महाभारतम्-14-आश्वमेधिकपर्व-066
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कृष्णेन बलभद्द्रसुमद्रादिभिः सह यज्ञार्थं हास्तिनपुरं प्रत्यागमनम्।। 1 ।। तत उत्तरायां परिक्षितो परिक्षितो जननम्।। 2 ।।
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भश्वत्थामास्त्रेण जननकालएव शवभूतस्य तस्योज्जीवनाय कुन्त्यादिभिः श्रीकृष्णंप्रति
वैशम्पायन उवाच। | 14-66-1x |
एतस्मिन्नेव काले तु वासुदेवोऽपि वीर्यवान्। उपायाद्वृष्णिभिः सार्दं पुरं वारणसाह्वयम्।। | 14-66-1a 14-66-1b |
समयं वाजिमेधस्य विदित्वा पुरुषर्षभः। यथोक्तो धर्मपुत्रेण प्रव्रजन्स्वपुरीं प्रति।। | 14-66-2a 14-66-2b |
रौक्मिणेयेन सहितो युयुधानेन चैव ह। चारुदेष्णेन सांबेनि गदेन कृतवर्मणा।। | 14-66-3a 14-66-3b |
सारणेन च वीरेण निशठेनोन्मुखेन च। बलदेवं पुरस्कृत्य सुभद्रासहितस्तदा।। | 14-66-4a 14-66-4b |
द्रौपदीमुत्तरां चैव पृथां चाप्यवलोककः। समाश्वासयितुं चापि क्षत्रिया निहतेश्वराः।। | 14-66-5a 14-66-5b |
तानागतान्समीक्ष्यैव धृतराष्ट्रो महीपतिः। प्रत्यगृह्णाद्यथान्यायं विदुरश्च महामनाः।। | 14-66-6a 14-66-6b |
तत्रैव न्यवसत्कृष्णः स्वर्चितः पुरुषोत्तमः। विदुरेणि महातेजास्तथैव च युयुत्सुना।। | 14-66-7a 14-66-7b |
वसत्सु वृष्णिवीरेषु तत्राथ जनमेजय। जज्ञे तव पिता राजन्परिक्षित्परवीरहा।। | 14-66-8a 14-66-8b |
स तु राजा महाराज ब्रह्मास्त्रेणावपीडितः। शवो बभूव निश्चेष्टो हर्षशोकविवर्धनः।। | 14-66-9a 14-66-9b |
हृष्टानां सिंहनादेन जनानां तत्र निःस्वनः। आविवश दिशःसर्वाः पुनरेवाभ्युपागमत्।। | 14-66-10a 14-66-10b |
ततः सोतित्वरः कृष्णो विवेशान्तःपुरं तदा। युयुधानद्वितीयो वै व्यथितेन्द्रियमानसः।। | 14-66-11a 14-66-11b |
ततस्त्वरितमायान्तीं ददर्शं स्वां पितृष्वसाम्। क्रोशन्तीमभिधावेति वासुदेवं पुनःपुनः।। | 14-66-12a 14-66-12b |
पृष्ठतो द्रौपदीं चैव सुभद्रां च यशस्विनीम्। विक्रोशन्त्यश्च करुणं पाण्डवानां स्त्रियो नृप।। | 14-66-13a 14-66-13b |
ततः कृष्णं समासाद्य कुन्ती भोजसुता तदा। प्रोवाच राजशार्दूल बाष्पगद्गदया गिरा।। | 14-66-14a 14-66-14b |
वासुदेव महाबाहो सुप्रजा देवकी त्वया। त्वं नो गतिः प्रतिष्ठा च त्वदायत्तमिदं कुलम्।। | 14-66-15a 14-66-15b |
यदुप्रवीर योऽयं ते स्वस्त्रीयस्यात्मजः प्रभो। अश्वत्थाम्ना हतो जातस्तमुज्जीवय केशव।। | 14-66-16a 14-66-16b |
त्वया ह्येतत्प्रतिज्ञातमैषीके यदुनन्दन। अहं संजीवयिष्यामि मृतं जातमिति प्रभो।। | 14-66-17a 14-66-17b |
सोयं जातो मृतस्तात पश्यैनं पुरुषर्षभ। उत्तरां च सुभद्रां च द्रौपदीं मां च माधव।। | 14-66-18a 14-66-18b |
धर्मपुत्रं च भीमं च फल्गुनं नकुलं तथा। सहदेवं च दुर्धर्षं सर्वान्नस्त्रातुमर्हसि।। | 14-66-19a 14-66-19b |
अस्मिन्प्राणाः समायत्ताः पाण्डवानां ममैव च। पाण्डोश्च पिण्डो दाशार्ह तथैव श्वशुरस्य मे।। | 14-66-20a 14-66-20b |
अभिमन्योश्च भद्रं ते प्रियस्य सदृशस्य च। प्रियमुत्पादयाद्य त्वं प्रेतस्यापि जनार्दन।। | 14-66-21a 14-66-21b |
उत्तरा हि पुरोक्तं वै कथयत्यरिसूदन। अभिमन्योर्वचः कृष्ण प्रियत्वात्तन्न संशयः।। | 14-66-22a 14-66-22b |
अब्रवीत्किल दाशार्ह वैराटीमार्जुनिस्तदा। मातुलस्य कुलं भद्रे तव पुत्रो गमिष्यति।। | 14-66-23a 14-66-23b |
गत्वा वृष्णयन्धककुलं धनुर्वेदं ग्रहीष्यति। अस्त्राणि च विचित्राणि नितीशास्त्रं च केवलं।। | 14-66-24a 14-66-24b |
इत्येतत्प्रणयात्तात सौभद्रः परवीरहा। कथयामास दुर्धर्षस्तथा चैतन्न संशयः।। | 14-66-25a 14-66-25b |
तास्त्वां वयं प्रणम्येह याचामो मधुसूदन। कुलस्यास्य हितार्तं च कुरु कल्याणमुत्तमम्।। | 14-66-26a 14-66-26b |
एवमुक्त्वा तु वार्ष्णेयं पृथा पृथुललोचना। उद्धृत्य बाहू दुःखार्ता ताश्चान्याः प्रापतन्भुवि।। | 14-66-27a 14-66-27b |
अब्रुवंश्च महाराज सर्वाः सास्राविलेक्षणाः। स्वस्त्रीयो वासुदेवस्य मृतो जात इति प्रभो।। | 14-66-28a 14-66-28b |
एवं गते ततः कुन्तीं पर्यगृह्णाज्जनार्दनः। भूमौ निपतितां चैनां सान्त्वयामास भारत।। | 14-66-29a 14-66-29b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आश्वमेधिकपर्वणि अनुगीतापर्वणि षट्षष्टितमोऽध्यायः।। 66 ।। |
।। इति श्रीमन्महाभारते आश्वमेधिकपर्वणि अनुगीतापर्वणि षट्षष्टितमोऽध्यायः।। 66 ।।
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