महाभारतम्-02-सभापर्व-042
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श्रीकृष्णस्याग्रपूजामसहमानानां शिरसि पदमाहितमिति सहदेववचनश्रवणेन शिशुपाल स्य कोपोदयः।।
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`वैशम्पायन उवाच।। | 2-42-1x |
गाङ्गेयेनैवमुक्तस्तु शिशुपालश्चुकोप तम्। क्रुद्धं सुनीथं दृष्ट्वाऽथ सहदेवोऽब्रवीत्तदा।। | 2-42-1a 2-42-1b |
मतिपूर्वमिदं सर्वं चेदिराज मया कृतम्। तन्मे निगदतस्तत्त्वं कारणादत्र मे शृणु।। | 2-42-2a 2-42-2b |
स पार्थिवानां सर्वेषां गुरुः कृष्णोऽपरो न हि। तस्मादभ्यर्चितोऽस्माभिः सर्वे संमन्तुमर्हथ।। | 2-42-3a 2-42-3b |
यो वा सहते कश्चिद्राज्ञां सबलवाहनः। क्षिप्रं युद्धाय निर्यातु तस्य मूर्ध्न्याहितं पदम्।। | 2-42-4a 2-42-4b |
एवमुक्तो मया हेतुरुत्तरं प्रब्रवीतु मे। | 2-42-5a |
वैशम्पायन उवाच।। | 2-42-5x |
ततो न व्याजहारैषां कश्चिद्बुद्धिमतां सताम्।। | 2-42-5b |
मानिनां बलिनां राज्ञां मध्ये सन्दर्शिते पदे। एवमुक्ते सुनीथस्य सहदेवेन केशवे।। | 2-42-6a 2-42-6b |
स्वभावरक्ते नयने कोपाद्रक्ततरे कृते। तस्य कोपं समुद्भूतं ज्ञात्वा भीष्मः प्रतापवान्।। | 2-42-7a 2-42-7b |
आचचक्षे पुनस्तस्मै कृष्णस्यैवोत्तरान्गुणान्। स सुनीथं समामन्त्र्य तांश्च सर्वान्महीक्षितः।। | 2-42-8a 2-42-8b |
उवाच वदतां श्रेष्ठं इदं मतिमतां वरः। सहदेवेन राजानो यदुक्तं केशवं प्रति। तत्तथेति विजानीध्वं भूयश्चात्र विबोधत।। | 2-42-9a 2-42-9b 2-42-9c |
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि अर्घाहरणपर्वणि द्विचत्वारिंशोऽध्यायः।। 42 ।। |
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