महाभारतम्-14-आश्वमेधिकपर्व-081
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बभ्रुवाहने प्रायोपविष्टे उलूप्या स्मरणमात्रसंनिहितसंजीवनमणिनार्जुनस्य समुद्धोधनम्।। 1 ।। ततः सुप्तोत्थितेनेव तेन बभ्रुवाहनंप्रति चित्राङ्गदादीनां रणाङ्गणागमने कारणप्रश्ने तेनोलूपींप्रति प्रश्नचोदना।। 2 ।।
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वैशम्पायन उवाच। | 14-81-1x |
प्रायोपविष्टे नृपतौ मणिपूरेश्वरे तदा। पितृशोकसमाविष्टे सह मात्रा परंतप।। | 14-81-1a 14-81-1b |
उलूपी चिन्तयामास तदा संजीवनं मणिम्। स चोपातिष्ठत तदा पन्नगानां परायणम्।। | 14-81-2a 14-81-2b |
तं गृहीत्वा तु कौरव्य नागराजपतेः सुता। मनःप्रह्लादनीं वाचं सैनिकानामथाब्रवीत्।। | 14-81-3a 14-81-3b |
उत्तिष्ठ मा शुचः पुत्र नैव जिष्णुस्त्वया हतः। अजेयः पुरुषैरेष तथा देवैः सवासवैः।। | 14-81-4a 14-81-4b |
मया तु मोहनी नाम मायैषा सम्प्रदर्शिता। प्रियार्थं पुरुषेन्द्रस्य पितुस्तेऽद्य यशस्विनः।। | 14-81-5a 14-81-5b |
जिज्ञासुर्ह्येष पुत्रस्य बलस्य तव कौरव। सङ्ग्रामे युद्ध्यतो राजन्नागतः परवीरहा।। | 14-81-6a 14-81-6b |
तस्मादसि मया पुत्र युद्धाय परिचोदितः। मा पापमात्मनः पुत्र शङ्केथा ह्यण्वपि प्रभो।। | 14-81-7a 14-81-7b |
ऋषिरेष महानात्मा पुराणः शाश्वतोऽक्षरः। नैनं शक्तो हि सङ्ग्रामे जेतुं शक्रोऽपि पुत्रक।। | 14-81-8a 14-81-8b |
अयं तु मे मणिर्दिव्यः समानीतो विशांपते। मृतान्मृतान्पन्नगेन्द्रान्यो जीवयति नित्यदा।। | 14-81-9a 14-81-9b |
एनमस्योरसि त्वं च स्थापयस्व पितुः प्रभो। संजीवितं तदा पार्थं स त्वं द्रष्टासि पाण्डवम्।। | 14-81-10a 14-81-10b |
इत्युक्तः स्थापयामास तस्योरसि मणिं तदा। पार्थस्यामिततेजाः स पितुः स्नेहादपापकृत्।। | 14-81-11a 14-81-11b |
तस्मिन्न्यस्ते मणौ वीरो जिष्णुरुज्जीवितः प्रभुः। चिरसुप्त हवोत्तस्थौ मृष्टलोहितलोचनः।। | 14-81-12a 14-81-12b |
तमुत्थितं महात्मानं लब्धसंज्ञं मनस्विनम्। समीक्ष्य पितरं स्वस्थं ववन्दे बभ्रुवाहनः।। | 14-81-13a 14-81-13b |
उत्थिते पुरुषव्याघ्रे पुनर्लक्ष्मीवति प्रभो। दिव्याः सुमनसः पुण्या ववृषे पाकशासनः।। | 14-81-14a 14-81-14b |
अनाहता दुन्दुभयो विनेदुर्मघनिःस्वनाः। साधुसाध्विति चाकाशे बभूव सुमहान्स्वनः।। | 14-81-15a 14-81-15b |
उत्थाय च महाबाहुः पर्याश्वस्तो धनंजयः।। बभ्रुवाहनमालिङ्ग्य समाजिघ्रत मूर्धनि।। | 14-81-16a 14-81-16b |
ददर्श चापि दूरेऽस्य मातरं शोककर्शिताम्। उलूप्या सह तिष्ठन्तीं ततोऽपृच्छद्धनंजयः।। | 14-81-17a 14-81-17b |
किमिदं लक्ष्यते सर्वं शोकविस्मयहर्षवत्। रणाजिरममित्रघ्न यदि जानासि शंस मे।। | 14-81-18a 14-81-18b |
जननी च किमर्थं ते रणभूमिमुपागता। नागेन्द्रदुहिता चेयमुलूपी किमिहागता।। | 14-81-19a 14-81-19b |
जानाम्यहमिदं युद्धं त्वया मद्वचनात्कृतम्। स्त्रीणामागमने हेतुमहमिच्छामि वेदितुम्।। | 14-81-20a 14-81-20b |
तमुवाच तथा पृष्टो मणिपूरपतिस्तदा। प्रसाद्य शिरसा विद्वानुलूपी पृच्छ्यतामिति।। | 14-81-21a 14-81-21b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आश्वमेधिकपर्वणि अनुगीतापर्वणि एकाशीतितमोऽध्यायः।। 81 ।। |
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