महाभारतम्-14-आश्वमेधिकपर्व-001
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गङ्गायां भीष्मायोदकदानानन्तरं बन्धुशोकविषण्णं युधिष्ठिरंप्रति धृतराष्ट्रेण समाश्वासनम्।। 1 ।। तथा विदुरवचनानादरेण स्वस्यैतादृशानर्थप्राप्तिकथनम्।। 2 ।।
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श्रीवेदव्यासाय नमः। | 14-1-1x |
नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्। देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत्।। | 14-1-1a 14-1-1b |
वैशम्पायन उवाच। | 14-1-2x |
कृतोदकस्तु राजानं धृतराष्ट्रं युधिष्ठिरः। पुरस्कृत्य महाबाहुरुत्तताराकुलेन्द्रियः।। | 14-1-2a 14-1-2b |
उत्तीर्य तु महाबाहुर्बाष्पव्याकुललोचनः। पपात तीरे गङ्गाया व्याधविद्ध इव द्विपः।। | 14-1-3a 14-1-3b |
तं सीदमानं जग्राह भीमः कृष्णेन चोदितः। मैवमित्यब्रवीच्चैनं कृष्णः परबलार्दनः।। | 14-1-4a 14-1-4b |
तमार्तं पतितं भूमौ श्वसन्तं च पुनः पुनः। तदृशुः पार्थिवा राजन्धर्मपुत्रं युधिष्ठिरम्।। | 14-1-5a 14-1-5b |
त दृष्ट्वा दीनमनसं गतसत्वं नरेश्वरम्। भूयः शोकसमाविष्टाः पाण्डवाःक समुपाविशन्।। | 14-1-6a 14-1-6b |
राजा तु धृतराष्ट्रस्तं तथा दीनो महाभुजम्। वाक्यमाह महाबुद्धिः प्रज्ञाचक्षुर्नरेश्वरम्।। | 14-1-7a 14-1-7b |
उत्तिष्ठ कुरुशार्दूल कुरु कार्यमनन्तरम्। क्षत्रधर्मेण कौन्तेय जितेयमवनी त्वया।। | 14-1-8a 14-1-8b |
भुङ्क्ष सार्धं भ्रातृभिस्तां सुहृद्भिश्च जनेश्वर। शोचितव्यं न पश्यामि त्वया धर्मभृतांवर।। | 14-1-9a 14-1-9b |
शोचितव्यं मया चैव गान्धार्या च महीपते। ययोः पुत्रशतं नष्टं स्वप्नलब्धं यथा धनम्।। | 14-1-10a 14-1-10b |
अश्रुत्वा हितकामस्य विदुरस्य महात्मनः। वाक्यानि सुमहार्थानि परितप्यामि दुर्मतिः।। | 14-1-11a 14-1-11b |
उक्तवान्विदुरो यन्मां धर्मात्मा दिव्यदर्शनः। दुर्योधनापराधेन कुलं ते विनशिष्यति।। | 14-1-12a 14-1-12b |
स्वस्ति चेदिच्छसे राजन्कुलस्य कुरु मे वचः। वध्यतामेष दुष्टात्मा मन्दो राजा सुयोधनः।। | 14-1-13a 14-1-13b |
कर्णश्च शकुनिश्चैव नैनं पश्यतु कर्हिचित्। द्यूतसङ्घातमप्येषामप्रमादेन वारय।। | 14-1-14a 14-1-14b |
अभिषेचय राजानं धर्मात्मानं युधिष्ठिरम्। स पालयिष्यति वशी धर्मेण पृथिवीमिमाम्।। | 14-1-15a 14-1-15b |
अथ नेच्छसि राजानं कुन्तीपुत्रं युधिष्ठिरम्। `विनाशमुपयास्तन्ति तव पुत्रा न संशयः।' मेढीभूतः स्वयं राज्यं प्रतिगृह्णीष्व पार्थिव।। | 14-1-16a 14-1-16b 14-1-16c |
समं सर्वेषु भूतेषु वर्तमानं नराधिप। अनुजीवन्तु सर्वे त्वां ज्ञातयो ज्ञातिवर्धंन।। | 14-1-17a 14-1-17b |
एवं ब्रुवति कौन्तेय विदुरे दीर्घदर्शिनि। दुर्योधनमहं पापमन्ववर्तं वृथामतिः।। | 14-1-18a 14-1-18b |
अश्रुत्वा तस्य धीरस्य वाक्यानि मधुराण्यहम्। फलं प्राप्य महद्दुःखं निमग्नः शोकसागरे।। | 14-1-19a 14-1-19b |
वृद्धौ हि तेऽद्य पितरौ पश्य नौ दुःखितौ नृप। न शोचितव्यं भवता पश्यामीह जनाधिप।। | 14-1-20a 14-1-20b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आश्वमेधिकपर्वणि अश्वमेधपर्वणि प्रथमोऽध्यायः।। 1 ।। |
14-1-1 कृतोदकं त्विति झ.पाठः।। 14-1-2 उत्ततार गङ्गात इति शेषः।।
आश्वमेधिकपर्व | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आश्वमेधिकपर्व-002 |