महाभारतम्-14-आश्वमेधिकपर्व-037
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ब्रह्मणा कश्यपादिमहर्षीन्प्रति तमोगुणकार्यनिरूपणम्।। 1 ।।
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ब्रह्मोवाच। | 14-37-1x |
तदव्यक्तमनुद्रिक्तं सर्वव्यापि ध्रुवं स्थिरम्। नवद्वारं पुरं विद्यात्त्रिगुणं पञ्चधातुकम्।। | 14-37-1a 14-37-1b |
एकादशपरिक्षेपं मनोव्याकरणात्मकम्। बुद्धिस्वामिकमित्येतत्परमेकादशं भवेत्।। | 14-37-2a 14-37-2b |
त्रीणि स्रोतांसि यान्यस्मिन्नाप्यायन्ते पुनःपुनः। प्रनाड्यस्तिस्र एवैताः प्रवर्न्तते गुणात्मिकाः।। | 14-37-3a 14-37-3b |
तमो रजस्तथा सत्वं गुणानेतान्प्रचक्षते। अन्योन्यमिथुनाः सर्वे तथाऽन्योन्यानुजीविनः।। | 14-37-4a 14-37-4b |
अन्योन्यापाश्रयाश्चापि तथाऽन्योन्यानुवर्तिनः। अन्योन्यव्यतिषक्ताश्च त्रिगुणाः पञ्चधातवः।। | 14-37-5a 14-37-5b |
तमसो मिथुनं सत्वं सत्वस्य मिथुनं रजः। रजसश्चापि सत्वं स्यात्सत्वस्य मिथुनं तमः।। | 14-37-6a 14-37-6b |
नियम्यते तमो यत्र रजस्तत्र निवर्तते। नियम्यते रजो यत्र सत्वं तत्र प्रवर्तते।। | 14-37-7a 14-37-7b |
नैशात्मकं तमो विद्यात्त्रिगुणं मोहसंज्ञितम्। अधर्मलक्षणं चैव नियतं पापकर्मसु। तामसं रूपमेतत्तु दृश्यते चापि सङ्गतम्।। | 14-37-8a 14-37-8b 14-37-8c |
प्रकृत्यात्मकमेवाहू रजः पर्यायकारकम्। सत्त्वे तु सर्वभूतेषु दृश्यमुत्पत्तिलक्षणम्।। | 14-37-9a 14-37-9b |
प्रकाशं सर्वभूतेषु लाघवं श्रद्धधानता। सात्विकं रूपमेवं तु लाघवं साधुसंमितम्।। | 14-37-10a 14-37-10b |
एतेषां गुणतत्त्वानि वक्ष्यन्ते तत्त्वहेतुभिः। समासव्यासयुक्तानि तत्त्वतस्तानि बोधत।। | 14-37-11a 14-37-11b |
सम्मोहो ज्ञानमत्यागः कर्मणामविनिर्णयः। स्वप्नः स्तंभो भयं लोभः शोकः सुकृतदूषणम्।। | 14-37-12a 14-37-12b |
अस्मृतिश्चाविपाकश्च नास्तिक्यं भिन्नवृत्तिता। निर्विशेषत्वमन्धत्वं जघन्यगुणवृत्तिता।। | 14-37-13a 14-37-13b |
अकृते कृतमानित्वमज्ञाने ज्ञानमानिता। अमैत्री विकृतो भावो ह्यश्रद्धा मूढभावना।। | 14-37-14a 14-37-14b |
अनार्जवमसंज्ञत्वं कर्म पापमचेतना। गुरुत्वं सन्नभावत्वमवशित्वमवाग्गतिः।। | 14-37-15a 14-37-15b |
सर्व एते गुणा वृत्तास्तामसाः सम्प्रकीर्तिताः। ये चान्ये विहिता भावा लोकेऽस्मिन्भावसंज्ञिताः।। | 14-37-16a 14-37-16b |
तत्रतत्र नियम्यन्ते सर्वे ते तामसा गुणाः। परिवादकथा नित्यं मेवब्राह्मणवैरिता।। | 14-37-17a 14-37-17b |
अत्यागश्चातिमानश्च मोहो मन्युस्तथाऽक्षमा। मत्सरश्चैव भूतेषु तामसं वृत्तमिष्यते।। | 14-37-18a 14-37-18b |
वृथारम्भा हि ये केचिद्वृथा दानानि यानि च। वृथाभक्षणमित्येतत्तामसं वृत्तमिष्यते।। | 14-37-19a 14-37-19b |
अतिवादोऽतितिक्षा च मात्सर्यमभिमानिता। अश्रद्दधानता चैव तामसं वृत्तमिष्यते।। | 14-37-20a 14-37-20b |
एवंविधाश्च ये केचिल्लोकेऽस्मिन्पापकर्मिणः। मनुष्या भिन्नमर्यादास्ते सर्वे तामसाः स्मृताः।। | 14-37-21a 14-37-21b |
तेषां योनीः प्रवक्ष्यामि नियताः पापकर्मिणाम्। अवाङ्निरयभावा ये तिर्यङ्निरयगामिनः। | 14-37-22a 14-37-22b |
स्थावराणि च भूतानि पशवो वाहनानि च। क्रव्यादा दंदशूकाश्च कृमिकीटविहङ्गमाः।। | 14-37-23a 14-37-23b |
अब्जाता जन्तवश्चैव सर्वे चापि चतुष्पदाः। उन्मत्ता बधिरा मूका ये चान्ये पापरोगिणः।। | 14-37-24a 14-37-24b |
मग्नास्तमसि दुर्वृत्ताः स्वकर्मकृतलक्षणाः। अवाक्स्रोतस इत्येते मग्नास्तमसि तामसाः।। | 14-37-25a 14-37-25b |
तेषामुत्कर्षमुद्रेकं वक्ष्याम्यहमतः परम्। यथा ते सुकृतां लोकाँल्लभन्ते पुण्यकर्मिणः।। | 14-37-26a 14-37-26b |
अन्यथा प्रतिपन्नास्तु विवृद्धा ये च कर्मसु। स्वकर्मनिरतानां च ब्राह्मणानां शुभैषिणाम्।। | 14-37-27a 14-37-27b |
संस्कारेणोर्ध्वमायान्ति यतमानाः सलोकताम्। स्वर्गे गच्छन्ति देवानामित्येषा वैदिकी श्रुतिः।। | 14-37-28a 14-37-28b |
अन्यथा प्रतिपन्नास्ते विबुद्धाः स्वेषु कर्मसु। पुनरावृत्तिधर्माणस्ते भवन्तीह मानुषाः।। | 14-37-29a 14-37-29b |
पापयोनिं समापन्नाश्चण्डाला मूकचूचुकाः।। वर्णान्पर्यायशश्चापि प्राप्नुवन्त्युत्तरोत्तरम्।। | 14-37-30a 14-37-30b |
शूद्रयोनिमतिक्रम्य ये चान्ये तामसा गुणाः। स्रोतोमध्ये समागम्य वर्तन्ते तामसे गुणे।। | 14-37-31a 14-37-31b |
अभिष्वङ्गस्तु कामेषु महामोह इति स्मृतः। ऋषयो मुनयो देवा मुह्यन्त्यत्र सुखेप्सवः।। | 14-37-32a 14-37-32b |
तमोमोहो महामोहस्तामिस्रो ह्यन्धसंज्ञितः। मरणं त्वन्धतामिस्रस्तामिस्रः क्रोध उच्यते।। | 14-37-33a 14-37-33b |
वर्णतो गुणतश्चैव योनितश्चैव तत्त्वतः। सर्वमेततमो विप्राः कीर्तितं वो यथाविधि।। | 14-37-34a 14-37-34b |
को न्वेतद्बुध्यते साधु को न्वेतत्साधु पश्यति। अतत्त्वे तत्त्वदर्शी यस्तमसस्तच्च लक्षणम्।। | 14-37-35a 14-37-35b |
तमोगुणा बहुविधाः प्रकीर्तिता यथावदुक्तं च तमः परावरम्। नरो हि यो वेद गुणानिमान्सदा स तामसैः सर्वगुणैः प्रमुच्यते।। | 14-37-36a 14-37-36b 14-37-36c 14-37-36d |
।। इति श्रीमन्महाभारते आश्वमेधिकपर्वणि अनुगीतापर्वणि सप्तत्रिंशोऽध्यायः।। 37 ।। |
14-37-24 अण्डजा जन्तव इति झ.पाठः।। 14-37-30 चूचुकाः स्खलद्गिरः। पुष्पचूचुका इति क.पाठः।। 14-37-32 कामेषु स्त्र्याद्यर्थेषु। अभिष्वङ्ग आसक्तिः।।
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