महाभारतम्-14-आश्वमेधिकपर्व-089
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बभ्रुवाहनेनोलूपीचित्राङ्गदाभ्यां सह यागदिदृक्ष्या हास्तिनपुरं प्रत्यागमनम्।। 1 ।। ततः स्वयं समागतव्यासाज्ञय युधिष्ठिरेण ऋत्विग्भिः सहाश्वमेधोपक्रमः।। 2 ।।
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वैशम्पायन उवाच। | 14-89-1x |
एतस्मिन्नेव काले तु स राजा बभ्रुवाहनः। मातृभ्यां सहितो धीमान्कुरूनभ्याजगाम ह।। | 14-89-1a 14-89-1b |
तत्र वृद्धान्यथावत्स कुरूनन्यांश्च पार्थिवान्। अभिवाद्य महाबाहुस्तैश्चापि प्रतिनन्दितः। प्रविवेश पितामह्याः कुन्त्या भवनमुत्तमम्।। | 14-89-2a 14-89-2b 14-89-2c |
स प्रविश्य महाबाहुः पाण्डवानां निवेशनम्। पितामहीमभ्यवन्दत्साम्ना परमवल्गुना।। | 14-89-3a 14-89-3b |
तथा चित्राङ्गदा देवी कौरवस्यात्मजाऽपि च। पृथां कृष्णां च सहिते विनयेनोपजग्मतुः। सुभद्रां च यथान्यायं याश्चान्याः कुरुयोषितः।। | 14-89-4a 14-89-4b 14-89-4c |
ददौ कुन्ती ततस्ताभ्यां रत्नानि विविधानि च। द्रौपदी च सुभद्रा च याश्चाप्यन्या यदुस्त्रियः।। | 14-89-5a 14-89-5b |
ऊषतुस्तत्र ते देव्यौ महार्ङशयनासने। सुपूजिते स्वयं कुन्त्या पार्थस्य हितकाम्यया।। | 14-89-6a 14-89-6b |
स च राजा महातेजाः पूजितो बभ्रुवाहनः। धूतराष्ट्रं महीपालमुपतस्थे यताविधि।। | 14-89-7a 14-89-7b |
युधिष्टिरं च राजानं भीमदींश्चापि पाण्डवान्। उपागम्य महातेजा विनयेनाभ्यवादयत्।। | 14-89-8a 14-89-8b |
स तैः प्रेम्या परिष्वक्तः पूजितश्च यथाविधि। धनं चास्मै ददुर्भूरि प्रीयमाणा महारथाः।। | 14-89-9a 14-89-9b |
तथैव च महीपालः कृष्णं चक्रगदाधरम्। प्रद्युम्न इव गोविन्दं विनयेनोपतस्थिवान्।। | 14-89-10a 14-89-10b |
तस्मै कृष्णो ददौ राज्ञे महार्हमतिपूजितम्। रथं हेमपरिष्कारं दिव्याश्वयुजमुत्तमम्।। | 14-89-11a 14-89-11b |
धर्मराजश्च भीमश्च फल्गुनश्च यमौ तथा। पृथक्पृथक् च ते चैनं मानार्थाभ्यामयोजयन्।। | 14-89-12a 14-89-12b |
ततस्तृतीये दिवसे सत्यवत्यात्मजो मुनिः। युधिष्ठिरं समभ्येत्य वाग्मी वचनमब्रवीत्।। | 14-89-13a 14-89-13b |
अद्यप्रभृति कौन्तेय यज्ञस्य समयो हि ते। मुहूर्तो यज्ञियः प्राप्तश्चोदयन्तीह याजकाः।। | 14-89-14a 14-89-14b |
अहीनो नाम राजेन्द्र क्रतुस्तेऽयं विकल्पवान्। बहुत्वात्काञ्चनस्यास्य ख्यातो बहुसुवर्णकः।। | 14-89-15a 14-89-15b |
एवमत्र महाराज दक्षिणाभिर्गुणीकुर। श्रीस्त्वां व्रजतु ते राजन्ब्राह्मणा ह्यत्र कारणम्।। | 14-89-16a 14-89-16b |
त्रीनश्वमेधानत्र त्वं सम्प्राप्य बहुदक्षिणान्। ज्ञातिवध्याकृतं पापं प्रहास्यति नराधिप।। | 14-89-17a 14-89-17b |
पवित्रं परमं चैतत्पावनानां च पावनम्। यदश्वमेधावभृथं प्राप्स्यसे कुरुनन्दन।। | 14-89-18a 14-89-18b |
इत्युक्तः स तु तेजस्वी व्यासेनामितबुद्धिना। दीक्षां विवेश धर्मात्मा वाजिमेधाप्तये ततः।। | 14-89-19a 14-89-19b |
ततो यज्ञं महाबाहुर्वाजिमेधं महाक्रतुम्। बह्वन्नदक्षिणं राजा सर्वकामगुणान्वितम्।। | 14-89-20a 14-89-20b |
तत्र वेदविदो राजंश्चक्रुः कर्माणि याजकाः। परिक्रामन्ति शास्त्रज्ञा यतावद्द्विजसत्तमाः।। | 14-89-21a 14-89-21b |
न तेषां स्खलितं किञ्चिदासीदपहुतं तथा। क्रमयुक्तं च युक्तं च चक्रुस्तत्र द्विजर्षभाः।। | 14-89-22a 14-89-22b |
कृत्वा प्रवर्ग्यं धर्मज्ञा यथावद्द्विजसत्तमाः। चक्रस्ते विधिवद्राजंस्तथैवाभिषवं द्विजाः।। | 14-89-23a 14-89-23b |
अभिषूय ततो राजन्सोमं सोमपसत्तमाः। सवनान्यानुपूर्व्येण चक्रुः सास्त्रानुसारिणः।। | 14-89-24a 14-89-24b |
न तत्र कृपणः कश्चिन्न दरिद्रो बभूव ह। क्षुधितो दुःखितो वाऽपि प्राकृतो वाऽपि मानवः।। | 14-89-25a 14-89-25b |
भोजनं भोजनार्थिभ्यो दापयामास शत्रुहा। भीमसेनो महातेजाः सततं राजशासनात्।। | 14-89-26a 14-89-26b |
संस्तरे कुशलाश्चापि सर्वकार्याणि याजकाः। दिवसेदिवसे चक्रुर्यथाशास्त्रानुदर्शात्।। | 14-89-27a 14-89-27b |
नाषडङ्गविदत्रासीत्सदस्यस्तस्य धीमतः। नाव्रतो नानुपाध्यायो न च वादाविचक्षणः।। | 14-89-28a 14-89-28b |
ततो यूपोच्छ्रये प्राप्ते षड् बैल्वान्भरतर्षभ। खादिरान्बिल्वसमितांस्तावतः सर्ववर्णिनः।। | 14-89-29a 14-89-29b |
देवदारुमयौ द्वौ तु यूपौ कुरुपतेर्मखे। श्लेष्मातकमयं चैकं याजकाः समकल्पयन्।। | 14-89-30a 14-89-30b |
`सर्वानेतान्यथाशास्त्रं याजकाः समकारयन्।' शोभार्थं चापरान्यूपान्काञ्चनान्भरतर्षभ। स भीमः कारयामास धर्मराजस्य शासनात्।। | 14-89-31a 14-89-31b 14-89-31c |
ते व्यराजन्त राजर्षे वासोभिरुपशोभिताः। महेन्द्रानुगता देवा यथा सप्तर्षिभिर्दिवि।। | 14-89-32a 14-89-32b |
इष्टकाः काञ्चनीश्चात्र चयनार्तं कृता विभो। शुशुभे चयनं तच्च दक्षस्येव प्रजापतेः।। | 14-89-33a 14-89-33b |
चतुश्चित्यश्च तस्यासीदष्टादशकरात्मकः। स रुक्मपक्षो निचितस्त्रिकोणो गरुडाकृतिः।। | 14-89-34a 14-89-34b |
ततो नियुक्ताः पशवो यथाशास्त्रं मनीषिभिः। तं तं देवं समुद्दिश्य पक्षिणः पशवश्च ये।। | 14-89-35a 14-89-35b |
ऋषभाः शास्त्रपठितास्तथा जलचराश्च ये। सर्वांस्तानभ्ययुञ्जंस्ते तत्राग्निचयकर्मणि।। | 14-89-36a 14-89-36b |
यूपेषु नियता चासीत्पशूनां त्रिशती तथा। अश्वरत्नोत्तरा यज्ञे कौन्तेयस्य महात्मनः।। | 14-89-37a 14-89-37b |
स यज्ञः शुशुभे तस्य साक्षाद्देवर्षिसंकुलः। गन्धर्वगणसंकीर्णः शोभितोऽप्सरसां गणैः।। | 14-89-38a 14-89-38b |
स किंपुरुषसंकीर्णः किंनरैश्चोपशोभितः। सिद्धविप्रनिवासैश्च समन्तादभिसंवृतः।। | 14-89-39a 14-89-39b |
तस्मिन्सदसि नित्यास्तु व्यासशिष्या द्विजर्षभाः। सर्वशास्त्रप्रणेतारः कुशला यज्ञकर्मसु।। | 14-89-40a 14-89-40b |
नारदश्च बभूवात्र तुंबुरुश्च महाद्युतिः। विश्वावसुश्चित्रसेनस्तथाऽन्ये गीतकोविदाः।। | 14-89-41a 14-89-41b |
गन्धर्वा गीतकुशला नृत्येषु च विशारदाः। रमयन्ति स्म तान्विप्रान्यज्ञकर्मान्तरेषु वै।। | 14-89-42a 14-89-42b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आश्वमेधिकपर्वणि अनुगीतापर्वणि एकोननवतितमोऽध्यायः।। 89 ।। |
14-89-15 अहीनः अह्नां सोमयागानां बहूनां समूहोऽहीनः। न हीनः द्रव्यादिना इति वा।। 14-89-23 अभिषव सोमवल्ल्याः कण्डनम्।। 14-89-24 सोमं सोमवल्लीरसम्। सवनानि प्रातःसवनादीनि।। 14-89-27 संस्तरे इष्टकानां चयनाख्ये स्थण्डिलरचने।। 14-89-29 वर्णिनः पलाशकाष्ठमयाः।।
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