महाभारतम्-02-सभापर्व-066
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भीष्मेण शिशुपालवृत्तान्तकथनपूर्वकं स्वेन भीमनिषेधने स्वाभिप्रायाविष्करणम्।। 1।।
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भीष्म उवाच।। | 2-66-1x |
चेदिराजकुले जातख्यक्ष एष चतुर्भुजः। रासभारावसदृशं ररास च ननाद च।। | 2-66-1a 2-66-1b |
तेनास्य मातापितरौ त्रेसतुस्तौ सबान्धवौ। वैकृतं तस्यत तौ दृष्ट्वा त्यागायाकुरुतां मतिम्।। | 2-66-2a 2-66-2b |
ततः सभार्यं नृपतिं सामात्यं सपुरोहितम्। चिन्तासंमूढहृदयं वागुवाचाशरीरेणी।। | 2-66-3a 2-66-3b |
एष ते नृपते पुत्रः श्रीमाञ्जातो बलाधिकः। तस्मादस्मान्न भेतव्यमव्यग्रः पाहि वै शिशुम्।। | 2-66-4a 2-66-4b |
न च वै तस्य मृत्युस्त्वं न कालः प्रत्युपस्थितः। यश्च शस्त्रेण हन्ताऽस्य स चोत्पन्नो नराधिप।। | 2-66-5a 2-66-5b |
संश्रुत्योदाहृतं वाक्यं भूतमन्तर्हितं ततः। पुत्रस्नेहाभिसन्तप्ता जननी वाक्यमब्रवीत्।। | 2-66-6a 2-66-6b |
येनेदमीरितं वाक्यं ममैतं तनयं प्रति। प्राञ्जलिस्तं नमस्यामि ब्रवीतु स पुनर्वचः।। | 2-66-7a 2-66-7b |
याथातथ्येन भगवान्देवो वा यदि वेतरः। श्रोतुमिच्छामि पुत्रस्य कोऽस्य मृत्युर्भविष्यति।। | 2-66-8a 2-66-8b |
अन्तर्भूतं ततो भूतमुवाचेदं पुनर्वचः। यस्योत्सङ्गे गृहीतस्य भुजावभ्यधिकावुभौ।। | 2-66-9a 2-66-9b |
पतिष्यतः क्षितितले पञ्चशीर्षाविवोरगौ। तृतीयमेतद्बालस्य ललाटस्थं तु लोचनम्।। | 2-66-10a 2-66-10b |
निमज्जिष्यति यं दृष्ट्वा सोऽस्य मृत्युर्भविष्यति। त्र्यक्षं चतुर्भुजं श्रुत्वा तथा च समुदाहृतम्।। | 2-66-11a 2-66-11b |
पृथिव्यां पार्थिवाः सर्वे अभ्यागच्छन्दिदृक्षवः। तान्पूजयित्वा सम्प्राप्तान्यथार्हं स महीपतिः।। | 2-66-12a 2-66-12b |
एकैकस्य नृपस्याङ्के पुत्रमारोपयत्तदा। एवं राजसहस्राणा पृथक्त्वेन यथाक्रमम्।। | 2-66-13a 2-66-13b |
शिशुरङ्के समारूढो न तत्प्राय निदर्शनम्। एतदेव तु संश्रुत्य द्वारवत्यां महाबलौ।। | 2-66-14a 2-66-14b |
ततश्चेदिपुरं प्राप्तौ सङ्कर्षणजनार्दनौ। यादवौ यादवीं द्रुष्टुं स्वसारं तौ पितुस्तदा।। | 2-66-15a 2-66-15b |
अभिवाद्य यथान्यायं यथाश्रेष्ठं नृपं च ताम्। कुशलानामयं पृष्ट्वा निषण्णौ रामकेशवौ।। | 2-66-16a 2-66-16b |
साऽभ्यर्च्य तौ तदा वीरौ प्रीत्या चाभ्यधिकं ततः। पुत्रं दामोदरोत्सङ्गे देवी संन्यदधात्स्वयम्।। | 2-66-17a 2-66-17b |
न्यस्तमात्रस्य तस्याङ्के भुजावभ्यधिकावुभौ। पेततुस्तच्च नयनं न्यमज्जत ललाटजम्।। | 2-66-18a 2-66-18b |
तद्दृष्ट्वा व्यथिता त्रस्ता वरं कृष्णमयाचत। ददस्व मे वरं कृष्ण भयार्ताया महाभुज।। | 2-66-19a 2-66-19b |
त्वं ह्यार्तानां समाश्वासो भीतानामभयप्रदः। एवमुक्तस्ततः कृष्णः सोऽब्रवीद्यदुनन्दनः।। | 2-66-20a 2-66-20b |
मा भैस्त्वं देवि धर्मज्ञे न मत्तोऽस्ति भयं तव। ददामि कं वरं किं च करवाणि पितृष्वसः।। | 2-66-21a 2-66-21b |
शक्यं वा यदि वाऽशक्यं करिष्याणि वचस्तव। एवमुक्ता ततः कृष्णमब्रवीद्यदुनन्दनम्।। | 2-66-22a 2-66-22b |
शिशुपालस्यापराधान्क्षमेथास्त्वं महाबल। मत्कृते यदुशार्दूल विद्ध्येनं मे वरं प्रभो।। | 2-66-23a 2-66-23b |
कृष्ण उवाच। | 2-66-24x |
अपराधशतं क्षाम्यं मया ह्यस्य पितृष्वसः। पुत्रस्य ते वधार्हस्य मा त्वं शोके मनः कृथाः।। | 2-66-24a 2-66-24b |
भीष्म उवाच। | 2-66-25x |
`स जानन्नात्मनो मृत्युं कृष्णं यदुसुखावहम्'। एवमेष नृपः पापः शिशुपाः सुमन्दधीः। त्वां समाह्वयते वीर गोविन्दवरदर्पितः।। | 2-66-25a 2-66-25b 2-66-25c |
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि शिशुपालवधपर्वणि षट्षष्टितमोऽध्यायः।। 66 ।। |
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