महाभारतम्-02-सभापर्व-008
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यमसभावर्णमम्।। 1।।
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नारद उवाच। | 2-8-1x |
कथयिष्ये सभां याम्यां युधिष्ठिर निबोध ताम्। वैवस्वतस्य यां पार्थ विश्वकर्मा चकार ह।। | 2-8-1a 2-8-1b |
तैजसी सा सभा राजन्बभूव शतयोजना। विस्तारायामसम्पन्ना भूयसी चापि पाण्डव।। | 2-8-2a 2-8-2b |
अर्कप्रकाशा भ्राजिष्णुः सर्वतः कामरूपिणी। नातिशीता च चात्युष्णा मनसश्च प्रहर्षिणी।। | 2-8-3a 2-8-3b |
न शोको न जरा तस्यां क्षुत्पिपासे न चाप्रियम्। न च दैन्यं क्लमो वाऽपि प्रतिकूलं न चाप्युत।। | 2-8-4a 2-8-4b |
सर्वे कामाः स्थितास्तस्यां ये दिव्या ये च मानुषाः। रसवच्च प्रभूतं च भक्ष्यं भोज्यमरिन्दम।। | 2-8-5a 2-8-5b |
लेह्यं चोप्यं च पेयं च हृद्यं स्वादु मनोहरम्। पुण्यगन्धाः स्रजस्तस्य नित्यं कामफला द्रुमाः।। | 2-8-6a 2-8-6b |
रसवन्ति च तोयानि शीतान्युष्णानि चैव हि। तस्यां राजर्षयः पुण्यास्तथा ब्रह्मर्षयोऽमलाः।। | 2-8-7a 2-8-7b |
यमं वैवस्वतं तात प्रहृष्टाः पर्युपासते। ययातिर्नहुषः पुरुर्मान्धाता सोमको नुगः।। | 2-8-8a 2-8-8b |
त्रसदस्युश्च राजर्षिः कृतवीर्यः श्रुतश्रवाः। अरिष्टनेमिः सिद्धश्च कृतवेगः कृतिर्निमिः।। | 2-8-9a 2-8-9b |
प्रतर्दनः शिबिर्मत्स्यः पृथुलाक्षो बृहद्रथः। वार्तो मरुत्तः कुषिकः साङ्काश्यः साङ्कृतिर्ध्रुवः।। | 2-8-10a 2-8-10b |
चतुरश्चः सदस्योर्मिः कार्तवीर्यश्च पार्थिवः। भरतः सुरथश्चैव सुनीथो निशठोऽनलः।। | 2-8-11a 2-8-11b |
दिवोदासश्च सुमना अम्बरीषो भगीरथः। व्यश्वः सदश्वो वाघ्र्यश्वः पृथुवेगः पृथुश्रवाः।। | 2-8-12a 2-8-12b |
पृपदश्वो वसुमनाः क्षुपश्च सुमहाबलः। रुषद्रुर्वृषसेनश्च पुरुकुत्सो ध्वजी रथी।। | 2-8-13a 2-8-13b |
आर्ष्टिषेणो दिलीपश्च महात्मा चाप्युशीनरः। औशीनरिः पुण्डरीकः शर्यातिः शरभः शुचिः।। | 2-8-14a 2-8-14b |
अङ्गो रिष्टश्च वेनश्च दुष्यन्तः सृञ्जयो जयः। भाङ्गासुरिः सुनीथश्च निषधोऽथ वहीनरः।। | 2-8-15a 2-8-15b |
करन्धमो बाह्लिकश्च सुद्युम्नो बलवान्मधुः। ऐलो मरुत्तश्च तथा बलवान्पृथिवीपतिः।। | 2-8-16a 2-8-16b |
कपोतरोमा तृणकः सहदेवार्जुनौ तथा। व्यश्वः साश्वः कृशाश्वश्च शशबिन्दुश्च पार्थिवः।। | 2-8-17a 2-8-17b |
रामो दाशरथिश्चैव लक्ष्मणोऽथ प्रतर्दनः। अलर्कः कक्षसेनश्च गयो गौराओश्व एव च।। | 2-8-18a 2-8-18b |
जामदग्न्यश्च रामश्च नाभागसगरौ तथा। भूरिद्युम्नो महाश्वश्च पृथाशअवो जनकस्तथा।। | 2-8-19a 2-8-19b |
राजा वैन्यो वारिसेनः पुरिजिज्जनमेजयः। ब्रह्मदत्तस्त्रिगर्तिश्च राजोपरिचरस्तथा।। | 2-8-20a 2-8-20b |
इन्द्रद्युम्नो भीमजानुर्गौरपृष्ठोऽनघो लयः। पद्मोऽथ मुचुकुन्दश्च भूरिद्युम्नः प्रसेनजित्।। | 2-8-21a 2-8-21b |
अरिष्टनेमिः सुद्युम्नः पृथुलाश्वोऽष्टकस्तथा। शतं मत्स्या नृपतयः शतं नीपाः शतं हयाः।। | 2-8-22a 2-8-22b |
धृतराष्ट्राश्चैकशतमशीतिर्जनमेजयाः। शतं च ब्रह्मदत्तानां वीरिणामीरिणां शतम्।। | 2-8-23a 2-8-23b |
भीष्णाणां द्वे शतेऽप्यत्र भीमानां तु तथा शतम्। शतं च प्रतिविन्ध्यानां शतं नागाः शतं हयाः।। | 2-8-24a 2-8-24b |
पलाशानां शतं ज्ञेयं शतं काशकुशादयः। शान्तनुश्चैव राजेन्द्र पाण्डुश्चैव पिता तव।। | 2-8-25a 2-8-25b |
उशङ्गवः शतरथो देवराजो जयद्रथः। वृषदर्भश्च राजर्षिर्बुद्धिमान्सहमन्त्रिभिः।। | 2-8-26a 2-8-26b |
अथापरे सहस्राणि ये गताः शसबिन्दवः। इष्ट्वाऽश्वमेधैर्बहुभिर्महद्भिर्भूरिदक्षिणैः।। | 2-8-27a 2-8-27b |
एते राजर्षयः पुण्याः कीर्तिमन्तो बहुश्रुताः। तस्यां सभायां राजेन्द्र वैवस्वतमुपासते।। | 2-8-28a 2-8-28b |
अगस्त्योऽथ मतङ्गश्च कालो मृत्युस्तथैव च। यज्वानश्चैव सिद्धाश्च ये न योगशरीरिणः।। | 2-8-29a 2-8-29b |
अग्निष्वात्ताश्च पितरः फेनपाश्वोष्मपाश्च ये। सुधावन्तो बर्हिषदो मूर्तिमन्तस्तथाऽपरे।। | 2-8-30a 2-8-30b |
कालचक्रं च साक्षाच्च भगवान्हव्यवाहनः। नरा दुष्कृतकर्माणो दक्षिणायनमृत्यवः।। | 2-8-31a 2-8-31b |
कालस्य नयने युक्ता यमस्य पुरुपाश्च ये। तस्यां शिंशुपपालाशास्तथा काशकुशादयः।। | 2-8-32a 2-8-32b |
उपासते धर्मराजं मूर्तिमन्तो जनाधिप। एते चान्ये च बहवः पितृराजसभासदः। न शक्याः परिसङ्ख्यातुं नामभिः कर्मभिस्तथा । | 2-8-33a 2-8-33b 2-8-33c |
असम्बाधा हि सा पार्थ रम्या कामगमा सभा। दीर्घकालं तपस्तप्त्वा निर्मिता विश्वकर्मणा। | 2-8-34a 2-8-34b |
ज्वलन्ती भासमाना च तेजसा स्वेन भारत। तामुग्रतपसो यान्ति सुव्रताः सत्यवादिनः।। | 2-8-35a 2-8-35b |
शान्ताः सन्यासिनः शुद्धाः पूताः पुण्येन कर्मणा। सर्वे भास्वरदेहाश्च सर्वे च विरजोम्बराः।। | 2-8-36a 2-8-36b |
चित्राङ्गदाश्चित्रमाल्याः सर्वे ज्वलितकुण्डलाः। सुकृतैः कर्मभिः पुण्यैः पारिबर्हैश्च भूषिताः।। | 2-8-37a 2-8-37b |
गन्धर्वाश्च महात्मानः सङ्घशश्चाप्सरोगणाः। वादित्रं नृत्तगीतं च हास्यं लास्यं च सर्वशः।। | 2-8-38a 2-8-38b |
पुण्याश्च गन्धाः शब्दाश्च तस्यां पार्थ समन्ततः। दिव्यानि चैव माल्यानि उपतिष्ठन्ति नित्यशः।। | 2-8-39a 2-8-39b |
शतं शतसहस्राणि धर्मिणां तं प्रजेश्वरम्। उपासते महात्मानं रूपयुक्ता मनस्विनः।। | 2-8-40a 2-8-40b |
ईदृशी सा सभा राजन्पितृराज्ञो महात्मनः। वरुणस्यापि वक्ष्यामि सभां पुष्करमालिनीम्।। | 2-8-41a 2-8-41b |
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि मन्त्रपर्वणि अष्टमोऽध्यायः।। 8।। |
2-8-18 रामइति रामलक्ष्मणयोर्विष्णुशेषरूपेण स्वस्थानस्थयोरपि रूपान्तरेण उपासकानु ग्रहार्थमत्रावस्थानम्।।
2-8-23 धृतराष्टाश्चैकशतमिति पुराणेषु प्रायेणाधिकारिणामेव कीर्तनात्तेषां च प्रति कल्पं समाननामरूपकर्मत्वादनेककल्पं धर्मसभावासिनां तेषां बहुत्वं युक्तम्। एवमन्येषामपि।। 2-8-31 दुष्कृतकर्माणो विद्याविहीनकर्ममात्रनिष्टाः।।
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