महाभारतम्-02-सभापर्व-009
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वरुणसभावर्णनम्।। 1।।
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नारद उवाच।। | 2-9-1x |
युधिष्ठिर सभा दिव्या वरुणस्यामितप्रभा। प्रमाणेन यथा याम्या शुभप्राकारतोरणा।। | 2-9-1a 2-9-1b |
अन्तः सलिलमास्थाय विहिता विश्वकर्मणा। दिव्यै रत्नमयैर्वृक्षैः फलपुष्पप्रदैर्युता।। | 2-9-2a 2-9-2b |
नीलपीतैः सिताः श्यामैः सितैर्लोहितकैरपि। अवतानैस्तथा गुल्मैर्मञ्जरीजालधारिभिः।। | 2-9-3a 2-9-3b |
तथा शकुनयस्तस्यां विचित्रा मधुरस्वराः। अनिर्देश्या वपुष्मन्तः शतशोऽथ सहस्रशः।। | 2-9-4a 2-9-4b |
सा सभा सुखसंस्पर्शा न शीता न च धर्मदा। वेश्मासनवती रम्या सिता वरुणपालिता।। | 2-9-5a 2-9-5b |
यस्यामास्ते स वरुणो वारुण्या च समन्वितः। दिव्यरत्नाम्बरधरो दिव्याभरणभूषितः।। | 2-9-6a 2-9-6b |
?द्वितीयेन तु नाम्ना वै गौरीति भुवि विश्रुता। पत्न्या सवरुणो देवः प्रमोदति सुखी सुखम्'।। | 2-9-7a 2-9-7b |
स्रग्विणो दिव्यगन्धाश्च दिव्यगन्धानुलेपनाः। आदित्यास्तत्र वरुणं जलेश्वरमुपासते।। | 2-9-8a 2-9-8b |
वासुकिस्तक्षकश्चैव नागश्चैरावतस्तथा। कृष्णश्च लोहितश्चैव पद्मश्चित्रश्च वीर्यवान्।। | 2-9-9a 2-9-9b |
कम्बलाश्वतरौ नागौ धृतराष्ट्रबलाहकौ। मणिमान्कुण्डधारश्च कर्कोटकधनञ्जयौ।। | 2-9-10a 2-9-10b |
पाणिमान्कुण्डधारश्च बलवान्पृथिवीपते। प्रह्रादो मुषिकादश्च तथैव जनमेजयः ।। | 2-9-11a 2-9-11b |
पताकिनो मण्डलिनः फणवन्तश्च सर्वशः। ` अर्थो धर्मश्च कामश्च वसुः कपिल एव च।। | 2-9-12a 2-9-12b |
अनन्तश्च महानागो यं दृष्ट्वा जलजेश्वरः। अभ्यर्चयति सत्कारैरासनेन च तं विभुः।। | 2-9-13a 2-9-13b |
वासुकिप्रमुखाश्चैव सर्वे प्राञ्जलयः स्थिताः। अनुज्ञाताश्च शेषेण यथार्हमुपविश्य च।। | 2-9-14a 2-9-14b |
एते चान्ये च बहवः सर्पास्तस्यां युधिष्ठिर। `वैनतेयश्च गरुडो ये चास्य परिचारिणः'। उपासते महात्मानं वरुणं विगतक्लमाः।। | 2-9-15a 2-9-15b 2-9-15c |
बलिर्वैरोचनो राजा नरकः पृथिवीञ्जयः। संह्रादो विप्रचित्तिश्च कालखञ्जाश्च दानवाः।। | 2-9-16a 2-9-16b |
सुहनुर्दुर्मुखः शङ्खः सुमनाः सुमतिस्ततः। घटोदरो महापार्श्वः क्रथनः पिठरस्तथा।। | 2-9-17a 2-9-17b |
विश्वरूपः स्वरूपश्च विरूपोऽथ महाशिराः। दशग्रीवश्च वाली च मेघवासा दशावरः।। | 2-9-18a 2-9-18b |
टिट्टिभो विटभूतश्च संह्रादश्चेन्द्रतापनः। दैत्यदानवसङ्घाश्च सर्वे रुचिरकुण्डलाः।। | 2-9-19a 2-9-19b |
स्रग्विणो मौलिनश्चैव तथा दिव्यपरिच्छदाः। सर्वे लब्धवराः शूराः सर्वे विगतमृत्यवः।। | 2-9-20a 2-9-20b |
ते तस्यां वरुणं देवं धर्मपाशधरं सदा। उपासते महात्मानं सर्वे सुचरितव्रताः।। | 2-9-21a 2-9-21b |
तथा समुद्राश्चत्वारो नदी भागीरथी च सा। कालिन्दी विदिशा वेणा नर्दमा वेगवाहिनी।। | 2-9-22a 2-9-22b |
विपाशा च शतद्रुश्च चन्द्रभागा सरस्वती। इरावती वितस्ता च सिन्धुर्देवनदी तथा।। | 2-9-23a 2-9-23b |
गोदावरी कृष्णवेणी कावेरी च सरिद्वरा। किम्पुना च विशल्या च तथा वैतरणी नदी।। | 2-9-24a 2-9-24b |
तृतीया ज्येष्ठिला चैव शोणश्चापि महानदः। चर्मण्वती तथा चैव पर्णाशा च महानदी।। | 2-9-25a 2-9-25b |
सरयूर्वारवत्याऽथ लाङ्गली च सरिद्वरा। करतोया तथाऽऽत्रेयी लौहित्यश्च महानदः।। | 2-9-26a 2-9-26b |
लङ्घती गोमती चैव सन्ध्या त्रिस्रोतसी तथा। एताश्चन्याश्च राजेन्द्र सुतीर्था लोकविश्रुताः।। | 2-9-27a 2-9-27b |
सरितः सर्वतश्चान्यास्तीर्थानि च सरांसि च। कूपाश्च सप्रस्रवणा देहवन्तो युधिष्ठिर। | 2-9-28a 2-9-28b |
पल्वलानि तटाकानि देहवन्त्यथ भारत। दिशस्तथा मही चैव तथा सर्वे महीधराः।। | 2-9-29a 2-9-29b |
उपासते महात्मानं सर्वे जलचरास्तथा। गीतवादित्रवन्तश्च गन्धर्वाप्सरसां गणाः।। | 2-9-30a 2-9-30b |
स्तुवन्तो वरुणं तस्यां सर्व एव समासते। महीधरा रत्नवन्तो रसा ये च प्रतिष्ठिताः।। | 2-9-31a 2-9-31b |
कथयन्तः सुमधुराः कथास्तत्र समासते। वारुणश्च तथा मन्त्री सुनाभः पर्युपासते।। | 2-9-32a 2-9-32b |
पुत्रपौत्रैः परिवृतो गोनाम्ना पुष्करेण च। सर्वे विग्रहवन्तस्ते तमीश्वरमुपासते।। | 2-9-33a 2-9-33b |
एषा मया सम्पतता वारुणी भरतर्षभ। दृष्टपूर्वा सभा रम्या कुबेरस्य सभां शृणु।। | 2-9-34a 2-9-34b |
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि मन्त्रपर्वणि नवमोऽध्यायः।। 9।। |
2-9-34 सम्पतता समागच्छता।।
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