महाभारतम्-02-सभापर्व-052
← सभापर्व-051 | महाभारतम् द्वितीयपर्व महाभारतम्-02-सभापर्व-052 वेदव्यासः |
सभापर्व-053 → |
विष्णुना देवानां भूमावुत्पत्तये आज्ञापनम्।। 1।। अवतीर्णे कृष्णे स्वर्गादागतानामिन्द्रादीनां श्रीकृष्णं स्तुत्वा पुनः स्व लोकगमनम्।। 2।। श्रीकृष्णेन शकटासुरवधः। अर्जुनतरुभञ्जनम्। बृन्दावं गत्वा वने विहरणम्।। 3।।
|
भीष्ण उवाच। | 2-52-1x |
यच्चके भगवान्विष्णुर्वसुदेवसुतस्तदा। तत्तेऽहं सम्प्रवक्ष्यामि शृणु स्रवमशेषतः।। | 2-52-1a 2-52-1b |
वासुदेवस्य महात्म्यं चरितं च महात्मनः। हितार्थं सुरसर्त्यानां लोकानां च हिताय च।। | 2-52-2a 2-52-2b |
यदा दिवि विभुस्तात न रेमे भगवानसौ। ततो व्यादिशय भूतानि विभुर्भूमिसुखावहः।। | 2-52-3a 2-52-3b |
निग्रहार्थाय दैत्यानां चोदयामास वै तदा। मुरुतश्च वसूंश्चैव सूर्याचन्द्रमसावुभौ।। | 2-52-4a 2-52-4b |
गन्धर्वाप्सरसश्चैव रुद्रादित्यांस्तथाऽश्विनौ। जायध्वं मानुषे लोके सर्वलोकमहेश्वराः।। | 2-52-5a 2-52-5b |
जङ्गमानि विशालाक्षो ह्यात्मार्थमसृजत्प्रभुः। जायन्तामिति गोविन्दस्तिर्यग्योनिगतैः सह।। | 2-52-6a 2-52-6b |
तानि सर्वाणि सर्वज्ञो व्यजायत यदोः कुले। आत्मानमात्मना तात कृत्वा बहुविधं हरिः। रत्यर्थमिह गास्तत्र ररक्ष पुरुषोत्तमः। | 2-52-7a 2-52-7b 2-52-7c |
अजातशत्रो जातस्तु यथेष्ट भुवि भूमिप। कीर्त्यमानं मया तात निबोध भरतर्षभ।। | 2-52-8a 2-52-8b |
सागराः समकम्पन्त मुदा चेलुश्च पर्वताः। जज्वलुश्चाग्नयः शान्ता जायमाने जनार्दने।। | 2-52-9a 2-52-9b |
शिवाः सम्प्रववुर्वाताः प्रशान्तमभवद्रजः। ज्योतींषि सम्प्रकाशन्त जायमाने जनार्दने।। | 2-52-10a 2-52-10b |
देवदुन्दुभयश्चापि सस्वनुर्भृशमम्बरे। अभ्यवर्षंस्तदाऽऽगम्य देवताः पुष्पवृष्टिभिः।। | 2-52-11a 2-52-11b |
गीर्भिर्मङ्गलयुक्ताभिः स्तुवन्वै मधुसदनम्। उपतस्थुस्तदा प्रीताः प्रादुर्भावे महर्षयः।। | 2-52-12a 2-52-12b |
ततस्तानभिसम्प्रेक्ष्य नारदप्रमुखानृषीन्। उपानृत्यन्नुपजगुर्गन्धर्वाप्सरसां गणाः।। | 2-52-13a 2-52-13b |
उपतस्थे च गोविन्दं सहस्राक्षः शचीपतिः। अभ्यभाषत तेजस्वी महर्षीन्पूजयंस्तदा।। | 2-52-14a 2-52-14b |
कृत्वा च देवकार्याणि कृत्वा देवहितानि च। खं लोकं लोककृद्देवः पुनर्गच्छति तेजसा।। | 2-52-15a 2-52-15b |
इत्युक्त्वा ऋषिभिः सार्घं जगाम त्रिदिवं पुनः। अभ्यनुज्ञाय तान्सर्वाञ्छादयन्प्रकृतिं पराम्।। | 2-52-16a 2-52-16b |
नन्दगोपकुले कृष्ण उवास बहुलाः समाः। ततः कदाचित्सुप्तं तं शकटस्य त्वधः शिशुम्।। | 2-52-17a 2-52-17b |
यशोदा सम्परित्यज्य जगाम यमुनां नदीम्। शिशुलीलां ततः कुर्वन्स्वहस्तचरणौ क्षिपन्।। | 2-52-18a 2-52-18b |
रुरोद मधुरं कृष्णः पादावूर्ध्वं प्रसारयन्। पादाङ्गुष्ठेन शकटं दारयन्नथ केशवः।। | 2-52-19a 2-52-19b |
तत्र एकेन पादेन पातयित्वा तथा शिशुः। न्युब्जं पयोधराकाङ्क्षी ससार च रुरोद च।। | 2-52-20a 2-52-20b |
पाटितं शकटं दृष्ट्वा भिन्नभाण्डपुटीकटम्। जनास्ते शिशुना तेन विस्मयं परमं ययुः।। | 2-52-21a 2-52-21b |
प्रत्यक्षं शूरसेनानां दृश्यते महदद्भुतम्। शयानेन हतः कंसपक्षवांस्तिग्मतेजसा।। | 2-52-22a 2-52-22b |
पूतना चापि निहता महाकाया महास्तनी। ततः काले महाराज संसक्तौ रामकेशवौ।। | 2-52-23a 2-52-23b |
कृष्णः सङ्कर्षणश्चोभौ रिङ्खिणौ च बभूवतुः। अन्योन्यकिरणाक्रान्तौ चन्द्रसूर्याविवाम्बरे।। | 2-52-24a 2-52-24b |
विसर्पन्तौ च सर्वत्र महासर्पभुजौ तदा। रेजतुः पांसुदिग्धाङ्गौ रामकृष्णौ तदा नृप।। | 2-52-25a 2-52-25b |
क्वचिच्च जानुभिः स्पृष्टौ क्रीडमानौ क्वचिद्वने। पिबन्तौ दधिकुल्यांश्च मथ्यमाने च भारत।। | 2-52-26a 2-52-26b |
ततः स बालो गोविन्दो नवनीतं तदा क्षयम्। ग्रासमानस्तु तत्रायं गोपीभिर्ददृशे तथा।। | 2-52-27a 2-52-27b |
दाम्नाऽथोलूखले कृष्णो गोपीभिश्च निबन्धितः। तत्तथा शिशुना तेन कर्षता चार्जुनावृभौ।। | 2-52-28a 2-52-28b |
समूलविटपौ भग्नौ तदद्भुतमिवाभवत्। ततस्तौ बाल्यमुत्तीर्णौ कृष्णसङ्कर्षणावुभौ।। | 2-52-29a 2-52-29b |
तस्मिन्नेव व्रजस्थाने सप्तवर्षै बभूवतुः। नीलपीताम्बरधरौ पीतश्वेतानुलेपनौ।। | 2-52-30a 2-52-30b |
बभुवतुर्वत्सपालौ काकपक्षधरावुभौ। पर्णवाद्यं श्रुतिसुखं वादयन्तौ वराननौ।। | 2-52-31a 2-52-31b |
शुशुभाते वनगतौ त्रिशीर्षाविव पन्नगौ। मयूराङ्गजकर्णौ तौ पल्लवापीडधारिणौ।। | 2-52-32a 2-52-32b |
वनमालापरिक्षिप्तौ सालपोताविवोद्गतौ। अरविन्दकृतापीडौ रज्जुयज्ञोपवीतिनौ।। | 2-52-33a 2-52-33b |
सशिक्यतुम्बुरुकरौ गोपवेणुप्रवादकौ। क्वचिद्वसन्तावन्योन्यं क्रडमानौ क्वचिद्वने।। | 2-52-34a 2-52-34b |
पर्णशय्यासु तौ सुप्तौ क्वचिन्निद्रान्तरैषिणौ। तौ वत्सान्पालयन्तौ हि शोभयन्तौ महद्वनम्।। | 2-52-35a 2-52-35b |
चञ्चूर्यन्तौ रमन्तौ च राजन्नेवं तदा शुभम्। ततो बृन्दावनं गत्वा वसुदेवसुतावुभौ। गोकुलं तत्र कौन्येय चारयन्तौ विजह्रतुः।। | 2-52-36a 2-52-36b 2-52-36c |
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि अर्घाहरणपर्वणि द्विपञ्चाशोऽध्यायः।। 52।। |
सभापर्व-051 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | सभापर्व-053 |