महाभारतम्-02-सभापर्व-062
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भीष्मवाक्योपरमे सहदेवेन कृष्णपूजाविरुद्धभाषिणो वधे प्रतिज्ञाते राज्ञां त ूष्णीम्भावः।। 1।। सहदेवमूर्ध्नि पुष्पवृष्टिः। अशरीरवाणीच।। 2।। नादरदेन कृष्णानर्चकस्य निन्दनम्।। 3।। सहदेवेन सभ्यषूजनपूर्वकं कर्मसमापनम्।। 4।। शिशुपालेन यज्ञविघाताय राज्ञां प्रोत्साहनम्।। 5।।
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वैशम्पायन उवाच।। | 2-62-1x |
एवमुक्त्वा ततो भीष्णो विरराम महाबलः। व्याजहारोत्तरं तत्र सहदेवोऽर्थवद्वचः।। | 2-62-1a 2-62-1b |
केशवं केशिहन्तारमप्रमेयपराक्रमम्। पूज्यमानं मया यो वः कृष्णं न सहते नृपाः।। | 2-62-2a 2-62-2b |
सर्वेषां बलिनां मूर्ध्नि मयेदं निहितं पदम्। एवमुक्ते मया सम्यगुत्तरं प्रब्रवीतु सः।। | 2-62-3a 2-62-3b |
स एव हि मया वध्यो भविष्यति न संशयः। मतिमन्तश्च ये केचिदाचार्यं पितरं गुरुम्।। | 2-62-4a 2-62-4b |
अर्च्यमर्चितमर्घार्हमनुजानन्तु ते नृपाः। ततो न व्याजहारैषां कश्चिद्बुद्धिमतां सताम्।। | 2-62-5a 2-62-5b |
मानिनां बलिनां राज्ञां मध्ये वै दर्शिते पदे। ततोऽपतत्पुष्पवृष्टिः सहदेवस्य मूर्धनि।। | 2-62-6a 2-62-6b |
अदृश्यरूपा वाचश्चाप्यब्रुवन्साधुसाध्विति। अविध्यदजिनं कृष्णं भविष्यद्भूतजल्पनः।। | 2-62-7a 2-62-7b |
सर्वसंशयनिर्मोक्ता नारदः सर्वलोकवित्। उवाचाखिलभूतानां मध्ये स्पष्टतरं वचः।। | 2-62-8a 2-62-8b |
कृष्णं कमलपत्राक्षं नार्चयिष्यन्ति ये नराः। जीवन्मृतास्तु ते ज्ञेया न सभाष्याः कदाचना।। | 2-62-9a 2-62-9b |
वैशम्पायन उवाच। | 2-62-10x |
पूजयित्वा च पूजार्हान्ब्रह्मक्षत्रविशेषवित्। सहदेवो नृणां देवः समापयत कर्म तत्।। | 2-62-10a 2-62-10b |
तस्मिन्नभ्यर्चिते कृष्णे सुनीथः शत्रुकर्षणः। अतिताम्रेक्षणः कोपादुवाच मनुजाधिपान्।। | 2-62-11a 2-62-11b |
स्थितः सेनापतिर्योऽहं मन्वध्वं किं तु साम्प्रतम्। युधि तिष्ठाम सन्नह्य समेतान्वृष्णिपाण्डवान्।। | 2-62-12a 2-62-12b |
इति सर्वान्समुत्साद्य राज्ञस्तांशअचेदिपुङ्गवः। यज्ञोपघाताय ततः सोऽमन्त्रतय राजभिः।। | 2-62-13a 2-62-13b |
तत्राहूतागताः सर्वे सुनीथप्रमुखा गणाः. समदृश्यन्त सङ्क्रुद्धा विवर्णवदनास्तथा।। | 2-62-14a 2-62-14b |
युधिष्ठिराभिषेकं च वासुदेवस्य चार्हणम्। न स्याद्यथा तथा कार्यमेवं सर्वे तदाऽब्रुवन्।। | 2-62-15a 2-62-15b |
निष्कर्षान्निश्चयात्सर्वे राजानः क्रोधमूर्छिताः। अब्रुवंस्तत्र राजानो निर्वेदादात्मनिश्चयात्।। | 2-62-16a 2-62-16b |
सुहृद्भिर्वार्यमाणानां तेषां हि वपुराबभौ। आमिषादपकृष्टानां सिहानामिव गर्जताम्।। | 2-62-17a 2-62-17b |
तं बलौघमपर्यन्तं राजसागारमक्षयम्। कुर्वाणं समयं कृष्णो युद्धाय बुबुधे तदा।। | 2-62-18a 2-62-18b |
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि अर्घाहरणपर्वणि द्विषष्टितमोऽध्यायः।। 62।। |
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