महाभारतम्-02-सभापर्व-003
← सभापर्व-002 | महाभारतम् द्वितीयपर्व महाभारतम्-02-सभापर्व-003 वेदव्यासः |
सभापर्व-004 → |
सभानिर्माणसामग्र्यानयनाय बिन्दुसरः प्रति मयस्य गमनम्।।1।।
गदाशङ्खाभ्यां सह सामग्रीं गृहीत्वा मयस्य खाण्डवप्रस्थागमनम्।। 2।।
भीमार्जुनयोः गदाशङ्खदानं सभानिर्माणं च।। 3।।
|
वैशम्पायन उवाच। | 2-3-1x |
अथाब्रवीन्मयः पार्थमर्युनं जयतां वरम्। आपृच्छे त्वां गमिष्यामि पुनरेष्यामि चाप्यहम्।। | 2-3-1a 2-3-1b |
`विश्रुतां त्रिषु लोकेषु पार्थ दिव्यां सभां तव। प्राणिनां विस्मयकरीं तव प्रियविवर्धिनीम्। पाण्डवानां च सर्वेषां करिष्यामि धनञ्जय'।। | 2-3-2a 2-3-2b 2-3-2c |
उत्तरेण तु कैलासं मैनाकं पर्वतं प्रति। यियक्षमाणेषु पुरा दानवेषु मया कृतम्।। | 2-3-3a 2-3-3b |
चित्रं मणिमयं भाण्डं रम्यं बिन्दुसारः प्रति। सभायां सत्यसन्धस्य यदासीद्वृषपर्वणः।। | 2-3-4a 2-3-4b |
आगमिष्यामि तद्गृह्य यदि तिष्ठति भारत। ततः सभां करिष्यामि पाण्डवस्य यशस्विनीम्।। | 2-3-5a 2-3-5b |
मनः प्रह्लादिनीं चित्रां सर्वरत्नविभूषिताम्। अस्ति बिन्दुसारस्युग्रा गदा च कुरुनन्दन।। | 2-3-6a 2-3-6b |
निहिता यौवनाश्वेन राज्ञा हत्वा रणे रिपून्। सुवर्णबिन्दुभिश्चित्रा गुर्वी भारसहा दृढा।। | 2-3-7a 2-3-7b |
सा वै शतसहस्रस्य सम्मिता शत्रुघातिनी। अनुरूपा च भीमस्य गाण्डीवं भवतो यथा।। | 2-3-8a 2-3-8b |
वारुणश्च महाशङ्खो देवदत्तः सुघोषवान्। सर्वमेतत्प्रदास्यामि भवते नात्र संशयः।। | 2-3-9a 2-3-9b |
वैशम्पायन उवाच। | 2-3-10x |
इत्युक्त्वा सोऽसुरः पार्थं प्रागुदीचीं दिशं गतः। अथोत्तरेण कैलासान्मैनाकं पर्वतं प्रति।। | 2-3-10a 2-3-10b |
हिरण्यशृङ्गः सुमहान्महामणिमयो गिरिः। रम्यं बिन्दुसरो नाम यत्र राजा भगीरथः।। | 2-3-11a 2-3-11b |
द्रुष्टुं भागीरथीं गङ्गामुवास बहुलाः समाः। यत्रेष्टं सर्वभूतानामीश्वरेण महात्मना।। | 2-3-12a 2-3-12b |
आहृताः क्रतवो मुख्याः शतं भरतसत्तम। यत्र यूपा मणिमयाश्चैत्याश्चापि हिरण्मयाः।। | 2-3-13a 2-3-13b |
शोभार्थं विहितास्तत्र न तु दृष्टान्ततः कृताः। यत्रेष्ट्वा स गतः सिद्धिं सहस्राक्षः शचीपतिः।। | 2-3-14a 2-3-14b |
यत्र भूतपतिः सृष्ट्वा सर्वाँल्लोकान्सनातनः। अपस्यते तिग्मतेजाः स्थितो भूतैः सहस्रशः।। | 2-3-15a 2-3-15b |
नरनारायणौ ब्रह्मा यमः स्थाणुश्च पञ्चमः। उपासते यत्र परं सहस्रयुगपर्यये।। | 2-3-16a 2-3-16b |
यत्रेष्टं वासुदेवेन सत्त्रैर्वर्षगणान्बहून्। श्रद्दधानेन सततं धर्मसम्प्रतिपत्तये।। | 2-3-17a 2-3-17b |
सुवर्णमालिनो यूपाश्चैत्याश्चाप्यतिभास्वराः। ददौ यत्र सहस्राणि प्रयुतानि च केशवः।। | 2-3-18a 2-3-18b |
तत्र गत्वा स जग्राह गदां शङ्खं च भारत। `तस्माद्गिरेरुपादाय शिलाः सुरुचिरावहाः'। स्फाटिकं च सभाद्रव्यं यदासीद्वृषपर्वणः।। | 2-3-19a 2-3-19b 2-3-19c |
किङ्करैः सह रक्षोभिर्यदरक्षन्महद्धनम्। तदगृह्णान्मयस्तत्र गत्वा सर्वं महाऽसुरः।। | 2-3-20a 2-3-20b |
तदाहृत्य च तां चक्रे सोऽसुरोऽप्रतिमां सभाम्। विश्रुतां त्रिषु लोकेषु दिव्यां मणिमयीं शुभाम्।। | 2-3-21a 2-3-21b |
गदां च भीमसेनाय प्रवरां प्रददौ तदा। देवदत्तं चार्जुनाय शङ्खप्रवरमुत्तमम्।। | 2-3-22a 2-3-22b |
यस्य शङ्खस्य नादेन भूतानि प्रचकम्पिरे। `स कालं कञ्चिदाश्वस्य विश्वकर्मा विचिन्त्य च।। | 2-3-23a 2-3-23b |
सभां प्रचक्रमे कर्तुं पाण्डवानां महात्मनाम्। अभिप्रायेण पार्थानां कृष्णस्य च महात्मनः।। | 2-3-24a 2-3-24b |
सर्वर्तुगुणसम्पन्नां दिव्यरूपामलङ्कृताम्। तर्पयित्वा द्विजश्रेष्ठान्पायसेन सहस्रशः। सभा च सा महाराज शातकुम्भमयद्रुमा।। | 2-3-25a 2-3-25b 2-3-25c |
दशकिष्कुसहस्राणि समन्तादायताभवत्। यथा वह्नेर्यथार्कस्य सोमस्य च यथा सभा।। | 2-3-26a 2-3-26b |
भ्राजमाना तथाऽत्यर्थं दधार परमं वपुः। अभिघ्नतीव प्रभया प्रभामर्कस्य भास्वराम्।। | 2-3-27a 2-3-27b |
प्रबभौ ज्वलमानेव दिव्या दिव्येन वर्चसा। नवमेघप्रतीकाशा दिवमाकृत्य विष्ठिता। आयता विपुला रम्या विपाप्मा विगतक्लमा ।। | 2-3-28a 2-3-28b 2-3-28c |
उत्तमद्रव्यसम्पन्ना रत्नप्राकारतोरणा। बहुचित्रा बहुधना सुकृता विश्वकर्मणा।। | 2-3-29a 2-3-29b |
न दाशार्ही सुधर्मा वा ब्रह्मणो वाथ तादृशी। सभा रूपेण सम्पन्ना यां चक्रे मतिमान्मयः।। | 2-3-30a 2-3-30b |
तां स्म तत्र मयेनोक्ता रक्षन्ति च वहन्ति च। सभामष्टौ सहस्राणि किङ्करा नाम राक्षसाः।। | 2-3-31a 2-3-31b |
अन्तरिक्षचरा घोरा महाकाया महाबलाः। रक्ताक्षाः पिङ्गलाक्षाश्च शुक्तिकर्णाः प्रहारिणः।। | 2-3-32a 2-3-32b |
तस्यां सभायां नलिनीं चकाराप्रतिमां मयः। वैदूर्यपत्रविततां मणिनालमयाम्बुजाम्।। | 2-3-33a 2-3-33b |
पद्मसौगन्धिकवतीं नानाद्विजगणायुताम्। पुष्पितैः पङ्कजैश्चित्रां कूर्मैर्मत्स्यैश्च काञ्चनैः। चित्रस्फटिकसोपानां निष्पङ्कसलिलां शुभाम्।। | 2-3-34a 2-3-34b 2-3-34c |
मन्दानिलसमुद्धूतां मुक्ताबिन्दुभिराचिताम्। महामणिशिलापट्टबद्धपर्यन्तवेदिकाम्।। | 2-3-35a 2-3-35b |
मणिरत्नचितां तां तु केचिदभ्येत्य पार्थिवाः। दृष्ट्वापि नाभ्यजानन्त तेऽज्ञानात्प्रपतन्त्युत ।। | 2-3-36a 2-3-36b |
तां सभामभितो नित्यं पुष्पवन्तो महाद्रुमाः। आसन्नानाविधा लोलाः शीतच्छाया मनोरमाः।। | 2-3-37a 2-3-37b |
काननानि सुगन्धीनि पुष्करिण्यश्च सर्वशः। हंसकारण्डवोपेताश्चक्रवाकोपशोभिताः।। | 2-3-38a 2-3-38b |
जलजानां च पद्मानां स्थलजानां च सर्वशः। मारुतो गन्धमादाय पाण्डवान्स्म निषेवते।। | 2-3-39a 2-3-39b |
ईदृशीं तां सभां कृत्वा मासैः परिचतुर्दशैः। निष्ठितां धर्मराजाय मयो राजन्न्यवेदयत्।। | 2-3-40a 2-3-40b |
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि तृतीयोऽध्यायः।। 3।। |
सभापर्व-002 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | सभापर्व-004 |