महाभारतम्-02-सभापर्व-092
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दुर्योधनवचनम्।। 1।। दुर्योधनेन द्रौपदीं प्रति निजोरौ प्रदर्शिते भीमेन तद्भेदनप्रतिज्ञा।।2।। अर्जुनादिभिः कर्णादिहननप्रतिज्ञा।। 3।। द्रौपद्या दुर्योधनादीनां शापदानसमये अन्तरिक्षात्पुष्पवृष्टिः।। 4।।
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वैशम्पायन उवाच।। | 2-92-1x |
तथा तु दृष्ट्वा बहु तत्र देवीं रोरूयमाणां कुररीमिवार्ताम्। नोचुर्वचः साध्वथवाऽप्यसाधु महीक्षितो धार्तराष्ट्रस्य भीताः।। | 2-92-1a 2-92-1b 2-92-1c 2-92-1d |
दृष्ट्वा तथा पार्थिवपुत्रपौत्रां- स्तूष्णींभूतान्धृतराष्ट्रस्य पुत्रः। स्मयन्निवेदं वचनं बभाषे पाञ्चालराजस्य सुतां तदानीम्।। | 2-92-2a 2-92-2b 2-92-2c 2-92-2d |
दुर्योधन उवाच।। | 2-92-3x |
तिष्ठत्वयं प्रश्न उदारसत्वे भीमेऽर्जुने सहदेवे तथैव। पत्यौ च ते नकुले याज्ञसेनि वदन्त्वेते वचनं त्वत्प्रसूतम्।। | 2-92-3a 2-92-3b 2-92-3c 2-92-3d |
अनीश्वरं विब्रुवन्त्वार्यमध्ये युधिष्ठिरं तव पाञ्चालि हेतोः। कुर्वन्तु सर्वे चानृतं धर्मराजं पाञ्चालि त्वं मोक्ष्यसे दासभावात्।। | 2-92-4a 2-92-4b 2-92-4c 2-92-4d |
धर्मे स्थितो धर्मसुतो महात्मा स्वयं चेदं कथयत्विन्द्रकल्पः। ईशो वा ते ह्यनीशोऽथवैष वाक्यादस्य क्षिप्रमेकं भजस्व।। | 2-92-5a 2-92-5b 2-92-5c 2-92-5d |
सर्वे हीमे कौरवेयाः सभायां दुःखान्तरे वर्तमानास्तवैव। न विब्रुवन्त्यार्यसत्वा यथाव- त्पतींश्च ते समवेक्ष्याल्पभाग्यान्।। | 2-92-6a 2-92-6b 2-92-6c 2-92-6d |
वैशम्पायन उवाच।। | 2-92-7x |
ततः सभ्याः कुरुराजस्य तस्य वाक्यं सर्वे प्रशशंसुस्तथोच्चैः। चेलावेधांश्चापि चक्रुर्नदन्तो हाहेत्यासीदपि चैवार्तनादः।। | 2-92-7a 2-92-7b 2-92-7c 2-92-7d |
श्रुत्वा तुं तद्वाक्यमनोहरं त- द्धर्षश्चासीत्कौरवाणां सभायाम्। सर्वे चासन्पार्थिवाः प्रीतिमन्तः कुरुश्रेष्ठं धार्मिकं पूजयन्तः।। | 2-92-8a 2-92-8b 2-92-8c 2-92-8d |
युधिष्ठिरं च ते सर्वे समुदैक्षन्त पार्थिवाः। किं नु वक्ष्यति धर्मज्ञ इति साचीकृताननाः।। | 2-92-9a 2-92-9b |
किं नु वक्ष्यति बीभत्सुरजितो युधि पाण्डवः। भीमसेनो यमौ चोभौ भृशं कौतूहलान्विताः।। | 2-92-10a 2-92-10b |
तस्मिन्नुपरते शब्दे भीमसेनोऽब्रवीदिदम्। प्रगृह्य रुचिरं दिव्यं भुजं चन्दनचर्चितम्।। | 2-92-11a 2-92-11b |
यद्येष गुरुरस्माकं धर्मराजो महामनाः। न प्रभुः स्यात्कुलस्यास्य न वयं मर्षयेमहि।। | 2-92-12a 2-92-12b |
ईशो नः पुण्यतपसां प्राणानामपि चेश्वरः। मन्यते जितमात्मानं यद्येष विजिता वयम्।। | 2-92-13a 2-92-13b |
न हि मुच्येत मे जीवन्पदा भूमिमुपस्पृशन्। मर्त्यधर्मा परामृश्य पाञ्चाल्या मूर्धजानिमान्।। | 2-92-14a 2-92-14b |
पश्यध्वं ह्यायतौ वृत्तौ भुजौ मे परिघाविव। नैतयोरन्तरं प्राप्य मुच्येतापि शतक्रतुः।। | 2-92-15a 2-92-15b |
धर्मपाशसितस्त्वेवमधिगच्छामि सङ्कटम्। गौरवेण निरुद्धश्च निग्रहादर्जुनस्य च।। | 2-92-16a 2-92-16b |
धर्मराजनिसृष्टस्तु सिंहः क्षुद्रमृगानिव। धार्तराष्टारानिमान्पापान्निष्पषेयं तलासिभिः।। | 2-92-17a 2-92-17b |
वैशम्पायन उवाच।। | 2-92-18x |
तमुवाच तदा भीष्मो द्रोणो विदुर एव च। क्षम्यतामिदमित्येवं सर्वं सम्भाव्यते त्वयि।। | 2-92-18a 2-92-18b |
कर्ण उवाच।। | 2-92-19x |
त्रयः किलेमे ह्यधना भवन्ति। दासः पुत्रश्चास्वतन्त्रा च नारी। दासस्य पत्नी त्वधनस्य भद्रे हीनश्वरा दासधनं च सर्वम्।। | 2-92-19a 2-92-19b 2-92-19c 2-92-19d |
प्रविश्य राज्ञः परिवारं भजस्व तत्ते कार्यं शिष्टमादिश्यतेऽत्र। ईशास्तु सर्वे तव राजपुत्रि भवन्ति वै धार्तराष्ट्रा न पार्थाः।। | 2-92-20a 2-92-20b 2-92-20c 2-92-20d |
अन्यं वृणीष्व पतिमाशु भामिनि यस्माद्दास्यं न लभसि देवनेन। अवाच्या वै पतिषु कामवृत्ति- र्नित्यं दास्ये विदितं तत्तवास्तु।। | 2-92-21a 2-92-21b 2-92-21c 2-92-21d |
पराजितो नकुलो भीमसेनो युधिष्ठरः सहदेवार्जुनौ च। दासीभूता त्वं हि वै याज्ञसेनि पराजितास्ते पतयो नैव सन्ति।। | 2-92-22a 2-92-22b 2-92-22c 2-92-22d |
प्रयोजनं जन्मनि किं न मन्यते पराक्रमं पौरुषं चैव पार्थटः। पाञ्चाल्यस्य द्रुपदस्यात्मजामिमां सभामध्ये यो व्यदेवीद्ग्लहेषु।। | 2-92-23a 2-92-23b 2-92-23c 2-92-23d |
वैशम्पायन उवाच।। | 2-92-24x |
तद्वै श्रुत्वा भीमसेनोऽत्यमर्षी भृशं निशश्वास तदाऽर्तरूपः। राजानुगो धर्मपाशानुबद्धो दहन्निवैनं क्रोधसंरक्तदृष्टिः।। | 2-92-24a 2-92-24b 2-92-24c 2-92-24d |
भीम उवाच।। | 2-92-25x |
नाहं कुप्ये सूतपुत्रस्य राज- न्नेष सत्यं दासधर्मः प्रदिष्टः। किं विद्विषो वै मामेवं व्याहरेयु- र्नादेवीस्त्वं यद्यनया नरेन्द्र।। | 2-92-25a 2-92-25b 2-92-25c 2-92-25d |
वैशम्पायन उवाच।। | 2-92-26x |
भीमसेनवचः श्रुत्वा राजा दुर्योधनस्तदा। युधिष्ठिरमुवाचेदं तूष्णीम्भूतमचेतनम्।। | 2-92-26a 2-92-26b |
भीमार्जुनौ यमौ चैव स्थितौ ते नृप शासने। प्रश्नं ब्रूहि च कृष्णां त्वमजितां यदि मन्यसे।। | 2-92-27a 2-92-27b |
एवमुक्त्वा तु कौन्येयमपोह्य वसनं स्वकम्। स्मयन्निवेक्ष्य पाञ्चालीमैश्वर्यमदमोहितः।। | 2-92-28a 2-92-28b |
कदलीदण्डसदृशं सर्वलक्षणसंयुतम्। गजहस्तप्रतीकाशं वज्रप्रतिमगौरवम्।। | 2-92-29a 2-92-29b |
अभ्युत्स्मयित्वा राधेयं भीममाधर्षयन्निव। द्रौपद्याः प्रेक्षमाणायाः सव्यमूरुमदर्शयत्।। | 2-92-30a 2-92-30b |
भीमसेनस्तमालोक्य नेत्रे उत्फाल्य लोहिते। प्रोवाच राजमध्ये तं सभां विश्रावयन्निव।। | 2-92-31a 2-92-31b |
पितृभिः सह सालोक्यं मा स्म गच्छेद्वृकोदरः। यद्येतमूरुं गदया न भिन्द्यां ते महाहवे।। | 2-92-32a 2-92-32b |
वैशम्पायन उवाच।। | 2-92-33x |
क्रुद्धस्य तस्य सर्वेभ्यः स्रोतोभ्यः पावकार्चिषः। वृक्षस्येव विनिश्वेरुः कोटरेभ्यः प्रदह्यतः।। | 2-92-33a 2-92-33b |
विदुर उवाच।। | 2-92-34x |
परं भयं पश्यत भीमसेना- त्तद्बुध्यध्वं पार्थिवाः प्रातिपेयाः। दैवेरितो नूनमयं पुरस्ता- त्परोऽनयो भरतेषूदपादि।। | 2-92-34a 2-92-34b 2-92-34c 2-92-34d |
अतिद्यूतं कृतमिदं धार्तराष्ट्र यस्मात्स्त्रियं विवदध्वं सभायाम्। योगक्षेमौ नश्यतो वः समग्रौ पापान्मन्त्रान्कुरवो मन्त्रयन्ति।। | 2-92-35a 2-92-35b 2-92-35c 2-92-35d |
इमं धर्मं कुरवो जानताशु ध्वस्ते धर्मे परिषत्सम्प्रदुष्येत्। इमां चेत्पूर्वं कितवोऽग्लहिष्य- दीशोऽभविष्यदपराजितात्मा।। | 2-92-36a 2-92-36b 2-92-36c 2-92-36d |
स्वप्ने यथैतद्विजितं धनं स्या- देवं मन्ये यस्य दीव्यत्यनीशः। गान्धारराजस्य वचो निशम्य धर्मादस्मात्कुरवो माऽपयात।। | 2-92-37a 2-92-37b 2-92-37c 2-92-37d |
दुर्योधन उवाच।। | 2-92-38x |
भीमस्य वाक्ये तद्वदेवार्जुनस्य स्थितोऽहं वै यमयोश्चैवमेव। युधिष्ठिरं ते प्रवदन्त्वनीश- मथो दास्यान्मोक्षसे याज्ञसेनि।। | 2-92-38a 2-92-38b 2-92-38c 2-92-38d |
अर्जुन उवाच।। | 2-92-39x |
ईशो राजा पूर्वमासीद्ग्लहे नः कुन्तीसुतो धर्मराजो महात्मा। ईशस्त्वयं कस्य पराजितात्मा तज्जानीध्वं कुरवः सर्व एव।। | 2-92-39a 2-92-39b 2-92-39c 2-92-39d |
`कर्ण उवाच।। | 2-92-40x |
दुश्शासन निबोधेदं वचनं वै प्रभाषितम्। किमनेन चिरं वीर नयस्व द्रपदात्मजाम्। दासीभावेन भुङ्क्ष्व त्वं यथेष्टं कुरुनन्दन।। | 2-92-40a 2-92-40b 2-92-40c |
वैशम्पायन उवाच।। | 2-92-41x |
ततो गान्धारराजस्य पुत्रः शकुनिरब्रवीत्। साधु कर्ण महाबाहो यथेष्टं क्रियतामिति।। | 2-92-41a 2-92-41b |
ततो दुश्शासनस्तूर्णं द्रुपदस्य सुतां बलात्। प्रवेशयितुमारब्धः स चकर्ष दुरात्मवान्।। ततो विक्रोशति तदा पाञ्चाली वरवर्णिनी।। | 2-92-42a 2-92-42b 2-92-43b |
द्रौपद्युवाच। | 2-92-44x |
परित्रायस्व मां भीष्ण द्रोण द्रौणे तथा कृप। परित्रायस्व विदुर धर्मिष्ठो धर्मवत्सल।। | 2-92-44a 2-92-44b |
धृतराष्ट्र महाराज परित्रायस्व वै स्नुषाम्। गान्धारि त्वं महाभागे सर्वज्ञे सर्वदर्शिनि। पिरत्रायस्व मां भीरुं सुयोधनभयार्दिताम्।। | 2-92-45a 2-92-45b 2-92-45c |
त्वमार्ये वीरजननि किं मां पश्यसि यादवीम्। क्लिश्यमानामनार्येण न त्रायसिव वधूं स्वकाम्।। | 2-92-46a 2-92-46b |
यदि लालप्यमानां मां न कश्चित्किञ्चिदब्रवीत्। हा हताऽस्मि सुमन्दात्मा सुयोधनवशं गता।। | 2-92-47a 2-92-47b |
न वै पाण्डुर्नरपतिर्न धर्मो न च देवराट्। न चायुर्नाश्विनौ वाऽपि परित्रायन्ति वै स्नुषाम्।। धिक्कष्टं यदि जीवेयं मन्दभाग्या पतिव्रता।। | 2-92-48a 2-92-48b 2-92-49b |
विदुर उवाच।। | 2-92-50x |
शृणोमि वाक्यं तव राजपुत्रि नेमे पार्थाः किञ्चिदपि ब्रुवन्ति। सा त्वं प्रियार्थं शृणु वाक्यमेत- द्यदुच्यते पापमतिः कृतघ्नः।। | 2-92-50a 2-92-50b 2-92-50c 2-92-50d |
सुयोधनः सानुचरः सुदुष्टः सहैव राजा निकृतः सूनुना च यद्येष वाचं महदुच्यमानां न श्रोष्यते पापमतिः सुदुष्टः।। | 2-92-51a 2-92-51b 2-92-51c 2-92-51d |
वैशम्पायन उवाच।। | 2-92-52x |
इत्येवमुक्त्वा द्रुपदस्य पुत्रीं क्षत्ताऽब्रवीद्धृतराष्ट्रस्य पुत्रम्। | 2-92-52a 2-92-52b |
मा क्लिश्यतां वै द्रुपदस्य पुत्रीं मा त्वं चरीं द्रक्ष्यसि राजपुत्र।। | 2-92-53a 2-92-53b |
विदुर उवाच।। | 2-92-54x |
यद्येवं त्वं महाराज सङ्क्लेशयसि द्रौपदीम्। अचिरेणैव कालेन पुत्रस्ते सह मन्त्रिभिः। गमिष्यति क्षयं पापः पाण्डवक्षयकारणात्।। | 2-92-54a 2-92-54b 2-92-54c |
भीमार्जुनाभ्यां क्रुद्धाभ्यां माद्रीपुत्रद्वयेन च। तस्मान्निवारय सुतं मा विनाशं विचिन्तय।। | 2-92-55a 2-92-55b |
वैशम्पायन उवाच।। | 2-92-56x |
एतच्छुत्वा मन्दबुद्धिर्नोत्तरं किञ्चिदब्रवीत्। ततो दुर्योधनस्तत्र दैवमोहबलात्कृतः।। | 2-92-56a 2-92-56b |
अचिन्त्य क्षत्तुर्वचनं हर्षेणायतलोचनः। ऊरू दर्शयते पापो द्रौपद्या वै मुहुर्मुहुः।। | 2-92-57a 2-92-57b |
ऊरौ सन्दर्श्यमाने तु निरीक्ष्य तु सुयोधनम्। वृकोदरस्तदालोक्य नेत्रे चोल्फाल्य लोहिते।। | 2-92-58a 2-92-58b |
एतत्समीक्ष्यात्मनि चावमानं नियम्य मन्युं बलनान्स मानी। राजानुजः संसदि कौरवाणां विनिष्क्रमन्वाक्यमुवाच भीमः।। | 2-92-59a 2-92-59b 2-92-59c 2-92-59d |
अहं दुर्योधनं हन्ता कर्णं हन्ता धनञ्जयः। शकुनिं चाक्षकितवं सहदेवो हनिष्यति।। | 2-92-60a 2-92-60b |
दुश्शासनस्य रुधिरं पास्यामि मृगराडिव।। | 2-92-63b |
अर्जुन उवाच।। | 2-92-64x |
भीमसेन न ते सन्ति येषां वैरं त्वया सह। नन्दा गृहेषु न बुद्ध्यन्ते महद्भयम्।। | 2-92-64a 2-92-64b |
नैव वाचा व्यवसितं भीम विज्ञायते सताम्। यदि स्थास्यन्ति सङ्ग्रामे क्षत्रधर्मेण वै सह।। | 2-92-65a 2-92-65b |
दुर्योधनस्य कर्णस्य शकुनेश्च दुरात्मनः। दुश्शासनचतुर्थानां भूमिः पास्यति शोणितम्।। | 2-92-66a 2-92-66b |
असूयितारं वक्तारं प्रहृष्टानां दुरात्मनाम्। भीमसेन नियोगात्ते हन्ताऽहं कर्णमाहवे।। | 2-92-67a 2-92-67b |
कर्णं कर्णानुगांश्चैव रणे हन्ताऽस्मि पत्रिभिः। ये चान्ये विप्रयोत्स्यन्ति बुद्धिमोहेन मां नृपाः। तान्स्म सर्वञ्छितैर्बाणैर्नेताऽस्मि यमसादनम्।। | 2-92-68a 2-92-68b 2-92-68c |
चलेद्वि हिमवान्स्थानान्निष्प्रभः स्याद्दिवाकरः। शैत्यं सोमात्प्रणश्येत मत्सत्यं विचलेद्यदि।। | 2-92-69a 2-92-69b |
वैशम्पायन उवाच।। | 2-92-70x |
उत्युक्तवति पार्थे तु श्रीमान्माद्रवतीसुतः। प्रगृह्य विपुलं बाहुं सहदेवः प्रतापवान्।। | 2-92-70a 2-92-70b |
सौबलस्य वधप्रेप्सुरिदं वचनमब्रवीत्। क्रोधसंरक्तनयनो निश्वस्य च मुहुर्मुहुः।। | 2-92-71a 2-92-71b |
सहदेव उवाच।। | 2-92-72x |
यानक्षान्मन्यसे मूढ गान्धाराणां यशोहर। नैते ह्यक्षाः शिता वाणास्त्वयैते समरे धृताः।। | 2-92-72a 2-92-72b |
यथा चैवोक्तवान्भीमस्त्वामुद्दिश्य सबान्धवम्। कर्ताऽहं कर्मणा चास्य कुरुकार्याणि सर्वशः। यदि स्थस्यासि सङ्ग्रामे क्षत्रधर्मेण सौबल।। | 2-92-73a 2-92-73b 2-92-73c |
वैशम्पायन उवाच।। | 2-92-74x |
सहदेववचः श्रुत्वा नकुलोऽपि विशाम्पते। दर्शनीयतमो नॄणामिदं वचनमब्रवीत्।। | 2-92-74a 2-92-74b |
नकुल उवाच।। | 2-92-75x |
सुतेयं यज्ञसेनस्य द्यूतेऽस्मिन्धृतराष्ट्रजैः। यैर्वाचः श्राविता रूक्षा धूर्तैर्दुर्योधनप्रियैः।। | 2-92-75a 2-92-75b |
धार्तराष्ट्रान्सुदुर्वृत्तान्मुमूर्षून्कालचोदितान्। दर्शयिष्यामि भूयिष्ठमहं वैवस्वतक्षयम्।। | 2-92-76a 2-92-76b |
उलूकं च दुरात्मानं सौबलस्य प्रियं सुतम्। हन्ताऽहमस्मि समरे मम शत्रुं नराधमम्।। | 2-92-77a 2-92-77b |
निदेशाद्धर्मराजस्य द्रौपद्याः पदवीं चरन्। नर्धार्तराष्टां पृथिवीं कर्तास्मि नचिरादिवा।। | 2-92-78a 2-92-78b |
द्रौपद्युवाच।। | 2-92-79x |
यस्माच्चोरुं दर्शयसे यस्माच्चोरुं निरीक्षसे। तस्मात्तव ह्यधर्मिष्ठ ऊरौ मृत्युर्भविष्यति।। | 2-92-79a 2-92-79b |
यस्माच्चैवं क्लेशयति भ्राता ते मां दुरात्मवान्। तस्मादुधिरमेवास्य पास्यते वै वृकोदरः।। | 2-92-80a 2-92-80b |
इमं च पापिष्ठमतिं कर्णं समुतबान्धवम्। सामात्यं सपरीवारं हनिष्यति धनञ्जयः।। | 2-92-81a 2-92-81b |
क्षुद्रधर्मं नैकृतिकं शकुनिं पापचेतसम्। सहदेवो रणे क्रुद्धो हनिष्यति सबान्धवम्।। | 2-92-82a 2-92-82b |
वैशम्पायन उवाच।। | 2-92-83x |
एवमुक्ते तु वचने द्रौपद्या धर्मशीलया। ततोऽन्तरिक्षात्सुमहत्पुष्पवर्षमवापततम्।। | 2-92-83a 2-92-83b |
तेषां तु वचनं श्रुत्वा नोचुस्तत्र सभासदः। अर्जुनस्य भयाद्राजन्नभून्निश्शब्दमत्र वै।। | 2-92-84a 2-92-84b |
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि द्यूतपर्वणि द्विनवतितमोऽध्यायः।।92 ।। |
2-92-13 द्रौपदीपणनात् प्रागिति शेषः। अतो द्रौपदी न दासभावमापन्नेति भावः।।
2-92-16 पश्यसितः पाशबद्धः।। 2-92-33 स्रोतोभ्यः रोमकूपेभ्यः।।
सभापर्व-091 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | सभापर्व-093 |