महाभारतम्-14-आश्वमेधिकपर्व-074
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अर्जुनेन त्रैगर्तानां पराजयः।। 1 ।।
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वैशम्पायन उवाच। | 14-74-1x |
त्रिगर्तैरभवद्युद्धं कृतवैरैः किरीटिनः। महारथसमाज्ञातैर्हतानां पुत्रनप्तृभिः।। | 14-74-1a 14-74-1b |
ते समाज्ञाय सम्प्राप्तं यज्ञियं तुरगोत्तम***** विषयान्तं ततो वीरा दंशिताः पर्यवारयन्।। | 14-74-2a 14-74-2b |
रथिनो बद्धतूणीराः सदश्वैः समलङ्कृतैः। परिवार्य हयं राजन्ग्रहीतुं सम्प्रचक्रमुः।। | 14-74-3a 14-74-3b |
ततः किरीटी सञ्चिन्त्य तेषां तत्र चिकीर्षितम्। वारयामास तान्वीरान्सान्त्वपूर्वमरिंदमः।। | 14-74-4a 14-74-4b |
तदनादृत्य ते सर्वे शरैरभ्यहनंस्तदा। तमोरजोभ्यां संछन्नांस्तान्किरीटी न्यवारयत्।। | 14-74-5a 14-74-5b |
तानव्रवीत्ततो जिष्णुः प्रहसन्निव भारत। निवर्तध्वमधर्मज्ञाः श्रेयो जीवितमेव च।। | 14-74-6a 14-74-6b |
स हि वीरः प्रयास्यन्वै धर्मराजेन वारितः। हतबान्धवा न ते पार्त हन्तव्याः पार्थिवा इति।। | 14-74-7a 14-74-7b |
स तदा तद्वचः श्रुत्वा धर्मराजस्य धीमतः। तान्निवर्तध्वमित्याह न न्यवर्तन्ति चापि ते।। | 14-74-8a 14-74-8b |
ततस्त्रिगर्तराजानं सूर्यवर्माणमाहवे। विनद्य शरजालेनि प्रजहास धनंजयः।। | 14-74-9a 14-74-9b |
ततस्ते रथघोपेण रथनेमिस्वनेन च। पूरयन्तो दिशः सर्वा धनंजयमुपाद्रवन्।। | 14-74-10a 14-74-10b |
सूर्यवर्मा ततः पार्ते शराणां नतपर्वणाम्। शतान्यमुञ्चद्राजेन्द्र लघ्वस्त्रमभिदर्शयन्।। | 14-74-11a 14-74-11b |
तथैवान्ये महेष्वासा ये च तस्यानुयायिनः। मुमुचुः शरवर्षाणि धनंजयवधैषिणः।। | 14-74-12a 14-74-12b |
स ताञ्ज्यामुखनिर्मुक्तैर्बहुभिः सुबहूञ्शरान्। चिच्छेद पाण्डवो राजंस्ते भूमौ न्यपतंस्तदा।। | 14-74-13a 14-74-13b |
केतुवर्मा तु तेजस्वी तस्यैवावरजो युवा। युयुधे भ्रातुरर्थाय पाण्डवेन यशस्विना।। | 14-74-14a 14-74-14b |
तमापतन्तं सम्प्रेक्ष्य केतुवर्माणमाहवे। अभ्यघ्नन्निशितैर्बाणैर्बीभत्सुः परवीरहा।। | 14-74-15a 14-74-15b |
केतुवर्मण्यभिहते धृतवर्मा महारथः। रथेनाशु समुत्पत्य शरैर्जिष्णुमवाकिरत्।। | 14-74-16a 14-74-16b |
तस्य तां शीघ्रतामीक्ष्य तुतोषातीव वीर्यवान्। गुडाकेशो महादेजा बालस्य धृतवर्मणः।। | 14-74-17a 14-74-17b |
न संदधानं ददृशे नाददानं च तं तदा। किरन्तमेवं स शरान्ददृशे पाकशासनिः।। | 14-74-18a 14-74-18b |
स तु तं पूजयामास धृतवर्माणमाहवे। मनसा तु मुहूर्तं वै रणे समभिहर्षयन्।। | 14-74-19a 14-74-19b |
`न विव्याध रणे क्रुद्धः कुन्तीपुत्रो हसन्निव। सौभद्रस्येव तत्कर्म दृष्ट्वा बालस्य विस्मितः।। | 14-74-20a 14-74-20b |
तं पन्नगमिव क्रुद्धं कुरुवीरः स्मयन्निव। प्रीतिपूर्वं महाबाहुः प्राणैर्न व्यपरोपयत्।। | 14-74-21a 14-74-21b |
स तथा रक्ष्यमाणो वै पार्थेनामिततेजसा। धृतवर्मा शरं दीप्तं मुमोच विजये तदा।। | 14-74-22a 14-74-22b |
स तेन विजयस्तूर्णमासीद्विद्धः करे भृशम्। मुमोच गाण्डिवं मोहात्तत्पपाताथ भूतले।। | 14-74-23a 14-74-23b |
धनुषः पततस्तस्य सव्यसाचिकराद्विभो। बभूव सदृशं रूपं शक्रचापस्य भारत।। | 14-74-24a 14-74-24b |
तस्मिन्निपतिते दिव्ये महाधनुषि पार्थिवः। चकार सस्वनं हासं धृतवर्मा महाहवे।। | 14-74-25a 14-74-25b |
ततो रोषार्दितो जिष्णुः प्रमृज्य रुधिरं करात्। धनुरादत्त तद्दिव्यं शरवर्षैर्ववर्ष च।। | 14-74-26a 14-74-26b |
ततो हलहलाशब्दो दिवस्पृगभवत्तदा। नानाविधानां भूतानां तत्कर्माणि प्रशंसताम्।। | 14-74-27a 14-74-27b |
ततः सम्प्रेक्ष्य संक्रुद्धं कालान्तकयमोपमम्। जिष्णुं त्रैगर्तका योधाः परीताः पर्यवारयन्।। | 14-74-28a 14-74-28b |
अभिसृत्य परीप्सार्थं ततस्ते धृतवर्मणः। परिवव्रुर्गुडाकेशं तत्राक्रुद्ध्यद्धनंजयः।। | 14-74-29a 14-74-29b |
ततो योधाञ्जघानाशु तेषां स दश चाष्ट च। महेन्द्रवज्रप्रतिमैरायसैर्बहुभिः शरैः।। | 14-74-30a 14-74-30b |
तान्सम्प्रभग्नान्सम्प्रेक्ष्य त्वरमाणो धनंजयः। शरैराशीविषाकारैर्जघान स्वनवद्धसन्।। | 14-74-31a 14-74-31b |
ते भग्नमनसः सर्वे त्रैगर्तकमहारथाः। दिशोऽभिदुद्रुवू राजन्धनंजयशरार्दिताः।। | 14-74-32a 14-74-32b |
`हतावशिष्टा हि पराः पार्थं दृष्टपराक्रमाः।' तमूचुः पुरुषव्याघ्रं संशप्तकनिषूदनम्।। | 14-74-33a 14-74-33b |
तवास्म किंकराः सर्वे सर्वे वै वशगास्तव। आज्ञापयस्वः नः पार्थ प्रह्वान्प्रेष्यानवस्थितान्। करिष्यामः प्रियं सर्वं तव कौरवनन्दन।। | 14-74-34a 14-74-34b 14-74-34c |
एतदाज्ञाय वचनं सर्वांस्तानब्रवीत्तदा। जीवितं रक्षत नृपाः शासनं प्रतिगृह्यताम्।। | 14-74-35a 14-74-35b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आश्वमेधिकपर्वणि अनुगीतापर्वणि चतुःसप्ततितमोऽध्यायः।। 74 ।। |
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