← सभापर्व-091 महाभारतम्
द्वितीयपर्व
महाभारतम्-02-सभापर्व-092
वेदव्यासः
सभापर्व-093 →

दुर्योधनवचनम्।। 1।। दुर्योधनेन द्रौपदीं प्रति निजोरौ प्रदर्शिते भीमेन तद्भेदनप्रतिज्ञा।।2।। अर्जुनादिभिः कर्णादिहननप्रतिज्ञा।। 3।। द्रौपद्या दुर्योधनादीनां शापदानसमये अन्तरिक्षात्पुष्पवृष्टिः।। 4।।

  1. 001
  2. 002
  3. 003
  4. 004
  5. 005
  6. 006
  7. 007
  8. 008
  9. 009
  10. 010
  11. 011
  12. 012
  13. 013
  14. 014
  15. 015
  16. 016
  17. 017
  18. 018
  19. 019
  20. 020
  21. 021
  22. 022
  23. 023
  24. 024
  25. 025
  26. 026
  27. 027
  28. 028
  29. 029
  30. 030
  31. 031
  32. 032
  33. 033
  34. 034
  35. 035
  36. 036
  37. 037
  38. 038
  39. 039
  40. 040
  41. 041
  42. 042
  43. 043
  44. 044
  45. 045
  46. 046
  47. 047
  48. 048
  49. 049
  50. 050
  51. 051
  52. 052
  53. 053
  54. 054
  55. 055
  56. 056
  57. 057
  58. 058
  59. 059
  60. 060
  61. 061
  62. 062
  63. 063
  64. 064
  65. 065
  66. 066
  67. 067
  68. 068
  69. 069
  70. 070
  71. 071
  72. 072
  73. 073
  74. 074
  75. 075
  76. 076
  77. 077
  78. 078
  79. 079
  80. 080
  81. 081
  82. 082
  83. 083
  84. 084
  85. 085
  86. 086
  87. 087
  88. 088
  89. 089
  90. 090
  91. 091
  92. 092
  93. 093
  94. 094
  95. 095
  96. 096
  97. 097
  98. 098
  99. 099
  100. 100
  101. 101
  102. 102
  103. 103
वैशम्पायन उवाच।। 2-92-1x
तथा तु दृष्ट्वा बहु तत्र देवीं
रोरूयमाणां कुररीमिवार्ताम्।
नोचुर्वचः साध्वथवाऽप्यसाधु
महीक्षितो धार्तराष्ट्रस्य भीताः।।
2-92-1a
2-92-1b
2-92-1c
2-92-1d
दृष्ट्वा तथा पार्थिवपुत्रपौत्रां-
स्तूष्णींभूतान्धृतराष्ट्रस्य पुत्रः।
स्मयन्निवेदं वचनं बभाषे
पाञ्चालराजस्य सुतां तदानीम्।।
2-92-2a
2-92-2b
2-92-2c
2-92-2d
दुर्योधन उवाच।। 2-92-3x
तिष्ठत्वयं प्रश्न उदारसत्वे
भीमेऽर्जुने सहदेवे तथैव।
पत्यौ च ते नकुले याज्ञसेनि
वदन्त्वेते वचनं त्वत्प्रसूतम्।।
2-92-3a
2-92-3b
2-92-3c
2-92-3d
अनीश्वरं विब्रुवन्त्वार्यमध्ये
युधिष्ठिरं तव पाञ्चालि हेतोः।
कुर्वन्तु सर्वे चानृतं धर्मराजं
पाञ्चालि त्वं मोक्ष्यसे दासभावात्।।
2-92-4a
2-92-4b
2-92-4c
2-92-4d
धर्मे स्थितो धर्मसुतो महात्मा
स्वयं चेदं कथयत्विन्द्रकल्पः।
ईशो वा ते ह्यनीशोऽथवैष
वाक्यादस्य क्षिप्रमेकं भजस्व।।
2-92-5a
2-92-5b
2-92-5c
2-92-5d
सर्वे हीमे कौरवेयाः सभायां
दुःखान्तरे वर्तमानास्तवैव।
न विब्रुवन्त्यार्यसत्वा यथाव-
त्पतींश्च ते समवेक्ष्याल्पभाग्यान्।।
2-92-6a
2-92-6b
2-92-6c
2-92-6d
वैशम्पायन उवाच।। 2-92-7x
ततः सभ्याः कुरुराजस्य तस्य
वाक्यं सर्वे प्रशशंसुस्तथोच्चैः।
चेलावेधांश्चापि चक्रुर्नदन्तो
हाहेत्यासीदपि चैवार्तनादः।।
2-92-7a
2-92-7b
2-92-7c
2-92-7d
श्रुत्वा तुं तद्वाक्यमनोहरं त-
द्धर्षश्चासीत्कौरवाणां सभायाम्।
सर्वे चासन्पार्थिवाः प्रीतिमन्तः
कुरुश्रेष्ठं धार्मिकं पूजयन्तः।।
2-92-8a
2-92-8b
2-92-8c
2-92-8d
युधिष्ठिरं च ते सर्वे समुदैक्षन्त पार्थिवाः।
किं नु वक्ष्यति धर्मज्ञ इति साचीकृताननाः।।
2-92-9a
2-92-9b
किं नु वक्ष्यति बीभत्सुरजितो युधि पाण्डवः।
भीमसेनो यमौ चोभौ भृशं कौतूहलान्विताः।।
2-92-10a
2-92-10b
तस्मिन्नुपरते शब्दे भीमसेनोऽब्रवीदिदम्।
प्रगृह्य रुचिरं दिव्यं भुजं चन्दनचर्चितम्।।
2-92-11a
2-92-11b
यद्येष गुरुरस्माकं धर्मराजो महामनाः।
न प्रभुः स्यात्कुलस्यास्य न वयं मर्षयेमहि।।
2-92-12a
2-92-12b
ईशो नः पुण्यतपसां प्राणानामपि चेश्वरः।
मन्यते जितमात्मानं यद्येष विजिता वयम्।।
2-92-13a
2-92-13b
न हि मुच्येत मे जीवन्पदा भूमिमुपस्पृशन्।
मर्त्यधर्मा परामृश्य पाञ्चाल्या मूर्धजानिमान्।।
2-92-14a
2-92-14b
पश्यध्वं ह्यायतौ वृत्तौ भुजौ मे परिघाविव।
नैतयोरन्तरं प्राप्य मुच्येतापि शतक्रतुः।।
2-92-15a
2-92-15b
धर्मपाशसितस्त्वेवमधिगच्छामि सङ्कटम्।
गौरवेण निरुद्धश्च निग्रहादर्जुनस्य च।।
2-92-16a
2-92-16b
धर्मराजनिसृष्टस्तु सिंहः क्षुद्रमृगानिव।
धार्तराष्टारानिमान्पापान्निष्पषेयं तलासिभिः।।
2-92-17a
2-92-17b
वैशम्पायन उवाच।। 2-92-18x
तमुवाच तदा भीष्मो द्रोणो विदुर एव च।
क्षम्यतामिदमित्येवं सर्वं सम्भाव्यते त्वयि।।
2-92-18a
2-92-18b
कर्ण उवाच।। 2-92-19x
त्रयः किलेमे ह्यधना भवन्ति।
दासः पुत्रश्चास्वतन्त्रा च नारी।
दासस्य पत्नी त्वधनस्य भद्रे
हीनश्वरा दासधनं च सर्वम्।।
2-92-19a
2-92-19b
2-92-19c
2-92-19d
प्रविश्य राज्ञः परिवारं भजस्व
तत्ते कार्यं शिष्टमादिश्यतेऽत्र।
ईशास्तु सर्वे तव राजपुत्रि
भवन्ति वै धार्तराष्ट्रा न पार्थाः।।
2-92-20a
2-92-20b
2-92-20c
2-92-20d
अन्यं वृणीष्व पतिमाशु भामिनि
यस्माद्दास्यं न लभसि देवनेन।
अवाच्या वै पतिषु कामवृत्ति-
र्नित्यं दास्ये विदितं तत्तवास्तु।।
2-92-21a
2-92-21b
2-92-21c
2-92-21d
पराजितो नकुलो भीमसेनो
युधिष्ठरः सहदेवार्जुनौ च।
दासीभूता त्वं हि वै याज्ञसेनि
पराजितास्ते पतयो नैव सन्ति।।
2-92-22a
2-92-22b
2-92-22c
2-92-22d
प्रयोजनं जन्मनि किं न मन्यते
पराक्रमं पौरुषं चैव पार्थटः।
पाञ्चाल्यस्य द्रुपदस्यात्मजामिमां
सभामध्ये यो व्यदेवीद्‌ग्लहेषु।।
2-92-23a
2-92-23b
2-92-23c
2-92-23d
वैशम्पायन उवाच।। 2-92-24x
तद्वै श्रुत्वा भीमसेनोऽत्यमर्षी
भृशं निशश्वास तदाऽर्तरूपः।
राजानुगो धर्मपाशानुबद्धो
दहन्निवैनं क्रोधसंरक्तदृष्टिः।।
2-92-24a
2-92-24b
2-92-24c
2-92-24d
भीम उवाच।। 2-92-25x
नाहं कुप्ये सूतपुत्रस्य राज-
न्नेष सत्यं दासधर्मः प्रदिष्टः।
किं विद्विषो वै मामेवं व्याहरेयु-
र्नादेवीस्त्वं यद्यनया नरेन्द्र।।
2-92-25a
2-92-25b
2-92-25c
2-92-25d
वैशम्पायन उवाच।। 2-92-26x
भीमसेनवचः श्रुत्वा राजा दुर्योधनस्तदा।
युधिष्ठिरमुवाचेदं तूष्णीम्भूतमचेतनम्।।
2-92-26a
2-92-26b
भीमार्जुनौ यमौ चैव स्थितौ ते नृप शासने।
प्रश्नं ब्रूहि च कृष्णां त्वमजितां यदि मन्यसे।।
2-92-27a
2-92-27b
एवमुक्त्वा तु कौन्येयमपोह्य वसनं स्वकम्।
स्मयन्निवेक्ष्य पाञ्चालीमैश्वर्यमदमोहितः।।
2-92-28a
2-92-28b
कदलीदण्डसदृशं सर्वलक्षणसंयुतम्।
गजहस्तप्रतीकाशं वज्रप्रतिमगौरवम्।।
2-92-29a
2-92-29b
अभ्युत्स्मयित्वा राधेयं भीममाधर्षयन्निव।
द्रौपद्याः प्रेक्षमाणायाः सव्यमूरुमदर्शयत्।।
2-92-30a
2-92-30b
भीमसेनस्तमालोक्य नेत्रे उत्फाल्य लोहिते।
प्रोवाच राजमध्ये तं सभां विश्रावयन्निव।।
2-92-31a
2-92-31b
पितृभिः सह सालोक्यं मा स्म गच्छेद्वृकोदरः।
यद्येतमूरुं गदया न भिन्द्यां ते महाहवे।।
2-92-32a
2-92-32b
वैशम्पायन उवाच।। 2-92-33x
क्रुद्धस्य तस्य सर्वेभ्यः स्रोतोभ्यः पावकार्चिषः।
वृक्षस्येव विनिश्वेरुः कोटरेभ्यः प्रदह्यतः।।
2-92-33a
2-92-33b
विदुर उवाच।। 2-92-34x
परं भयं पश्यत भीमसेना-
त्तद्बुध्यध्वं पार्थिवाः प्रातिपेयाः।
दैवेरितो नूनमयं पुरस्ता-
त्परोऽनयो भरतेषूदपादि।।
2-92-34a
2-92-34b
2-92-34c
2-92-34d
अतिद्यूतं कृतमिदं धार्तराष्ट्र
यस्मात्स्त्रियं विवदध्वं सभायाम्।
योगक्षेमौ नश्यतो वः समग्रौ
पापान्मन्त्रान्कुरवो मन्त्रयन्ति।।
2-92-35a
2-92-35b
2-92-35c
2-92-35d
इमं धर्मं कुरवो जानताशु
ध्वस्ते धर्मे परिषत्सम्प्रदुष्येत्।
इमां चेत्पूर्वं कितवोऽग्लहिष्य-
दीशोऽभविष्यदपराजितात्मा।।
2-92-36a
2-92-36b
2-92-36c
2-92-36d
स्वप्ने यथैतद्विजितं धनं स्या-
देवं मन्ये यस्य दीव्यत्यनीशः।
गान्धारराजस्य वचो निशम्य
धर्मादस्मात्कुरवो माऽपयात।।
2-92-37a
2-92-37b
2-92-37c
2-92-37d
दुर्योधन उवाच।। 2-92-38x
भीमस्य वाक्ये तद्वदेवार्जुनस्य
स्थितोऽहं वै यमयोश्चैवमेव।
युधिष्ठिरं ते प्रवदन्त्वनीश-
मथो दास्यान्मोक्षसे याज्ञसेनि।।
2-92-38a
2-92-38b
2-92-38c
2-92-38d
अर्जुन उवाच।। 2-92-39x
ईशो राजा पूर्वमासीद्‌ग्लहे नः
कुन्तीसुतो धर्मराजो महात्मा।
ईशस्त्वयं कस्य पराजितात्मा
तज्जानीध्वं कुरवः सर्व एव।।
2-92-39a
2-92-39b
2-92-39c
2-92-39d
`कर्ण उवाच।। 2-92-40x
दुश्शासन निबोधेदं वचनं वै प्रभाषितम्।
किमनेन चिरं वीर नयस्व द्रपदात्मजाम्।
दासीभावेन भुङ्क्ष्व त्वं यथेष्टं कुरुनन्दन।।
2-92-40a
2-92-40b
2-92-40c
वैशम्पायन उवाच।। 2-92-41x
ततो गान्धारराजस्य पुत्रः शकुनिरब्रवीत्।
साधु कर्ण महाबाहो यथेष्टं क्रियतामिति।।
2-92-41a
2-92-41b
ततो दुश्शासनस्तूर्णं द्रुपदस्य सुतां बलात्।
प्रवेशयितुमारब्धः स चकर्ष दुरात्मवान्।।
ततो विक्रोशति तदा पाञ्चाली वरवर्णिनी।।
2-92-42a
2-92-42b
2-92-43b
द्रौपद्युवाच। 2-92-44x
परित्रायस्व मां भीष्ण द्रोण द्रौणे तथा कृप।
परित्रायस्व विदुर धर्मिष्ठो धर्मवत्सल।।
2-92-44a
2-92-44b
धृतराष्ट्र महाराज परित्रायस्व वै स्नुषाम्।
गान्धारि त्वं महाभागे सर्वज्ञे सर्वदर्शिनि।
पिरत्रायस्व मां भीरुं सुयोधनभयार्दिताम्।।
2-92-45a
2-92-45b
2-92-45c
त्वमार्ये वीरजननि किं मां पश्यसि यादवीम्।
क्लिश्यमानामनार्येण न त्रायसिव वधूं स्वकाम्।।
2-92-46a
2-92-46b
यदि लालप्यमानां मां न कश्चित्किञ्चिदब्रवीत्।
हा हताऽस्मि सुमन्दात्मा सुयोधनवशं गता।।
2-92-47a
2-92-47b
न वै पाण्डुर्नरपतिर्न धर्मो न च देवराट्।
न चायुर्नाश्विनौ वाऽपि परित्रायन्ति वै स्नुषाम्।।
धिक्कष्टं यदि जीवेयं मन्दभाग्या पतिव्रता।।
2-92-48a
2-92-48b
2-92-49b
विदुर उवाच।। 2-92-50x
शृणोमि वाक्यं तव राजपुत्रि
नेमे पार्थाः किञ्चिदपि ब्रुवन्ति।
सा त्वं प्रियार्थं शृणु वाक्यमेत-
द्यदुच्यते पापमतिः कृतघ्नः।।
2-92-50a
2-92-50b
2-92-50c
2-92-50d
सुयोधनः सानुचरः सुदुष्टः
सहैव राजा निकृतः सूनुना च
यद्येष वाचं महदुच्यमानां
न श्रोष्यते पापमतिः सुदुष्टः।।
2-92-51a
2-92-51b
2-92-51c
2-92-51d
वैशम्पायन उवाच।। 2-92-52x
इत्येवमुक्त्वा द्रुपदस्य पुत्रीं
क्षत्ताऽब्रवीद्धृतराष्ट्रस्य पुत्रम्।
2-92-52a
2-92-52b
मा क्लिश्यतां वै द्रुपदस्य पुत्रीं
मा त्वं चरीं द्रक्ष्यसि राजपुत्र।।
2-92-53a
2-92-53b
विदुर उवाच।। 2-92-54x
यद्येवं त्वं महाराज सङ्क्लेशयसि द्रौपदीम्।
अचिरेणैव कालेन पुत्रस्ते सह मन्त्रिभिः।
गमिष्यति क्षयं पापः पाण्डवक्षयकारणात्।।
2-92-54a
2-92-54b
2-92-54c
भीमार्जुनाभ्यां क्रुद्धाभ्यां माद्रीपुत्रद्वयेन च।
तस्मान्निवारय सुतं मा विनाशं विचिन्तय।।
2-92-55a
2-92-55b
वैशम्पायन उवाच।। 2-92-56x
एतच्छुत्वा मन्दबुद्धिर्नोत्तरं किञ्चिदब्रवीत्।
ततो दुर्योधनस्तत्र दैवमोहबलात्कृतः।।
2-92-56a
2-92-56b
अचिन्त्य क्षत्तुर्वचनं हर्षेणायतलोचनः।
ऊरू दर्शयते पापो द्रौपद्या वै मुहुर्मुहुः।।
2-92-57a
2-92-57b
ऊरौ सन्दर्श्यमाने तु निरीक्ष्य तु सुयोधनम्।
वृकोदरस्तदालोक्य नेत्रे चोल्फाल्य लोहिते।।
2-92-58a
2-92-58b
एतत्समीक्ष्यात्मनि चावमानं
नियम्य मन्युं बलनान्स मानी।
राजानुजः संसदि कौरवाणां
विनिष्क्रमन्वाक्यमुवाच भीमः।।
2-92-59a
2-92-59b
2-92-59c
2-92-59d
अहं दुर्योधनं हन्ता कर्णं हन्ता धनञ्जयः।
शकुनिं चाक्षकितवं सहदेवो हनिष्यति।।
2-92-60a
2-92-60b
दुश्शासनस्य रुधिरं पास्यामि मृगराडिव।। 2-92-63b
अर्जुन उवाच।। 2-92-64x
भीमसेन न ते सन्ति येषां वैरं त्वया सह।
नन्दा गृहेषु न बुद्ध्यन्ते महद्भयम्।।
2-92-64a
2-92-64b
नैव वाचा व्यवसितं भीम विज्ञायते सताम्।
यदि स्थास्यन्ति सङ्ग्रामे क्षत्रधर्मेण वै सह।।
2-92-65a
2-92-65b
दुर्योधनस्य कर्णस्य शकुनेश्च दुरात्मनः।
दुश्शासनचतुर्थानां भूमिः पास्यति शोणितम्।।
2-92-66a
2-92-66b
असूयितारं वक्तारं प्रहृष्टानां दुरात्मनाम्।
भीमसेन नियोगात्ते हन्ताऽहं कर्णमाहवे।।
2-92-67a
2-92-67b
कर्णं कर्णानुगांश्चैव रणे हन्ताऽस्मि पत्रिभिः।
ये चान्ये विप्रयोत्स्यन्ति बुद्धिमोहेन मां नृपाः।
तान्स्म सर्वञ्छितैर्बाणैर्नेताऽस्मि यमसादनम्।।
2-92-68a
2-92-68b
2-92-68c
चलेद्वि हिमवान्स्थानान्निष्प्रभः स्याद्दिवाकरः।
शैत्यं सोमात्प्रणश्येत मत्सत्यं विचलेद्यदि।।
2-92-69a
2-92-69b
वैशम्पायन उवाच।। 2-92-70x
उत्युक्तवति पार्थे तु श्रीमान्माद्रवतीसुतः।
प्रगृह्य विपुलं बाहुं सहदेवः प्रतापवान्।।
2-92-70a
2-92-70b
सौबलस्य वधप्रेप्सुरिदं वचनमब्रवीत्।
क्रोधसंरक्तनयनो निश्वस्य च मुहुर्मुहुः।।
2-92-71a
2-92-71b
सहदेव उवाच।। 2-92-72x
यानक्षान्मन्यसे मूढ गान्धाराणां यशोहर।
नैते ह्यक्षाः शिता वाणास्त्वयैते समरे धृताः।।
2-92-72a
2-92-72b
यथा चैवोक्तवान्भीमस्त्वामुद्दिश्य सबान्धवम्।
कर्ताऽहं कर्मणा चास्य कुरुकार्याणि सर्वशः।
यदि स्थस्यासि सङ्ग्रामे क्षत्रधर्मेण सौबल।।
2-92-73a
2-92-73b
2-92-73c
वैशम्पायन उवाच।। 2-92-74x
सहदेववचः श्रुत्वा नकुलोऽपि विशाम्पते।
दर्शनीयतमो नॄणामिदं वचनमब्रवीत्।।
2-92-74a
2-92-74b
नकुल उवाच।। 2-92-75x
सुतेयं यज्ञसेनस्य द्यूतेऽस्मिन्धृतराष्ट्रजैः।
यैर्वाचः श्राविता रूक्षा धूर्तैर्दुर्योधनप्रियैः।।
2-92-75a
2-92-75b
धार्तराष्ट्रान्सुदुर्वृत्तान्मुमूर्षून्कालचोदितान्।
दर्शयिष्यामि भूयिष्ठमहं वैवस्वतक्षयम्।।
2-92-76a
2-92-76b
उलूकं च दुरात्मानं सौबलस्य प्रियं सुतम्।
हन्ताऽहमस्मि समरे मम शत्रुं नराधमम्।।
2-92-77a
2-92-77b
निदेशाद्धर्मराजस्य द्रौपद्याः पदवीं चरन्।
नर्धार्तराष्टां पृथिवीं कर्तास्मि नचिरादिवा।।
2-92-78a
2-92-78b
द्रौपद्युवाच।। 2-92-79x
यस्माच्चोरुं दर्शयसे यस्माच्चोरुं निरीक्षसे।
तस्मात्तव ह्यधर्मिष्ठ ऊरौ मृत्युर्भविष्यति।।
2-92-79a
2-92-79b
यस्माच्चैवं क्लेशयति भ्राता ते मां दुरात्मवान्।
तस्मादुधिरमेवास्य पास्यते वै वृकोदरः।।
2-92-80a
2-92-80b
इमं च पापिष्ठमतिं कर्णं समुतबान्धवम्।
सामात्यं सपरीवारं हनिष्यति धनञ्जयः।।
2-92-81a
2-92-81b
क्षुद्रधर्मं नैकृतिकं शकुनिं पापचेतसम्।
सहदेवो रणे क्रुद्धो हनिष्यति सबान्धवम्।।
2-92-82a
2-92-82b
वैशम्पायन उवाच।। 2-92-83x
एवमुक्ते तु वचने द्रौपद्या धर्मशीलया।
ततोऽन्तरिक्षात्सुमहत्पुष्पवर्षमवापततम्।।
2-92-83a
2-92-83b
तेषां तु वचनं श्रुत्वा नोचुस्तत्र सभासदः।
अर्जुनस्य भयाद्राजन्नभून्निश्शब्दमत्र वै।।
2-92-84a
2-92-84b
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि
द्यूतपर्वणि द्विनवतितमोऽध्यायः।।92 ।।

2-92-13 द्रौपदीपणनात् प्रागिति शेषः। अतो द्रौपदी न दासभावमापन्नेति भावः।।

2-92-16 पश्यसितः पाशबद्धः।। 2-92-33 स्रोतोभ्यः रोमकूपेभ्यः।।

सभापर्व-091 पुटाग्रे अल्लिखितम्। सभापर्व-093
"https://sa.wikisource.org/w/index.php?title=महाभारतम्-02-सभापर्व-092&oldid=50583" इत्यस्माद् प्रतिप्राप्तम्