महाभारतम्-14-आश्वमेधिकपर्व-040
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ब्रह्मणा महर्षीन्प्रति सत्वादिगुणत्रयनिरूपणम्।। 1 ।।
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ब्रह्मोवाच। | 14-40-1x |
नैव शक्या गुणा वक्तुं पृथक्त्वेनैव सर्वशः। अविच्छिन्नानि दृश्यन्ते रजः सत्वं तमस्तथा।। | 14-40-1a 14-40-1b |
अन्योन्यमनुरज्यन्ते ह्यन्योन्येनानुजीविनः। अन्योन्यापाश्रयाः सर्वे तथाऽन्योन्यानुवर्तिनः।। | 14-40-2a 14-40-2b |
यावत्सत्वं रजस्तावद्वर्तते नात्र संशयः। यावत्तमश्च सत्वं च रजस्तावदिहोच्यते।। | 14-40-3a 14-40-3b |
संहत्य कुर्वते यात्रां सहिताः सङ्घचारिणः। सङ्घातवृत्तयो ह्येते वर्तन्ते हेत्वहेतुभिः।। | 14-40-4a 14-40-4b |
उद्रेकव्यतिरिक्तानां तेषामन्योन्यवर्तिनाम्। वक्ष्यते तद्यथाऽन्यूनं व्यतिरिक्तं च सर्वशः।। | 14-40-5a 14-40-5b |
व्यतिरिक्तं तमो यत्र तिर्यग्भावगतं भवेत्। अल्पं तत्रथ रजो ज्ञेयं सत्वमल्पतरं तथा।। | 14-40-6a 14-40-6b |
उद्रिक्तं च रजो यत्र मध्यस्रोतोगतं भवेत्। अल्पं तत्र तमो ज्ञेयं सत्वमल्पतरं तथा।। | 14-40-7a 14-40-7b |
उद्रिक्तं च यदा सत्वमूर्ध्वस्रोतोगतं भवेत्। अल्पं तत्र तमो ज्ञेयं रजश्चाल्पतरं तथा।। | 14-40-8a 14-40-8b |
सत्वं वैकारिकी योनिरिन्द्रियाणां प्रकाशिका। न हि सत्वात्परो भावः कश्चिदन्यो विधीयते।। | 14-40-9a 14-40-9b |
ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्वस्था मध्ये तिष्ठन्ति राजसाः। जघन्यगुणसंयुक्ता यान्त्यधस्तामसा जनाः।। | 14-40-10a 14-40-10b |
तमः शूद्रे रजः क्षत्रे ब्राह्मणे सत्वमुत्तमम्। इत्येवं त्रिषु वर्णेषु विवर्तन्ते गुणास्त्रयः।। | 14-40-11a 14-40-11b |
दूरादपि हि दृश्यनते सहिताः सङ्घचारिणः। तमः सत्वं रजश्चैव पृथक्त्वेनानुशुश्रुम।। | 14-40-12a 14-40-12b |
दृष्ट्वा त्वादित्यमुद्यन्तं कुचोराणां भयं भवेत्। अध्वगाः परितप्येयुरुष्णतो दुःखभागिनः।। | 14-40-13a 14-40-13b |
आदित्यः सत्वमुद्दिष्टः कुचोरास्तु तथा तमः। परितापोऽध्वगानां च रजसो गुण उच्यते।। | 14-40-14a 14-40-14b |
प्राकाश्यं सत्वमादित्यः संतापो रजसो गुणः। उपप्लवस्तु विज्ञेयस्तामसस्तस्य पर्वसु।। | 14-40-15a 14-40-15b |
एवं ज्योतिष्षु सर्वेषु प्रवर्तन्ते गुणास्त्रयः।। पर्यायेण च वर्न्तते तत्रतत्र तथातथा।। | 14-40-16a 14-40-16b |
स्थावरेषु तु भावेषु तिर्यग्भावगतं तमः। राजसास्तु विवर्तन्ते स्नेहभावस्तु सात्विकैः।। | 14-40-17a 14-40-17b |
अहस्त्रिधा तु विज्ञेयं त्रिधा रात्रिर्विधीयते। मासार्दमासवर्षाणि ऋतवः सन्धयस्तथा।। | 14-40-18a 14-40-18b |
त्रिधा दानानि दीयन्ते त्रिधा यज्ञः प्रवर्तते। त्रिधा लोकास्त्रिधा देवास्त्रिधा विद्यास्त्रिधा गतिः।। | 14-40-19a 14-40-19b |
भूतं भव्यं भविष्यं च धर्मोऽर्थः काम एव च। प्राणापानावुदानश्चाप्येत एव त्रयो गुणाः।। | 14-40-20a 14-40-20b |
पर्यायेण प्रवर्तन्ते तत्रतत्र तथातथा। यत्किञ्चिदिह लोकेऽस्मिन्सर्वमेते त्रयो गुणाः।। | 14-40-21a 14-40-21b |
त्रयो गुणाः प्रवर्तन्ते ह्यव्यक्ता नित्यमेव तु। सत्वं रजस्तमश्चैव गुणसर्गः सनातनः।। | 14-40-22a 14-40-22b |
तमोऽव्यक्तं शिवं धाम रजो योनिः सनातनः। प्रकृतिर्विकारः प्रलयः प्रधानं प्रभवाप्ययौ।। | 14-40-23a 14-40-23b |
अनुद्रिक्तमनूनं वाऽप्यकम्पमचलं ध्रुवम्। सदसच्चैव तत्सर्वमव्यक्तं त्रिगुणं स्मृतम्। ज्ञेयानि नामधेयानि नरैरद्यात्मचिन्तकैः।। | 14-40-24a 14-40-24b 14-40-24c |
अव्यक्तनामानि गुणांश्च तत्त्वतो यो वेद सर्वाणि गतीश्च केवलाः। विमुक्तदेहः प्रविभागतत्त्ववि- त्स मुच्यते सर्वगुणैर्निरामयः।। | 14-40-25a 14-40-25b 14-40-25c 14-40-25d |
।। इति श्रीमन्महाभारते आश्वमेधिकपर्वणि अनुगीतापर्वणि चत्वारिंशोऽध्यायः।। 40 ।। |
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