महाभारतम्-14-आश्वमेधिकपर्व-060
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कृष्णेन वसुदेवादीन्प्रति कुरुपाण्डवयुद्धप्रकारकथनम्।। 1 ।।
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14-60-11 ततः शिखण्डी गाङ्गेयं युध्यमानं महाहवे। इति झ.पाठः।।
वसुदेव उवाच। | 14-60-1x |
श्रुतवानस्मि वार्ष्णेय सङ्ग्रामं परमाद्भुतम्। नराणां वदतां पुत्र कथोद्धातेषु नित्यशः।। | 14-60-1a 14-60-1b |
त्वं तु प्रत्यक्षदर्शी च कार्यज्ञश्च महाभुजः। तस्मात्प्रब्रूहि सङ्ग्रामं याथातथ्येन मेऽनघ।। | 14-60-2a 14-60-2b |
यथा तदभवद्युद्धं पाण्डवानां महात्मनाम्। भीष्मकर्णकृपद्रोणशल्यादिभिरनुत्तमम्।। | 14-60-3a 14-60-3b |
अन्येषां क्षत्रियाणां च कृतास्त्राणामनेकशः। नानावेषाकृतिमतां नानादेशनिवासिनाम्।। | 14-60-4a 14-60-4b |
वैशम्पायन उवाच। | 14-60-5x |
इत्युक्तः पुण्डरीकाक्षः पित्रा मातुस्तदाऽन्तिके। शशंस कुरुवीराणां सङ्ग्रामे निधनं यथा।। | 14-60-5a 14-60-5b |
वासुदेव उवाच। | 14-60-6x |
अत्यद्भुतानि कर्माणि क्षत्रियाणां महात्मनाम्। बहुलत्वान्न सङ्ख्यातुं शक्यान्यब्दशतैरपि।। | 14-60-6a 14-60-6b |
प्राधान्यतस्तु गदतः समासेनैव मे शृणु। कर्माणि पृथिवीशानां यथावदमरद्युते।। | 14-60-7a 14-60-7b |
भीष्मः सेनापतिरभूदेकादशचमूपतिः। कौरव्यः कौरवेन्द्राणां देवानामिव पावकिः।। | 14-60-8a 14-60-8b |
शिखण्डी पाण्डुपुत्राणां नेता सप्तचमूपतिः। बभूव रक्षितो धीमाञ्श्रीमता सव्यसाचिना।। | 14-60-9a 14-60-9b |
तेषां तदभवद्युद्धं दशाहानि महात्मनाम्। कुरूणां पाण्डवानां च सुमहद्रोमहर्षणम्।। | 14-60-10a 14-60-10b |
अयुध्यमानं गाङ्गेयं शिखण्डी तं महाद्युतिम्। जघान बहुभिर्बाणैः सह गाण्डीवधन्वना।। | 14-60-11a 14-60-11b |
अकरोत्स ततः कालं शरतल्पगतो मुनिः। अयनं दक्षिणं हित्वा सम्प्राप्ते चोत्तरायणे।। | 14-60-12a 14-60-12b |
ततः सेनापतिरभूद्द्रोणोऽस्त्रविदुषांवरः। प्रवीरः कौरवेन्द्रस्य काव्यो दैत्यपतेरिव।। | 14-60-13a 14-60-13b |
अक्षौहिणीभिः शिष्टाभिर्नवभिर्द्विजसत्तमः। संवृतः समरश्लाघी गुप्तः कृपसुतादिभिः।। | 14-60-14a 14-60-14b |
धृष्टद्युम्नस्त्वभून्नेता पाण्डवानां महास्त्रवित्। गुप्तो भीमेन मेधावी मित्रेण वरुणो यथा।। | 14-60-15a 14-60-15b |
स च सेनापरिवृतो द्रोणप्रेप्सुर्महामनाः। पितुर्निकारान्संस्मृत्य रणे कर्माकरोन्महत्।। | 14-60-16a 14-60-16b |
तस्मिंस्ते पृथिवीपाला द्रोणपार्षतसङ्गरे। नानादिगागता वीराः प्रायशो निधनं गताः।। | 14-60-17a 14-60-17b |
दिनानि पञ्च तद्युद्धमभूत्परमदारुणम्। ततो द्रोणः परिश्रान्तो धृष्टद्युम्नवशं गतः।। | 14-60-18a 14-60-18b |
ततः सेनापतिरभूत्कर्णो दौर्योधने बले। अक्षौहिणीभिः शिष्टाभिर्वृतः पञ्चभिराहवे।। | 14-60-19a 14-60-19b |
तिस्रस्तु पाण्डुपुत्राणां चम्वो बीभत्सुपालिताः। हतप्रवीरभूयिष्ठा बभूवुः समवस्थिताः।। | 14-60-20a 14-60-20b |
ततः पार्थं समासाद्य पतङ्ग इव पावकम्। पञ्चत्वमगमत्सौतिर्द्वितीयेऽहनि दारुणः।। | 14-60-21a 14-60-21b |
हते कर्णे तु कौरव्या निरुत्साहा हतौजसः। अक्षौहिणीभिस्तिसृभिर्मद्रेशं पर्यवारयन्।। | 14-60-22a 14-60-22b |
हतिवाहनभूयिष्ठाः पाण्डिवास्तु युधिष्ठिरम्। अक्षौहिण्या निरुत्साहाः शिष्टया पर्यवारयन्।। | 14-60-23a 14-60-23b |
अवधीन्मद्रराजानं कुरुराजो युधिष्ठिरः। तस्मिंस्तदाऽर्धदिवसे कृत्वा कर्म सुदुष्करम्।। | 14-60-24a 14-60-24b |
हते शल्ये तु शकुनिं सहदेवो महामनाः। आहर्तारं कलेस्तस्य जगानामितविक्रमः।। | 14-60-25a 14-60-25b |
निहते शकुनौ राजा धार्तराष्ट्रः सुदुर्मनाः। अपाक्रामद्गदापाणिर्हतभूयिष्ठसैनिकः।। | 14-60-26a 14-60-26b |
तमन्वधावत्संक्रुद्धो भीमसेनः प्रतापवान्। ह्रदे द्वैपायने चापि सलिलस्थं ददर्श तम्।। | 14-60-27a 14-60-27b |
इतशिष्टेन सैन्येन समन्तात्पर्यवार्य तम्। अथोपविविशुर्हृष्टा ह्रदस्थं पञ्च पाण्डवाः।। | 14-60-28a 14-60-28b |
विगाह्य सलिलं त्वाशु वाग्बाणैर्भृशविक्षतः। उत्थाय स गदापाणिर्युद्धाय समुपस्थितः।। | 14-60-29a 14-60-29b |
ततः स निहतो राजा धार्तराष्ट्रो महारणे। भीमसेनेन विक्रम्य पश्यतां पृथिवीक्षिताम्।। | 14-60-30a 14-60-30b |
ततस्तत्पाण्डवं सैन्यं प्रसुप्तं शिबिरे निशि। निहतं द्रोणपुत्रेण पितुर्वधममृष्यता।। | 14-60-31a 14-60-31b |
हतपुत्रा हतबला हतमित्रा मया सह। युयुधानसहायेन पञ्च शिष्टास्तु पाण्डवाः।। | 14-60-32a 14-60-32b |
सहैव कृपभोजाभ्यां द्रौणिर्युद्धादमुच्यत। युयुत्सुश्चापि कौरव्यो मुक्तः पाण्डवसंश्रयात्।। | 14-60-33a 14-60-33b |
निहते कौरवेन्द्रे तु सानुबन्धे सुयोधने। विदुरः संजयश्चैव धर्मराजमुपस्थितौ।। | 14-60-34a 14-60-34b |
एवं तदभवद्युद्दमहान्यष्टादश प्रभो। यत्र ते पृथिवीपाला निहताः स्वर्गमावसन्।। | 14-60-35a 14-60-35b |
वैशम्पायन उवाच। | 14-60-36x |
शृण्वतां तु महाराज कथां तां रोमहर्षणीम्। दुःखशोकपरिक्लेशा वृष्णीनामभवंस्तदा।। | 14-60-36a 14-60-36b |
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