महाभारतम्-02-सभापर्व-096
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दुर्योधनेन धृतराष्ट्रसमीपे कार्तवीर्यार्जुनोपाख्यानकथनम्।। 1।।
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जनमेजय उवाच।। | 2-96-1x |
अनुज्ञातांस्तान्विदित्वा सरत्नधनसञ्जयान्। पाण्डवान्धार्तराष्ट्राणां कथमासीन्मनस्तदा।। | 2-96-1a 2-96-1b |
वैशम्पायन उवाच।। | 2-96-2x |
अनुज्ञातांस्तान्विदित्वा धृतराष्ट्रेण धीमता। राजन्दुः शासनः क्षिप्रं जगाम भ्रातरं प्रति।। | 2-96-2a 2-96-2b |
दुर्योधनं समासाद्य सामात्यं भरतर्षभ। दुःखार्तो भरतश्रेष्ठ इदं वचनमब्रवीत्।। | 2-96-3a 2-96-3b |
दुःशासन उवाच।। | 2-96-4x |
दुःखेनैतत्समानीतं स्थविरो नाशयत्यसौ। शत्रुसाद्गमयद्द्रव्यं तद्बुध्यध्वं महारथाः।। | 2-96-4a 2-96-4b |
अथ दुर्योधनः कर्णः शकुनिश्चापि सौबलः। मिथः सङ्गम्य सहिताः पाण्डवान्प्रति मानिनः।। | 2-96-5a 2-96-5b |
वैचित्रवीर्यं राजानं धृतराष्ट्रं मनीषिणम्। अभिगम्य त्वरायुक्ताः श्लक्ष्णं वचनमब्रुवन्।। | 2-96-6a 2-96-6b |
दुर्योधन उवाच।। | 2-96-7x |
न त्वयेदं श्रुतं राजन्यज्जगाद बृहस्पतिः। शक्रस्य नीतिं प्रवदन्विद्वान्देवपुरोहितः।। | 2-96-7a 2-96-7b |
सर्वोपायैर्निहन्तव्याः शत्रवः शत्रुसूदन। पुरा युद्धाद्बलाद्वापि प्रकुर्वन्ति तवाहितम्।। | 2-96-8a 2-96-8b |
ते वयं पाण्डवधनैः सर्वान्सम्पूज्य पार्थिवान्। यदि तान्योधयिष्यामः किं वै निः परिहास्यति।। | 2-96-9a 2-96-9b |
अहीनाशीविषान्क्रुद्धान्नाशाय समुपस्थितान्। कृत्वा कण्ठे च पृष्ठे च कः समुत्स्रष्टुमर्हति।। | 2-96-10a 2-96-10b |
आत्तशस्त्रा रथगताः कुपितास्तात पाण्डवाः। निःशेषान्नः करिष्यन्ति क्रुद्धा ह्याशीविषा इव।। | 2-96-11a 2-96-11b |
सन्नद्धो ह्यर्जुनो याति विधृत्य परमेषुधी। गाण्डीवं मुहुरादत्ते निःश्वसंश्च निरीक्षते।। | 2-96-12a 2-96-12b |
गदां गुर्वी समुद्यम्य त्वरितश्च वृकोदरः। स्वरथं योजयित्वाऽशु निर्यात इति नः श्रुतम्।। | 2-96-13a 2-96-13b |
नकुलः खह्गमादाय चर्म चाप्यर्धचन्द्रवत्। सहदेवश्च राजा च चक्रुराकारमिङ्गितैः।। | 2-96-14a 2-96-14b |
ते त्वास्थाय रथान्सर्वे बहुशस्त्रपरिच्छदान्। अभिघ्नान्तो रथव्रातान्सेनायोगाय निर्ययुः।। | 2-96-15a 2-96-15b |
न क्षंस्यन्ते तथाऽस्माभिर्जातु विप्रकृता हि ते। द्रौपद्याश्च परिक्लेशं कस्तेषां क्षन्तुमर्हति।। | 2-96-16a 2-96-16b |
`न पश्यामि रणे क्रद्धुं बीभत्सुं प्रतिवारणम्। भीष्मो द्रोणश्च कर्णश्च द्रौणिश्च रथिनां वरः।। | 2-96-17a 2-96-17b |
कृपश्च वृषसेनश्च विकर्णश्च जयद्रथः। वाह्लीकः सोमदत्तश्च भूरिर्भूरिश्रवाः शलः।। | 2-96-18a 2-96-18b |
शकुनिः ससुतश्चैव नृपाश्चान्ये च कौरवाः। नैते सर्वे रणोद्युक्ताः पार्थं सोढुमशक्नुवन्।। | 2-96-19a 2-96-19b |
अर्जुनेन समो लोके नास्ति वीर्ये धनुर्धरः। योऽर्जुनेनार्जुनस्तुल्यो द्विबाहुर्बहुबाहुना।। | 2-96-20a 2-96-20b |
धृतराष्ट्र उवाच।। | 2-96-21x |
कस्त्वयोक्तः पुमान्वीरो बीभत्सुसमविक्रमः। तं ये व्रूहि महावीर्यं श्रोतुमिच्छामि पुत्रक।। | 2-96-21a 2-96-21b |
दुर्योधन उवाच।। | 2-96-22x |
कार्तवीर्यस्य चरितं शृणु राजन्महात्मनः। अव्यक्तप्रभवो ब्रह्मा सर्वलोकपितामहः।। | 2-96-22a 2-96-22b |
ब्रह्मणोऽत्रिः सुतो विद्वानत्रेः पुत्रो निशाकरः। सोमस्य तदु बुधः पुत्रो बुधस्य तु पुरूरवाः।। | 2-96-23a 2-96-23b |
तस्याप्यध सुतोऽप्यायुरायोस्तु नहुषः सुतः। नहुशस्य ययातिस्तु ययातेस्तनुजो यदुः? | 2-96-24a 2-96-24b |
यदोः पुत्रो महाराज सहस्रैजेति विश्रुतः। सहसौजसुतो राजञ्छक्रदासेति विश्रुतः? | 2-96-25a 2-96-25b |
शक्रदानस्य दायादो हेहयो नाम पार्थिवः। हेहयस्याभवत्पुत्रो धर्मनेत्र इति श्रुतः? | 2-96-26a 2-96-26b |
धर्मनेत्रस्य तु कृती कृतवीर्यस्तु कार्तिजः। कृतवीर्यस्य तनयो ह्यर्जुनो बलिनां वरः? | 2-96-27a 2-96-27b |
स चार्जुनो महाराज तपो घोरं चकार ह। साग्रं वर्षायुतं जज्ञ इत्येवं मे श्रुतं पुरा? | 2-96-28a 2-96-28b |
तथेयं पृथिवी राजन्सप्तद्वीपा सपत्तना। ससमुद्राकरा तात विधिनोग्रेण वै जिता? | 2-96-29a 2-96-29b |
स चार्जुनोऽथ तेजस्वी तपः परमदुश्चरम्। दत्तमाराधयामास सोऽर्जुनोऽत्रिसुतं मुनिम्।। | 2-96-30a 2-96-30b |
तस्य दत्तो वरान्प्रादाच्चतुरः पार्थिवस्य वै। पूर्वं बाहुसहस्रं तु प्रार्थितः परमो वरः।। | 2-96-31a 2-96-31b |
अधर्मे प्रीयमाणस्य सद्भिस्तत्र निवारणम्। धर्मेण पृथिवीं जित्वा धर्मेणैव हि रञ्जनम्।। | 2-96-32a 2-96-32b |
सङ्ग्रामान्सुबहून्कृत्वा हत्वा चारीन्सहस्रशः। सङ्ग्रामे यतमानस्य वधश्चैवाधिकाद्रणै।। | 2-96-33a 2-96-33b |
तस्य बाहुसहस्रं तु युध्यतः किल भारत। रथो ध्वजश्च सञ्जज्ञ इत्येवं मे श्रुतं परा।। | 2-96-34a 2-96-34b |
तथेयं पृथिवी राजन्त्सप्तद्वीपा सपत्तना। ससमुद्राकरा तात विधिनोग्रेण वै जिता।। | 2-96-35a 2-96-35b |
चार्जुनोऽथ तेजस्वी सप्तद्वीपेश्वरो।़भवत्। च राजा महायज्ञानाजहार महाबलः। प्रशशास महाबाहुर्महीं स च समा बहूः।। | 2-96-36a 2-96-36b 2-96-36c |
ततोऽर्जुनः कदाचिद्वै राजन्माहिष्मतीपतिः। नर्मदां भरतश्रेष्ठं तां तु दारैर्ययौ सह।। | 2-96-37a 2-96-37b |
ततस्तां स नदीं गत्वा प्रविश्यन्तर्जले तदा। कर्तुं राजञ्जलक्रीडां ततो राजोपचक्रमे।। | 2-96-38a 2-96-38b |
तस्मिन्नेव ततः काले रावमो राक्षसैः सह। लङ्काया ईश्वरस्तात तं देशं प्रययौ बली।। | 2-96-39a 2-96-39b |
ततस्तमर्जुनं दृष्ट्वा नर्मदायां दशाननः। नित्यं क्रोधपरो धीरो वरदानेन मोहितः।। | 2-96-40a 2-96-40b |
अभ्यघावत्सुसङ्क्रुद्धो महेन्द्रं शम्बरो यथा। अर्जुनोऽप्यथ तं दृष्ट्वा रावणं प्रत्यवारयत्।। | 2-96-41a 2-96-41b |
ततस्तौ चक्रतुर्युद्धं रावणश्चार्जुनश्च वै। ततस्तु दुर्जयं वीरं वरदानेन दर्पितम्।। | 2-96-42a 2-96-42b |
राक्षसेन्द्रं मनुष्येन्द्रो जित्वा बध्वा रणे बलात्। बध्वा धनुर्ज्यया राजन्विवेशाथ पुरीं स्वकाम्।। | 2-96-43a 2-96-43b |
स तु तं बन्धितं श्रुत्वा पुलस्त्यो रावणं तदा। मोक्षयाणास बन्धाद्वै पुरे दृष्ट्वाऽर्जुनं तदा।। | 2-96-44a 2-96-44b |
ततः कदाचित्तेजस्वी कार्तवीर्योर्जुनो बली। समुद्रतीरं गत्वाथ विरचन्दर्पमोहितः।। | 2-96-45a 2-96-45b |
अवाकिरच्छितशरैः समुद्रं स तु भारत। तं समुद्रो नमस्कृत्य कृताञ्जलिरभाषत।। | 2-96-46a 2-96-46b |
आशुगान्वीर मा मुञ्च ब्रूहि किं करवाणि ते। मदाश्रयाणि सत्वानि त्वद्विसृष्टैर्महेषुभिः। बाध्यन्ते राजशार्दूल तेभ्यो देह्यभयं विभो।। | 2-96-47a 2-96-47b 2-96-47c |
अर्जुन उवाच।। | 2-96-48x |
देहि सिन्धुपते युद्धमद्यैव त्वरया मम। अथवा पीडयामि त्वां तस्मात्त्वं कुरु माचिरम्।। | 2-96-48a 2-96-48b |
समुद्र उवाच।। | 2-96-49x |
लोके राजन्महावीर्या बहवो निवसन्ति ये। तेषामेकेन राजेन्द्र कुरु युद्धं महाबल।। | 2-96-49a 2-96-49b |
अर्जुन उवाच।। | 2-96-50x |
मत्समो यदि सङ्ग्रामे वरायुधधरः क्वचित्। विद्यते तं ममाचक्ष्व यः समासेत मा मृधे।। | 2-96-50a 2-96-50b |
समुद्र उवाच।। | 2-96-51x |
महर्षिर्जमदग्निस्तु यदि राजन्परिश्रुतः। तस्य पुत्रो रणं दातुं यथावद्वै तवार्हति।। | 2-96-51a 2-96-51b |
दुर्योधन उवाच।। | 2-96-52x |
समुद्रस्य वचः श्रुत्वा राजा माहिष्मतीपतिः। नारदस्य च वै पूर्वं क्रोधेन महता वृतः।। | 2-96-52a 2-96-52b |
ततः प्रतिययौ शीघ्रं क्रोधेन सह भारत। स तमाश्रममागत्य काममेवान्वपद्यत।। | 2-96-53a 2-96-53b |
स कामं प्रतिकूलानि चकार सह बन्धुभिः। आयासं जनयामास रामस्य स महात्मनः।। | 2-96-54a 2-96-54b |
ततस्तेजः प्रजज्वाल रामस्यामिततेजसः। प्रदहन्निव सैन्यानि रश्मिमानिव तेजसा।। | 2-96-55a 2-96-55b |
अथ तौ चक्रतुर्युद्धं वृत्रवासवयोरिव।। | 2-96-56a |
ततः परशुमादाय नृपं बाहुसहस्रिणम्। चिच्छेद सहसा रामो बहुशाखमिव द्रुमम्।। | 2-96-57a 2-96-57b |
तं हतं पतितं दृष्ट्वा समेतास्तस्य बान्धवाः। असीनादाय शक्तीश्च रामं ते प्रत्यवारयन्।। | 2-96-58a 2-96-58b |
रामोऽपि रथमास्थाय धनुरायम्य सत्वरः। विसृजन्परमास्त्राणि व्यधमत्पार्थिवान्बली।। | 2-96-59a 2-96-59b |
ततस्तु क्षत्रिया राजञ्जामदग्न्यभयार्दिताः। विविशुर्गिरिदुर्गाणि मृगाः सिंहभयादिव।। | 2-96-60a 2-96-60b |
तेषां स्वविहितं कर्म तद्भयान्नानुतिष्ठति। प्रजा वृषलतां प्राप्ता ब्राह्मणानामदर्शनात्।। | 2-96-61a 2-96-61b |
तथा च द्रविडाः काचाः पुण्डाश्च शबरैः सह। वृषलत्वं परिगता विच्छिन्नाः क्षत्रधर्मिणः।। | 2-96-62a 2-96-62b |
ततस्तु हतवीरासु क्षत्रियासु पुनः पुनः। द्विजैरभ्युदितं क्षत्रं तानि रामो निहत्य च।। | 2-96-63a 2-96-63b |
ततस्त्रिस्मप्तमे याते रामं वागशरीरिणी। दिव्या प्रोवाच मधुरा सर्वलोकपरिश्रुता।। | 2-96-64a 2-96-64b |
रामराम निवर्तस्व स्वगुणं नात्र पश्यसि। क्षत्रबन्धूनिमान्प्रामैर्विप्रयुज्य पुनः पुनः।। | 2-96-65a 2-96-65b |
तथैव तं महात्मानमृचीकप्रमुखास्तथा। रामराम महावीर्य निवर्तस्वेत्यथाब्रुवन्।। | 2-96-66a 2-96-66b |
पितुर्वधमसमृष्यंस्तु रामः प्रोवाच तानृषीन्। नार्हा हन्त भवन्तो मां निवारयितुमित्युत।। | 2-96-67a 2-96-67b |
पितर ऊचुः। | 2-96-68x |
नार्हसि क्षत्रबन्धूंस्त्वं निहन्तुं जयतां वर। न हि युक्तं त्वया तात ब्राह्मणेनसता नृपान्।। | 2-96-68a 2-96-68b |
दुर्योधन उवाच।। | 2-96-69x |
पितॄणां वचनं श्रुत्वा क्रोधं त्यक्त्वा स भार्गवः। अश्वमेधसहस्राणि नरमेधशतानि च।। | 2-96-69a 2-96-69b |
इष्ट्वा सागरपर्यन्तां काश्यपाय ददौ महीम्। तेन रामेण सङ्ग्रामे तुल्यस्तात दयञ्जयः।। | 2-96-70a 2-96-70b |
कार्तवीर्येण च रणे तुल्यः पार्थो न संशयः। रणे विक्रम्य राजेन्द्र पार्थं जेतुं न शक्यते।। | 2-96-71a 2-96-71b |
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि अनुद्यूतपर्वणि षण्णवतितमोऽध्यायः।।96 ।। |
2-96-4 गमयत् अगमयत्।।
2-96-9 परिहास्यति नङ्क्ष्यति।।
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