महाभारतम्-02-सभापर्व-051
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युधिष्ठिरेण भीष्मम्प्रति विस्तरेण कृष्णकथाकथनप्रार्थना।। 1।। देवासुरयुद्धे पराजितानां देवानां स्मरणमात्रसंनिहितेन हरिणा दैत्यानां पराजयः।। 2।। भूम्या स्वभारावतरणं प्रार्थितेऽस्य विष्णोः भूमाववतारनिर्धारणम्।। 3।।
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वैशम्पायन उवाच।। | 2-51-1x |
एवमुक्ते तु कौन्तेयस्ततः कौरवनन्दनः। आबभाषे पुनर्भीष्णे धर्मराजो युधिष्ठिरः।। | 2-51-1a 2-51-1b |
भूय एव मनुष्येन्द्र उपेन्द्रस्य यशस्विनः। जन्म वृष्णिषु विज्ञातुमिच्छामि वदतां वर।। | 2-51-2a 2-51-2b |
यथैव भगवाञ्जातः क्षिताविह जनार्दनः। माधवेषु महाबुद्धिस्तन्मे ब्रूहि पितामह।। | 2-51-3a 2-51-3b |
वैशम्पायन उवाच। | 2-51-4x |
एवमुक्तस्ततो भीष्मः केशवस्य महात्मनः। माधवेषु तथा जन्म कथयामास वीर्यवान्।। | 2-51-4a 2-51-4b |
हन्त ते कथयिष्यामि युधिष्ठिर यथातथम्। यतो नारायणस्येह जन्म वृष्णिषु कौरव।। | 2-51-5a 2-51-5b |
पुरा लोके महाराज वर्तमाने कृते युगे। आसीत्रैलोक्यविख्यातः सङ्ग्रामस्तारकामयः।। | 2-51-6a 2-51-6b |
विरोचनो मयस्तारो वराहः श्वेत एव च। विप्रचित्तिः प्रलम्बश्च वृत्रजम्भबलादयः।। | 2-51-7a 2-51-7b |
नमुचिः कालनेमिश्च प्रह्लाद इति विश्रुतः। लम्बः किशोरः स्वर्भानुररिष्टो राक्षसेश्वरः।। | 2-51-8a 2-51-8b |
एते चान्ये च बहवो दैत्यसङ्घाः सहस्रशः। नानाशस्त्रधरा राजन्नानाभूषणवाहनाः।। | 2-51-9a 2-51-9b |
देवतानामभिमुखास्तस्थुर्दैतेयदानवाः। देवास्तु युध्यमानास्ते दानवानभ्ययू रणे।। | 2-51-10a 2-51-10b |
आदित्या वसवो रुद्राः साध्या विश्वे मरुद्गणाः। इन्द्रो यमश्च वरुणश्चन्द्रश्चैव धनेश्वरः।। | 2-51-11a 2-51-11b |
अश्विनौ च महावीर्यौ ये चान्ये देवतागणाः। चक्रुर्युद्धं महाघोरं दानवैश्च यथाक्रमम्।। | 2-51-12a 2-51-12b |
युध्यमानाः समेयुश्च देवा दैतेयदानवैः। तद्युद्धमभवद्घोरं देवदानवसङ्कुलम्।। | 2-51-13a 2-51-13b |
ताभ्यां बलाभ्यां सञ्जज्ञे तुमुलो विग्रहस्तदा। तीक्ष्णशस्त्रैः किरन्तोऽथ अभ्ययुर्देवदानवाः।। | 2-51-14a 2-51-14b |
घ्रन्ति देवान्सगन्धर्वान्सयक्षोरगचारणान्। ते वध्यमाना दैतेयैर्देवसङ्घास्तदा रणे।। | 2-51-15a 2-51-15b |
त्रातारं मनसा जग्मुर्देवं नारायमं प्रभुम्। एतस्मिन्नन्तरे तत्र जगाम हरिरीश्वरः।। | 2-51-16a 2-51-16b |
दीपयञ्ज्योतिषा भूमिं शङ्खचक्रगदाधरः। तमागतं सुपर्णस्थं विष्णुं लोकनमस्कृतम्।। | 2-51-17a 2-51-17b |
दृष्ट्वा मुदा युताः सर्वे भयं त्यक्त्वा रमे सुराः। चक्रुर्युद्धं पुनः सर्वे देवा दैतेयदानवैः।। | 2-51-18a 2-51-18b |
तद्युद्धमभवद्घोरमचिन्त्यं रोमहर्षणम्। जघ्रुर्दैत्यान्त्रणे घोराः सर्वे शक्रपुरोगमाः।। | 2-51-19a 2-51-19b |
ते बाध्यमाना बिबुधैर्दुद्रुवुदैत्यदानवाः।। | 2-51-20a |
विद्रुतान्दानवान्दृष्ट्वा तदा भारत संयुगे। कालनेमिरिति ख्यातो दानवः प्रत्यदृश्यता।। | 2-51-21a 2-51-21b |
शत्रुप्रहरणे घोरः शतबाहुः शताननः। शतशीर्षः स्थितः श्रीमाञ्छतशृङ्गं इवाचलः।। | 2-51-22a 2-51-22b |
भास्कराकारमुकुटः शिञ्जिताभरणाङ्गदः। धूम्रकेतुर्हरिश्मश्रुर्निर्दष्टोष्ठपुटाननः।। | 2-51-23a 2-51-23b |
त्रैलोक्यान्तरविस्तारं धारयन्विपुलं वपुः। तर्जयन्वै रणे देवाञ्छादयन्वै दिशो दश।। | 2-51-24a 2-51-24b |
अभ्यधावत्सुसङ्क्रुद्धो व्यादितास्य इवान्तकः। तत्र शस्त्रप्रतानैश्च देवान्धर्षितवान्त्रणे।। | 2-51-25a 2-51-25b |
अभ्याययुः सुरान्सर्वान्पुनस्ते दैत्यदानवाः। आपीडयन्त्रणे क्रुद्धास्ततो देवान्युधिष्ठिर।। | 2-51-26a 2-51-26b |
ते वध्यमाना विबुधाः समरे कालनेमिना। दैत्यैश्चैव महाराज दुद्रुवुस्ते दिशो दश।। | 2-51-27a 2-51-27b |
विबुधान्विद्रुतान्दृष्ट्वा कालनेमिर्महा।ञसुरः। इन्द्रं यमं च वरुणं वायुं च धनदं रविम्।। | 2-51-28a 2-51-28b |
एतांश्चान्यान्बलाञ्जित्वा तेषां कार्याण्यवाप सः। तान्सर्वान्सहसा जित्वा कालनेमिर्महासुरः।। | 2-51-29a 2-51-29b |
ददर्श गगने विष्णुं सुपर्णस्थं महाद्युतिम्। तं दृष्ट्वा क्रोधताम्राक्षस्तर्जयन्नभ्ययात्तदा।। | 2-51-30a 2-51-30b |
स बाहुशतमुद्यम्य सर्वास्त्रग्रहणं रणे। रोषाद्भारत दैत्येन्द्रो विष्णोरुरसि पातयत्।। | 2-51-31a 2-51-31b |
दैत्याश्च दानवाश्चैव सर्वे मयपुरोगमाः। स्वान्यायुधानि सङ्गृह्य सर्वे विष्णुमुपाद्रवन्।। | 2-51-32a 2-51-32b |
स ताड्यमानो।ञतिबलैर्दैत्यैः सर्वायुघोद्यतैः। न चचाल हरिर्युद्धेऽकम्पमान इवाचलः।। | 2-51-33a 2-51-33b |
पुनरुद्यम्य सङ्क्रुद्धः कालनेमिर्दृढां गदाम्। जघान गदया राजंस्तं विष्णुं गरुडं च वै।। | 2-51-34a 2-51-34b |
तं दृष्ट्वा गुरडं श्रान्तं चक्रमुद्यस्य वै हरिः। शतं शिरांसि बाहूंश्च सोच्छिनत्कालनेमिनः।। | 2-51-35a 2-51-35b |
जघानान्यांस्च तान्सर्वान्समरे दैत्यदानवान्। विबुधानामृषीणां च स्वानि स्थानानि वै ददौ।। | 2-51-36a 2-51-36b |
दत्त्वा सुराणां सुग्रीतो योग्यकर्माणि भारत। जगाम ब्रह्मणा सार्धं ब्रह्मलोकं तदा हरिः।। | 2-51-37a 2-51-37b |
ब्रह्मलोकं प्रविश्याश्च प्राप्य नारायणः प्रभुः। पौराणं ब्रह्मसदनं दिव्यं नारायणाश्रयम्।। | 2-51-38a 2-51-38b |
स प्रविश्य तदा देवः स्तूयमानो महर्षिभिः। सहस्रशीर्षा भूत्वा च शयनायोपचक्रमे।। | 2-51-39a 2-51-39b |
आदिदेवः पुराणात्मा निद्रावशमुपागतः। शेते सुखं सदा विष्णुर्मोहयञ्जगदव्ययः।। | 2-51-40a 2-51-40b |
जग्मुस्तस्याथ वर्षाणि शयानस्य महात्मनः। षट्त्रिंशच्छतसाहस्रं मानुषेणेह सङ्ख्यया।। | 2-51-41a 2-51-41b |
जग्मुः कृतयुगत्रेताद्वापरान्ते बुबोध ह। ब्रह्मादिभिः स्तूयमानः सुरैश्चापि सहर्षिभिः।। | 2-51-42a 2-51-42b |
उत्पत्य शयनाद्विष्णुर्ब्रह्मणा विबुधैः सह। देवानां च हितार्थाय ययौ देवसभां प्रति।। | 2-51-43a 2-51-43b |
मेरोः शिरसि विन्यस्तां ज्वलन्तीं तां शुभां सभाम्। विविशुस्ते सुराः सर्वे ब्रह्मणा सह भारत।। | 2-51-44a 2-51-44b |
जग्मुस्तत्र निषेदुस्ते सा निःशब्दा ह्यभूत्तदा। तत्र भूमिरुवाचाथ खेदात्करुणभाषिणी।। | 2-51-45a 2-51-45b |
राज्ञां बलैर्बलवतां खिन्नास्मि भृशपीडिता। नित्यं भारपरिश्रान्ता दुःखं जीवाम्यहं सुराः।। | 2-51-46a 2-51-46b |
पुरे पुरे च नृपतिः कोटिसङ्ख्यैर्बलैर्वृतः। राष्ट्रे राष्ट्रे च शतशो ग्रामाः कुलसहस्रिणः।। | 2-51-47a 2-51-47b |
भूमिपानां सहस्रैश्च तेषां च बिलनां बलैः। ग्रामायुतैः पुरै राष्ट्रैरहं निर्विवरीकृता।। | 2-51-48a 2-51-48b |
तस्माद्धारयितुं शक्त्या न क्षमासि जनानहम्। दैत्यैश्च बाध्यमानास्ताः प्राज नित्यं दुरात्मभिः।। | 2-51-49a 2-51-49b |
भीष्म उवाच। | 2-51-50x |
भूमेस्तु वचनं श्रुत्वा देवो नारायणस्तदा। व्यादिश्य तान्सुरान्सर्वान्क्षितौ वस्तुं मनो दधे।। | 2-51-50a 2-51-50b |
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि अर्घाहरणपर्वणि एकपञ्चाशोऽध्यायः।। 51।। |
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