महाभारतम्-02-सभापर्व-011
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ब्रह्मसभावर्णनम्।।1।।
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नारद उवाच।। | 2-11-1x |
पितामहसभां तात कथ्यमानां निबोध मे। शक्यते या न निर्देष्टुमेवंरूपेति भारत।। | 2-11-1a 2-11-1b |
पुरा देवयुगे राजन्नादित्यो भगवान्दिवः। आगच्छन्मानुषं लोकं दिदृक्षुर्विगतक्लमः।। | 2-11-2a 2-11-2b |
चरन्मानुषरूपेण सभां दृष्ट्वा स्वयम्भुवः। स तामकथयन्मह्यं दृष्ट्वा तत्त्वेन पाण्डव।। | 2-11-3a 2-11-3b |
अप्रमेयां सभां दिव्यां मानसीं भरतर्षभ। अनिर्देश्यां प्रभावेण सर्वभूतमनोरमाम्।। | 2-11-4a 2-11-4b |
श्रुत्वा गुणानहं तस्याः सभायाः पाण्डवर्षभ। दर्शनेप्सुस्तथा राजन्नादित्यमिदमब्रुवम्। | 2-11-5a 2-11-5b |
भगवन्द्रष्टुमिच्छामि पितामहसभां शुभाम्। येन वा तपसा शक्या कर्मणा वाऽपि गोपते।। | 2-11-6a 2-11-6b |
औषधैर्या तथा युक्तैरुत्तमा पापनाशिनी। तन्ममाचक्ष्व भगवन्पश्येयं तां सभां यथा।। | 2-11-7a 2-11-7b |
स तन्मम वचः श्रुत्वा सहस्रांशुर्दिवाकरः। प्रोवाच भारतश्रेष्ठ व्रतं वर्षसहस्रकम्।। | 2-11-8a 2-11-8b |
ब्रह्मव्रतमुपास्स्व त्वं प्रयतेनान्तरात्मना। ततोऽहं हिमवत्पृष्ठे समारब्दो महाव्रतम्।। | 2-11-9a 2-11-9b |
ततः स भगवान्सूर्यो मामुपादाय वीर्यवान्। आगच्छत्तां सभां ब्राह्मीं विपाप्मा विगतक्लमः ? | 2-11-10a 2-11-10b |
एवंरूपेति सा शक्या न निर्देष्टुं नराधिप। क्षणेन हि बिभर्त्यन्यदनिर्देश्यं वपुस्तथा।। | 2-11-11a 2-11-11b |
न वेद परिमाणं वा संस्थानं चापि भारत। न च रूपं मया तादृक् दृष्टपूर्वं कदाचन।। | 2-11-12a 2-11-12b |
सुसुखा सा सदा राजन्न शीता न च घर्मदा। न क्षुत्पिपासे न ग्लानिं प्राप्यतां प्राप्तुवन्त्युत ।। | 2-11-13a 2-11-13b |
नानारूपैरिव कृता मणिभिः सा सुभास्वरैः। स्तम्भैर्न च धृता सा तु शाश्वती न च सा क्षरा ।। | 2-11-14a 2-11-14b |
दिव्यैर्नानाविधैर्भावैर्भासद्भिरमितप्रभैः।। | 2-11-15a |
अति चन्द्रं च सूर्यं च शिखिनं च स्वयम्प्रभा। दीप्यते नाकपृष्ठस्था भर्त्सयन्वीव भास्करम्।। | 2-11-16a 2-11-16b |
तस्यां स भगवानास्ते विदधद्देवमायया। स्वयमेकोऽनिशं राजन्सर्वलोकपितामहः।। | 2-11-17a 2-11-17b |
उपतिष्ठन्ति चाप्येनं प्रजानां पतयः प्रभुम्। दक्षः प्रचेताः पुलहो मरीचिः कश्यपः प्रभुः।। | 2-11-18a 2-11-18b |
भृगुरत्रिर्वसिष्ठश्च गौतमोऽथ तथाङ्गिराः। पुलस्त्यश्च कतुश्चैव प्रह्लादः कर्दमस्तथा। | 2-11-19a 2-11-19b |
अथर्वाङ्गिरसश्चैव वालखिल्या सरीचिपाः। मनोऽन्तरिक्षं विद्याश्च वायुस्तेजो जलं मही।। | 2-11-20a 2-11-20b |
शब्दस्पर्शौ तथा रूपं रसो गन्धश्च भारत। प्रकृतिश्च विकारश्च यच्चान्यत्कारणं भुवः।। | 2-11-21a 2-11-21b |
अगस्त्यश्च महातेजा मार्कण्डेयश्च वीर्यवान्। जमदग्निर्भरद्वाजः संवर्तश्च्यवनस्तथा।। | 2-11-22a 2-11-22b |
दुर्वासाश्च महाभाग ऋष्णशृङ्गश्च धार्मिकः। सनत्कुमारो भगवान्योगाचार्यो महातपाः।। | 2-11-23a 2-11-23b |
असितो देवलश्चैव जैगीषव्यश्च तत्त्ववित्। ऋषभो जितशत्रुश्च महावीर्यस्तथा मणिः।। | 2-11-24a 2-11-24b |
आयुर्वेदस्तथाऽष्टाङ्गो देहवांस्तत्र भारत। चन्द्रमाः सह नक्षत्रैरादित्यश्च गभस्तिमान्।। | 2-11-25a 2-11-25b |
वायवः क्रतवश्चैव सङ्कल्पः प्राण एव च। मूर्तिमन्तो महात्मानो महाव्रतपरायणाः।। | 2-11-26a 2-11-26b |
एते चान्ये च बहवो ब्रह्माणं समुपस्थिताः। अर्थो धर्मश्च कामश्च हर्षो द्वेषस्तपो दमः।। | 2-11-27a 2-11-27b |
आयान्ति तस्यां सहिता गन्धर्वाप्सरसां गणाः। विंशतिः सप्त चैवान्ये लोकपालाश्च सर्वशः।। | 2-11-28a 2-11-28b |
शुक्रो बृहस्पतिश्चैव बुधोऽङ्कारक एव च। शनैश्चरश्च राहुश्च ग्रहाः सर्वे तथैव च।। | 2-11-29a 2-11-29b |
मन्त्रो रथन्तरं चैव हरिमान्वसुमानपि। आदित्याः साधिराजानो नामद्वन्द्वैरुदाहृताः।। | 2-11-30a 2-11-30b |
मरुतो विश्वकर्मा च वसवश्चैव भारत। तथा पितृगणाः सर्वे सर्वाणि च हवींष्यथ।। | 2-11-31a 2-11-31b |
ऋग्वेदः सामवेदश्च यजुर्वेदश्च पाण्डव। अथर्ववेदश्च तथा सर्वशास्त्राणि चैव ह।। | 2-11-32a 2-11-32b |
इतिहासोपवेदाश्च वेदाङ्गानि च सर्वशः। ग्रहा यज्ञाश्च सोमश्च देवताश्चापि सर्वशः।। | 2-11-33a 2-11-33b |
सावित्री दुर्गतरणी वाणी सप्तविधा तथा। मेधा धृतिः श्रुतिश्चैव प्रज्ञा बुद्धिर्यशः क्षमा।। | 2-11-34a 2-11-34b |
सामानि स्तुतिशस्त्राणि गाथाश्च विविधास्तथा। भाष्याणि तर्कयुक्तानि देहवन्ति विशाम्पते।। | 2-11-35a 2-11-35b |
नाटका विविधाः काव्याः कथाख्यायिकारिकाः । तत्रतिष्ठन्ति ते पुण्या ये चान्ये गुरुपूजकाः।। | 2-11-36a 2-11-36b |
क्षणा लवा मुहूर्ताश्च दिवा रात्रिस्तथैव च। अर्धमासाश्च मासाश्च ऋतवः षट् च भारत।। | 2-11-37a 2-11-37b |
संवत्सराः पञ्ययुगमहोरात्रश्चतुर्विधः। कालचक्रं च तद्दिव्यं नित्यमक्षयमव्ययम्।। | 2-11-38a 2-11-38b |
धर्मचक्रं तथा चापि नित्यमास्ते युधिष्ठिर। अदितिर्दितिर्दनुश्चैव सुरसा विनता इरा।। | 2-11-39a 2-11-39b |
कालिका सुरभी देवी सरमा चाथ गौतमी।। | 2-11-40a |
प्रभा कद्रूश्च वै देव्यौ देवतानां च मातरः। रुद्राणी श्रीश्च लक्ष्मीश्च भद्रा षष्ठी तथाऽपरा।। | 2-11-41a 2-11-41b |
पृथिवी गां गता देवी ह्रीः स्वाहा कीर्तिरेव च। सुरा देवी शची चैव तथा पुष्टिररुन्धती।। | 2-11-42a 2-11-42b |
संवृत्तिराशा नियतिः सृष्टिर्देवी रतिस्तथा। एताश्चान्याश्चवै देव्य उपतस्थुः प्रजापतिम्।। | 2-11-43a 2-11-43b |
आदित्या वसवो रुद्रा मरुतश्चास्विनावपि। विश्वेदेवाश्च साध्याश्च पितरश्च मनोजवाः।। | 2-11-44a 2-11-44b |
पितृणां च गणान्विद्धि सप्तैव पुरुषर्षभ। मूर्तिमन्तो वै चत्वारस्त्रयश्चापि शरीरिणः।। | 2-11-45a 2-11-45b |
वैराजश्च महाभागा अग्निष्वात्ताश्च भारत। गार्हपत्या नाकचराः पितरो लोकविश्रुताः।। | 2-11-46a 2-11-46b |
सोमपा एकशृङ्गाश्च चतुर्वेदाः कलास्तथा। एते चतुर्षु वर्णेषु पूज्यन्ते पितरो नृप।। | 2-11-47a 2-11-47b |
एतैराप्यायितैः पुर्वं सोमश्चाप्याय्यते पुनः। त एते पितरः सर्वे प्रजापतिमुपस्थिताः।। | 2-11-48a 2-11-48b |
उपासते च संहृष्टा ब्रह्माणममितौजसम्। राक्षसाश्च पिशाचाश्च दानवा गुह्यकास्तथा।। | 2-11-49a 2-11-49b |
नागाः सुपर्णाः पशवः पितामहमुपासते। स्थावरा जङ्गमाश्चैव महाभूतास्तथाऽपरे।। | 2-11-50a 2-11-50b |
पुरन्दरश्च देवेन्द्रो वरुणो धनदो यमः। महादेवः सहोमोऽत्र सदा गच्छति सर्वशः।। | 2-11-51a 2-11-51b |
महासेनश्च राजेन्द्र सदोपास्ते पितामहम्। देवो नारायणस्तस्यां तथा देवर्षयश्च ये।। | 2-11-52a 2-11-52b |
ऋषयो वालखिल्याश्च योनिजायोनिजास्तथा। यच्च किञ्चित्रिलोकेऽस्मिन्दृश्यते स्थाणु जङ्गमम्। सर्वं तस्यां मया दृष्टमिति विद्धि नराधिप।। | 2-11-53a 2-11-53b 2-11-53c |
अष्टाशीतिसहस्राणि ऋषीणामूर्ध्वरेतसाम्। प्रजावतां च पञ्चाशदृषीणामपि पाण्डव।। | 2-11-54a 2-11-54b |
ते स्म तत्र यथाकामं दृष्ट्वा सर्वे दिवौकसः। प्रणम्य शिरसा तस्मै सर्वे यान्ति यथागमम्।। | 2-11-55a 2-11-55b |
अतिथीनागतान्देवान्दैत्यान्नागांस्तथा द्विजान्। यक्षान्मुपर्णान्कालेयान्गन्धर्वाप्सरसस्तथा।। | 2-11-56a 2-11-56b |
महाभागानमितधीर्ब्रह्मा लोकपितामहः। दयावान्सर्वभूतेषु यथार्हं प्रतिपद्यते।। | 2-11-57a 2-11-57b |
प्रतिगृह्य तु विश्वात्मा स्वयं स्वयम्भूरमितद्युतिः। सान्त्वमानार्थसम्भोगैर्युनक्ति मनुजाधिप।। | 2-11-58a 2-11-58b |
तथा तैरुपयातैश्च प्रतियद्भिश्च भारत। आकुला सा सभातात भवति स्म सुखप्रदा।। | 2-11-59a 2-11-59b |
सर्वतेजोमयी दिव्या ब्रह्मर्षिगणसेविता। ब्राहया श्रिया दीप्यमाना शुशुभे विगतक्लमा।। | 2-11-60a 2-11-60b |
सा सभा तादृशी दृष्टा मया लोकेषु दुर्लभा। सभेयं राजशार्दूल मनुष्येषु यथा तव।। | 2-11-61a 2-11-61b |
एता मया दृष्टपूर्वाः सभा देवेषु भारत। सभेयं मानुषे लोके सर्वश्रेष्ठतमा तव।। | 2-11-62a 2-11-62b |
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि मन्त्रपर्वणि एकादशोऽध्यायः।। 11।। |
2-11-2 देवयुगे कृतयुगे।।
2-11-30 मामद्वन्द्वैरग्नीषोमेन्द्राभ्यादिभिः।। 2-11-38 संवत्सराः षष्टिः प्रभवादयः। तेच पञ्चपञ्च एकैकं युगम्। चतुर्विधो मानुषोऽ होरात्रः षष्टिघटिकाभिः। पैत्रो मासेन। दैवो वत्सरेण। ब्राह्मः कल्पेनेति। कालचक्रं द्वादशराश्यात्मकम्।।
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