महाभारतम्-14-आश्वमेधिकपर्व-095
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वैशंपायनेन जनमेजयंप्रति नकुलस्य निजस्वरूपकथनपूर्वकं तस्य नकुलत्वप्राप्तिविमोक्षकारणाभिधानम्।। 1 ।।
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नमेजय उवाच। | 14-95-1x |
कोसौ नकुलरूपेण शिरसा काञ्चनेन वै। प्राह मानुषवद्वाचमेतत्पृष्टो वदस्व मे।। | 14-95-1a 14-95-1b |
वैशम्पायन उवाच। | 14-95-2x |
एतत्पूर्वं न पृष्टोऽहं न चास्माभिः प्रभाषितम्। श्रूयतां नकुलो योसौ यथा वाक्तस्य मानुषी।। | 14-95-2a 14-95-2b |
श्राद्धं संकल्पयामास जमदग्निः पुरा किल। होमधेनुस्तमागाच्च स्वयमेव दुदोह ताम्।। | 14-95-3a 14-95-3b |
तत्पयः स्थपयामास नवे भाण्डे दृढे शुचौ। क्रोधो नकुलरूपेण पिठरं पर्यकर्षयत्।। | 14-95-4a 14-95-4b |
जिज्ञासुस्तमृषिश्रेष्टं किं कुर्याद्विप्रिये कृते। इति सञ्चिन्त्य दुर्मेधा धर्षयामास तत्पयः।। | 14-95-5a 14-95-5b |
तमाज्ञाय मुनिः क्रोधं नैवास्य स चुकोप ह। स तु क्रोधस्ततो राजन्ब्राह्मणीं मूर्तिमास्थितः।। | 14-95-6a 14-95-6b |
जितोस्मीति भृगुश्रेष्ठ भृगवो ह्यतिरोषणाः। लोके मिथ्याप्रवादोयं यत्त्वयाऽस्मि विनिर्जितः।। | 14-95-7a 14-95-7b |
वशे स्थितोऽहं त्वय्यह्य क्षमावति महात्मनि। बिभेमि तपसः साधो प्रसादं कुरु मे प्रभो।। | 14-95-8a 14-95-8b |
जमदग्निरुवाच। | 14-95-9x |
साक्षाद्दृष्टोसि मे क्रध गच्छ त्वं विगतज्वरः। न त्वयापकृतं मेऽद्य न च मे मन्युरस्ति वै।। | 14-95-9a 14-95-9b |
यान्समुद्दिश्य संकल्पः पयसोस्य कृतो मया। पितरस्ते महाभागास्तेभ्यो बुद्ध्यस्व गम्यताम्।। | 14-95-10a 14-95-10b |
इत्युक्तो जातसंत्रासस्तत्रैवान्तरधीयत। पितॄणामभिषङ्गाच्च नकुलत्वमुपागतः।। | 14-95-11a 14-95-11b |
स तान्प्रसादयामास शापस्यान्तो भवेदिति। तैश्चाप्युक्तः क्षिपन्धर्मं सापस्यान्तमवाप्स्यति।। | 14-95-12a 14-95-12b |
तैश्चोक्तो यज्ञियान्देशान्धर्मारण्यं तथैव च। जुगुप्समानो धावन्स तं यज्ञं समुपासदत्।। | 14-95-13a 14-95-13b |
धर्मपुत्रमथाक्षिप्य सक्तुप्रस्थेन तेन सः। मुक्तः सापात्ततः क्रोधो धर्मो ह्यासीद्युधिष्ठिरः।। | 14-95-14a 14-95-14b |
एवमेतत्तदा वृत्तं यज्ञे तस्य महात्मनः। पश्यतां चापि नस्तत्र नकुलोऽन्तर्हितस्तदा। | 14-95-15a 14-95-15b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आश्वमेधिकपर्वणि अनुगीतापर्वणि पञ्चनवतितमोऽध्यायः।। 95 ।। |
14-95-1 नकुलोपरि टिप्पणी
14-95-4 पिठरं पात्रं। तत्पयः पीतवानित्यर्थः। तच्च क्रोधस्वरूपेण पिठरं धर्म आविशदिति झ. पाठः।।
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