महाभारतम्-02-सभापर्व-053
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कृष्णेन बालकैः सह विहृत्य कालियमर्दनम्।। 1।। बलरामेण धेनुकासुरहननम्।। 2।। कृष्णेन गोवर्धनोद्धरणम्।। 3।। अरिष्टासुरादिहननम्।। 4।।
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मधुरायां कंसं हत्वा पित्रोः पादाभिवन्दनम्।। 5।।
भीष्ण उवाच। | 2-53-1x |
ततः कदचिद्गोविन्दो ज्येष्ठं सङ्कर्षणं विना। चचार तद्वनं रम्यं सुस्वरूपो वराननः।। | 2-53-1a 2-53-1b |
काकपक्षधरः श्रीमाञ्छ्यामः पद्मनिभेक्षणः। श्रीवत्सेनोरसा युक्तः शशाङ्क इव लक्ष्मणा।। | 2-53-2a 2-53-2b |
रज्जुयज्ञोपवीती स पीताम्बरधरो युवा। श्वेतचन्द्रनलिप्राङ्गो नीलकुञ्चितमूर्धजः।। | 2-53-3a 2-53-3b |
राजता बर्हिपत्रेण मन्दमारुतकम्पिना। क्वचिद्गायन्क्वञ्चित्क्रीडन्क्वचिन्नृत्यन्क्वचिद्धसन्।। | 2-53-4a 2-53-4b |
गोपवेणुं सुमधुरं कामं तदपि वादयन्। प्रह्लादनार्थं च गवां क क्वचिद्वनगतो युवा।। | 2-53-5a 2-53-5b |
गोकुले मेघकाले तु चचार द्युतिमान्प्रभुः। बहुरम्येषु देशेषु वनस्य वनराजिपु।। | 2-53-6a 2-53-6b |
तासु कृष्णो मुदा युक्तः क्रीडयन्भरतर्षभ। स कदाचिद्वने तस्मिन्गोभिः सह परिव्रजन्।। | 2-53-7a 2-53-7b |
भाण्डीरं नाम दृष्ट्वाऽथ न्यग्रोधं केशवो महान्। तच्छायायां मतिं चक्रे निवासाय तदा प्रभुः।। | 2-53-8a 2-53-8b |
स तत्र वयसा तुल्यैर्बत्सपालैस्तदाऽनघ। रेमे स दिवसं कृष्णः पुरा स्वर्गगतो यथा।। | 2-53-9a 2-53-9b |
तं क्रीडमानं गोपालाः कृष्णं भाण्डीरवासिनः। रमयन्ति स्म बहवो मान्यैः क्रीडनकैस्तदा।। | 2-53-10a 2-53-10b |
अन्ये स्म परिगायन्ति गोपा मुदितमानसाः। गोपालकृष्णमेवान्ये गायन्ति स्म वनप्रियाः।। | 2-53-11a 2-53-11b |
तेषां सङ्गायतामेव वादयामास केशवः। पर्णवाद्यान्तरे वेणुं तुम्बवीणां च तत्र वै।। | 2-53-12a 2-53-12b |
एवं क्रीडान्तरैः कृष्णो गोपालैर्विजहार सः। तेन बालेन कौन्तेय कृतं लोकहितं तदा।। | 2-53-13a 2-53-13b |
पश्यतां सर्वभूतानां वासुदेवेन भारत। ह्रदे निपातता तत्र क्रीडितं नागमूर्धनि।। | 2-53-14a 2-53-14b |
शासयित्वा तु कालीयं सर्वलोकस्य पश्यतः। विजहार ततः कृष्णो बलेदवसहायवान्।। | 2-53-15a 2-53-15b |
धेनुको दारुणो राजन्दैत्यो रासभविग्रहः। तदा तालवने राजन्बलदेवेन वै हतः।। | 2-53-16a 2-53-16b |
ततः कदाचित्कौन्तेय रामकृष्णौ वनं गतौ। चारयन्तौ प्रवृद्धानि गोधनानि शुभाननौ।। | 2-53-17a 2-53-17b |
विहरन्तौ मुदा युक्तौ वीक्षमाणौ वनानि वै। श्वेलयन्तौ प्रगायन्तौ विचिन्वन्तौ च पादपान्।। | 2-53-18a 2-53-18b |
नामभिर्व्याहरन्तौ च वत्सान्गाश्च परन्तपौ। चेरतुर्लोकसिद्धाभिः क्रीडाभिरपराजितौ।। | 2-53-19a 2-53-19b |
तौ देवौ मानुषीं दीक्षां वहन्तौ सुरपूजितौ। तज्जातिगुणयुक्ताभिः क्रीडाभिश्चेरतुर्वनम्।। | 2-53-20a 2-53-20b |
एवं बाल्येऽपि गोपालैः क्रीडाभिश्च विजह्रतुः।। | 2-53-21a |
ततः कृष्णो महातेजास्तदा गत्वा तु गोव्रजम्। गिरियज्ञं तमेवैष प्रवृत्तं गोपदारकैः।। | 2-53-22a 2-53-22b |
बुभुजे पायसं शौरिरीश्वरः सर्वभूतकृत्। तं दृष्ट्वा गोपकाः सर्वे कृष्णमेव समर्चयन्।। | 2-53-23a 2-53-23b |
पूज्यमानस्तदा देवैर्दिव्यं वपुरधारयत्। धृतो गोवर्धनो नाम सप्ताहं पर्वतो धृतः।। | 2-53-24a 2-53-24b |
शिशुना वासुदेवेन गवार्थमरिमर्दन। क्रीडमानस्तदा कृष्णः कृतवान्कर्म दुष्करम्।। | 2-53-25a 2-53-25b |
तदद्भुतमतीवासीत्सर्वलोकस्य भारत। देवदेवः क्षितं गत्वा कृष्णं नत्वा मुदान्वितः। | 2-53-26a 2-53-26b |
गोविन्द इति तं ह्युक्त्वा ह्यभ्यषिञ्चत्पुरन्दरः। इत्युक्त्वाश्लिष्य गोविन्दं पुरुहूतोभ्ययाद्दिवम्।। | 2-53-27a 2-53-27b |
अथारिष्ट इति ख्यातं दैत्यं वृषभविग्रहम्। जघान तरसा कृष्णः पशूनां हितकाम्यया।। | 2-53-28a 2-53-28b |
केशिनामा ततो दैत्यो राजंस्तुरगविग्रहः। तथा वनगतं पार्थ गजायुतबलं हयम्।। | 2-53-29a 2-53-29b |
कराम्भोरुहवज्रेण जघान मधुसूदनः। अथ मल्लं तु चाणूरं निजघान महाऽसुरम्।। | 2-53-30a 2-53-30b |
सुदामानममित्रघ्न सर्वसैन्यपुरस्कृतम्। बालरूपेण गोविन्दो निजघान च भारत।। | 2-53-31a 2-53-31b |
बलदेवेन चायत्नात्समाजे मुष्टिको हतः। ताडितश्च सहामात्यः कंसः कृष्णेन भारत।। | 2-53-32a 2-53-32b |
हत्वा कंसममित्रघ्नः सर्वेषां पश्यतां तदा। अभिषिच्योग्रसेनं तं पित्रोः पादमवन्दत। | 2-53-33a 2-53-33b |
एवमादीनि कर्माणि कृतवान्वै जनार्दनः।। | 2-53-34a |
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि अर्घाहरणपर्वणि त्रिपञ्चाशोऽध्यायः।।53 ।। |
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