महाभारतम्-14-आश्वमेधिकपर्व-062
← आश्वमेधिकपर्व-061 | महाभारतम् चतुर्दशपर्व महाभारतम्-14-आश्वमेधिकपर्व-062 वेदव्यासः |
आश्वमेधिकपर्व-063 → |
वसुदेवादिभिरभिमन्यवे श्राद्धदानम्।। 1 ।। व्यासेन हास्तिनपुरमेत्य उत्तरादिपरिसान्त्वपूर्वकं युधिष्ठिरंप्रत्यश्वमेधसंचोदनेनि पुनरन्तर्धानम्।। 2 ।।
|
वैशम्पायन उवाच। | 14-62-1x |
एतच्छ्रुत्वा तु पुत्रस्य वचः शूरात्मजस्तदा। विहाय शोकं धर्मात्मा ददौ श्राद्धमनुत्तमम्।। | 14-62-1a 14-62-1b |
तथैव वासुदेवश्च स्वस्त्रीयस्य महात्मनः। दयितस्यि पितुर्नित्यमकरोदौर्ध्वदेहिकम्।। | 14-62-2a 14-62-2b |
षष्टिं शतसहस्राणि ब्राह्मणानां महौजसाम्। विधिवद्भोजयामास भोज्यं सर्वगुणान्वितम्।। | 14-62-3a 14-62-3b |
आच्छाद्य च महाबाहुर्धनतृष्णामपानुदत्। ब्राह्मणानां तदा कृष्णस्तदभूद्रोमहर्षणम्।। | 14-62-4a 14-62-4b |
सुवर्णं चैव गाश्चैव शयनाच्छादनानि च। दीयमानं तदा विप्रः प्रभूतमिति चाब्रुवन्।। | 14-62-5a 14-62-5b |
वासुदेवोऽथ दाशार्हो बलेदेवः ससात्यकिः। अभिमन्योस्तदा श्राद्धमकुर्वन्सत्यकस्तदा। अतीव दुःखसंतप्ता न शमं चोपलेभिरे।। | 14-62-6a 14-62-6b 14-62-6c |
तथैव पाण्डवा वीरा नगरे नागसह्वये। नोपागच्छन्त वै शान्तिमभिमन्युविनाकृताः।। | 14-62-7a 14-62-7b |
सुबहूनि च राजेन्द्र दिवसानि विराटजा। नाभुङ्क्त पतिदुःखार्ता तदभूत्करुणं महत्।। | 14-62-8a 14-62-8b |
धियमाणे तु तस्मिंस्तु गर्भे कुक्षिस्थ एव च। आजगाम ततो व्यासो ज्ञात्वा दिव्येन चक्षुषा।। | 14-62-9a 14-62-9b |
समागम्याब्रवीमान्पृथां पृथुललोचनाम्। उत्तरां च महातेजाःइ शोकः संत्यज्यतामयम्।। | 14-62-10a 14-62-10b |
जनिष्यते महातेजाः पुत्रस्तव यशस्विनि। प्रभावाद्वासुदेवस्य मम व्याहरणादपि। पाण्डवानामयं चान्ते पालयिष्यति मेदिनीम्।। | 14-62-11a 14-62-11b 14-62-11c |
धनञ्जयं च सम्प्रेक्ष्य धर्मराजस्य शृण्वतः। व्यासो वाक्यमुवाचेदं हर्षयन्निव भारत।। | 14-62-12a 14-62-12b |
पौत्रस्तव महाभागो जनिष्यति महामनाः। पृथ्वीं सागरपर्यन्तां पालयिष्यति धर्मतः।। | 14-62-13a 14-62-13b |
तस्माच्छोकं कुरुश्रेष्ठ जहि त्वमरिकर्शन। विचार्यमत्र न हि ते सत्यमेतद्भविष्यति।। | 14-62-14a 14-62-14b |
यच्चापि वृष्णिवीरेणि कृष्णेन कुरुनन्दन। पुरोक्तं तत्तथा भावि मा तेऽत्रास्तु विचारणा।। | 14-62-15a 14-62-15b |
विबुधानां गतो लोकानक्षयानात्मनिर्जितान्। न स शोच्यस्त्वया वीरो न चान्यैः कुरुभिस्तथा।। | 14-62-16a 14-62-16b |
एवं पितामहेनोक्तो धर्मात्मा स धनञ्जयः। त्यक्त्वा शोकं महाराज हृष्टरूपोऽभवत्तदा।। | 14-62-17a 14-62-17b |
पिताऽपि तव धर्मेज्ञ गर्भे तस्मिन्महामते। अवर्धत यथाकामं शुक्लपक्षे यथा शसी।। | 14-62-18a 14-62-18b |
ततः संचोदयामास व्यासो धर्मात्मजं नृपम्। अश्वमेधं प्रति तदा ततः सोऽन्तर्हितोऽभवत्।। | 14-62-19a 14-62-19b |
धर्मराजोपि मेधावी श्रुत्वा व्यासस्य तद्वचः। वित्तोपनयने तात चकार गमने मतिम्।। | 14-62-20a 14-62-20b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आश्वमेधिकपर्वणि अनुगीतापर्वणि द्विषष्टितमोऽध्यायः।। 62 ।। |
आश्वमेधिकपर्व-061 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आश्वमेधिकपर्व-063 |