महाभारतम्-14-आश्वमेधिकपर्व-075
← आश्वमेधिकपर्व-074 | महाभारतम् चतुर्दशपर्व महाभारतम्-14-आश्वमेधिकपर्व-075 वेदव्यासः |
आश्वमेधिकपर्व-076 → |
अर्जुनेन प्राग्ज्योतिषपुरमेत्याश्वरक्षणाय भगदत्तसुतेन यज्ञदत्तेन सहायोधनम्।। 1 ।।
|
वैशम्पायन उवाच। | 14-75-1x |
प्राग्ज्योतिषमथाभ्येत्य व्यचरत्स हयोत्तमः। भगदत्तात्मजस्तत्र निर्ययौ रणकर्कशः।। | 14-75-1a 14-75-1b |
सहयं पाण्डुपुत्रं तु विषयान्तमुपागतम्। युयुधे भरतश्रेष्ठ यज्ञदत्तो महीपतिः।। | 14-75-2a 14-75-2b |
सोभिनिर्याय नगराद्भगदत्तसुतो नृपः। अश्वमायान्तमुन्मथ्य नगराभिमुखो ययौ।। | 14-75-3a 14-75-3b |
तमालक्ष्य महाबाहुः कुरूणामृषभस्तदा। गाण्डीवं विक्षिपंस्तूर्णं सहसा समुपाद्रवत्।। | 14-75-4a 14-75-4b |
ततो गाण्डीवनिर्मुक्तैरिषुभिर्मोहितो नृपः। हयमुत्सृज्य तं वीरस्ततः पार्थमुपाद्रवत्।। | 14-75-5a 14-75-5b |
पुनः प्रविश्य नगरं दंशितः स नृपोत्तमः। आरुह्य नागप्रवरं निर्ययौ युद्धकाङ्क्षया।। | 14-75-6a 14-75-6b |
पाण्डुरेणातपत्रेण ध्रियमाणेन मूर्धनि। दोधूयता चामरेण श्वेतेन च महारथः।। | 14-75-7a 14-75-7b |
ततः पार्थं समासाद्य पाण्डवानां महारथम्। आह्वयामास बीभत्सुं बाल्यान्मोहाच्च संयुगे।। | 14-75-8a 14-75-8b |
स वारणं नगप्रख्यं प्रभिन्नकरटामुखम्। प्रेषयामास संक्रुद्धः श्वेताश्वं प्रति पार्थिवः।। | 14-75-9a 14-75-9b |
विक्षरन्तं महामेघं परवारणवारणम्। शस्त्रवत्कल्पितं सङ्ख्ये विवशं युद्धदुर्मदम्।। | 14-75-10a 14-75-10b |
प्रचोद्यमानः स गजस्तेन राज्ञा महाबलः। तदाऽङ्कशेन विबभावुत्पतिष्यन्निवाम्बरम्।। | 14-75-11a 14-75-11b |
तमापतन्तं सम्प्रेक्ष्य क्रुद्धो राजन्धनंजयः। भूमिष्ठो वारणगतं योधयामास भारत।। | 14-75-12a 14-75-12b |
यज्ञदत्तस्ततः क्रुद्धो मुमोचाशु धनंजये। तोमरानग्निसङ्काशाञ्शलभानिव वेगितान्।। | 14-75-13a 14-75-13b |
अर्जुनस्तानसम्प्राप्तान्गाण्डीवप्रभवैः शरैः। द्विधा त्रिधा च चिच्छेद खगमान्खगमैस्तदा।। | 14-75-14a 14-75-14b |
स तान्दृष्ट्वा तथा छिन्नांस्तोमरान्भगदत्तजः। इषूनसक्तांस्त्वरितः प्राहिणोत्पाण्डवं प्रति।। | 14-75-15a 14-75-15b |
ततोऽर्जुनस्तूर्णतरं रुक्मपुङ्खानजिह्मगान्। प्रेषयामास संक्रुद्धो भगदत्तात्मजं प्रति।। | 14-75-16a 14-75-16b |
स तैर्विद्धो महातेजा यज्ञदत्तो महामृधे। भृशाहतः पपातोर्व्यां न त्वेनमजहात्स्मृतिः।। | 14-75-17a 14-75-17b |
ततः स पुनरारुह्य वारणप्रवरं रणे। अव्यग्रः प्रेषयामास जयार्थी विजयं प्रति।। | 14-75-18a 14-75-18b |
तस्मै बाणांस्ततो जिष्णुर्निर्मुक्ताशीविषोपमान्। प्रेषयामास संक्रुद्धो ज्वलितज्वलनोपमान्।। | 14-75-19a 14-75-19b |
स तैर्विद्धो महानागो विस्रवन्रुधिरं बभौ। हिमवानिव शैलेन्द्रो बहुप्रस्रवणस्तदा।। | 14-75-20a 14-75-20b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आश्वमेधिकपर्वणि अनुगीतापर्वणि पञ्चसप्ततितमोऽध्यायः।। 75 ।। |
14-75-2 वज्रदत्तो महीपतिरिति झ.पाठः।। 14-75-20 गैरिकाक्तमिवाम्भोद्रिर्बहुप्रस्रवणं तदा इति झ.पाठः।।
आश्वमेधिकपर्व-074 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आश्वमेधिकपर्व-076 |