महाभारतम्-02-सभापर्व-063
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राज्ञां रणोद्यमाद्विभ्यतो युधिष्ठिरस्य भीष्णेण समाश्वासनम्।। 1।।
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वैशम्पायन उवाच।। | 2-63-1x |
ततः सागरसङ्काशं दृष्ट्वा नृपतिमण्डलम्। संवर्तवाताभिहतं भीमं क्षुब्धमिवार्णवम्। | 2-63-1a 2-63-1b |
रोषात्प्रचलितं सर्वमिदमाह युधिष्ठिरः। भीष्मं मतिमतां मुख्यं वृद्धं कुरुपितामहम्। बृहस्पतिं बृहत्तेजाः पुरुहूत इवारिहा। | 2-63-2a 2-63-2b 2-63-2c |
असौ रोषात्प्रचलितो महान्नृपतिसागरः। अत्र यत्प्रतिपत्तव्यं तन्मे ब्रूहि पितामह।। | 2-63-3a 2-63-3b |
यज्ञस्य च न विघ्नः स्यात्प्रजानां च हितं भवेत्। यथा सर्वत्र तत्सर्वं ब्रूहि मेऽद्य पितामह।। | 2-63-4a 2-63-4b |
इत्युक्तवति धर्मज्ञे धर्मराजे युधिष्ठिरे। उवाचेदं वचो भीष्मस्ततः कुरुपितामहः।। | 2-63-5a 2-63-5b |
मा भैस्त्वं कुरुशार्दूल श्वा सिंहं हन्तुमर्हति। शिवः पन्थाः सुनीतोऽत्र मया पूर्वतरं वृतः।। | 2-63-6a 2-63-6b |
प्रसुप्ते हि यथा सिंहे श्वानस्तात समागताः। भषेयुः सहिताः सर्वे तथेमे वसुधाधिपाः।। | 2-63-7a 2-63-7b |
वृष्णिसिंहस्य सुप्तस्य तथाऽमी प्रमुके स्थिताः। भषन्ते तात सङ्क्रुद्धाः श्वानः सिंहस्य सन्निधौ।। | 2-63-8a 2-63-8b |
न हि सम्बुध्यते यावत्सुप्तः सिंह इवाच्युतः। ` तदिदं ज्ञातपूर्वं हि तव संस्तोतुमिच्छसि'। तेन सिंहीकरोत्येतानसिंहश्चेदिपुङ्गवः।। | 2-63-9a 2-63-9b 2-63-9c |
पार्थिवान्पार्थिवश्रेष्ठ शिशुपालोऽल्पचेतनः। सर्वान्सर्वात्मना तात नेतुकामो यमक्षयम्।। | 2-63-10a 2-63-10b |
नूनमेतत्समादातुं पुनरिच्छत्यधोक्षजः। यदस्य शिशुपालस्य तेजस्तिष्ठति भारत।। | 2-63-11a 2-63-11b |
विप्लुता चास्य भद्रं ते बुद्धिर्बुद्धिमतां वर। चेदिराजस्य कौन्तेय सर्वेषां च महीक्षितम्।। | 2-63-12a 2-63-12b |
आदातुं च नरव्याघ्रो यं यमिच्छत्ययं तदा। तस्य विप्लवते बुद्धिरेवं चेदिपतेर्यथा।। | 2-63-13a 2-63-13b |
चतुर्विधानां भूतानां त्रिषु लोकेषु माधवः। प्रभवश्चैव सर्वेषां निधनं च युधिष्ठिर।। | 2-63-14a 2-63-14b |
वैशम्पायन उवाच। | 2-63-15x |
इति तस्य वचः श्रुत्वा ततश्चेदिपतिर्नृपः। भीष्मं रूक्षाक्षरा वाचः श्रावयामास भारत।। | 2-63-15a 2-63-15b |
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि शिशुपालवधपर्वणि त्रिषष्टितमोऽध्यायः।। 63।। |
2-63-7 भषणं श्वरवः।।
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