महाभारतम्-14-आश्वमेधिकपर्व-032
← आश्वमेधिकपर्व-031 | महाभारतम् चतुर्दशपर्व महाभारतम्-14-आश्वमेधिकपर्व-032 वेदव्यासः |
आश्वमेधिकपर्व-033 → |
ब्राह्मणेन स्वभार्यांप्रति कामक्रोधादिपरित्यागपूर्वकं भगवदवबोधस्य परमपुरुषार्थसाधनतावबोधकाम्बरीषगीतगाथाकथनम्।। 1 ।।
|
ब्राह्मण उवाच। | 14-32-1x |
त्रयो वै रिपवो लोके नवधा गुणतः स्मृताः। हर्षः स्तंभोतिमानश्च त्रयस्ते सात्विका गुणाः।। | 14-32-1a 14-32-1b |
शोकः क्रोधाभिसंरम्भो राजसास्ते गुणाः स्मृताः। स्वप्नस्तन्द्रा च मोहश्च त्रयस्ते तामसा गुणाः।। | 14-32-2a 14-32-2b |
एतान्निकृत्य धृतिमान्बाणसङ्घैरतन्द्रितः। जेतुं परानुत्सहते प्रशान्तात्मा जितेन्द्रियः।। | 14-32-3a 14-32-3b |
अत्र गाथाः कीर्तयन्ति पुराकल्पविदो जनाः। अम्बरीषेण या गीता राज्ञा राज्यं प्रशासता।। | 14-32-4a 14-32-4b |
समुदीर्णेषु दोषेषु बाध्यमानेषु साधुषु। जग्राह तरसा राज्यमम्बरीष इति श्रुतिः।। | 14-32-5a 14-32-5b |
स निगृह्यात्मनो दोषान्साधून्समभिपूज्य च। जगाम महतीं सिद्धिं गाथाश्चेमा जगाद ह।। | 14-32-6a 14-32-6b |
भूयिष्ठं विजिता दोषा निहताः सर्वशत्रवः। एको दोषो वरिष्ठश्च वध्यः स न हतो मया।। | 14-32-7a 14-32-7b |
यत्प्रयुक्तो जन्तुरयं वैतृष्ण्यं नाधिगच्छति। तृष्णार्त इव निम्नानि धावमानो न बुध्यते।। | 14-32-8a 14-32-8b |
अकार्यमपि येनेह प्रयुक्तः सेवते नरः। तं लोभमसिभिस्तीक्ष्णैर्निकृत्य सुखमेधते।। | 14-32-9a 14-32-9b |
लोभाद्धि जायते तृष्णा ततश्चिन्ता प्रवर्तते। स लिप्समानो लभते भूयिष्ठं राजसान्गुणान्। तदवाप्तौ तु लभते भूयिष्ठं तामसान्गुणान्।। | 14-32-10a 14-32-10b 14-32-10c |
स तैर्गुणैः संहतदेहबन्धनः। पुनःपनर्जायति कर्म चेहते। जन्मक्षये भिन्नविकीर्मदेहो मृत्युं पुनर्गच्छति जन्मनैव।। | 14-32-11a 14-32-11b 14-32-11c 14-32-11d |
तस्मादेतं सम्यगवेक्ष्य लोभं निगृह्य धृत्याऽऽत्मनि राज्यमिच्छेत्। एतद्राज्यं नान्यदस्तीह राज्य- मात्मैव राजा विदितो यथावत्।। | 14-32-12a 14-32-12b 14-32-12c 14-32-12d |
इति राज्ञाऽम्बरीषेण गाथा गीता यशस्विना। आधिराज्य पुरस्कृत्य लोभमेकं निकृन्तता।। | 14-32-13a 14-32-13b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आश्वमेधिकपर्वणि अनुगीतापर्वणि द्वात्रिंशोऽध्यायः।। 32 ।। |
14-32-1 गुणतः वृत्तिभेदात्।। 14-32-2 अभिसंरम्भो द्वेषाभिनिवेशः।। 14-32-3 निकृत्य च्छित्त्वा। बाणसंघैः शमादिभिः।। 14-32-11 पुनर्जायति चेह तत्फलम्। फलक्षये भिन्नविदीर्णदेहः पुनर्मृत्यु गच्छति चैव जन्मनीति क.थ.पाठः।। 14-32-12 नान्यदस्तीति विद्या यैश्चैव राजा विजितो मयैक इति क.थ.पाठः।।
आश्वमेधिकपर्व-031 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आश्वमेधिकपर्व-033 |