम्-02-सभापर्व-010
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कुबेरसभावर्णनम्।। 1।।

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नारद उवाच। 2-10-1x
सभा वैश्रवणी राजञ्शतयोजनमायता।
विस्तीर्णा सप्ततिश्चैव योजनानि सितप्रभा।।
2-10-1a
2-10-1b
तपसा निर्जिता राजन्स्वयं वैश्रवणेन सा।
शशिप्रभा प्रावरणा कैलासशिखरोपमा।।
2-10-2a
2-10-2b
गुह्यकैरुह्यमाना सा खे विषक्तेव शोभते।
दिव्या हेममयैरुच्चैः प्रासादैरुपशोभिता।।
2-10-3a
2-10-3b
महारत्नवती चित्रा दिव्यगन्धा मनोरमा।
सिताभ्रशिखराकारा प्लवमानेव दृश्यते।
2-10-4a
2-10-4b
दिव्या हेममयै रङ्गैर्विद्युद्भिरिव चित्रिता।
तस्यां वैश्रवणो राजा विचित्राभरणाम्बरः।।
2-10-5a
2-10-5b
स्त्रीसहस्रैर्वृतः श्रीमानास्ते ज्वलितकुण्डलः।
`सह पत्न्या महाराज ऋद्ध्या सह विराजते।
2-10-6a
2-10-6b
सर्वाभरणभूषिण्या वपुष्मत्या धनेश्वरः'।
दिवाकरनिभे पुण्ये दिव्यास्तरणसंवृते।
दिव्यपादोपधाने च निषण्णः परमासने।।
2-10-7a
2-10-7b
2-10-7c
मन्दाराणामुदाराणां वनानि परिलोडयन्।
सौगन्धीकवनानां च गन्धं गन्धवहो वहन्।।
2-10-8a
2-10-8b
नलिन्याश्चालकाख्याया नन्दनस्य वनस्य च।
शीतो हृदयसंह्लादी वायुस्तमुपसेवते।।
2-10-9a
2-10-9b
तत्र देवाः सगन्धर्वा गणैरप्सरसां वृताः।
दिव्यतानैर्महाराज गायन्तिस्म सभागताः।।
2-10-10a
2-10-10b
मिश्रकेशी च रम्भा च चित्रसेना शुचिस्मिता।
चारुनेत्रा घृताची च मेनका पुञ्जिकस्थला।।
2-10-11a
2-10-11b
विश्वाची सहजन्या च प्रम्लोचा उर्वशी ।। 2-10-12a
वर्गा च सौरभेयी च समीची बुद्बुदा लता।
एताः सहस्रशश्चान्या नृत्तगीतविशारदाः।।
2-10-13a
2-10-13b
उपतिष्ठन्ति धनदं गन्धर्वाप्सरसां गणाः।
अनिशं दिव्यवादित्रैर्नृत्तगीतैश्च स सभा।।
2-10-14a
2-10-14b
अशून्या रुचिरा भाति गन्धर्वाप्सरसां गणैः।
किन्नरा नाम गन्धर्वा नरा नाम तथाऽपरे।।
2-10-15a
2-10-15b
माणिभद्रोऽथ धनदः श्वेतभद्रश्च गुह्यकः।
कशेरको गण्डकण्डूः प्रद्योतश्च महाबलः।।
2-10-16a
2-10-16b
कुस्तम्बरुः पिशाचश्च गजकर्णो विशालकः।
वराहकर्णस्ताम्रौष्ठः फलकक्षः फलोदकः।।
2-10-17a
2-10-17b
हंसचूडः शइखावर्तो हेमनेत्रो विभीषणः।
पुष्पाननः पिङ्गलकः शोणितोदः प्रवालकः।।
2-10-18a
2-10-18b
वृक्षवास्यनिकेतश्च चीरवासाश्च भारत।
एते चान्ये च बहवो यक्षाः शतसहस्रशः।।
2-10-19a
2-10-19b
सदा भगवती लक्ष्मीस्तत्रैव नलकूबरः।
अहं च बहुशस्तस्यां भवन्त्यन्ये च मद्विधाः।।
2-10-20a
2-10-20b
ब्रह्मर्षयो भवन्त्यत्र तथा देवर्षयोऽपरे।
क्रव्यादाश्च तथैवान्ये गन्धर्वाश्च महाबलाः।।
2-10-21a
2-10-21b
उपासते महात्मानं तस्यां धनदमीश्वरम्।
भगवान्भूतसङ्घैश्च वृतः शतसहस्रशः।।
2-10-22a
2-10-22b
उमापतिः पशुपतिः शूलभृद्भगनेत्रहा।
त्र्यम्बको राजशार्दूल देवी च विगतक्लमा।।
2-10-23a
2-10-23b
वामनैर्विकटैः कुब्जैः क्षतजाक्षैर्महारवैः।
मेदोमांसाशनैरुग्रैरुग्रधन्वा महाबलः।।
2-10-24a
2-10-24b
नानाप्रहरणैरुग्रैर्वातैरिव महाजवैः।
वृतः सखायमन्वास्ते सदैव धनदं नृप।।
2-10-25a
2-10-25b
प्रहृष्टाः शतशश्चान्ये बहुशः सपरिच्छदाः।
गन्धर्वाणां च पतयो विश्वावसुर्हहा हुहूः।।
2-10-26a
2-10-26b
तुम्बुरुः प्रवतश्चैव शैलूषश्च तथाऽपरः।
चित्रसेनश्च गीतज्ञस्तथा चित्ररथोपि च।।
2-10-27a
2-10-27b
एते चान्ये च गन्धर्वा धनेश्वरमुपासते।
विद्याधराधिपश्चैव चक्रधर्मा सहानुजैः।।
2-10-28a
2-10-28b
उपाचरति तत्र स्म धनानामीश्वरं प्रभुम्।
किन्नराः शतशस्तत्र धनानामीश्वरं प्रभुम्।।
2-10-29a
2-10-29b
आसते चापि राजानो भगदत्तपुरोगमाः।
द्रुमः किम्पुरुषेशश्च उपास्ते धनदेश्वरम्।।
2-10-30a
2-10-30b
राक्षसाधिपतिश्चैव महेन्द्रो गन्धमादनः।
सह यक्षैः सगन्धर्वैः सह सर्वैर्निशाचरैः।।
2-10-31a
2-10-31b
विभीषणश्च धर्मिष्ठ उपास्ते भ्रातरं प्रभुम्।
हिमवान्पारियात्रश्च विन्ध्यकैलासमन्दराः।।
2-10-32a
2-10-32b
मलयो दर्दुरश्चैव महेन्द्रो गन्धमादनः।
इन्द्रकीलः सुनाभश्च तथा दिव्यौ च पर्वतौ।।
2-10-33a
2-10-33b
एते चान्ये च बहवः सर्वे मेरुपुरोगमाः।
उपासते महात्मानं धनानामीश्वरं प्रभुम्।।
2-10-34a
2-10-34b
नन्दीश्वरश्च भगवान्महाकालस्तथैव च।
शङ्कुकर्णमुखाः सर्वे दिव्याः पारिषदास्तथा।।
2-10-35a
2-10-35b
काष्ठः कुटी मुखो दन्ती विजयश्च तपोधिकः।
श्वेतश्च वृषभस्तत्र नर्दन्नास्ते महाबलः।।
2-10-36a
2-10-36b
धनदं राक्षसाश्चान्ये पिशाचाश्च उपासते।
पारिषदैः परिवृतमुपायान्तं महेश्वरम्।।
2-10-37a
2-10-37b
सदा हि देवदेवेशं शिवं त्रैलोक्यभावनम्।
प्रणम्य मूर्ध्ना पौलस्त्यो बहुरूपमुमापतिम्।।
2-10-38a
2-10-38b
ततोऽभ्यनुज्ञां सम्प्राप्य महादेवाद्धनेश्वरः।
आस्ते कदाचिद्भगवान्भवो धनपतेः सखा।।
2-10-39a
2-10-39b
निधिप्रवरमुख्यौ च शङ्खपद्मौ धनेश्वरौ।
सर्वान्निधीन्प्रगृह्याथ उपास्तां वै धनेश्वरम्।।
2-10-40a
2-10-40b
सा सभा तादृशी रम्या मया दृष्टान्तरिक्षगा।
पितामहसभां राजन्कीर्तयिष्ये निबोध ताम्।।
2-10-41a
2-10-41b
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि
मन्त्रपर्वणि दशमोऽध्यायः।। 10।।

2-10-5 रङ्गैरितिच्छेदः।।

2-10-39 आस्ते इत्यावृत्त्या योजनीयम्। यदा भवः कदाचित्कुबेरसभामध्यास्ते तदा कुबेरोऽपि भवादनुज्ञां प्राप्य तन्निकटे आस्ते उपविशति।।

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