महाभारतम्-02-सभापर्व-002
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द्वारकां गच्छतः श्रीकृष्णस्य युधिष्ठरादिभिः सारत्यादिकरणम्।। 1।।
अर्धयोजनपर्यन्तं गतानां कृष्णपाण्डवानां परस्परानुज्ञया स्वस्वपुरगमनम्।।2।।
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वैशम्पायन उवाच। | 2-2-1x |
उषित्वा खाण्डवप्रस्थे सुखवासं जनार्दनः। पार्थैः प्रीतिसमायुक्तैः पूजनार्होऽभिपूजितः।। | 2-2-1a 2-2-1b |
गमनाय मतिं चक्रे पितुर्दर्शनलालसः। धर्मराजमथामन्त्र्य पृथां च पृथुलोचनः।। | 2-2-2a 2-2-2b |
ववन्दे चरणौ मूर्ध्ना जगद्वन्द्यः पितृष्वसुः। स तया मूर्ध्न्युपाघ्रातः परिष्वक्तश्च केशवः।। | 2-2-3a 2-2-3b |
ददर्शानन्तरं कृष्णो भगिनीं स्वां महायशाः। तामुपेत्य हृषीकेशः प्रीत्या बाष्पसमन्वितः।। | 2-2-4a 2-2-4b |
अर्थ्यं तथ्यं हितं वाक्यं लघु युक्तमनुत्तरम्। उवाच भगवान्भद्रां सुभद्रां भद्रभाषिणीम्।। | 2-2-5a 2-2-5b |
तया स्वजनगामीनि श्रावितो वचनानि सः। सम्पूजितश्चाप्यसकृच्छिरसा चाभिवादितः।। | 2-2-6a 2-2-6b |
तामनुज्ञाय वार्ष्णेयः प्रतिनन्द्य च भामिनीम्। ददर्शानन्तरं कृष्णां धौम्यं चापि जनार्दनः।। | 2-2-7a 2-2-7b |
ववन्दे च यथान्यायं धौम्यं पुरुषसत्तमः। द्रौपदीं सान्त्वयित्वा च सुभद्रां परिदाय च।। | 2-2-8a 2-2-8b |
भ्रातृनभ्यगमद्विद्वान्पार्थेन सहितो बली। भ्रातृभिः पञ्चभिः कृष्णो वृतः शक्र इवामरैः।। | 2-2-9a 2-2-9b |
यात्राकालस्य योग्यानि कर्माणि गरुडध्वजः। कर्तुकामः शुचिर्भूत्वा स्नातवान्समलङ्कृतः।। | 2-2-10a 2-2-10b |
अर्चयामास देवांश्च द्विजांश्च यदुपुङ्गवः। माल्यजाप्यनमस्कारैर्गन्धैरुच्चावचैरपि।। | 2-2-11a 2-2-11b |
स कृत्वा सर्वकार्याणि प्रतस्थे तस्थुपां वरः। उपेत्य स यदुश्रेष्ठो बाह्यकक्षाद्विनिर्गतः।। | 2-2-12a 2-2-12b |
स्वस्ति वाच्यार्हतो विप्रान्दधिपात्रफलाक्षतैः। वसु प्रदाय च ततः प्रदक्षिणमथाकरोत्।। | 2-2-13a 2-2-13b |
काञ्चनं रथमास्थाय तार्क्ष्यकेतनमाशुगम्। गदाचक्रासिशार्ङ्गाद्यैरायुधैरावृतं शुभम्।। | 2-2-14a 2-2-14b |
सुतिथावथ नक्षत्रे मुहूर्ते च गुणान्विते। प्रययौ पुण्डरीकाक्षः शैब्यसुग्रीववाहनः।। | 2-2-15a 2-2-15b |
अन्वारुरोह चाप्येनं प्रेम्णा राजा युधिष्ठिरः। अपास्य चास्य यन्तारं दारुकं यन्तृसत्तमम्।। | 2-2-16a 2-2-16b |
अभीषून्सम्प्रजग्राह स्वयं कुरुपतिस्तदा। उपारुह्यार्जुनश्चाऽपि चामरव्यजनं सितम्।। | 2-2-17a 2-2-17b |
रुक्मदण्डं बृहद्बाहुर्विदुधाव प्रदक्षिणम्। तथैव भीमसेनोऽपि रथमारुह्य वीर्यवान्।। | 2-2-18a 2-2-18b |
`छत्रं शतशलाकं च दिव्यमाल्योपशोभितम्। वैडूर्यमणिदण्डं च चामीकरविभूषितम्। | 2-2-19a 2-2-19b |
दधार तरसा भीमः मुच्छत्रं शार्ङ्गधन्वने। भीमसेनार्जुनौ चापि यमावरिनिषूदनौ'।। | 2-2-20a 2-2-20b |
पृष्ठतोऽनुययुः कृष्णमृत्विक्पौरजनैर्वृता। स तथा भ्रातृभिः सर्वैः केशवः परवीरहा।। | 2-2-21a 2-2-21b |
अन्वीयमानः शुशुभे शिष्यैरिव गुरुः प्रियैः। `अभिमन्युं च सौभद्रं वृद्धैः परिवृतस्तथा।। | 2-2-22a 2-2-22b |
रथमारोप्य निर्यातो धौम्यो ब्राह्मणपुङ्गवः। इन्द्रप्रस्थमतिक्रम्य क्रोशमात्रं महाद्युतिः'। पार्थमामन्त्र्य गोविन्दः परिष्वज्य सुपीडितम् ।। | 2-2-23a 2-2-23b 2-2-32c |
युधिष्ठरं पूजयित्वा भीमसेनं यमौ तथा। परिष्वक्तो भृशं तैस्तु यमाभ्यामभिवादितः।। | 2-2-24a 2-2-24b |
योजनार्धमथो गत्वा कृष्णः परपुरञ्जयः। युधिष्ठिरं समामन्त्र्य निवर्तस्वेति भारत।। | 2-2-25a 2-2-25b |
ततोऽभिवाद्य गोविन्दः पादौ जग्राह धर्मवित्। उत्थाप्य धर्मराजस्तु मूर्ध्न्युपाघ्राय केशवम्।। | 2-2-26a 2-2-26b |
पाण्डवो यादवश्रेष्ठं कृष्णं कमललोचनम्। गम्यतामित्यनुज्ञाप्य धर्मराजो युधिष्ठिरः।। | 2-2-27a 2-2-27b |
ततस्तैः संविदं कृत्वा यथावन्मधुसूदनः। निवर्त्य च तथा कृच्छ्रात्पाण्डवान्सपदानुगान्।। | 2-2-28a 2-2-28b |
स्वां पुरीं प्रययौ हृष्टो यथा शक्रोऽमरावतीम्।। लोचनैरनुजग्मुस्ते तमादृष्टिपथात्तदा।। | 2-2-29a 2-2-29b |
मनोभिरनुजग्मुस्ते कृष्णं प्रीतिसमन्वयात्। अतृप्तमनसामेव तेषां केशवदर्शने।। | 2-2-30a 2-2-30b |
क्षिप्रमन्तर्दधे शौरिश्चक्षुषां प्रियदर्शनः। अकामा एव पार्थास्ते गोविन्दगमानसाः।। | 2-2-31a 2-2-31b |
निवृत्योपययुस्तूर्णं स्वं पुरं पुरुषर्षभाः। स्यन्दनेनाथ कृष्णोऽपि त्वरितं द्वारकामगात्।। | 2-2-32a 2-2-32b |
सात्वतेन च वीरेण पृष्ठतो यायिना तदा। दारुकेण च सूतेन सहितो देवकीसुतः। स गतो द्वारकां विष्णुर्गरुत्मानिव वेगवान्।। | 2-2-33a 2-2-33b 2-2-33c |
वैशम्पायन उवाच। | 2-2-34x |
निवृत्य धर्मराजस्तु सह भ्रातृभिरच्युतः। सुहृत्परिवृतो राजा प्रविवेश पुरोत्तमम्।। | 2-2-34a 2-2-34b |
विसृज्य सुहृदः सर्वान्भ्रातॄन्पुत्रांश्च धर्मराट्। मुमोद पुरुषव्याघ्रो द्रौपद्या सहितो नृप।। | 2-2-35a 2-2-35b |
केशवोपि मुदा युक्तः प्रविवेश पुरोत्तमम्। पूज्यमानो यदुश्रेष्ठैरुग्रसेनमुखैस्तथा।। | 2-2-36a 2-2-36b |
आहुकं पितरं वृद्धं मातरं च यशस्विनीम्। अभिवाद्य बलं चैव स्थितः कमललोचनः।। | 2-2-37a 2-2-37b |
प्रद्युम्नसाम्बनिशठांश्चरुदेष्णं गदं तथा। अनिरुद्धं च भानुं च परिष्वज्य जनार्दनः।। | 2-2-38a 2-2-38b |
स वृद्धैरभ्यनुज्ञातो रुक्मिण्या भवनं ययौ। `स तत्र भवने दिव्ये प्रमुमोद सुखी सुखम्।। | 2-2-39a 2-2-39b |
एतस्मिन्नन्तरे राजन्मयो दैत्याधिपस्तदा। विधिवत्कल्पयामास सभां धर्मसुताय वै।। | 2-2-40a 2-2-40b |
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि मन्त्रपर्वणि द्वितीयोऽध्यायः।। 2।। |
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