महाभारतम्-02-सभापर्व-028
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अर्जुनेन उत्तरदिग्विजये नानादेशजयः।। 1।।
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वैशम्पायन उवाच। | 2-28-1x |
एवमुक्तः प्रत्युवाच भगदत्तं धनञ्जयः। अनेनैव कृतं सर्वं भविष्यत्यनुजानता।। | 2-28-1a 2-28-1b |
तं विजित्य महाबाहुः कुन्तीपुत्रो धनञ्जयः। प्रययावुत्तरां तस्माद्दिशं धनदपालिताम्।। | 2-28-2a 2-28-2b |
अन्तर्गिरिं च कौन्तेयस्तथैव च बहिर्गिरिम्। तथैवोपगिरं चैव विजिग्ये पुरुषर्षभः।। | 2-28-3a 2-28-3b |
विजित्य पर्वतान्सर्वान्ये च तत्र नराधिपाः। तान्वशे स्थापयित्वा स धनान्यादाय सर्वशः।। | 2-28-4a 2-28-4b |
तैरेव सहितः सर्वैरनुरज्य च तान्नुपान्। उलूकवासिनं राजन्बृहन्तमुपजग्मिवान्।। | 2-28-5a 2-28-5b |
मृदङ्गवरनादेन रथनेमिस्वनेन च। हस्तिनां च निनादेन कम्पयन्वसुधामिमाम्।। | 2-28-6a 2-28-6b |
ततो बृहन्तस्त्वरितो बलेन चतुरङ्गिणा। निष्क्रम्य नगरात्तस्माद्योधयामास फाल्गुनम्।। | 2-28-7a 2-28-7b |
सुमहान्सन्निपातोऽभूद्धनञ्जयबृहन्तयोः। न शशाक बृहन्तस्तु सोढुं पाण्डवविक्रमम्।। | 2-28-8a 2-28-8b |
सोऽविषह्यतमं मत्वा कौन्तेयं पर्वतेश्वरः। उपावर्तत दुर्धर्षो रत्नान्यादाय सर्वशः।। | 2-28-9a 2-28-9b |
स तद्राज्यमवस्थाप्य उलूकसहितो ययौ। सेनाबिन्दुमथो राजन्राज्यादाशु समाक्षिपत्।। | 2-28-10a 2-28-10b |
मोदापुरं वामवेदं सुदामानं सुसङ्कुलम्। उलूकानुत्तरांश्चैव तांश्च राज्ञः समानयत्।। | 2-28-11a 2-28-11b |
तत्रस्थः पुरुषैरेव धर्मराजस्य शासनात्। किरीटी जितवान्राजन्देशान्पञ्चगणांस्ततः।। | 2-28-12a 2-28-12b |
स देवप्रस्थमासाद्य सेनाबिन्दोः पुरं प्रति। बलेन चतुरङ्गेण निवेशमकरोत्प्रभुः।। | 2-28-13a 2-28-13b |
स तैः परिवृतः सर्वैर्विष्वगश्वं नराधिपम्।। अभ्यगच्छन्महातेजाः पौरवं पुरुषर्षभ।। | 2-28-14a 2-28-14b |
विजित्य चाहवे शूरान्पार्वतीयान्महारथान्। जिगाय सेनया राजन्पुरं पौरवरक्षितम्।। | 2-28-15a 2-28-15b |
पौरवं युधि निर्जित्य दस्यून्पर्वतवासिनः। गणानुत्सवसङ्केतानजयत्सप्त पाण्डवः।। | 2-28-16a 2-28-16b |
ततः काश्मीरकान्वीरान्क्षत्रियान्क्षत्रियर्षभः। व्यजयल्लोहितं चैव मण्डलैर्दशभिः सह।। | 2-28-17a 2-28-17b |
ततस्त्रिगर्ताः कौन्तेयं दार्वाः कोकनदास्तथा। क्षत्रिया बहवो राजन्नुपावर्तन्त सर्वशः।। | 2-28-18a 2-28-18b |
अभिसारीं ततो रम्यां विजिग्ये कुरुनन्दनः। उरगावासिनं रम्यं रोचमानं रणेऽजयत्।। | 2-28-19a 2-28-19b |
ततः सिंहपुरं रम्यं चित्रायुधसुरक्षितम्। प्राधमद्बलमास्थाय पाकशासनिराहवे।। | 2-28-20a 2-28-20b |
ततः सुह्यांश्च चोलांश्च किरीटी पाण्डवर्षभः। सहितः सर्वसैन्येन प्रामथत्कुरुनन्दनः।। | 2-28-21a 2-28-21b |
ततः परमविक्रान्तो बाह्लीकान्पाकशासनिः। महता परिमर्देन वशे चक्रे दुरासदान्।। | 2-28-22a 2-28-22b |
गृहीत्वा तु बलं सारं फल्गुनः पाण्डुनन्दनः। दरदान्सहकाम्भोजैरजयत्पाकशासनिः।। | 2-28-23a 2-28-23b |
प्रागुत्तरं दिशं ये च वसन्त्याश्रित्य दस्यवः। निवसन्ति वने ये च तान्सर्वानजयत्प्रभुः।। | 2-28-24a 2-28-24b |
लोहान्परमकाम्भोजानृषिकानुत्तरानपि। सहितांस्तान्महाराज व्यजयत्पाकशासनिः।। | 2-28-25a 2-28-25b |
ऋषिकेष्वपि सङ्ग्रामे बभूवातिभयङ्करः। तारकामयसङ्काशः परस्त्वृषिकपार्थयोः।। | 2-28-26a 2-28-26b |
स विजित्य ततो राजन्नृषिकान्रणमूर्धनि। शुकोदरसमांस्तत्र हयानष्टौ समानयत्।। | 2-28-27a 2-28-27b |
मयूरसदृशानन्यानुत्तरानपरानपि। जवनानाशुगांश्चैव करार्थं समुपानयत्।। | 2-28-28a 2-28-28b |
स विनिर्जित्य सङ्ग्रामे हिमवन्तं सनिष्कृटम्। श्वेतपर्वतमासाद्य न्यविशत्पुरुषर्षभः।। | 2-28-29a 2-28-29b |
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि दिग्विजयपर्वणि अष्टाविंशोध्यायः।। 28।। |
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