महाभारतम्-14-आश्वमेधिकपर्व-068
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कृष्णेन परिक्षित्सूतिकागृहप्रवेशनम्।। 1 ।। तत्रोत्तरया कृष्णसमीपे बहुधा विलापपूर्वकं पुत्रोज्जीवनप्रार्थना।। 2 ।।
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वैशम्पायन उवाच। | 14-68-1x |
एवमुक्तस्तु राजेन्द्र केशिहा दुःखमुर्च्छितः। तथेति व्याजहारोच्चैर्ह्लादयन्निव तं जनम्।। | 14-68-1a 14-68-1b |
वाक्येनैतेन हि तदा तं जनं पुरुषर्षभः। ह्लादयामास स विभुर्घर्मार्तं सलिलैरिव।। | 14-68-2a 14-68-2b |
ततः स प्राविशत्तूर्णं जन्मवेश्म पितुस्तव। अर्चितं पुरुषव्याघ्र सितैर्माल्यैर्यथाविधि।। | 14-68-3a 14-68-3b |
अपां कुम्भैः सुपूर्णैश्च विन्यस्तैः सर्वतोदिशम्। घृतेन तिन्दुकालातैः सर्षपैश्च महाभुज।। | 14-68-4a 14-68-4b |
अस्त्रैश्च विमलैर्न्यस्तैः पावकैश्च समन्ततः। वृद्धाभिश्चापि रामाभिः परिवारार्थमावृतः। दक्षैश्च परितो धीर भिषग्भिः कुशलैस्तथा।। | 14-68-5a 14-68-5b 14-68-5c |
ददर्श च स तेजस्वी रक्षोघ्रान्यपि सर्वशः। द्रव्याणि स्थापितानि स्म विधिवत्कुशलैर्जनैः।। | 14-68-6a 14-68-6b |
तथायुक्तं च तद्दृष्ट्वा जन्मवेश्म पितुस्तव। हृष्टोऽभवद्धृषीकेशः साधुसाध्विति चाब्रवीत्।। | 14-68-7a 14-68-7b |
तथा ब्रुवति वार्ष्णेये प्रहृष्टवदने तदा। द्रौपदी त्वरिता गत्वा वैराटीं वाक्यमब्रवीत्।। | 14-68-8a 14-68-8b |
अयमायाति ते भर्तुर्मातुलो मधुसूदनः। पुराणर्षिरचिन्त्यात्मा समीपमपराजितः।। | 14-68-9a 14-68-9b |
साऽपि बाष्पकलां वाचं निगृह्याश्रूपि चैव ह। असंवीताऽभवद्देवी देववत्कृष्णमीयुषी।। | 14-68-10a 14-68-10b |
सा तथा दूयमानेन हृदयेन तपस्विनी। दृष्ट्वा गोविन्दमायान्तं कृपणं पर्यदेवयत्।। | 14-68-11a 14-68-11b |
पुण्डरीकाक्ष पश्यावां बालेन हि विनाकृतौ। अभिमन्युं च मां चैव हठात्तुल्यं जनार्दन।। | 14-68-12a 14-68-12b |
वार्ष्णेयमधुहन्वीर शिरसा त्वां प्रसादये। द्रोणपुत्रास्त्रनिर्दग्धं जीवयैनं ममात्मजम्।। | 14-68-13a 14-68-13b |
यदि स्म धर्मराज्ञा वा भीमसेनेन वा पुनः। त्वया वा पुण्डरीकाक्ष वाक्यमुक्तमिदं भवेत्।। | 14-68-14a 14-68-14b |
अजानतीमिषीकेयं जनित्रीं हन्त्विति प्रभो। अहमेव विनष्टा स्यां नायमेवं गतो भवेत्।। | 14-68-15a 14-68-15b |
गर्भस्थस्यास्य बालस्य ब्रह्मास्त्रेण निपातनम्। कृत्वा नृशंसं दुर्बुद्धिर्द्रौणिः किं फलमश्नुते।। | 14-68-16a 14-68-16b |
सा त्वां प्रसाद्य शिरसा याचे शत्रुनिबर्हण। प्राणांस्त्यक्ष्यामि गोविन्द नायं संजीवते यदि।। | 14-68-17a 14-68-17b |
अस्मिन्हि बहवः साधो ये ममासन्मनोरथाः। ते द्रोणपुत्रेण हताः किंनु जीवामि केशव।। | 14-68-18a 14-68-18b |
आसीन्मम मतिः कृष्ण पूर्णोत्सङ्गा जनार्दन। अभिवादयिष्ये हृष्टेति तदिदं वितथीकृतम्।। | 14-68-19a 14-68-19b |
चपलाक्षस्य दायादे मृतेऽस्मिन्पुरुषर्षभ। विफला मे कृताः कृष्ण हृदि सर्वे मनोरथाः।। | 14-68-20a 14-68-20b |
चपलाक्षः किलातीव प्रियस्ते मधुसूदन। सुतं पश्य त्वमस्यैनं ब्रह्मास्त्रेण निपातितम्।। | 14-68-21a 14-68-21b |
कृतघ्नोऽयं नृशंसोऽयं यथाऽस्य जनकस्तथा। यः पाण्डवीं श्रियं त्यक्त्वा गतोऽद्य यमसादनं।। | 14-68-22a 14-68-22b |
मया चैतत्प्रतिज्ञातं रणमूर्धनि केशव। अभिमन्यौ हते वीर त्वामेष्याम्यचिरादिति।। | 14-68-23a 14-68-23b |
तच्च नाकरवं कृष्ण नृशंसा जीवितप्रिया। इदानीं मां गतां तत्र किंनु वक्ष्यति फाल्गुनिः।। | 14-68-24a 14-68-24b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आश्वमेधिकपर्वणि अनुगीतापर्वणि अष्टषष्टितमोऽध्यायः।। 68 ।। |
14-68-19 पुत्रोत्सङ्गा जनार्दनेति झ.पाठः।।
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