महाभारतम्-02-सभापर्व-035
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नकुलस्य पश्चिमदिग्विजयः।। 1।।
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वैशम्पायन उवाच।। | 2-35-1x |
नकुलस्य तु वक्ष्यामि कर्माणि विजयं तथा। वासुदेवजितामाशां यथाऽसावजयत्प्रभुः।। | 2-35-1a 2-35-1b |
निर्याय खाण्डवप्रस्थात्प्रतीचीमभितो दिशम्। उद्दिश्य मतिमान्प्रायान्महत्या सेनया सह।। | 2-35-2a 2-35-2b |
सिंहनादेन महता योधानां गर्जितेन च। रथनेमिनिनादैश्च कम्पयन्वसुधामिमाम्।। | 2-35-3a 2-35-3b |
ततो बहु धनं रम्यं गावाढ्यं धनधान्यवत्। कार्तिकेयस्य दयितं रोहीतकुपाद्रवत्।। | 2-35-4a 2-35-4b |
तत्र युद्धं महच्चासीच्छूरैर्मत्तमयूरकैः। मरुभूमिं स कार्त्स्न्येन तथैव बहुधान्यकम्।। | 2-35-5a 2-35-5b |
शैरीषकं महेत्थं च वशे चक्रे महाद्युतिः। आक्रोशं चैव राजर्षि तेन युद्धमभून्महत्।। | 2-35-6a 2-35-6b |
तान्दशार्णान्स जित्वा च प्रतस्थे पाण्डुनन्दनः। शिबींस्त्रिगर्तानम्बष्ठान्मालवान्पञ्च कर्पटान्।। | 2-35-7a 2-35-7b |
तथा मध्यमकेयांश्च वाटधानान्द्विजानथ। पुनश्च परिवृत्याथ पुष्करारण्यवासिनः।। | 2-35-8a 2-35-8b |
गणानुत्सवसङ्केतान्व्यजयत्पुरुषर्षभः। सिन्धुकूलाश्रिता ये च ग्रामणीया महाबलाः।। | 2-35-9a 2-35-9b |
शूद्राभीरगणाश्चैव ये चाश्रित्य सरस्वतीम्। वर्तयन्ति च ये मत्स्यैर्ये च पर्वतवासिनः।। | 2-35-10a 2-35-10b |
कत्स्नं पञ्चनन्दं चैव तथैवामरपर्वतम्। उत्तरज्योतिषं चैव तथा दिव्यकटं पुरम्।। | 2-35-11a 2-35-11b |
द्वारपालं च तरसा वशे चक्रे महाद्युतिः। रामठान्हारहूणांश्च प्रतीच्याश्चैव ये नृपाः।। | 2-35-12a 2-35-12b |
तान्सर्वान्स वशे चक्रे शासनादेव पाण्डवः। तत्रस्थः प्रेषयामास वासुदेवाय भारत।। | 2-35-13a 2-35-13b |
स चास्य गतभी राजन्प्रतिजग्राह शासनम्। ततः शाकलमभ्येत्य मद्राणां पुटभेदनम्।। | 2-35-14a 2-35-14b |
मातुलं प्रीतिपूर्वेण शल्यं चक्रे वशे बली। स तेन सत्कृतो राज्ञा सत्कारार्हो विशाम्पते।। | 2-35-15a 2-35-15b |
रत्नानि भूरीण्यादाय सम्प्रतस्थे युधां पतिः। ततः सागरकुक्षिस्थान्म्लेच्छान्परमदारुणान्।। | 2-35-16a 2-35-16b |
पह्लवान्वर्बरांश्चैव किरातान्यवनाञ्शकान्। ततो रत्नान्यपादाय वशे कृत्वा च पार्थिवान्। न्यवर्तत कुरुश्रेष्ठो नकुलश्चित्रमार्गवित्।। | 2-35-17a 2-35-17b 2-35-17c |
करमाणां सहस्राणि कोशं तस्य महात्मनः। ऊहर्दश महाराज कृच्छ्रादिव महाधनम्।। | 2-35-18a 2-35-18b |
इन्द्रप्रस्थगतं वीरमभ्येत्य स युधिष्ठिरम्। ततो माद्रीसुतः श्रीमान्धनं तस्मै न्यवेदयत्।। | 2-35-19a 2-35-29b |
एवं विजित्य नकुलो दिशं वरुणपालिताम्। प्रतीचीं वासुदेवेन निर्जितां भरतर्षभ।। | 2-35-20a 2-35-20b |
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि दिग्विजयपर्वणि पञ्चत्रिंशोऽध्यायः।। 35।। |
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