महाभारतम्-02-सभापर्व-091
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द्रौपदीवचनम्।। 1।। युधिष्ठिरेणैव द्रौपदीप्रश्नस्योत्तरं वक्तव्यमिति भीष्मवचनम्।। 2।।
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द्रौपद्युवाच।। | 2-91-1x |
पुरस्तात्करणीयं मे न कृतं कार्यमुत्तरम्। विह्वलाऽस्मि कृताऽनेन कर्षता बलिना बलात्।। | 2-91-1a 2-91-1b |
अभिवादं करोम्येषां कुरूणां कुरुसंसदि। न मे स्यादपराधोऽयं तदिदं न कृतं मया।। वैशम्पायन उवाच।। | 2-91-2a 2-91-2b 2-91-2c |
सा तेन च समाधूता दुःखेन च तपस्विनी। पतिता विललापेदं सभायामतथोचिता।। | 2-91-3a 2-91-3b |
द्रौपद्युवाच। | 2-91-4x |
स्वयंवरे यास्मि नृपैदृष्टा रङ्गे समागतैः। न दृष्टपूर्वा चान्यत्र साऽहमद्य सभां गता।। | 2-91-4a 2-91-4b |
यां न वायुर्न चादित्यो दृष्टवन्तौ पुरा गृहे। साऽहमद्य सभामध्ये दृष्टास्मि जनसंसदि।। | 2-91-5a 2-91-5b |
यां न मृष्यन्ति वातेन स्पृश्यमानां गृहे पुरा। स्पृश्यमानां सहन्तेऽद्य पाण्डवास्तां दूरात्मना।। | 2-91-6a 2-91-6b |
मृष्यन्ति कुरवश्चेमे मन्ये कालस्य पर्ययम्। स्नुषां दुहितरं चैव क्लिश्यमानामनर्हतीम्।। | 2-91-7a 2-91-7b |
किंन्वतः कृपणं भूयो यदहं स्त्री सती शुभा। सभामध्यं विगाहेऽद्य क्व नु धर्मो महीक्षिताम्।। | 2-91-8a 2-91-8b |
धर्म्यं स्त्रियं सभां पूर्वे न नयन्तीति नः श्रुतम्। स नष्टः कौरवेयेषु पूर्वो धर्मः सनातनः।। | 2-91-9a 2-91-9b |
कथं हि भार्या पाण्डुनां पार्षतस्य स्वसा सती। वासुदेवस्य च सखी पार्थिवानां सभामियाम्।। | 2-91-10a 2-91-10b |
तामिमां धर्मराजस्य भार्यां सदृशवर्णजाम्। ब्रूत दासीमदासीं वा तत्करिष्यामि कौरवाः। | 2-91-11a 2-91-11b |
अयं मां सुदृढं क्षुद्रः कौरवाणां यशोहरः. क्लिश्नाति नाहं तत्सोढुं क्षुद्रः कौरवाणां यशोहरः। | 2-91-12a 2-91-12b |
जितां वाऽप्यजितां वापि मन्यध्वं मां यथा नृपाः। तथा प्रत्युक्तमिच्छामि तत्करिष्यामि कौरवाः।। | 2-91-13a 2-91-13b |
भीष्म उवाच।। | 2-91-14x |
उक्तवानस्मि कल्याणि धर्मस्य परमा गतिः। लोके न शक्यते ज्ञातुमपि विज्ञैर्महात्मभिः।। | 2-91-14a 2-91-14b |
बलवांश्च यथा धर्मं लोके पश्यति पुरुषः।। स धर्मो धर्मवेलायां भवत्यभिहतः परः।। | 2-91-15a 2-91-15b |
न विवेक्तुं च ते प्रश्नमिमं शक्नोमि निश्चयात्। सूक्ष्मत्वाद्गहनत्वाच्च कार्यस्यास्य च गौरवात्।। | 2-91-16a 2-91-16b |
नूनमन्तः कुलस्यास्य भविता न चिरादिव। तथा हि कुरवः सर्वे लोभमोहपरायणाः।। | 2-91-17a 2-91-17b |
कुलेषु जाताः कल्याणि व्यसनैराहता भृशम्। धर्म्यान्मार्गान्न च्यवन्ते येषां नस्त्वं बधूः स्थिता।। | 2-91-18a 2-91-18b |
उपपन्नं च पाञ्चालि तवेदं वृत्तमीदृशम्। यत्कृच्छ्रमपि सम्प्राप्ता धर्ममेवान्ववेक्षसे।। | 2-91-19a 2-91-19b |
एते द्रोणादयश्चैव वृद्धा धर्मविदो जनाः। शून्यैः शरीरैस्तिष्ठन्ति गतासव इवानताः।। | 2-91-20a 2-91-20b |
युधिष्ठिरस्तु प्रश्नोऽस्मिन्प्रमाणमिति मे मतिः। अजितां वा जितां वेति स्वयं व्याख्यातुमर्हति।। | 2-91-21a 2-91-21b |
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि द्यूतपर्वणि एकनवतितमोऽध्यायः।।91 ।। |
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