महाभारतम्-02-सभापर्व-099
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वनाय प्रस्थितान्पाण्डवान्प्रति दुश्शासनकृतापहासः।।1।। पाण्डवानां बहुप्रतिज्ञाकरणपूर्वकं धृतराष्ट्रसमीपगमनम्।। 2।।
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वैशम्पायन उवाच।। | 2-99-1x |
ततः पराजिताः पार्था वनावासाय दीक्षिताः। अजिनान्युत्तरीयाणि जगृहुश्च यथाक्रमम्।। | 2-99-1a 2-99-1b |
अजिनैः संवृतान्दृष्ट्वा हृतराज्यानरिन्दमान्। प्रस्थितान्वनवासाय ततो दुःशासनोऽब्रवीत्।। | 2-99-2a 2-99-2b |
प्रवृत्तं धार्तराष्ट्रस्य चक्रं राज्ञो महात्मनः। पराजिताः पाण्डवेया विपत्तिं परमां गताः।। | 2-99-3a 2-99-3b |
अद्य देवाः सम्प्रयाताः समैर्वर्त्मभिरस्थलैः। गुणज्येष्ठास्तथा श्रेष्ठाः श्रेयांसो यद्वयं परैः।। | 2-99-4a 2-99-4b |
नरकं पातिताः पार्था दीर्घकालमनन्तकम्। मुखाच्च हीना राज्याच्च विनष्टाः शाश्वतीः समाः।। | 2-99-5a 2-99-5b |
धनेन मत्ता ये ते स्म धार्तराष्ट्रान्प्रहासिषुः। ते निर्जिता हृतधना वनमेष्यन्ति पाण्डवः।। | 2-99-6a 2-99-6b |
चित्रान्सन्नाहानवमुञ्चन्तु चैषां वासांसि दिव्यानि च भानुमन्ति।। विवास्यन्तां रुरुचर्माणि सर्वे यथा ग्लहं सौबलस्याभ्युपेताः।। | 2-99-7a 2-99-7b 2-99-7c 2-99-7d |
न सन्ति लोकेषु पुमांस ईदृशा इत्येव ये भावितबुद्धयः सदा। ज्ञास्यन्ति तेत्मानमिमेऽद्य पाण्डवा विपर्यये पाण्ढतिला इवाफलाः।। | 2-99-8a 2-99-8b 2-99-8c 2-99-8d |
इदं हि वासो यदि वेदृशानां मनस्विनां रौरवमाहवेषु।। आदीक्षितानामजिनानि यद्व- द्वलीयसां पश्यत पाण्डवानाम्।। | 2-99-9a 2-99-9b 2-99-9c 2-99-9d |
महाप्राज्ञः सौमकिर्यज्ञसेनः कन्यां पाञ्चालीं पाण्डवेभ्यः प्रदाय। अकार्षिद्वै सुकृतं नेह किञ्चित् क्लीबाः पार्थाः पतयो याज्ञसेन्याः।। | 2-99-10a 2-99-10b 2-99-10c 2-99-10d |
सूक्ष्मप्रावारानजिनोत्तरीयान् दृष्ट्वाऽरण्ये निर्धनानप्रतिष्ठान्। कां त्वं प्रीतिं लप्स्यसे याज्ञसेनि पतिं वृणीष्वेह यमन्यमिच्छसि।। | 2-99-11a 2-99-11b 2-99-11c 2-99-11d |
एते हि सर्वे कुरवः समेताः क्षान्ता दान्ताः सुद्रविणोपपन्नाः। एषां वृणीष्वैकतमं पतित्वे न त्वां नयेत्कालविपर्ययोऽयम्।। | 2-99-12a 2-99-12b 2-99-12c 2-99-12d |
यथाऽफलाः षण्ढतिला यथा चर्ममया मृगाः। तथैव पाण्डवाः सर्वे यथा काकयवा अपि।। | 2-99-13a 2-99-13b |
किं पाण्डवांस्ते पतितानुपास्य मोघः श्रमः षण्ढतिलानुपास्य। एवं नृशंसः परुषाणि पार्था- नश्रावयद्धृतराष्ट्रस्य पुत्रः।। | 2-99-14a 2-99-14b 2-99-14c 2-99-14d |
तद्वै श्रुत्वा भीमसेनोऽत्यमर्षी निर्भर्त्स्योच्चैः सन्निगृह्यैव रोषात्। उवाच चैनं सहसैवोपगम्य सिंहो यथा हैमवतः शृगालम्।। | 2-99-15a 2-99-15b 2-99-15c 2-99-15d |
भीमसेन उवाच।। | 2-99-16x |
क्रूर पापजनैर्जुष्टमकृतार्थं प्रभाषसे। गान्धारविद्यया हि त्वं राजमध्ये विकत्थसे।। | 2-99-16a 2-99-16b |
यथा तुदसि मर्माणि वाक्छरैरिह नो भृशम्। तथा स्मारयिता तेऽहं कृन्तन्मर्माणि संयुगे।। | 2-99-17a 2-99-17b |
ये च त्वामनुवर्तन्ते क्रोधलोभवशानुगाः। गोप्तारः सानुबन्धांस्तान्नेताऽस्मि यमसादनम्।। | 2-99-18a 2-99-18b |
वैशम्पायन उवाच।। | 2-99-19x |
एवं ब्रुवाणमजिनैर्विवासितं दुःशासनस्तं परिनृत्यति स्म। मध्ये कुरूणां धर्मनिबद्धमार्गं गौर्गौरिति स्माह्वयन्मुक्तलज्जः।। | 2-99-19a 2-99-19b 2-99-19c 2-99-19d |
भीमसेन उवाच।। | 2-99-20x |
नृशंस परुषं वक्तुं दुःशासन त्वया। निकृत्या हि धनं लब्ध्वा को विकत्थितुमर्हति।। | 2-99-20a 2-99-20b |
मैव स्म सुकृतां लोकान्गच्छेत्पार्थो वृकोदरः। यदि वक्षो हि ते भित्त्वा न पिबेच्छोणितं रणे।। | 2-99-21a 2-99-21b |
धार्तराष्ट्रान्रणे हत्त्वा मिषतां सर्वधन्विनाम्। शमं गन्ताऽस्मि नचिरात्सत्यमेतद्ब्रवीमि ते।। | 2-99-22a 2-99-22b |
वैशम्पायन उवाच।। | 2-99-23x |
तस्य राजा सिंहगतेः सखेलं दुर्योधनो भीमसेनस्य हर्षात्। गतिं स्वगत्याऽनुचकार मन्दो निर्गच्छतां पाण्डवानां सभायाः।। | 2-99-23a 2-99-23b 2-99-23c 2-99-23d |
नैतावता कृतमित्यब्रवीत्तं वृकोदरः सन्निवृत्तार्धकायः। शीघ्रं हि त्वां निहतं सानुबन्धं संस्मार्याहं प्रतिवक्ष्यामि मूढ।। | 2-99-24a 2-99-24b 2-99-24c 2-99-24d |
एवं समीक्ष्यात्मनि चावमानं नियम्य मन्युं बलवान्स मानी। राजानुगः संसदि कौरवाणां विनिष्कामन्वाक्यमुवाच भीमः।। | 2-99-25a 2-99-25b 2-99-25c 2-99-25d |
अहं दुर्योधनं हन्ता कर्णं हन्ता धनञ्जयः। शकुनिं चाक्षकितवं सहदेवो हनिष्यति।। | 2-99-26a 2-99-26b |
इदं च भूयो वक्ष्यामि सभामध्ये बृहद्वचः। सत्यं देवाः करिष्यन्ति यन्नो युद्धं भविष्यति।। | 2-99-27a 2-99-27b |
सुयोधनमिमं पापं हन्ताऽस्मि गदया युधि। शिरः पादेन चास्याहमधिष्ठास्यामि भूतले।। | 2-99-28a 2-99-28b |
वाक्यशूरस्य चैवास्य परुषस्य दुरात्मनः। दुःशासनस्य रुधिरं पाताऽस्मि मृगराडिव।। | 2-99-29a 2-99-29b |
अर्जुन उवाच।। | 2-99-30x |
`भीमसेन न ते सन्ति येषां वैरं त्वया त्विह। मत्ता मृगेषु सुखिनो न बुद्ध्यन्ते महद्भयम्'।। | 2-99-30a 2-99-30b |
नैवं वाचा व्यवसितं भीम विज्ञायते सताम्। इतश्चतुर्दशे वर्षे द्रष्टारो यद्भविष्यति।। | 2-99-31a 2-99-31b |
भीमसेन उवाच।। | 2-99-32x |
दुर्योधनस्य कर्णस्य शकुनेश्च दुरात्मनः। दुःशासनचतुर्थानां भूमिः पास्यति शोणितम्।। | 2-99-32a 2-99-32b |
अर्जुन उवाच।। | 2-99-33x |
असूयितारं द्रष्टारं प्रवक्तारं विकत्थनम्। भीमसेन नियोगात्ते हन्ताहं कर्णमाहवे।। | 2-99-33a 2-99-33b |
अर्जुनः प्रतिजानीते भीमस्य प्रियकाम्यया। कर्णं कर्णानुगांश्चैव रणे हन्ताऽस्मि पत्रिभिः।। | 2-99-34a 2-99-34b |
ये चान्ये प्रतियोत्स्यन्ति बुद्धिमोहेन मां नृपाः। तांश्च सर्वानहं बाणैर्नेताऽस्मि यमसादनम्।। | 2-99-35a 2-99-35b |
चलेद्वि हिमवान्स्थानान्निष्प्रभः स्याद्दिवाकरः। शैत्यं सोमात्प्रणश्येत मत्सत्यं विचलेद्यदि।। | 2-99-36a 2-99-36b |
न प्रदास्यति चेद्राज्यमितो वर्षे चतुर्दशे। दुर्योधनोऽभिसत्कृत्य सत्यमेतद्भविष्यति।। | 2-99-37a 2-99-37b |
वैशम्पायन उवाच।। | 2-99-38x |
इत्युक्तवति पार्थे तु श्रीमान्माद्रवतीसुतः। प्रगृह्य विपुलं बाहुं सहदेवः प्रतापवान्।। | 2-99-38a 2-99-38b |
सौबलस्य वधं प्रेप्सुरिदं वचनमब्रवीत्। क्रोधसंरक्तनयनो निः श्वसन्निव पन्नगः।। | 2-99-39a 2-99-39b |
सहदेव उवाच।। | 2-99-40x |
अक्षान्यान्मन्यसे मूढ गान्धाराणां यशोहर। नैतेऽक्षा निशिता बाणास्त्वयैते समरे वृताः।। | 2-99-40a 2-99-40b |
यथा चैवोक्तवान्भीमस्त्वामुद्दिश्य सबान्धवम्। कर्ताहं कर्मणस्तस्य कुरु कार्याणि सर्वशः।। | 2-99-41a 2-99-41b |
हन्ताऽस्मि तरसा युद्धे त्वामेवहे सबान्धवम्। यदि स्थास्यसि सङ्ग्रामे क्षत्रधर्मेण सौबल।। | 2-99-42a 2-99-42b |
सहदेववचः श्रुत्वा नकुलोऽपि विशाम्पते। दर्शनीयतमो नॄणामिदं वचनमब्रवीत्।। | 2-99-43a 2-99-43b |
सुतेयं यज्ञसेनस्य द्यूतेऽस्मिन्धृतराष्ट्रजैः। यैर्वाचः श्राविता रूक्षाः स्थितैर्दुर्योधनप्रिये।। | 2-99-44a 2-99-44b |
तान्धार्तराष्ट्रान्दुर्वृत्तान्मुमूर्षून्कालनोदितान्। गमयिष्यामि भूयिष्ठानहं वैवस्वतक्षयम्।। | 2-99-45a 2-99-45b |
`उलूकं च दुरात्मानं सौबलस्य सुतं प्रियम्। क्रूरं हन्ताऽस्मि समरे तं वै क्रूरं नराधमम्'।। | 2-99-46a 2-99-46b |
निदेशाद्धर्मराजस्य द्रौपद्याः पदवीं चरन्। निर्धार्तराष्ट्रां पृथिवीं कर्ताऽस्मि नचिरादिव।। | 2-99-47a 2-99-47b |
वैशम्पायन उवाच।। | 2-99-48x |
एवं ते पुरुषव्याघ्राः सर्वे व्यायतबाहवः। प्रतिज्ञा बहुलाः कृत्वा धृतराष्ट्रमुपागमन्।। | 2-99-48a 2-99-48b |
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि अनुद्यूतपर्वणि एकोनशततमोऽध्यायः।। 99 ।। |
2-99-13 काकयवा निस्तण्डुलं तृणधान्यम्।।
2-99-17 स्मरयिता स्मारयिष्यामि ।।
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