महाभारतम्-02-सभापर्व-055
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कृष्णस्य मधुरां त्यक्त्वा द्वारकागमनम्।।1।। नरकासुरप्रतापवर्णनम्।। 2।। इन्द्रेण द्वारकामेत्य कृष्णं प्रति नरकवधप्रार्थनम्।। 3।। गरुडमारुह्य प्राग्ज्योतिचं गतेन कृष्णेन निहते धरण्या तस्मै कुण्डलार्पणम् ।। 4।।
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भीष्ण उवाच।। | 2-55-1x |
शूरसेनपुरं त्यक्त्वा ततो यादवनन्दनः। द्वारकां भगवान्कृष्णः प्रत्यपद्यत भारत।। | 2-55-1a 2-55-1b |
ततो महात्मा यानानि रत्नानि विविधानि च। यथार्हं पुण्डरीकाक्षो नैर्ऋतात्प्रत्यपद्यत।। | 2-55-2a 2-55-2b |
तत्र विघ्नं चरन्ति स्म दैतेयाः सहदानवैः। ताञ्जघान महाबाहुर्वरमत्तान्महासुरान्।। | 2-55-3a 2-55-3b |
स विघ्नमकरोत्तत्र नरको नाम नैर्ऋतः। अदितिं धर्षयामास कुण्डलार्थं युधिष्ठिर।। | 2-55-4a 2-55-4b |
न चासुरगणैः सर्वैः सहितैः कर्म तत्पुरा। कृतपूर्वं महाघोरं यदकार्षीन्महासुरः।। | 2-55-5a 2-55-5b |
यं मही सुषुवे देवी यस्य प्राग्ज्योतिषं पुरम्। विषयान्तपालाश्चत्वारो यस्यासन्युद्धदुर्मदाः।। | 2-55-6a 2-55-6b |
आदेवयानमावृत्य पन्थानं पर्यवस्थिताः। त्रासनाः सुरसङ्घानां विरूपै राक्षसैः सह।। | 2-55-7a 2-55-7b |
हयग्रीवो निकुम्भश्च घोरः पञ्चजनस्तदा। मुरः पुत्रसहस्रैश्च वरमत्तो महासुरः।। | 2-55-8a 2-55-8b |
तद्वधार्थं महाबाहुरेष चक्रगदासिभृत्। जातो वृष्णिषु देवक्यां वासुदेवो जनार्दनः।। | 2-55-9a 2-55-9b |
तस्यास्य पुरुषेन्द्रस्यलोकप्रथिततेजसः। निवासो द्वारकायां तु विदितो वः प्रधानतः।। | 2-55-10a 2-55-10b |
अतीव हि पुरी रम्या द्वारका वासवक्षयात्। अतिवैराजमप्यद्धा प्रत्यक्षस्ते युधिष्ठिर।। | 2-55-11a 2-55-11b |
तस्मिन्देवपुरप्रख्ये सा सभा वृष्ण्युपाश्रया। सुधर्मेति च विख्याता योजनायतविस्तृता।। | 2-55-12a 2-55-12b |
तत्र वृष्ण्यन्दकाः सर्वे रामकृष्णपुरोगमाः। लोकयात्रामिमां कृत्स्नां परिरक्षन्त आसते।। | 2-55-13a 2-55-13b |
तत्रासीनेषु सर्वेषु कदाचिद्भरतर्षभ। दिव्यगन्धा ववुर्वाताः कुसुमानां च वृष्टयः।। | 2-55-14a 2-55-14b |
ततः सूर्यसहस्राभस्तेजोराशिर्महाद्भुतः। मध्ये तु तेजसस्तस्य पाण्डरं गजमास्थितः। | 2-55-15a 2-55-15b |
वृतो देवगणैः सर्वैर्वासवः प्रत्यदृश्यत।। रामकृष्णौ च राजा च वृष्ण्यन्धकगणैः सह। | 2-55-16a 2-55-16b |
उत्पत्य सहसा देवे नमस्कारमकुर्वत।। सोऽवतीर्य गजात्तूर्णं परिष्वज्य जनार्दनम्। | 2-55-17a 2-55-17b |
सस्वजे बलदेवं च राजानं च तमाहुकम्।। वासुदेवोद्धवौ चैव विकद्रुं च महामतिम्। | 2-55-18a 2-55-18b |
प्रद्युम्नसाम्बनिशठाननिरुद्धं च सात्यकिम्।। गदं सारणमक्रूरं भानुझल्लिविडूरथान्। | 2-55-19a 2-55-19b |
तथैव कृतवर्णाणां चारुदेष्णं महाबलम्।। देवकल्पान्महाराज तान्दाशार्हपुरोगमान्। | 2-55-20a 2-55-20b |
पिरिष्वज्य च दृष्ट्वा च भगवान्भूतभावनः।। वृष्ण्यन्धकमहामात्रान्परिष्वज्याथ वासवः। | 2-55-21a 2-55-21b |
प्रगृह्य पूजां तैर्दत्तां भगवान्पाकशासनः।। सोऽदितेर्वचनात्तात कुण्डलार्थे जनार्दनम्। | 2-55-22a 2-55-22b |
उवाच परमप्रीतो जहि भौमं नरेश्व।। | 2-55-23a |
भीष्ण उवाच। | 2-55-23x |
निहत्य नरकं भौममाहरिष्यामि कुण्डले। | 2-55-23b |
एवमुक्त्वाऽथ गोविन्दो राममेवाभ्यभाषत।। प्रद्युम्नमनिरुद्धं च साम्बं चाप्रतिमं बले। | 2-55-24a 2-55-24b |
एतांश्चोच्त्का तथा तत्र वासुदेवो महायशाः।। अथारुह्य सुपर्णं वै शङ्खचक्रगदासिभृत्। | 2-55-25a 2-55-25b |
ययौ तदा हृषीकेशो देवानां हितकाम्यया।। तं प्रयान्तममित्रघ्नं देवाः सहपुरन्दराः। | 2-55-26a 2-55-26b |
पृष्ठतोऽनुययुः प्रीत्या स्तुवन्तो विष्णुमच्युतम्। उग्रान्त्रक्षोगणान्हत्वा नरकस्य महासुरान्। | 2-55-27a 2-55-27b |
क्षुरान्तान्मौरवान्पाशान्षट्सहस्रं ददर्श सः।। स़ञ्छिद्य पाशाच्छस्त्रेण मुरं हत्वा सहान्वयम्। | 2-55-28a 2-55-28b |
शैलसङ्घानतिक्रम्य निशुम्भं च व्यपोथयत्।। | 2-55-29a |
यः सहस्रसहस्त्वेकः सर्वान्देवानपोथयत्। तं जघान महावीर्यं हयग्रीवं महाबलम्।। | 2-55-30a 2-55-30b |
अपारतेजा दुर्धर्षः सर्वयादवनन्दनः।। मध्ये लोहितगङ्गायां भगवान्देवकीसुतः।। | 2-55-31a 2-55-31b |
औदकायां विरूपाक्षं जघान मधुसूदनः। ततः प्राग्ज्योतिषं नाम दीप्यमानमिव श्रिया। पुरमासादयामास तत्र युद्धमवर्तत।। | 2-55-32a 2-55-32b 2-55-32c |
तद्युद्धमभवद्घोरं तेन भौमेन भारत। कुण्डलार्थे सुरेशस्य नरकेण महात्मना।। | 2-55-33a 2-55-33b |
मुहूर्तं लालयित्वा तु नरकं मधूसूदनः। प्रवृत्तचक्रं चक्रेण प्रममाथ बलाद्बली।। | 2-55-34a 2-55-34b |
चक्रप्रमथितं तस्य पपात सहसा भुवि। उत्तमाङ्गं हताङ्गस्य वृत्रे वज्रहते यथा।। | 2-55-35a 2-55-35b |
भूमिस्तु पतितं दृष्ट्वा प्रायच्छत्कुण्डले सुतम्। प्रदाय च महाबाहुमिदं वचनमब्रवीत्।। | 2-55-36a 2-55-36b |
सृष्टस्त्वयैव मधुहंस्त्वयैव विनिपातितः। यथेच्छसि तथा क्रीडा प्रजास्तस्यानुपालय।। | 2-55-37a 2-55-37b |
श्रीवासुदेव उवाच। | 2-55-38x |
देवानां च मुनीनां च पितॄणां च महात्मनाम्। उद्वेजनीयो भूतानां ब्रह्मद्विद् पुरुषाधमः।। | 2-55-38a 2-55-38b |
लोकद्विष्टः सुतस्ते तु देवारिर्लोककण्टकः। सर्वलोकनमस्कार्यामदितं बाधयद्वली।। | 2-55-39a 2-55-39b |
कुण्डले हृतवान्दर्पात्ततस्ते निहतः सुतः। नैव मन्युस्त्वया कार्यो यत्कृतं मयि भामिनि ।। | 2-55-40a 2-55-40b |
त्वत्प्रभावाच्च ते पुत्रो लब्धवान्गतिमुत्तमाम्। तस्माद्गच्छ महाभागे भारावतरणं कृतम्।। | 2-55-41a 2-55-41b |
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि अर्घाहरणपर्वणि पञ्चपञ्चाशोऽध्यायः।।55 ।। |
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