महाभारतम्-14-आश्वमेधिकपर्व-072
← आश्वमेधिकपर्व-071 | महाभारतम् चतुर्दशपर्व महाभारतम्-14-आश्वमेधिकपर्व-072 वेदव्यासः |
आश्वमेधिकपर्व-073 → |
व्यासेन युधिष्ठिरंप्रति पृथिवीसंचाराय मेध्याश्वोत्सर्जनचोदना।। 1 ।। तथाऽश्वरक्षणेऽर्जुनस्य नियोजनम्।। 2 ।।
|
वैशम्पायन उवाच। | 14-72-1x |
एवमुक्तस्तु कृष्णेन धर्मपुत्रो युधिष्ठिरः। व्यासमामन्त्र्य् मेधावी ततो वाचनमब्रवीत्।। | 14-72-1a 14-72-1b |
यदा कालं भवान्वेत्ति हयमेधस्य तत्त्वतः। दीक्षयस्व तदा मां त्वं त्वय्यायत्तो हि मे क्रुतुः।। | 14-72-2a 14-72-2b |
व्यास उवाच। | 14-72-3x |
अयं पैलोथ कौन्तेय याज्ञवल्क्यस्तथैव च। विधानं यद्यथा कालं तत्कर्तारौ न संशयः।। | 14-72-3a 14-72-3b |
चैत्र्यां हि पौर्णमास्यां तु तव दीक्षा भविष्यति। सम्भाराः सम्भ्रियन्तां च यज्ञार्थं पुरुषर्षभ।। | 14-72-4a 14-72-4b |
अश्वविद्याविदश्चैव सूता विप्राश्च तद्विदः। मेध्यमश्वं परीक्षन्तां तव यज्ञार्थसिद्धये।। | 14-72-5a 14-72-5b |
तमुत्सृज यथाशास्त्रं पृथिवीं सागराम्बराम्। सपर्येतु यशो नाम्ना तव पार्थिव वर्धयन्।। | 14-72-6a 14-72-6b |
इत्युक्तः स तथेत्युक्त्वा पाण्डवः पृथिवीपतिः। चकार सर्वं राजेन्द्र यथोक्तं ब्रह्मवादिना।। | 14-72-7a 14-72-7b |
सम्भारश्चैव राजेन्द्र सर्वे सङ्कल्पितास्तता।। | 14-72-8a |
स सम्भारान्समाहृत्य नृपो धर्मसुतस्तदा। न्यवेदयदमेयात्मा कृष्णद्वैपायनाय वै।। | 14-72-9a 14-72-9b |
ततोऽब्रवीन्महातेजा व्यासो धर्मात्मजं नृपम्। यथाकालं यथायोगं सज्जाः स्म तव दीक्षणे।। | 14-72-10a 14-72-10b |
स्फ्यश्च कूर्चश्च सौवर्णो यच्चान्यदपि कौरव। यत्तु योग्यं भवेत्किञ्चिद्रौक्मं तत्क्रियतामिति।। | 14-72-11a 14-72-11b |
अश्वश्चोत्सृज्यतामद्य पृथ्व्यामथ यथाक्रमम्। सुगुप्तं चरतां चापि यथाशास्त्रं यथाविधि।। | 14-72-12a 14-72-12b |
युधिष्ठिर उवाच। | 14-72-13x |
अयमश्वो यता ब्रह्मन्नुत्सृष्टः पृथिवीमिमाम्। चरिष्यति यथाकामं तत्र वै संविदीयताम्।। | 14-72-13a 14-72-13b |
पृथिवीं पर्यटन्तं हि तुरगं कामचारिणम्। कः पालयेदिति मुने तद्भवान्वक्तुमर्हति।। | 14-72-14a 14-72-14b |
इत्युक्तः स तु राजेन्द्र कृष्णद्वैपायनोऽब्रवीत्। भीमसेनादवरजः श्रेष्ठः सर्वधनुष्मताम्। जिष्णुः सहिष्णुर्धृष्णुस्च स एनं पालयिष्यति।। | 14-72-15a 14-72-15b 14-72-15c |
शक्तः स हि महीं जेतुं निवातकवचान्तकः। तस्मिन्ह्यस्त्राणि दिव्यानि दिव्यं संहननं तथा। दिव्यं धनश्चेषुधी च स एनमनुयास्यति।। | 14-72-16a 14-72-16b 14-72-16c |
स हि धर्मार्थकुशलः सर्वविद्याविशारदः। यथाशास्त्रं नृपश्रेष्ठ चारयिष्यति ते हयम्।। | 14-72-17a 14-72-17b |
राजपुत्रो महाबाहुः श्यामो राजीवलोचनः। अभिमन्योः पिता वीरः स एनमनुयास्यति।। | 14-72-18a 14-72-18b |
भीमसेनोपि तेजस्वी कौन्तेयोऽमितविक्रमः। समर्थो रक्षितुं राष्ट्रं नकुलश्च विशाम्पते।। | 14-72-19a 14-72-19b |
सहदेवस्तु कौरव्य समायास्यति बुद्धिमान्। कुटुम्बतन्त्रं विधिवत्सर्वमेव महायशाः।। | 14-72-20a 14-72-20b |
स तु सर्वं यथान्यायमुक्त कुरुकुलोद्वहः। चकार फल्गुनं चापि संदिदेश हयं प्रति।। | 14-72-21a 14-72-21b |
युधिष्ठिर उवाच। | 14-72-22x |
एह्यर्जुन त्वया वीर हयोऽयं परिपाल्यताम्। त्वमर्हो रक्षितुं ह्येनं नान्यः कश्चन मानवः।। | 14-72-22a 14-72-22b |
ये चापि त्वां महाबाहो प्रत्युद्यान्ति नराधिपाः। तैर्विग्रहो यथा न स्यात्तथा कार्यं त्वयाऽनघ।। | 14-72-23a 14-72-23b |
आख्यातव्यश्च भता यज्ञोऽयं मम सर्वशः। पार्थिवेभ्यो महाबाहो समये गम्यतामिति ।। | 14-72-24a 14-72-24b |
वैशम्पायन उवाच। | 14-72-25x |
एवमुक्त्वा स धर्मात्मा भ्रातरं सव्यसाचिनम्। भीमं च नकुलं चैव पुरगुप्तौ समादधत्।। | 14-72-25a 14-72-25b |
कुटुम्बतन्त्रे च तदा सहदेवं युधांपतिम्। अनुमान्य महीपालं धृतराष्ट्रं युधिष्ठिरः।। | 14-72-26a 14-72-26b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आश्वमेधिकपर्वणि अनुगीतापर्वणि द्विसप्ततितमोऽध्यायः।। 72 ।। |
14-72-11 स्फ्यः काष्ठखङ्गः स चात्र सौवर्णः। कूर्च आसनार्थं कुशमुष्टिः सोऽप्यत्र सौवर्णः।। 14-72-12 सुगुप्तं सुरक्षितं यथा स्यात्तथा।।
आश्वमेधिकपर्व-071 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आश्वमेधिकपर्व-073 |