महाभारतम्-02-सभापर्व-023
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कृष्णजरासन्धयोर्द्वेषकारणकथनम्।। 1।।
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जनमेजय उवाच। | 2-23-1x |
किमर्थं वैरिणावास्तामुभौ तौ कृष्णमागधौ। कथं च निर्जितः सङ्ख्ये जरासन्धेन माधवः।। | 2-23-1a 2-23-1b |
कश्च कंसो मागधस्य यस्य हेतोः स वैरवान्। एतदाचक्ष्व मे सर्वं वैशम्पायन तत्वतः।। | 2-23-2a 2-23-2b |
वैशम्पायन उवाच।। | 2-23-3x |
यादवानामन्ववाये वसुदेवो महामतिः। उदपद्यत वार्ष्णेयो ह्युग्रसेनस्य मन्त्रभृत्।। | 2-23-3a 2-23-3b |
उग्रसेनस्य कंसस्तु बभूव बलवान्सुतः। ज्येष्ठो बहूनां कौरव्य सर्वशस्त्रविशारदः।। | 2-23-4a 2-23-4b |
जरासन्धस्य दुहिता तस्य भार्याऽतिविश्रुता। राज्यशुक्लेन दत्ता सा जरासन्धेन धीमता।। | 2-23-5a 2-23-5b |
तदर्थमुग्रसेनस्य मधुरायां सुतस्तदा। अभिषिक्तस्तदाऽमात्यैः स वै तीव्रपराक्रमः।। | 2-23-6a 2-23-6b |
ऐश्वर्यबलमत्तस्तु स तदा बलमोहितः। निगृह्य पितरं भुङ्क्ते तद्राज्यं मन्त्रिभिः सह।। | 2-23-7a 2-23-7b |
वसुदेवस्य तत्कृत्यं न शृणोति स मन्दधीः। त तेन सह तद्राज्यं धर्मतः पर्यपालयत्।। | 2-23-8a 2-23-8b |
प्रीतिमान्स तु दैत्येन्द्रो वसुदेवस्य देवकीम्। वाह भार्या स तदा दुहिता देवकस्य या।। | 2-23-9a 2-23-9Bउ |
तस्यामुद्वाह्यमानायां रथेन जनमेजय। उपारुरोह वार्ष्णेयं कंसो भूमिपतिस्तदा।। | 2-23-10a 2-23-10b |
ततोऽन्तरिक्षे वागासीद्देवदूतस्य कस्यचित्। वसुदेवश्च शुश्राव तां वाचं पार्थिवश्च सः।। | 2-23-11a 2-23-11b |
यामेतां वहमानोऽद्य कंसोद्वहसि देवकीम्। अस्या यश्चाष्टमो गर्भः स ते मृत्युर्भविष्यति।। | 2-23-12a 2-23-12b |
सोऽवतीर्य ततो राजा खड्गमुद्धृत्य निर्मलम्। इयेष तस्या मूर्धानं छेत्तुं परमदुर्मतिः।। | 2-23-13a 2-23-13b |
सान्त्वयन्स तदा कंसं हसन्कोधवशानुगम्। राजन्ननुनयामास वसुदेवो महामतिः।। | 2-23-14a 2-23-14b |
अहिंस्यां प्रमदामाहुः सर्वधर्मेषु पार्थिव। अकस्मादबलां नारीं हन्तासीमामनागसीम्।। | 2-23-15a 2-23-15b |
यच्च तेऽत्र भयं राजञ्शक्यते बाधितुं त्वया। इयं शक्या पालयितुं समयं चैव रक्षितुम्।। | 2-23-16a 2-23-16b |
अस्यास्त्वमष्टमं गर्भं जातमात्रं महीपते। विध्वंसय तदा प्राप्तमेवं परिहृतं भवेत्।। | 2-23-17a 2-23-17b |
एवं स राजा कथितो वसुदेवेन भारत। तस्य तद्वचनं चके शूरसेनपतिस्तदा।। | 2-23-18a 2-23-18b |
ततस्तस्यां सम्बभूवुः कुमाराः सूर्यवर्चसः। जाताञ्चातांस्तु तान्सर्वाञ्जघान मधुरेश्वरः।। | 2-23-19a 2-23-19b |
अथ तस्यां समभवद्बलदेवस्तु सत्तमः। याम्यता मायया तं तु यमो राजा विशाम्पते।। | 2-23-20a 2-23-20b |
देवक्या गर्भमतुलं रोहिण्या जठरेऽक्षिपत्। आकृष्य कर्षणात्सम्यक्सङ्कर्षणं इति स्मृतः।। | 2-23-21a 2-23-21b |
बलश्रेष्ठतया तस्य बलदेव इति स्मृतः। पुनस्तस्यां समभवदष्टमो मधुमूदनः।। | 2-23-22a 2-23-22b |
तस्य गर्भस्य रक्षां तु स चक्रेऽभ्यधिकं नृपः। ततः काले रक्षणार्थं वसुदेवस्य तत्वतः।। aउग्रः प्रयुक्तः कंसेन सचिवः क्रूरकर्मकृत्।। | 2-23-23a 2-23-23b 45345 |
जातमात्रं वासुदेवमथाकृष्य पिता ततः। उपजह्रे परिक्रीतां सुतां गोपस्य कस्यचित्।। | 2-23-25a 2-23-25b |
अमृष्यमाणस्तं शब्दं देवदूतस्य पार्थिवः। वासुदेवं महात्मानमर्पयामास गोकुले।। | 2-23-26a 2-23-26b |
वासुदेवोपि गोपेषु ववृधेऽब्जमिवाम्भसि। अज्ञायमानः कंसेन गूढोऽग्निरिव दारुषु।। | 2-23-27a 2-23-27b |
विप्रचके तदा सर्वान्बल्लवान्मधुरेश्वरः। वर्धमानो महाबाहुस्तेजोबलसमन्वितः।। | 2-23-28a 2-23-28b |
ततस्ते क्लिश्यमानास्तु पुण्डरीकाक्षमच्युतम्। भयेन कामादपरे गणशः पर्यवारयन्।। | 2-23-29a 2-23-29b |
स तु लब्ध्वा बलं राजन्नुग्रसेनस्य संमतः। वसुदेवात्मजः सर्वैर्भ्रातृभिः सहितं पुनः।। | 2-23-30a 2-23-30b |
निर्जित्य युधि भोजेन्द्रं हत्वा कंसं महाबलः। अभ्यषिञ्चत्ततो राज्य उग्रसेनं विशाम्पते।। | 2-23-31a 2-23-31b |
ततः श्रुत्वा जरासन्धो माधवेन हतं युधि। शूरसेनाधिपं चक्रे कंसपुत्रं तदा नृप।। | 2-23-32a 2-23-32b |
ससैन्यं महदुत्थाप्य वासुदेवं तदा नृप। अभ्यषिञ्चत्सुतं तत्र सुताया जनमेजय।। | 2-23-33a 2-23-33b |
उग्रसेनं च वृष्णींश्च महाबलसमन्वितः। स तत्र विप्रकुरुते जरासन्धः प्रतापवान्।। | 2-23-34a 2-23-34b |
एतद्वैरं कौरवेय जरासन्धस्य माधवे। आशासितार्थे राजेन्द्र संरुरोध विनिर्जितान्।। | 2-23-35a 2-23-35b |
पार्थिवैस्तैर्नृपतिभिर्यक्ष्यमाणः समृद्धिमान्। देवश्रेष्ठं महादेवं कृत्तिवासं त्रियम्बकम्।। | 2-23-36a 2-23-36b |
एतत्सर्वं यथावृत्तं कथितं भरतर्षभ। यथा तु स हतो राजा भीमसेनेन तच्छृणु।। | 2-23-37a 2-23-37b |
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि जरासन्धवधपर्वणि त्रयोर्विंशोऽध्यायः।। 23।। |
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